देश के विकास का मुख्य आधार- शिक्षक और शिक्षा

                देश के विकास का मुख्य आधार- शिक्षक और शिक्षा 

               आधुनिक युग में भी किसी देश के विकसित होने के पीछे मूल आधार है- विज्ञान और टेक्नोलॉजी तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी का आधार है- विश्वविद्यालयीन शिक्षा। विश्वविद्यालयीन शिक्षा  का आधार है- स्कुल शिक्षक और शिक्षा। इसलिए किसी देश का विकसित होने का मूल आधार है- शिक्षक और शिक्षा। जिसको विकसित देश बखूबी समझते हैं। इसीलिए वहां स्कुल शिक्षकों को भी पर्याप्त सुविधा सम्मान तथा अधिकार प्राप्त है। जिससे हमारे देश के जिम्मेदार लोगों को प्रेरणा लेने की जरूरत है।
                यह सर्वविदित तथ्य है कि विकसित देशों में शिक्षक और शिक्षा को काफी महत्व दिया जाता है। जिसके कारण ही वहां के विज्ञान टेक्नोलॉजी, शिक्षा और जीवन स्तर काफी उन्नत है।लेकिन पता नही क्यों हमारे देश में ऐसा नही है।शिक्षकों को काफी छोटा कर्मचारी माना जाता है, विशेष सम्मान भी प्राप्त नही है और अपने हक के लिए संघर्ष करते रहना तथा मानसिक रुप से प्रताड़ित होना पड़ता है।
               बचपन में पढ़ाई में बहुत कमजोर रहने वाले अर्थात सबके द्वारा भोकवा की उपाधि से सुशोभित लोग भी बड़े होकर अपना औकात भूल कर अपने ज्ञानदाता शिक्षक रुपी गुरु को ही डराते-धमकाते,अपमानित करते, परेशान करते हैं। और शिक्षक को ही समझाते हैं कि कैसे पढ़ाया जाए! कैसे शिक्षा दी जाए। इतिहास गवाह है कि शिक्षक(गुरु) के आगे श्रद्धा पूर्वक झुक कर (ग्रहणशील अवस्था) में ही वास्तविक जीवनोपयोगी तथा देश समाज सुधार योग्य ज्ञान प्राप्त किया जाता रहा है। प्राप्त किया जा सकता है।
               वास्तव में अभी तक हमारे देश में शिक्षकों में छिपी प्रतिभा का वास्तविक उपयोग नहीं किया जा सका है।बल्कि उसको अपमानित,तिरस्कृत करके उनकी प्रतिभा को दबाने का ही प्रयास किया गया है, जिसका परिणाम समाज में अराजकता, भ्रष्टाचार-बेईमानी, बेरोजगारी तथा अन्य सामाजिक बुराइयों के रूप में देखने को मिल रहा है।
                ऐसा नहीं है कि समाज सुधार या देश- राज्य के सफल संचालन संबंधी ज्ञान सिर्फ अधिकारियों या नेताओं के पास होता है। बल्कि वास्तव में बेहतर ज्ञान शिक्षकों के पास भी उपलब्ध होता है। क्योंकि शिक्षक छोटे बड़े सभी अर्थात विद्यार्थियों पालकों के मनोविज्ञान से गहराई तक बेहतर ढंग से परिचित तथा सम्बंधित होने के कारण लोगों से जुड़े हुए समस्या के समाधान तथा देश-राज्य-समाज के सफल संचालन संबंधित बेहतर समझ रखते हैं।
                लेकिन देश राज्य समाज के अपने आपको कर्णधार मानने वाले लोग इतिहास प्रसिद्ध दुनिया के ज्ञानदाता शिक्षक/गुरु को परामर्श लेने के योग्य ही नही समझते।जिसके कारण ही देश-राज्य-समाज में सदा विभिन्न समस्याओं का अंबार लगा रहता है। जिसको सुधारने वाले सरकारी तथा गैरसरकारी समाज सुधारक सुधारते -सुधारते स्वयं बिगड़ जाते हैं।सामाजिक समस्या सुलझने के बजाय और उलझ जाता है।
               इसे ही कहावत की भाषा में "विनाश काले विपरीत बुद्धि" और युग की भाषा में कलयुग कहा जाता है।
               इसलिए इतना तो विश्व सत्य है कि शिक्षकों को पर्याप्त सुविधा,सम्मान या महत्व दिए बिना शिक्षा,विज्ञान टेक्नोलॉजी के साथ देश-समाज का उन्नत हो पाना असम्भव है।हमारा देश इसका प्रमाण हैइसलिए हमारे देश-राज्य में भी शिक्षकों को पर्याप्त महत्व दिया जाना अपेक्षित है।
                           * धन्यवाद *
                       रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
                     पथरिया,मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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