विकसित देशों के उन्नत शिक्षा का असली रहस्य
प्राचीन काल से भारत में प्रचलित ध्यान योग की तरह मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी- मिड ब्रेन एक्टिवेशन, N.LP (न्यूरो लिंग्विस्टिंग प्रोग्रामिंग) तकनीक, पिछले कई वर्षों से रूस की शिक्षा में उपयोग किए जा रहे कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक या इसी तरह की मन- मस्तिष्क क्षमता विकास की अन्य मनोवैज्ञानिक तकनीको का शिक्षा में उपयोग विकसित देशो की शिक्षा के उन्नत होने का पर्याप्त शोध के अलावा प्रमुख आधार है।
अभी हमारे देश में विद्यार्थियों के देशकाल वातावरण के आधार पर उपलब्ध जन्मजात बौद्धिक क्षमता के आधार पर ही शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था है। देश के कुछ प्राइवेट स्कूल और प्राचीन गुरुकुल की शिक्षा पद्धति पर आधारित गुरुकुल में ही उपर्युक्त तरह की शिक्षा दी जा रही है, जिसे देशभर में विस्तारित किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि उपर्युक्त तकनीकों के उपयोग से विद्यार्थी अपने अधिकारिक अर्थात 5- 10% से अधिक बौद्धिक क्षमता का उपयोग कर पाने में समर्थ हो पाते हैं।
यह मानव, विद्यार्थियो में छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता को प्रकट करके उपयोगी बनाने या जीनियस बनाने की जापान ,रूस, स्वीडन, अमेरिका और अन्य विकसित देशो में उपयोग की जाने वाली मानसिक या आधुनिक शिक्षा तकनीक है। इसके समकक्ष भारत में ध्यान योग के रूप में ज्ञान उपलब्ध है, जो भारतीय योग,ध्यान सम्बन्धी ग्रन्थों में हजारों वर्षो से वर्णित है।
लेकिन हमारे देशवासियो द्वारा इसका शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क गुणवत्ता सुधार तकनीक के रूप में उपयोग नही कर पाने के कारण भारतीय प्रतिभा का अधिकाधिक सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में योग ध्यान के द्वारा शारीरिक रोग दूर करने तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की तकनीक के रूप में इसका पर्याप्त उपयोग प्रारंभ हो चुका है। परंतु मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में इसका उपयोग अपेक्षित है।
विकसित देशो में और हमारे देश में मुख्य अंतर यह है कि विकसित देश किसी भी विषय पर अत्यधिक शोध करके जल्दी उसका लाभ ले लेते है ।और हमारे देश में शोध की स्थिति अपेक्षाकृत कम होने के कारण किसी चीज का फायदा लेने में पीछे रह जाते है।
दूसरा एक और महत्वपूर्ण कारण है कि जिस ज्ञान को विकसित देश जानने में कई वैज्ञानिक और कई वर्ष तथा कई करोड़ अरब लगाकर शोध करके निष्कर्ष निकालते है। उसे हमारे देश के कोई भी सामान्य या उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अकेले बिना पैसे के एक मिनट से भी कम समय में बतला देते है की यह अन्धविश्वास है। यह प्रतिभा भी विकसित देशो की तुलना में पिछड़ने का एक मुख्य कारण है।
अगर हम भी विकसित देशों की तरह अपने प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रदत्त अद्वितीय, अति उन्नत योग- ध्यान -मनोविज्ञान रूपी ज्ञान को शोध करके आधुनिक जमाने के अनुरूप बनाकर या शोध कर चुके देशवासियों के ज्ञान का उपयोग भारतीय शिक्षा में करें, तो हम अपने देश के शिक्षा के स्तर को मिलजुल कर विकसित देशों के समकक्ष या उससे बेहतर बना सकने में समर्थ हो सकते है।
विदेशों में प्रचलित मंहगे मिडब्रेन एक्टिवेशन को या इसके विकल्प के रूप में योग ध्यान और मनोविज्ञान के समन्वित रूप को मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में कम खर्च में या निशुल्क सर्व सुलभ करवा कर अपने देश राज्य के विद्यार्थियो को प्रतिभावान बनने अपने बौद्धिक क्षमता का शिक्षा के क्षेत्र में क्षेत्र उपयोग कर सकने तथा शिक्षा के स्तर को विकसित देशों के समकक्ष या उससे बेहतर बनाने में सहयोग किया जा सकता है।
अपने बौद्धिक समझ के स्तर से किसी को यह दिवास्वप्न या कपोल कल्पना लग सकता है ।परन्तु भारतीय ऋषियो द्वारा खोजे गए योग और ध्यान का गहराई से विस्तृत अध्ययन, प्रशिक्षण, प्रयोग करके देखने पर पता चलता है कि यह पूर्णतः सत्य तथा हम भारतीयो के लिए ऋषियो का आशीर्वाद है।
