वैज्ञानिक मनोविज्ञान (Scientific Psychology)

      🌷 वैज्ञानिक मनोविज्ञान 🌷
         (Scientific Psychology)

जिस तरह दुनिया के हर तरह के व्यक्तियों अर्थात अलग अलग क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगों का मनोविज्ञान अलग- अलग तरह का होता है।ठीक उसी तरह वैज्ञानिकों का भी एक खास तरह का मनोविज्ञान होता है। जिसे अगर समझा जा सके और शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी में शामिल किया जा सके तो यह शिक्षा तथा वैज्ञानिक खोज के क्षेत्र में एक नई उपलब्धि तथा इस क्षेत्र में कार्य करने वाले विद्यार्थियों/ शोधार्थियों के लिए बहुत महत्वपूर्ण मार्गदर्शन सिद्ध होगी।
        दुनिया के ज्ञान-विज्ञान के इतिहास को देखा जाए तो-अनेक विश्वस्तरीय या नोबेल पुरस्कार प्राप्त वैज्ञानिकों, विद्वानों, महापुरुषों ने किसी भी प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त नहीं किए थे,अर्थात वे साधारण शिक्षा प्राप्त करके भी विश्वप्रसिद्ध बने हैं। यह सिद्ध करता है कि विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक प्रतिभा, विद्वता या नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर सकने योग्य प्रतिभा के लिए विश्वविद्यालयीन शिक्षा या विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय में पढ़ना अनिवार्य नहीं है।
        क्योंकि-
         यह प्रतिभा अभी तक के सिर्फ वर्तमान विश्वविद्यालयीन शिक्षा से नहीं बल्कि- यह मानव/विद्यार्थियों के स्वयं में अवचेतन मन के रूप में जन्मजात प्राकृतिक रूप से छुपी हुई मन मस्तिष्क क्षमता से उपलब्ध होता है।
        यह प्रतिभा-क्षमता प्राकृतिक रूप से अवचेतन मन के रूप में छिपी हुई अवस्था में हर व्यक्ति/ विद्यार्थियों में होता है, लेकिन वर्तमान शिक्षा-पद्धति में इससे संबंधित शिक्षा/ प्रशिक्षण के अभाव, आवश्यक संसाधनों की कमी के साथ मौलिक सोच, मौलिक ज्ञान के प्रकट विकसित हो सकने के अवसर की कमी, वैज्ञानिक मनोविज्ञान के उपयोग तथा मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के उपयोग की कमी के कारण विश्वस्तरीय या नोबेल पुरस्कार विजेता समतुल्य प्रतिभा प्रकट, विकसित नहीं हो पा रहा है।
        अब तक के वैज्ञानिक खोज आविष्कार का इतिहास बतलाता है कि- अभी तक के अनेक विश्वस्तरीय वैज्ञानिक खोज-आविष्कार या विश्वस्तरीय समझ/ज्ञान प्रयोगशाला में प्रयोग करते समय नहीं, बल्कि वैज्ञानिकों, शोधकर्ताओं, विद्वानों के प्रयोग या अध्ययन पश्चात खाली समय, आराम करते समय या रिलैक्स अवस्था में अर्थात योग की धारणा ध्यान अवस्था/ अवचेतन मन की शांत अवस्था या विज्ञान की भाषा में मस्तिष्क की अल्फा तरंग अवस्था में खोज या समझ उपलब्ध हुआ है। यह अवस्था नए वैज्ञानिक खोज या विभिन्न विषयों में महत्वपूर्ण ज्ञान उपलब्ध करा सकने में समर्थ है।
         विश्व प्रसिद्ध गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन कठिन से कठिन सवालों का जवाब तत्क्षण देते थे। यह क्यों और कैसे होता था?
