"पढ़ाई में एकाग्रता का आसान तरीका"
दुनिया के किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने, बेहतर प्रदर्शन करने, खासकर पढ़ाई-लिखाई में सफल होने या बेहतर प्रदर्शन करने के लिए- एकाग्रता अनिवार्य है। जिन विद्यार्थियों में जिस अनुपात में एकाग्रता होती है, वे पढ़ाई में उसी अनुपात में काफी आगे होते हैं, और जिन विद्यार्थियों में एकाग्रता की कमी होती है, वे उसी अनुपात में पढ़ाई में कमजोर सिद्ध होते हैं, तो कुल मिलाकर जीवन के किसी भी क्षेत्र या पढ़ाई में सफलता का रहस्य एकाग्रता है।
एकाग्रता का अर्थ है- अपने मन/विचार को किसी एक विषय पर केंद्रित कर देना या तल्लीन हो जाना।
यूं तो आधुनिक विकसित विज्ञान के जमाने में भी विभिन्न क्षेत्रों में काफी विकास के बावजूद मन या विचार को एकाग्र करने के संबंध में कोई आसान, असरकारक विधिवत तरीका/फार्मूला उपलब्ध नहीं हो पाया है। मन को एकाग्र करने का विधिवत प्रमाणिक तरीका सिर्फ योग में धारणा के रूप में उपलब्ध है।
योग के छठवें चरण- धारणा को ही एकाग्रता कहा जाता है, इसलिए धारणा को उपलब्ध करने की विधि ही एकाग्रता को प्राप्त करने की विधि है, जो कि अभी तक भारत देश में अत्यंत कठिन माना जाता रहा है और आधुनिक जटिल जीवन शैली के युग में आवश्यक ज्ञान या मार्गदर्शन के अभाव में सामान्यतः कठिन है भी।
लेकिन-
अगर हम इसे दूसरे नजरिये से समझे तो एकाग्रता या तल्लीनता आसान होता है, एकाग्रता वास्तव में जैसा कि अभी तक समझा जाता रहा है- मन-मस्तिष्क, विचार को किसी एक बिंदु या विषय पर केंद्रित करने से आता है, लेकिन वास्तव में एकाग्रता विचार से नही बल्कि दिल (भाव) से आता है। जिस चीज में हमारा दिल लगता है अर्थात रूचि होता है। उसमें मन एकाग्र(तल्लीन) हो जाता है।
तो हमें सफल होने या एकाग्र होने के लिए अपनी पुरानी धारणा को बदलने की जरूरत है अर्थात किसी भी चीज़ में जबरन मन/विचार को एकाग्र करने का प्रयास अत्यंत कठिन तथा कष्टदायक साधना हैं।इसलिए-
व्यक्ति या विद्यार्थी को जिस अच्छी चीज या जिस किसी अच्छे विषय में प्राकृतिक रूप से मन या दिल लगता है, अर्थात जन्मजात रूचि होता है, उसी में सफल होने का प्रयास करना चाहिए उसी क्षेत्र में कैरियर बनाने का प्रयास करना चाहिए।क्योंकि-
उसमें मन नेचुरल एकाग्र हो जाता है, ऐसा करने पर एकाग्रता के लिए कोई विशेष प्रयास करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है-
प्रत्येक व्यक्ति अपनी काबिलियत के अनुसार प्रतिभावान होता है, अगर हम उसे उनकी प्रतिभा से हटाकर अन्य रूप में आकलन करें वह भी साधारण सिद्ध होंगे। जैसे-
1.मछली तैरने में दक्ष होती है, लेकिन उससे पेड़ पर चढ़ाने का प्रयास किया जाए जो कठिनाई होगी।
2.सचिन तेंदुलकर सर्वोत्तम क्रिकेट खिलाड़ी हैं, लेकिन उनसे सर्वोत्तम राजनीति करने या पढ़ाई करने की अपेक्षा की जाए तो वे अपेक्षाकृत कमजोर सिद्ध होंगे।
3.भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर गीत गाने में सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन अगर उन्हें सर्वोत्तम राजनीतिज्ञ, खिलाड़ी या उद्योगपति बनने के लिए कहा जाए अर्थात उनकी प्रतिभा का आकलन गीत गाने के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक, खेल या उद्योग के आधार पर किया जाए तो कमजोर सिद्ध होगी।
4.डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुए है, लेकिन अगर उन्हें क्रिकेट या अन्य खेल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए कहा जाता अर्थात उनके प्रतिभा का आकलन खेल के आधार पर किया जाता तो वे कमजोर सिद्ध होते।
इसी तरह प्रत्येक व्यक्ति या विद्यार्थी में जन्म से कोई न कोई खासियत होता है। जिसमें वे दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। जिस व्यक्ति या विद्यार्थी में जन्मजात रूप से जो खासियत विद्यमान है, उसी को विकसित करने और उसी के सहारे सफल होने या उसी को कैरियर बनाने का प्रयास करना चाहिए, उसी के संबंध में मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए क्योंकि उसमें उनका मन प्राकृतिक रूप से बिना किसी विशेष प्रयास के एकाग्र रहता है।
ऐसा कर पाने वाले लोग/विद्यार्थो ही दुनिया में आसानी से सफल होते हैं, इसलिए सफल होने का यह एक आसान और बेहतर मनोवैज्ञानिक उपाय है।
*धन्यवाद*
- रामेश्वर वर्मा की कलम से.......
