🌷 स्कुल शिक्षा के लिए वरदान- कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक🌷
✍विश्व के प्रमुख विकसित देश रूस में मनोविज्ञान के अंतर्गत मानसिक शक्ति के ऊपर किए जा रहे विभिन्न प्रयोगों के बीच शिक्षा के क्षेत्र में भी एक बहुत विकसित, दुर्लभ उन्नत शिक्षा तकनीक का उपयोग शिक्षा गुणवत्ता सुधार (ज्ञानार्जन) में किया जाता है। जिसका नाम है- कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक।
विद्यार्थियों को आनुवंशिक रूप से तथा देश-काल-वातावरण के प्रभाव से जन्मजात प्राकृतिक रूप से प्राप्त अपार मन-मस्तिष्क, बौद्धिक क्षमता में उन्नत मनोविज्ञान के उपयोग से सुधार, विकसित,सदुपयोग करने की तकनीक को कृत्रिम पुनर्जन्म कहा जाता है।
आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में यह दुर्लभ प्रयोग है।इसके लिए विद्यार्थियों को अवचेतन मन पर आधारित नींद की अवस्था में शिक्षा दी जाती है, जो कि मनोवैज्ञानिकों के निर्देशानुसार होता है। जिसके लिए विद्यार्थियों को रात को सोने के समय याद किए,पढ़ाए समझाए जाने वाले विषयवस्तु को एक रिकॉर्डर में रिकार्ड करके से उसे सुनने के लिए ईयर फोन के माध्यम से विद्यार्थियों कान में लगा दिया जाता है,और विद्यार्थियों को सुनते-सुनते सोने को कहा जाता है।रात में गहरे अचेतन की गहरी निद्रा में जाने के पूर्व एक बार विद्यार्थियों को जगाकर पुनः सोने दिया जाता है।
मन के गहरे नियमानुसार अर्थात अचेतन मन के नियमानुसार इस प्रयोग से बच्चे गहरी निद्रा में जाने के बजाय "योगनिद्रा" की अवस्था में चले जाते हैं। मनोविज्ञान की भाषा में इसे अर्धचेतन अवस्था कहा जाता है, तथा विज्ञान की भाषा में इसे मन-मस्तिष्क की अल्फा/थीटा तरंग की अवस्था कहा जाता है।जिसकी आवृत्ति सामान्य अवस्था से कम होती है। सुबह उठने पर विद्यार्थियो से रिकॉर्डिंग के माध्यम से सुनाए गए पाठ्यवस्तु की परीक्षा ली जाती है। जिससे विद्यार्थी सामान्य पढ़ाई की तुलना में बहुत अच्छी तरह, आसानी से उत्तर दे पाते हैं, अभिव्यक्त कर पाते हैं।
इस प्रयोग से विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए अधिक समय मिल पाता है। सामान्य ढंग से पढ़ने वाले विद्यार्थियों की तुलना में अधिक ज्ञानार्जन कर पाते हैं, साल भर का कोर्स बहुत कम समय में अच्छी तरह से याद हो जाता, समझ में आ जाता है। शेष समय का सदुपयोग अधिक ज्ञानार्जन के लिए किया जाता है।इससे रात के नींद में स्वप्नावस्था का उपयोग भी पढाई के लिए हो पाता है, अर्थात दिन रात चौबीसों घंटे मस्तिष्क का सदुपयोग पढ़ाई-लिखाई के लिए किया जा सकना संभव हो पाता है।
रूसी शिक्षाविदों और मनो-वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया में इतना अधिक ज्ञान हैं कि- सिर्फ दिन में बच्चों को 6 घंटे पढ़ा कर ही पर्याप्त ज्ञान दिया जा सकना संभव नहीं है, इसलिए अधिकाधिक ज्ञान दिए जाने संबंधी अन्य विकल्प का उपयोग किया जाना आज के युग में अत्यंत आवश्यक है। इसी क्रम में कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक का उपयोग किया जाता है।
