शिक्षा तथा विज्ञान में कल्पनाशक्ति का चमत्कार
महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है कि-
*कल्पना ज्ञान से अधिक शक्तिशाली है।*
कल्पना की शक्ति के बारे में जब विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक ने कहा है तो जरूर कल्पना में कोई बात होगी? कल्पना शक्ति के बारे में हमें पर्याप्त जानकारी नहीं होने, कल्पना की पूरी क्षमता से परिचित नहीं होने के कारण हम कल्पना को साधारण मानते या समझते हैं, और शिक्षा के क्षेत्र में विधिवत उपयोग नहीं कर पा रहे हैं! जबकि वास्तव में कल्पना मानव को प्रकृति से प्राप्त बहुत कीमती वरदान है।जो विद्यार्थियों की प्रतिभा को विकसित कर सकने में समर्थ है। अधिकांश मस्तिष्क केंद्रों को सक्रिय, प्रकट कर सकने में समर्थ है।
पश्चिमी विकसित देशों में प्रचलित मनोचिकित्सा, मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक, समस्त स्मरण शक्ति विकास तकनीक, पर्सनालिटी डेवलपमेंट का यह मुख्य आधार है।
बनावट की दृष्टि से मस्तिष्क को दो भागों में बांटा जा सकता है, अग्र और पश्च मस्तिष्क। परंतु कार्य के आधार पर मस्तिष्क मुख्य दो भागों में बांटा गया है-बांया और दायां मस्तिष्क।बांया मस्तिष्क, चेतन मन भौतिक शरीर प्रधान है, और दायाँ मस्तिष्क, अवचेतन मन सूक्ष्म शरीर प्रधान हैं।
बायें मस्तिष्क का कार्य- विचार, बुद्धि, तर्क, सामान्य स्मरणशक्ति प्रधान है। और दाएं मस्तिष्क में- कल्पना शक्ति, टेलीपैथी, साइकिक विजन अर्थात दर्शन क्षमता, पूर्वानुमान/अंतर्बोध, सृजनशीलता की विशेष क्षमता होती है। इन दोनों का समन्वित उपयोग विद्यार्थियों के प्रतिभावान होने का लक्षण है।
लेकिन दायें मस्तिष्क तथा अवचेतन-मन पर आधारित क्षमताओं को आध्यात्मिक सिद्धि-साधना की क्षमता मानने तथा पश्चिमी देशों के खोज मान्यता पर आधारित वर्तमान प्रचलित मनोविज्ञान का वहां तक ठीक से समझ उपलब्ध नहीं होने के कारण वर्तमान शिक्षा पद्धति में इससे संबंधित शिक्षा, प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं है।
जिसके कारण वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति मुख्यतः बाएं मस्तिष्क पर आधारित है।
जिससे विद्यार्थियों के प्रकृति प्रदत्त वास्तविक प्रतिभा का शिक्षा में विधिवत उपयोग नहीं हो पाता। जिससे जाने-अनजाने अपनी प्रतिभा का उपयोग कर पाने वाले कुछ प्रतिशत विद्यार्थी ही पढ़ाई -लिखाई के क्षेत्र में सफल हो पाते हैं। लेकिन अधिकांश बेरोजगार रह जाते हैं।तथा दायां मस्तिष्क- अवचेतन मन पर आधारित नैतिक शिक्षा, व्यवहार का विकास भी नहीं हो पाता जिसके कारण अधिकांश विद्यार्थी एक अच्छा समझदार और प्रतिभावान इंसान नहीं बन पाते।
हमारे देश के मिसाइल मैन के नाम से मशहूर तथा भूतपूर्व राष्ट्रपति सम्माननीय ए पी जे अब्दुल कलाम जी ने कल्पना के महत्व को बताते हुए कहा है कि -
*शिक्षा देती नई कल्पना,
*कल्पना लाते नए विचार।
*नए विचार से मिले ज्ञान,
*ज्ञान बनाएं आपको महान।।
वर्तमान शिक्षा पद्धति में विद्यार्थियों के लगभग 5% ही प्रतिभा क्षमता का सदुपयोग हो पा रहा है। शेष निष्क्रिय अवस्था में विद्यमान है।अगर शेष 5% से अधिक मस्तिष्क क्षमता योग,ध्यान या अन्य किसी विधि से सक्रिय हो जाए अर्थात विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क अधिकतम रूप से कार्य करने लगे तब विद्यार्थियों में किस तरह की प्रतिभा का विकास होगा? क्या विचार बुद्धि तर्क विकसित होगा? या कोई अन्य प्रतिभा क्षमता प्रकट होगा?