दुनिया के किसी भी क्षेत्र में सफलता पाने, बेहतर प्रदर्शन करने, खासकर पढ़ाई-लिखाई में सफल होने या बेहतर प्रदर्शन करने के लिए- एकाग्रता अनिवार्य है। जिन विद्यार्थियों में जिस अनुपात में एकाग्रता होती है, वे पढ़ाई में उसी अनुपात में काफी आगे होते हैं, और जिन विद्यार्थियों में एकाग्रता की कमी होती है, वे उसी अनुपात में पढ़ाई में कमजोर सिद्ध होते हैं, तो कुल मिलाकर जीवन के किसी भी क्षेत्र या पढ़ाई में सफलता का रहस्य एकाग्रता है।
एकाग्रता का अर्थ है- अपने मन/विचार को किसी एक विषय पर केंद्रित कर देना या तल्लीन हो जाना।
यूं तो आधुनिक विकसित विज्ञान के जमाने में भी विभिन्न क्षेत्रों में काफी विकास के बावजूद मन या विचार को एकाग्र करने के संबंध में कोई आसान, असरकारक विधिवत तरीका/फार्मूला उपलब्ध नहीं हो पाया है। मन को एकाग्र करने का विधिवत प्रमाणिक तरीका सिर्फ योग में धारणा के रूप में उपलब्ध है।
योग के छठवें चरण- धारणा को ही एकाग्रता कहा जाता है, इसलिए धारणा को उपलब्ध करने की विधि ही एकाग्रता को प्राप्त करने की विधि है, जो कि अभी तक भारत देश में अत्यंत कठिन माना जाता रहा है और आधुनिक जटिल जीवन शैली के युग में आवश्यक ज्ञान या मार्गदर्शन के अभाव में सामान्यतः कठिन है भी।
लेकिन-
अगर हम इसे दूसरे नजरिये से समझे तो एकाग्रता या तल्लीनता आसान होता है, एकाग्रता वास्तव में जैसा कि अभी तक समझा जाता रहा है- मन-मस्तिष्क, विचार को किसी एक बिंदु या विषय पर केंद्रित करने से आता है, लेकिन वास्तव में एकाग्रता विचार से नही बल्कि दिल (भाव) से आता है। जिस चीज में हमारा दिल लगता है अर्थात रूचि होता है। उसमें मन एकाग्र(तल्लीन) हो जाता है।
तो हमें सफल होने या एकाग्र होने के लिए अपनी पुरानी धारणा को बदलने की जरूरत है अर्थात किसी भी चीज़ में जबरन मन/विचार को एकाग्र करने का प्रयास अत्यंत कठिन तथा कष्टदायक साधना हैं।इसलिए-
व्यक्ति या विद्यार्थी को जिस अच्छी चीज या जिस किसी अच्छे विषय में प्राकृतिक रूप से मन या दिल लगता है, अर्थात जन्मजात रूचि होता है, उसी में सफल होने का प्रयास करना चाहिए उसी क्षेत्र में कैरियर बनाने का प्रयास करना चाहिए।क्योंकि-
उसमें मन नेचुरल एकाग्र हो जाता है, ऐसा करने पर एकाग्रता के लिए कोई विशेष प्रयास करने की आवश्यकता नहीं पड़ती।
अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है-
प्रत्येक व्यक्ति अपनी काबिलियत के अनुसार प्रतिभावान होता है, अगर हम उसे उनकी प्रतिभा से हटाकर अन्य रूप में आकलन करें वह भी साधारण सिद्ध होंगे। जैसे-
1.मछली तैरने में दक्ष होती है, लेकिन उससे पेड़ पर चढ़ाने का प्रयास किया जाए जो कठिनाई होगी।
2.सचिन तेंदुलकर सर्वोत्तम क्रिकेट खिलाड़ी हैं, लेकिन उनसे सर्वोत्तम राजनीति करने या पढ़ाई करने की अपेक्षा की जाए तो वे अपेक्षाकृत कमजोर सिद्ध होंगे।
3.भारत की स्वर कोकिला लता मंगेशकर गीत गाने में सर्वश्रेष्ठ है, लेकिन अगर उन्हें सर्वोत्तम राजनीतिज्ञ, खिलाड़ी या उद्योगपति बनने के लिए कहा जाए अर्थात उनकी प्रतिभा का आकलन गीत गाने के आधार पर नहीं बल्कि राजनीतिक, खेल या उद्योग के आधार पर किया जाए तो कमजोर सिद्ध होगी।
4.डॉ एपीजे अब्दुल कलाम भारत के प्रसिद्ध वैज्ञानिक हुए है, लेकिन अगर उन्हें क्रिकेट या अन्य खेल में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने के लिए कहा जाता अर्थात उनके प्रतिभा का आकलन खेल के आधार पर किया जाता तो वे कमजोर सिद्ध होते।
इसी तरह प्रत्येक व्यक्ति या विद्यार्थी में जन्म से कोई न कोई खासियत होता है। जिसमें वे दूसरों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। जिस व्यक्ति या विद्यार्थी में जन्मजात रूप से जो खासियत विद्यमान है, उसी को विकसित करने और उसी के सहारे सफल होने या उसी को कैरियर बनाने का प्रयास करना चाहिए, उसी के संबंध में मार्गदर्शन दिया जाना चाहिए क्योंकि उसमें उनका मन प्राकृतिक रूप से बिना किसी विशेष प्रयास के एकाग्र रहता है।
ऐसा कर पाने वाले लोग/विद्यार्थो ही दुनिया में आसानी से सफल होते हैं, इसलिए सफल होने का यह एक आसान और बेहतर मनोवैज्ञानिक उपाय है।
*धन्यवाद*
- रामेश्वर वर्मा की कलम से.......

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