धन्यवाद
प्राचीन काल से भारत में प्रचलित ध्यान योग की तरह मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी- मिड ब्रेन एक्टिवेशन, N.LP (न्यूरो लिंग्विस्टिंग प्रोग्रामिंग) तकनीक, पिछले कई वर्षों से रूस की शिक्षा में उपयोग किए जा रहे कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक या इसी तरह की मन- मस्तिष्क क्षमता विकास की अन्य मनोवैज्ञानिक तकनीको का शिक्षा में उपयोग विकसित देशो की शिक्षा के उन्नत होने का पर्याप्त शोध के अलावा प्रमुख आधार है।
अभी हमारे देश में विद्यार्थियों के देशकाल वातावरण के आधार पर उपलब्ध जन्मजात बौद्धिक क्षमता के आधार पर ही शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था है। देश के कुछ प्राइवेट स्कूल और प्राचीन गुरुकुल की शिक्षा पद्धति पर आधारित गुरुकुल में ही उपर्युक्त तरह की शिक्षा दी जा रही है, जिसे देशभर में विस्तारित किए जाने की आवश्यकता है, क्योंकि उपर्युक्त तकनीकों के उपयोग से विद्यार्थी अपने अधिकारिक अर्थात 5- 10% से अधिक बौद्धिक क्षमता का उपयोग कर पाने में समर्थ हो पाते हैं।
यह मानव, विद्यार्थियो में छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता को प्रकट करके उपयोगी बनाने या जीनियस बनाने की जापान ,रूस, स्वीडन, अमेरिका और अन्य विकसित देशो में उपयोग की जाने वाली मानसिक या आधुनिक शिक्षा तकनीक है। इसके समकक्ष भारत में ध्यान योग के रूप में ज्ञान उपलब्ध है, जो भारतीय योग,ध्यान सम्बन्धी ग्रन्थों में हजारों वर्षो से वर्णित है।
लेकिन हमारे देशवासियो द्वारा इसका शिक्षा के क्षेत्र में विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क गुणवत्ता सुधार तकनीक के रूप में उपयोग नही कर पाने के कारण भारतीय प्रतिभा का अधिकाधिक सदुपयोग नहीं हो पा रहा है। पिछले कुछ वर्षों में योग ध्यान के द्वारा शारीरिक रोग दूर करने तथा शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की तकनीक के रूप में इसका पर्याप्त उपयोग प्रारंभ हो चुका है। परंतु मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में इसका उपयोग अपेक्षित है।
विकसित देशो में और हमारे देश में मुख्य अंतर यह है कि विकसित देश किसी भी विषय पर अत्यधिक शोध करके जल्दी उसका लाभ ले लेते है ।और हमारे देश में शोध की स्थिति अपेक्षाकृत कम होने के कारण किसी चीज का फायदा लेने में पीछे रह जाते है।
दूसरा एक और महत्वपूर्ण कारण है कि जिस ज्ञान को विकसित देश जानने में कई वैज्ञानिक और कई वर्ष तथा कई करोड़ अरब लगाकर शोध करके निष्कर्ष निकालते है। उसे हमारे देश के कोई भी सामान्य या उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति अकेले बिना पैसे के एक मिनट से भी कम समय में बतला देते है की यह अन्धविश्वास है। यह प्रतिभा भी विकसित देशो की तुलना में पिछड़ने का एक मुख्य कारण है।
अगर हम भी विकसित देशों की तरह अपने प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रदत्त अद्वितीय, अति उन्नत योग- ध्यान -मनोविज्ञान रूपी ज्ञान को शोध करके आधुनिक जमाने के अनुरूप बनाकर या शोध कर चुके देशवासियों के ज्ञान का उपयोग भारतीय शिक्षा में करें, तो हम अपने देश के शिक्षा के स्तर को मिलजुल कर विकसित देशों के समकक्ष या उससे बेहतर बना सकने में समर्थ हो सकते है।
विदेशों में प्रचलित मंहगे मिडब्रेन एक्टिवेशन को या इसके विकल्प के रूप में योग ध्यान और मनोविज्ञान के समन्वित रूप को मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में कम खर्च में या निशुल्क सर्व सुलभ करवा कर अपने देश राज्य के विद्यार्थियो को प्रतिभावान बनने अपने बौद्धिक क्षमता का शिक्षा के क्षेत्र में क्षेत्र उपयोग कर सकने तथा शिक्षा के स्तर को विकसित देशों के समकक्ष या उससे बेहतर बनाने में सहयोग किया जा सकता है।
अपने बौद्धिक समझ के स्तर से किसी को यह दिवास्वप्न या कपोल कल्पना लग सकता है ।परन्तु भारतीय ऋषियो द्वारा खोजे गए योग और ध्यान का गहराई से विस्तृत अध्ययन, प्रशिक्षण, प्रयोग करके देखने पर पता चलता है कि यह पूर्णतः सत्य तथा हम भारतीयो के लिए ऋषियो का आशीर्वाद है।
धन्यवाद
0 Comments