इसका उत्तर यह है कि- जब मानव मन-मस्तिष्क अपने अधिकतम विकसित रूप में प्रकट होगा तब- अभी तक साधारण समझे जाने वाले यह कल्पना शक्ति ही अपने विकसित रूप में होगा ।
अभी तक हम मन के जिस कल्पना शक्ति से परिचित हैं, वह कल्पना का सिर्फ प्रारंभिक रूप है। प्रतिभावान अवस्था में कल्पना अपने अधिक विकसित रूप में प्रकट होता है। जिससे ही टेलीपैथी, थाट रीडिंग, साइकिक विजन अंतर्बोध संभव हो पाता है।तथा शिक्षा के क्षेत्र में अतिप्रतिभावान विद्यार्थियों विद्यार्थी द्वारा उपयोग किए जाने वाली प्रतिभा इसी कल्पना का ही विकसित रूप है। विज्ञान के विकसित होने तथा विभिन्न वैज्ञानिक खोज, अविष्कार में इस कल्पना शक्ति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
बाएं मस्तिष्क और दायें मस्तिष्क दोनों के कार्य करने का तरीका अलग-अलग है। दोनों कार्य करने के तरीकों के मनोविज्ञान को शोध से समझकर विद्यार्थियों के प्रतिभा को प्रकट करने में सहयोग किया जा सकता है।
मानव मस्तिष्क के विभिन्न क्षमताओं में कल्पना एक महत्वपूर्ण क्षमता है। जो अपनी आरंभिक रूप में साधारण परंतु विकसित अवस्था में असाधारण होता है। विज्ञान के अधिकांश खोज-आविष्कार में इस कल्पना शक्ति का पर्याप्त उपयोग होता है। दुनिया में जितने भी लोग, विद्यार्थी तेज स्मरण शक्ति वाले हैं, वे सब विषय वस्तु को कल्पना शक्ति के द्वारा की याद रख पाते हैं। अधिकांश साहित्यिक रचनाएं कल्पना शक्ति के द्वारा ही संभव हो पाती है।
भारत में गणित बहुत पुराना विषय रहा है। वर्तमान शिक्षा पद्धति के विभिन्न विषयों में गणित एक ऐसा विषय है, जिसमें कल्पना शक्ति (दायें मस्तिष्क) अर्थात अवचेतन मन का सर्वाधिक उपयोग होता है। इस तरह कल्पना शक्ति का शिक्षा के क्षेत्र में इन सबके अलावा और अनेक चीजों में उपयोग होता है। इसलिए यह शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कीमती तथा महत्वपूर्ण प्रतिभा है।
कल्पना शक्ति या अन्य अनेक प्रतिभाएं जो विद्यार्थियों में बचपन में पर्याप्त रूप में होता है, जिसे हम अज्ञानता के कारण साधारण, अनुपयोगी समझकर उसके विकास की ओर ध्यान नहीं दे पाते। जिसके कारण यह प्रतिभा उम्र बढ़ने के साथ- विधिवत उपयोग के अभाव में निष्क्रिय होने लगता है।
इसलिए विद्यार्थियों की भलाई, देश की शिक्षा के स्तर तथा शिक्षा में गुणवत्ता को उन्नत बनाने के लिए शिक्षा तथा विज्ञान और टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण कल्पना शक्ति तथा विद्यार्थियों में प्राकृतिक रूप से उपस्थित इसी तरह की अन्य प्रतिभाओं को विकसित करने, शिक्षोपयोगी बनाने के लिए इस पर शिक्षा-विभाग द्वारा शोध किए जाने तथा विद्यार्थियों को इससे संबंधित शिक्षा/ प्रशिक्षण दिए जाने की बहुत आवश्यकता है।
🌷धन्यवाद 🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)
महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने कहा है कि-
*कल्पना ज्ञान से अधिक शक्तिशाली है।*
