भारतीय शिक्षा के रैकिंग में सुधार की गुप्त कुंजी

  भारतीय शिक्षा के रैकिंग में सुधार की गुप्त कुंजी
           
                भारतीय शिक्षा के विश्व रैंकिंग में काफी पिछड़ने से हम सभी परिचित है। इसके सुधार की दिशा में भी अनेक स्तर पर सतत प्रयास जारी है। शिक्षाविदों द्वारा शिक्षा में पिछड़ने के अनेक कारणों में मुख्य कारण- संसाधन की कमी को माना जाता है।
     लेकिन-
                विदेशों में प्रचलित मन-मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी मनोवैज्ञानिक तकनीकों के गहन अध्ययन के साथ प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में प्रचलित तथा प्राचीन भारतीय साहित्यों में वर्णित मानव की प्राकृतिक रूप से छिपी मन-मस्तिष्क क्षमता सम्बन्धी,अध्ययन तथा पतंजलि योग-ध्यान के अध्ययन, प्रशिक्षण, प्रयोग से पता चलता है कि- उससे भी प्रमुख कारण है- विद्यार्थियों को अपने भीतर जन्मजात प्राकृतिक रूप से छिपी हुई अवस्था में उपलब्ध मन-मस्तिष्क, बौद्धिक क्षमता विकास सम्बन्धी शिक्षा, प्रशिक्षण रूपी मार्गदर्शन और प्रोत्साहन का नही मिल पाना तथा उनके वैज्ञानिक खोज-आविष्कार कर सकने योग्य प्रकृति प्रद्त्त छिपी मानसिक क्षमता का शिक्षा, विज्ञान के खोज,आविष्कार के क्षेत्र में अधिक उपयोग संबंधी मनोवैज्ञानिक मार्गदर्शन का नहीं मिल पाना है  जिसका विकसित देश जाने अनजाने उपयोग करते हैं।
           
