सभी योग पद्धतियों का राजा- राजयोग

🍀योग की विभिन्न पद्धतियों की जानकारी के साथ-

     *🌷सभी योग पद्धतियों का राजा- राजयोग🌷*

 योग परंपरा में प्रचलित अनेक पद्धतियों में से एक उन्नत पद्धति है- "राजयोग"।यह सांख्य योग की तरह ज्ञान और मन विचार को शांत, एकाग्र करने पर आधारित पद्धति है।
         भारत में प्राचीन काल से सर्वाधिक प्रचलित पद्धति है- "हठयोग"। हठयोग में कठिन तप करने वाले तपस्वी, योग-साधकों, अघोर तांत्रिकों की तरह विभिन्न यम, नियम के साथ कठिन आसन, प्राणायाम के अभ्यास द्वारा कुंडलिनी शक्ति जागृत कर ऊर्ध्वगमन अर्थात गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध ऊपर अर्थात मस्तिष्क की ओर ले जाने का प्रयास किया जाता है।जिससे विभिन्न अलौकिक क्षमताओं के साथ ध्यान-समाधि का अनुभव, परम आनंद, परम ज्ञान, आत्मज्ञान, ब्रह्मज्ञान अनुभव होता है, लेकिन यह बहुत कठिन/ बहुत जटिल तथा कई वर्षों में पूर्ण हो सकने वाली साधना है।
          जिसके कारण अधिकांश साधक यम, नियम, आसन, प्राणायाम की कठिन साधनाओं या छोटी मोटी अलौकिक सिद्धियों में ही जीवन भर उलझे रहते हैं। जिसके कारण ध्यान-समाधि तक पहुंच पाना अर्थात ध्यान समाधि की अवस्था को अनुभव कर पाना दूर की कौड़ी सिद्ध होती है।
         प्राचीन काल के प्राकृतिक जीवन शैली के लिए निर्मित हठयोग की कठिन साधनाओं को आधुनिक युग में जटिल अप्राकृतिक जीवन शैली के कारण कर पाना सबके बस की बात नहीं है।
        चूँकि इसके अलावा भी दुनिया के अलग-अलग तरह के मनोस्थिति के लोगों के लिए विभिन्न प्रकार के योग उपलब्ध है। जैसे-
भक्ति योग-यह भक्ति पर।
कर्म योग-यह कर्म पर।
नाद योग ॐ नाद,ध्वनि पर।
मंत्र योग-यह मंत्र पर।
सांख्ययोग- ज्ञान पर।
सहज योग- सहजता, सरलता पूर्ण प्राकृतिक जीवन शैली के सिद्धांत पर आधारित है।
         प्राचीन काल से प्रचलित विभिन्न तरह के योग पद्धतियों को महर्षि पतंजलि द्वारा व्यवस्थित कर एक वैज्ञानिक पद्धति के रूप में प्रस्तुत किया गया जिसे पतंजलि योग कहा जाता है।
         इन सब योग पद्धतियों के बीच राजा की तरह विद्यमान  पद्धति है-
         राजयोग
इस राजयोग में ध्यान समाधि के माध्यम से सत्य ज्ञान/ आत्म ज्ञान /ब्रह्म ज्ञान/ परमात्मा अनुभव के लिए मन-विचार को शून्य करने पर जोर दिया जाता है। सीधे मन को शांत एकाग्र करने पर भी ध्यान या उपर्युक्त सभी उपलब्धियां अनुभव हो जाती है।
         पतंजलि योग और सांख्ययोग की ही तरह इनका समन्वित रूप राजयोग है
          राजयोग भारत के महान विद्वान और युवाओं के प्रेरणा स्रोत स्वामी विवेकानंद जी का सबसे पसंदीदा योग रहा है। वे  प्रायः इसी पद्धति का उपयोग करते थे।
         योग ध्यान-समाधि की अवस्था को उपलब्ध करने की प्रक्रिया है। राजयोग मन पर आधारित है। इसका सिद्धांत है कि- ध्यान को उपलब्ध करने के लिए किसी कठिन शारीरिक अभ्यास की  अनिवार्यता नहीं है। मन या विचार को किसी आसान (सरल) यम, नियम, आसन, प्राणायाम के उपयोग से शांत एकाग्र करने से भी हठयोग की तरह कुंडलिनी जागरण, आज्ञा चक्र का सक्रिय होना, अलौकिक अनुभव होना, सिक्स सेंस का सक्रिय होना या खुलना अर्थात ध्यान का अनुभव उपलब्ध या घटित हो जाता है।
         हठयोग के विभिन्न कठिन यम, नियम, आसन, प्राणायाम के अभ्यास के द्वारा शरीर को हठ पूर्वक जगाए जाने वाले कुंडलिनी शक्ति को सहने योग्य काफी मजबूत (सहनशील) बनाने पर जोर दिया जाता है, इसीलिए हठयोगी काफी लंबी उम्र जीते हैं, और चूँकि राजयोगी शरीर की सबलता पर हठयोग की तरह पर विशेष प्रयास नहीं करते अर्थात शरीर को मजबूत बनाने वाली प्रक्रियाओं पर विशेष ध्यान नहीं देते इसलिए राजयोगी अपेक्षाकृत कम उम्र तक जीते हैं।
        लेकिन-
        ज्ञान प्राप्ति अर्थात ध्यान-समाधि अनुभव/ उपलब्धि हठयोगियों की तुलना में पहले अर्थात कम समय में प्राप्त कर पाते हैं। स्वामी विवेकानंद जी कम समय में ही ध्यान/ ज्ञान उपलब्ध कर चुके थे तथा उनकी बौद्धिक क्षमता इतनी प्रखर हो चुकी थी कि- एक दिन में ही कई किताबें पढ़/समझ सकने में समर्थ थे, अर्थात ज्ञान/बुद्धि के मामले में अन्य योगियों की तुलना में काफी आगे थे। इसीलिए-
       "राजयोग को योग का राजा भी कहा जाता है।"
       
                           *धन्यवाद*

Post a Comment

0 Comments