कल्पना की शक्ति के बारे में जब विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक ने कहा है तो जरूर कल्पना में कोई बात होगी? कल्पना शक्ति के बारे में हमें पर्याप्त जानकारी नहीं होने, कल्पना की पूरी क्षमता से परिचित नहीं होने के कारण हम कल्पना को साधारण मानते या समझते हैं, और शिक्षा के क्षेत्र में विधिवत उपयोग नहीं कर पा रहे हैं! जबकि वास्तव में कल्पना मानव को प्रकृति से प्राप्त बहुत कीमती वरदान है।जो विद्यार्थियों की प्रतिभा को विकसित कर सकने में समर्थ है। अधिकांश मस्तिष्क केंद्रों को सक्रिय, प्रकट कर सकने में समर्थ है।
पश्चिमी विकसित देशों में प्रचलित मनोचिकित्सा, मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक, समस्त स्मरण शक्ति विकास तकनीक, पर्सनालिटी डेवलपमेंट का यह मुख्य आधार है।
बनावट की दृष्टि से मस्तिष्क को दो भागों में बांटा जा सकता है, अग्र और पश्च मस्तिष्क। परंतु कार्य के आधार पर मस्तिष्क मुख्य दो भागों में बांटा गया है-बांया और दायां मस्तिष्क।बांया मस्तिष्क, चेतन मन भौतिक शरीर प्रधान है, और दायाँ मस्तिष्क, अवचेतन मन सूक्ष्म शरीर प्रधान हैं।
बायें मस्तिष्क का कार्य- विचार, बुद्धि, तर्क, सामान्य स्मरणशक्ति प्रधान है। और दाएं मस्तिष्क में- कल्पना शक्ति, टेलीपैथी, साइकिक विजन अर्थात दर्शन क्षमता, पूर्वानुमान/अंतर्बोध, सृजनशीलता की विशेष क्षमता होती है। इन दोनों का समन्वित उपयोग विद्यार्थियों के प्रतिभावान होने का लक्षण है।
लेकिन दायें मस्तिष्क तथा अवचेतन-मन पर आधारित क्षमताओं को आध्यात्मिक सिद्धि-साधना की क्षमता मानने तथा पश्चिमी देशों के खोज मान्यता पर आधारित वर्तमान प्रचलित मनोविज्ञान का वहां तक ठीक से समझ उपलब्ध नहीं होने के कारण वर्तमान शिक्षा पद्धति में इससे संबंधित शिक्षा, प्रशिक्षण की व्यवस्था नहीं है।
जिसके कारण वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति मुख्यतः बाएं मस्तिष्क पर आधारित है।
जिससे विद्यार्थियों के प्रकृति प्रदत्त वास्तविक प्रतिभा का शिक्षा में विधिवत उपयोग नहीं हो पाता। जिससे जाने-अनजाने अपनी प्रतिभा का उपयोग कर पाने वाले कुछ प्रतिशत विद्यार्थी ही पढ़ाई -लिखाई के क्षेत्र में सफल हो पाते हैं। लेकिन अधिकांश बेरोजगार रह जाते हैं।तथा दायां मस्तिष्क- अवचेतन मन पर आधारित नैतिक शिक्षा, व्यवहार का विकास भी नहीं हो पाता जिसके कारण अधिकांश विद्यार्थी एक अच्छा समझदार और प्रतिभावान इंसान नहीं बन पाते।
हमारे देश के मिसाइल मैन के नाम से मशहूर तथा भूतपूर्व राष्ट्रपति सम्माननीय ए पी जे अब्दुल कलाम जी ने कल्पना के महत्व को बताते हुए कहा है कि -
*शिक्षा देती नई कल्पना,
*कल्पना लाते नए विचार।
*नए विचार से मिले ज्ञान,
*ज्ञान बनाएं आपको महान।।
वर्तमान शिक्षा पद्धति में विद्यार्थियों के लगभग 5% ही प्रतिभा क्षमता का सदुपयोग हो पा रहा है। शेष निष्क्रिय अवस्था में विद्यमान है।अगर शेष 5% से अधिक मस्तिष्क क्षमता योग,ध्यान या अन्य किसी विधि से सक्रिय हो जाए अर्थात विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क अधिकतम रूप से कार्य करने लगे तब विद्यार्थियों में किस तरह की प्रतिभा का विकास होगा? क्या विचार बुद्धि तर्क विकसित होगा? या कोई अन्य प्रतिभा क्षमता प्रकट होगा?