             यह सर्वविदित तथ्य है कि - शिक्षा मानव-विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क पर आधारित प्रक्रिया है, लेकिन शिक्षा प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों को इसी मन-मस्तिष्क की पढ़ाई-लिखाई से सम्बन्धित क्रियाविधि, नियम, सावधानी सम्बन्धी शिक्षा/ प्रशिक्षण नही मिलने के कारण विद्यार्थियों के पास इससे सम्बन्धित कोई जानकारी उपलब्ध नही है। जिसके कारण वे शिक्षा के क्षेत्र में अपनी जन्मजात उपलब्ध प्रतिभा का बहुत कम हिस्सा उपयोग कर पा रहे हैं,
        और-
              वर्तमान शिक्षा पद्धति में विद्यार्थियों को पढ़ाई योग्य मानसिक अवस्था में लाए बिना, मन-मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता विकास संबंधी शिक्षा/ प्रशिक्षण दिए बिना, मन-मस्तिष्क क्षमता में सुधार किए बिना अर्थात मन मस्तिष्क को अल्फा तरंग की अवस्था अर्थात शांत, एकाग्र मानसिक दशा में लाए बिना पढ़ाई-लिखाई करवाया जाता है। यह ऐसा ही है जैसे कि- किसी खिलाडी को बिना शारीरिक फिटनेस, बिना प्रशिक्षण के तथा खेल-नियमो की जानकारी दिए बिना सीधे खेल प्रतियोगिता में उतार दिया जाय। जिस प्रकार ऐसा करने से- खिलाडी खेल में अच्छा प्रदर्शन नही कर पाएंगे।
   ठीक उसी तरह-
               पढ़ाई लिखाई के पूर्व विद्यार्थियों को पढाई-लिखाई के योग्य मानसिक दशा अर्थात मन-मस्तिष्क की अल्फ़ा तरंग अवस्था अर्थात मन-मस्तिष्क की शांत तथा एकाग्र अवस्था में लाए बिना पढ़ाई-लिखाई करवाने से विद्यार्थी विषयवस्तु को ठीक से समझ नही पाते अर्थात शिक्षा में गुणवत्ता नही आ पाता तथा विद्यार्थी चेतन-मन के साथ-साथ जन्मजात प्राकृतिक रूप से अवचेतन-मन के रूप में छिपी स्पेशल प्रतिभा/क्षमता का शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग नही कर पाते.
इसलिए-
          शिक्षा में वास्तविक गुणवत्ता सुधार तथा विद्यार्थियों के प्रतिभा के बेहतर और पर्याप्त सदुपयोग के लिए- मन-मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी शिक्षा/प्रशिक्षण के साथ इसके शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बेहतर और पर्याप्त सदुपयोग सम्बन्धी प्राचीन तथा आधुनिक अर्थात उन्नत जानकारी तथा मार्गदर्शन दिया जाना अत्यंत आवश्यक है।
              अब आधुनिक विज्ञान का भी मानना है कि मानव के अपार मस्तिष्क क्षमता में से अभी कुछ प्रतिशत का ही उपयोग हो रहा है। शेष अज्ञात, अपरिचित है। जिसका उपयोग शिक्षा को उन्नत बनाने में किया जाना आवश्यक है। जिससे सम्बंधित जानकारी विश्व में सर्वाधिक रूप में  प्राचीन भारतीय ऋषियों द्वारा लिखित आध्यात्मिक ग्रन्थों, योग-ध्यान के साहित्यों में हजारों साल से मुख्यतः पतंजलि योग के रूप में उपलब्ध है। जिसे अब तक  हम सब संभवतः वैज्ञानिक युग में पिछड़ा हुआ ज्ञान या कपोल कल्पना, अवैज्ञानिक, अंधविश्वास  मानकर नजरअंदाज करते रहे हैं। 
              लेकिन अब विश्व प्रसिद्ध योग गुरु सम्माननीय रामदेव जी तथा अन्य योगियों के साथ भारतीय विरासत के प्रति समझ रखने वालों के अथक प्रयास से  योग तथा शिक्षा में सुधार के अनुकूल परिस्थिति का निर्माण तथा सुधार कार्य प्रारंभ हो चुका है। जो सफल होने के राह पर अग्रसर है. 
               लार्ड मेकाले की गुलाम बनाने वाली शिक्षा पद्धति के प्रभाव में विस्मृत कर चुके अपने प्राचीन ऋषि मुनियों के आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त मन-मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी उन्नत तकनीक योग-ध्यान-मनोविज्ञान का भारतीय शिक्षा में उपयोग किया जाना देश की शिक्षा को उन्नत बनाने वाला सिद्ध होगा।
              पूर्वाग्रह छोडकर अगर प्राचीन भारतीय ज्ञान विज्ञान पर व्यापक शोध किया जाए तो यह दुनिया का सर्वोत्तम ज्ञान-विज्ञान सिद्ध होगा। क्योंकि इसी ज्ञान के बदौलत प्राचीन काल में हमारा देश विश्वगुरु हुआ करता था। शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।
             योग-ध्यान से विकसित मन-मस्तिष्क क्षमता के बल पर प्राचीन ऋषि-मुनि रूपी विद्वान् आधुनिक जमानें के वैज्ञानिको, शिक्षाविदो द्वारा कई वर्षो में जान सकने योग्य ज्ञान को किसी उन्नत प्रयोगशाला के बिना कुछ समय में ही जान लेने में सक्षम हुआ करते थे। उस जमाने के देश काल वातावरण के हिसाब से यंत्रो से अधिक रूचि आध्यात्मिक क्षेत्र में होने के कारण यंत्रो के क्षेत्र में खोज-आविष्कार करने में विशेष रुचि नही लिए। अगर करना चाहते तो अपने ध्यान योग से प्राप्त बौद्धिक क्षमता से बहुत कुछ खोज-आविष्कार कर सकने में सक्षम रहे है।
                योग-ध्यान + मनोविज्ञान रूपी तकनीक का उपयोग विद्यार्थियों को बौद्धिक रूप से सबल बनाने के साथ-साथ चारित्रिक दृष्टि से भी सबल बनाने /अच्छा इंसान बनाने में समर्थ है.        
                उसी ज्ञान अर्थात ध्यान,योग,मनोविज्ञान के उपयोग से मानव मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधित शिक्षा प्रशिक्षण तथा अन्य  प्राचीन अति विकसित ज्ञान का उपयोग भारतीय शिक्षा में किया जा सका, तो वर्तमान संसाधन में भी शिक्षा स्तर को काफी उन्नत, विश्वस्तरीय बनाया जा सकेगा, देश को  शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाया जा सकेगा।
                               धन्यवाद 

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