पतंजलि योग का मन-मस्तिष्क क्षमता विकास में उपयोग


           पतंजलि योग का मन-मस्तिष्क क्षमता विकास में उपयोग
     
पतंजलि योग के प्रारम्भिक चार चरणों- यम, नियम, आसन, प्राणायाम के शारीरिक लाभ से अब काफी लोग परिचित हो चुके है, और उसके आगे का चरण- प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि अस्तित्व के रहस्यों, आत्मा, परमात्मा, सूक्ष्म जगत को अनुभव कर सकने का उपाय है।
            लेकिन प्रारंभिक चार चरणों के शारीरिक स्वास्थ्य लाभ तथा शारीरिक क्षमता सक्रिय, जागृत, उपलब्ध करने की तरह *शिक्षा के क्षेत्र में* मानसिक स्वास्थ्य लाभ तथा मानसिक प्रतिभा-क्षमता सक्रिय, जागृत कर उपयोग करने की आवश्यकता है।
         दुनिया के विभिन्न मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक तथा पतंजलि योग के गहन अध्ययन, प्रशिक्षण, प्रयोग से ज्ञात होता है कि- दुनिया में प्रचलित विभिन्न तकनीकों की तुलना में पतंजलि योग मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में सर्वश्रेष्ठ विधि है।
       पतंजलि योग का मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग करने की विधि-

1.  पतंजलि योग के  मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग करने के लिए  सर्वप्रथम सभी योग शिविरों में योग संचालकों द्वारा योग साधकों तथा विद्यार्थियों को बतलाया जाए कि- योग के प्रारंभिक चरणों- यम, नियम के साथ आसन, प्राणायाम के उपयोग से शारीरिक स्वास्थ्य, सबलता प्राप्त होने के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य तथा मानसिक प्रतिभा, क्षमता का उन्नत रूप उपलब्ध होता है। जो प्रत्याहार, धारणा,ध्यान के अभ्यास से और अधिक विकसित होता है। इसलिए सभी योग साधक इस बात को ध्यान में रखते हुए यम, नियम का पालन करते हुए योगासन तथा प्राणायाम को शारीरिक के साथ-साथ मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीकी मानकर अभ्यास करें। ऐसा करने से मन-मस्तिष्क क्षमता विकास का भाव पैदा होगा जो मनोचिकित्सक के रूप में वास्तव में मन-मस्तिष्क क्षमता विकास में और अधिक सहयोगी होगा।
         क्योंकि मनोविज्ञान की नवीनतम खोजें कहती है कि- किसी बात को मानने से भी खासकर सही बात, ज्ञान को मानने से शरीर मन-मस्तिष्क में काफी कुछ सुधार, परिवर्तन होता है, फायदा मिलता है। जिसका उपयोग वर्तमान में भी प्रायः सभी विश्वप्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक या मोटिवेशनल गुरु अपने मनोचिकित्सा सुधार तकनीकों में अनिवार्यतः करते हैं।

2.  इसके पश्चात अर्थात योगासन प्राणायाम के पश्चात योग साधकों को धारणा-ध्यान की स्थिति में अर्थात शांत एकाग्र अवस्था (मस्तिष्क की अल्फा तरंग अवस्था) में बैठने को कहा जाए। योगासन प्राणायाम से थके हुए होने के कारण साधक आसानी से इस अवस्था में बैठ पाते हैं। फिर इसी अवस्था में मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी शिक्षा अर्थात स्कूल/कॉलेज की शिक्षा में उपयोगी, बेहतर पढ़ाई में सहायक ज्ञान मोटिवेशनल व्याख्यान या प्रशिक्षण के रूप में देने से योग साधक, विद्यार्थियों के अवचेतन मन-मस्तिष्क में यह ज्ञान आसानी से बैठ पाता है। जिससे विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर काफी उन्नत होने लगता है।वर्तमान शिक्षा पद्धति में इसकी बहुत आवश्यकता है।

3.  इसके पश्चात इसी धारणा की अवस्था में अर्थात मन मस्तिष्क की अल्फ़ा तरंग अवस्था में अवचेतन मन को प्रभावित करने, सुधारने योग्य मन-मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी मनोवैज्ञानिक मोटिवेशनल सुझाव का मनोचिकित्सा के रूप में उपयोग पढ़ाई को बाधित करने वाले अनेक मनोव्याधियों/ मनोविकारों को सुधारने में किया जाए जो विद्यार्थियों को जीनियस के समान बना सकने में सक्षम है।

4.  इस प्रशिक्षण में शामिल अपेक्षाकृत जन्मजात रूप से अधिक प्रतिभावान विद्यार्थियों को साइकिक विजन/ बन्द आँखों से समझ सकने तथा धारणा ध्यान समाधि की संयुक्त अवस्था *संयम* या *सवितर्क समाधि* की अवस्था नए वैज्ञानिक खोज, आविष्कार कर सकने की शिक्षा दी जाए तथा अभ्यास करवाया जाए, जो इस योग्य प्रतिभा/ क्षमता सक्रिय,प्रकट, विकसित कर सकने में सक्षम है।
        यह उपाय प्रायोगिक रुप से विश्व स्तर पर प्रचलित अन्य मन- मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीकों या मनोचिकित्सा तकनीकों तथा मोटिवेशनल तकनीकों से काफी बेहतर है। जो विद्यार्थियों के साथ-साथ प्रत्येक योग साधकों को मानसिक, बौद्धिक रूप से वर्तमान की तुलना में काफी बेहतर तथा अनेक विद्यार्थियों को विश्वस्तरीय जीनियस बना सकने में समर्थ है।
        अगर ऐसा किया जा सका तो वह दिन दूर नहीं जब हमारा देश फिर से अपनी विश्वगुरु की खोई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सकेगा। तथा विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन सकेगा।
                🌷धन्यवाद 🌷
           रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
      पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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