इस प्रयोग से विद्यार्थी निर्धारित समय तक परम्परागत ढंग से शिक्षा दिए जाने की अपेक्षा बहुत अधिक चीजें/ ज्ञान बेहतर तरीके से सीख पाते हैं। यह शिक्षा जगत के लिए बहुत दुर्लभ खोज है। जिसका उपयोग रुस की शिक्षा में काफी समय से किया जा रहा है।
पतंजलि योग के सहयोग से इस तरह के प्रयोग के साथ-साथ और अनेक तरह के शिक्षा उपयोगी विद्यार्थियों के मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी प्रयोग किया जा सकना संभव है।
मानव चेतना/ मन-मस्तिष्क के संबंध में जितना अधिक ज्ञान प्राचीन भारतीय ग्रन्थों- योग, पतंजलि योग तथा दर्शनशास्त्र में उपलब्ध है, उस हिसाब से दुनिया के शिक्षा उपयोगी मन-मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी तकनीकों का सर्वाधिक उपयोग भारत में होना चाहिए तथा भारतीय शिक्षा को विश्व में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए, परंतु इस तरह के ज्ञान में शोध के अभाव प्रथा प्राचीन ऋषियों के आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त धरोहर रुपी उन्नत ज्ञान का महत्व ठीक तरह से समझ नहीं पाने आदि अनेक कारणों यह संभव नहीं हो सका है।
देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर वर्तमान में देश सहित विश्व भर में पतंजलि योग के बढ़ते प्रभाव के बीच शिक्षा को उन्नत बनाने संबंधी इस तरह का प्रयोग किया जाना अत्यंत आवश्यक तथा संभव है। जिससे कि भारत विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन सके, पुनः विश्वगुरु बनने का सपना साकार हो सके।
🌷 धन्यवाद 🌷
- रामेश्वर वर्मा (शिक्षक)
पथरिया, मुंगेली
(छत्तीसगढ़)
✍विश्व के प्रमुख विकसित देश रूस में मनोविज्ञान के अंतर्गत मानसिक शक्ति के ऊपर किए जा रहे विभिन्न प्रयोगों के बीच शिक्षा के क्षेत्र में भी एक बहुत विकसित, दुर्लभ उन्नत शिक्षा तकनीक का उपयोग शिक्षा गुणवत्ता सुधार (ज्ञानार्जन) में किया जाता है। जिसका नाम है- कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक।
विद्यार्थियों को आनुवंशिक रूप से तथा देश-काल-वातावरण के प्रभाव से जन्मजात प्राकृतिक रूप से प्राप्त अपार मन-मस्तिष्क, बौद्धिक क्षमता में उन्नत मनोविज्ञान के उपयोग से सुधार, विकसित,सदुपयोग करने की तकनीक को कृत्रिम पुनर्जन्म कहा जाता है।
आधुनिक शिक्षा के क्षेत्र में यह दुर्लभ प्रयोग है।इसके लिए विद्यार्थियों को अवचेतन मन पर आधारित नींद की अवस्था में शिक्षा दी जाती है, जो कि मनोवैज्ञानिकों के निर्देशानुसार होता है। जिसके लिए विद्यार्थियों को रात को सोने के समय याद किए,पढ़ाए समझाए जाने वाले विषयवस्तु को एक रिकॉर्डर में रिकार्ड करके से उसे सुनने के लिए ईयर फोन के माध्यम से विद्यार्थियों कान में लगा दिया जाता है,और विद्यार्थियों को सुनते-सुनते सोने को कहा जाता है।रात में गहरे अचेतन की गहरी निद्रा में जाने के पूर्व एक बार विद्यार्थियों को जगाकर पुनः सोने दिया जाता है।
