"योग-ध्यान" - भारत देश को विश्वगुरु बनाने की कुंजी
कभी विश्व गुरु कहलाने वाला हमारा देश भारत आज विकसित देशों की तुलना में शिक्षा, विज्ञान, रक्षा, व्यापार आदि कई क्षेत्रों में काफी पीछे तथा आश्रित है।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही देश के विकास के लिए सतत बहुआयामी प्रयास के बावजूद विकसित देशों की तुलना में अपेक्षित सफलता प्राप्त नही हो पाया है|
कभी विश्व गुरु कहलाने वाला हमारा देश भारत आज विकसित देशों की तुलना में शिक्षा, विज्ञान, रक्षा, व्यापार आदि कई क्षेत्रों में काफी पीछे तथा आश्रित है।स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से ही देश के विकास के लिए सतत बहुआयामी प्रयास के बावजूद विकसित देशों की तुलना में अपेक्षित सफलता प्राप्त नही हो पाया है|
वर्तमान में हमारा देश भले ही विकसित देश की श्रेणी में नही है,लेकिन विकसित देश बनने, विश्वगुरु बनने, विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में नोबल पुरस्कार प्राप्त करने, शिक्षा के क्षेत्र में विश्व रैंकिंग में विकसित देशो के समकक्ष बनने, ओलम्पिक खेलो में अधिक पदक प्राप्त करने, भारतीय उद्योगों में उन्नत टेक्नोलॉजी का सामान उत्पादन करने सम्बन्धी रहस्य ज्ञान मन-मस्तिष्क सम्बन्धी गहरे ज्ञान के रूप में आज भी पतंजलि योग, ध्यान, दर्शन शास्त्र, विज्ञान भैरव तन्त्र तथा अन्य प्राचीन योग सम्बन्धी भारतीय ग्रन्थों में हमारे भारतीय ऋषियों, योगियो, ध्यानियों, विद्वानों, रहस्य दर्शियों के आशीर्वाद के रूप में उपलब्ध है।
आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा इस ज्ञान को वैज्ञानिक रूप में प्रस्तुत नही करने, वैज्ञानिको द्वारा इस ज्ञान को पिछड़ा हुआ तथा काल्पनिक मानकर नजरअंदाज करने तथा लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के चंगुल में फंसे होने और विदेशी ज्ञान या विदेशी शिक्षा का अंधानुकरण के कारण हमारे देश में उपलब्ध प्राचीन लेकिन अति उन्नत ज्ञान योग-ध्यान का शिक्षा के क्षेत्र में सदुपयोग नही हो पा रहा है।लेकिन विकसित देशों द्वारा प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप में कई वर्षों से उपयोग किया जा रहा है।देश दुनिया की समस्त उपलब्धियों का मूल आधार है मानव की बौद्धिक क्षमता और मानव बौद्धिक क्षमता के विकास तथा सदुपयोग के सम्बन्ध विश्व के किसी भी विकसित देशो के पास उपलब्ध शोध ज्ञान से अधिक उन्नत ज्ञान आज भी हमारे देश में उपर्युक्त स्थिति में उपलब्ध है।जो सभी क्षेत्रो में देश को शीर्ष उन्नत स्थिति में ला सकने में सक्षम है।
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