इसका उत्तर यह है कि- जब मानव मन-मस्तिष्क अपने अधिकतम विकसित रूप में प्रकट होगा तब- अभी तक साधारण समझे जाने वाले यह कल्पना शक्ति ही अपने विकसित रूप में होगा ।
अभी तक हम मन के जिस कल्पना शक्ति से परिचित हैं, वह कल्पना का सिर्फ प्रारंभिक रूप है। प्रतिभावान अवस्था में कल्पना अपने अधिक विकसित रूप में प्रकट होता है। जिससे ही टेलीपैथी, थाट रीडिंग, साइकिक विजन अंतर्बोध संभव हो पाता है।तथा शिक्षा के क्षेत्र में अतिप्रतिभावान विद्यार्थियों विद्यार्थी द्वारा उपयोग किए जाने वाली प्रतिभा इसी कल्पना का ही विकसित रूप है। विज्ञान के विकसित होने तथा विभिन्न वैज्ञानिक खोज, अविष्कार में इस कल्पना शक्ति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।
बाएं मस्तिष्क और दायें मस्तिष्क दोनों के कार्य करने का तरीका अलग-अलग है। दोनों कार्य करने के तरीकों के मनोविज्ञान को शोध से समझकर विद्यार्थियों के प्रतिभा को प्रकट करने में सहयोग किया जा सकता है।
मानव मस्तिष्क के विभिन्न क्षमताओं में कल्पना एक महत्वपूर्ण क्षमता है। जो अपनी आरंभिक रूप में साधारण परंतु विकसित अवस्था में असाधारण होता है। विज्ञान के अधिकांश खोज-आविष्कार में इस कल्पना शक्ति का पर्याप्त उपयोग होता है। दुनिया में जितने भी लोग, विद्यार्थी तेज स्मरण शक्ति वाले हैं, वे सब विषय वस्तु को कल्पना शक्ति के द्वारा की याद रख पाते हैं। अधिकांश साहित्यिक रचनाएं कल्पना शक्ति के द्वारा ही संभव हो पाती है।
भारत में गणित बहुत पुराना विषय रहा है। वर्तमान शिक्षा पद्धति के विभिन्न विषयों में गणित एक ऐसा विषय है, जिसमें कल्पना शक्ति (दायें मस्तिष्क) अर्थात अवचेतन मन का सर्वाधिक उपयोग होता है। इस तरह कल्पना शक्ति का शिक्षा के क्षेत्र में इन सबके अलावा और अनेक चीजों में उपयोग होता है। इसलिए यह शिक्षा के क्षेत्र में बहुत कीमती तथा महत्वपूर्ण प्रतिभा है।
कल्पना शक्ति या अन्य अनेक प्रतिभाएं जो विद्यार्थियों में बचपन में पर्याप्त रूप में होता है, जिसे हम अज्ञानता के कारण साधारण, अनुपयोगी समझकर उसके विकास की ओर ध्यान नहीं दे पाते। जिसके कारण यह प्रतिभा उम्र बढ़ने के साथ- विधिवत उपयोग के अभाव में निष्क्रिय होने लगता है।
इसलिए विद्यार्थियों की भलाई, देश की शिक्षा के स्तर तथा शिक्षा में गुणवत्ता को उन्नत बनाने के लिए शिक्षा तथा विज्ञान और टैक्नोलॉजी के क्षेत्र में बहुत महत्वपूर्ण कल्पना शक्ति तथा विद्यार्थियों में प्राकृतिक रूप से उपस्थित इसी तरह की अन्य प्रतिभाओं को विकसित करने, शिक्षोपयोगी बनाने के लिए इस पर शिक्षा-विभाग द्वारा शोध किए जाने तथा विद्यार्थियों को इससे संबंधित शिक्षा/ प्रशिक्षण दिए जाने की बहुत आवश्यकता है।
🌷धन्यवाद 🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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