मन के गहरे नियमानुसार अर्थात अचेतन मन के नियमानुसार इस प्रयोग से बच्चे गहरी निद्रा में जाने के बजाय "योगनिद्रा" की अवस्था में चले जाते हैं। मनोविज्ञान की भाषा में इसे अर्धचेतन अवस्था कहा जाता है, तथा विज्ञान की भाषा में इसे मन-मस्तिष्क की अल्फा/थीटा तरंग की अवस्था कहा जाता है।जिसकी आवृत्ति सामान्य अवस्था से कम होती है। सुबह उठने पर विद्यार्थियो से रिकॉर्डिंग के माध्यम से सुनाए गए पाठ्यवस्तु की परीक्षा ली जाती है। जिससे विद्यार्थी सामान्य पढ़ाई की तुलना में बहुत अच्छी तरह, आसानी से उत्तर दे पाते हैं, अभिव्यक्त कर पाते हैं।
इस प्रयोग से विद्यार्थियों को पढ़ने के लिए अधिक समय मिल पाता है। सामान्य ढंग से पढ़ने वाले विद्यार्थियों की तुलना में अधिक ज्ञानार्जन कर पाते हैं, साल भर का कोर्स बहुत कम समय में अच्छी तरह से याद हो जाता, समझ में आ जाता है। शेष समय का सदुपयोग अधिक ज्ञानार्जन के लिए किया जाता है।इससे रात के नींद में स्वप्नावस्था का उपयोग भी पढाई के लिए हो पाता है, अर्थात दिन रात चौबीसों घंटे मस्तिष्क का सदुपयोग पढ़ाई-लिखाई के लिए किया जा सकना संभव हो पाता है।
रूसी शिक्षाविदों और मनो-वैज्ञानिकों का मानना है कि दुनिया में इतना अधिक ज्ञान हैं कि- सिर्फ दिन में बच्चों को 6 घंटे पढ़ा कर ही पर्याप्त ज्ञान दिया जा सकना संभव नहीं है, इसलिए अधिकाधिक ज्ञान दिए जाने संबंधी अन्य विकल्प का उपयोग किया जाना आज के युग में अत्यंत आवश्यक है। इसी क्रम में कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक का उपयोग किया जाता है।
इस प्रयोग से विद्यार्थी निर्धारित समय तक परम्परागत ढंग से शिक्षा दिए जाने की अपेक्षा बहुत अधिक चीजें/ ज्ञान बेहतर तरीके से सीख पाते हैं। यह शिक्षा जगत के लिए बहुत दुर्लभ खोज है। जिसका उपयोग रुस की शिक्षा में काफी समय से किया जा रहा है।
पतंजलि योग के सहयोग से इस तरह के प्रयोग के साथ-साथ और अनेक तरह के शिक्षा उपयोगी विद्यार्थियों के मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी प्रयोग किया जा सकना संभव है।
मानव चेतना/ मन-मस्तिष्क के संबंध में जितना अधिक ज्ञान प्राचीन भारतीय ग्रन्थों- योग, पतंजलि योग तथा दर्शनशास्त्र में उपलब्ध है, उस हिसाब से दुनिया के शिक्षा उपयोगी मन-मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी तकनीकों का सर्वाधिक उपयोग भारत में होना चाहिए तथा भारतीय शिक्षा को विश्व में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए, परंतु इस तरह के ज्ञान में शोध के अभाव प्रथा प्राचीन ऋषियों के आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त धरोहर रुपी उन्नत ज्ञान का महत्व ठीक तरह से समझ नहीं पाने आदि अनेक कारणों यह संभव नहीं हो सका है।
देर आए दुरुस्त आए की तर्ज पर वर्तमान में देश सहित विश्व भर में पतंजलि योग के बढ़ते प्रभाव के बीच शिक्षा को उन्नत बनाने संबंधी इस तरह का प्रयोग किया जाना अत्यंत आवश्यक तथा संभव है। जिससे कि भारत विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन सके, पुनः विश्वगुरु बनने का सपना साकार हो सके।
🌷 धन्यवाद 🌷
- रामेश्वर वर्मा (शिक्षक)
पथरिया, मुंगेली
(छत्तीसगढ़)
0 Comments