        गणितज्ञ एवं वैज्ञानिकों के लिए यह एक रहस्य हो सकता है! चुनौति हो सकता है, परंतु प्राचीन भारतीय योग-ध्यान के लिए यह परिचित प्रतिभा है। श्रीनिवास रामानुजन अवचेतन मन की प्राकृतिक क्षमता अर्थात योग की धारणा-ध्यान के समान जन्मजात रूप से प्राप्त मानसिक अवस्था अर्थात विज्ञान की भाषा में मस्तिष्क की अल्फा तरंग अवस्था के उपयोग से अपनी विश्वस्तरीय गणितीय प्रतिभा को अभिव्यक्त कर पाते थे।
         दुनिया के प्रायः सभी वैज्ञानिक या विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति जाने अनजाने मन-मस्तिष्क की इसी अवस्था के उपयोग से विश्व प्रसिद्ध बने हैं या विश्व प्रसिद्ध खोज कर सकने, ज्ञान प्राप्त कर सकने में समर्थ हुए हैं।
        इस शिक्षा उपयोगी रहस्य के ज्ञान या मनोविज्ञान का उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी में किया जाए, तो यह शिक्षा जगत में बहुत बड़ी उपलब्धि सिद्ध होगी।
         मस्तिष्क वैज्ञानिकों का कहना है कि- मस्तिष्क से मुख्यतः चार प्रकार बीटा, अल्फा, थीटा, डेल्टा तरंग पैदा होता है, जिसकी प्रति सेकंड आवृत्ति क्रमशः कम होती जाती है। लेकिन प्रचलित भौतिक, सांसारिक नियमों के विपरीत मन मस्तिष्क से निकलने वाली तरंगों की आवृत्ति कम होने के अनुपात में मस्तिष्क क्षमता में वृद्धि होती जाती है।
           अगर पतंजलि योग या किसी भी योग ध्यान या अन्य तकनीकों के उपयोग से विद्यार्थियों को विद्या अध्ययन के समय मस्तिष्क की अल्फा तरंग की अवस्था में लाया जा सके, तो विद्यार्थियों में प्राकृतिक रूप से छिपी अपार प्रतिभा को प्रकट, सक्रिय, विकसित कर सकने में समर्थ है।
        विश्वस्तरीय जीनियस प्रतिभा को समझने के लिए महानतम वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन के भौतिक मस्तिष्क को विश्व के अलग-अलग प्रयोगशालाओं में समझने का प्रयास किया जा रहा है,जबकि इस विधि से इसको समझ पाना अत्यंत कठिन है। क्योंकि खासियत अल्बर्ट आइंस्टीन के मस्तिष्क में नहीं बल्कि आइंस्टीन के मन/ व्यक्तित्व में रहा है। मस्तिष्क तो सिर्फ माध्यम है- मन-चेतना की प्रतिभा या व्यक्तित्व को प्रकट होने के लिए।
        सभी मनुष्यों के मस्तिष्क की आंतरिक संरचना, आकार और वजन लगभग बराबर होता है।मुख्य अंतर मन, व्यक्तित्व, मानव चेतना के स्तर या मस्तिष्क केंद्रों की सक्रियता का होता है।
         आइंस्टीन की प्रतिभा/क्षमता को समझने के लिए उनके भौतिक मस्तिष्क का डायग्नोसिस करने के बजाए आइंस्टीन के मनोविज्ञान को समझना आवश्यक,अनिवार्य है।पतंजलि योग-ध्यान इसमें सर्वाधिक सहायक सिद्ध होगा।
        अभी तक विज्ञान का ध्यान मानव के शरीर रूपी हार्डवेयर तक सीमित रहा है, लेकिन धीरे-धीरे नैनो टेक्नोलॉजी के सिद्धांत पर गहरे/ सूक्ष्म केंद्रों, तल की ओर जाने लगा है। मानव शरीर, मस्तिष्क रूपी हार्डवेयर का केंद्र या आधार मन रूपी सॉफ्टवेयर है। मानव प्रतिभा क्षमता तथा मानव के संपूर्ण मनोविज्ञान को समझने के लिए अर्थात मानव के बारे में अधिकतम जानकारी प्राप्त करने में योग-ध्यान सर्वाधिक सहयोगी है। क्योंकि मानव प्रतिभा क्षमता भौतिक शरीर नहीं मन का हिस्सा है, और वर्तमान प्रचलित मनोविज्ञान चेतन-मन पर आधारित है। लेेकिन आध्यात्म या योग-ध्यान सम्पूर्ण अर्थात चेतन-मन, अवचेतन-मन तथा अतिचेतन मन पर आधारित है.मानव मन-मस्तिष्क को समझने के लिए मस्तिष्क विज्ञान, मनोविज्ञान के साथ साथ योग-ध्यान के उपयोग से इससे संबंधित ज्ञान या मनोविज्ञान के नए शिखर को छुआ जा सकता है इसका उपयोग मानव मन-मस्तिष्क शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में बहुत बड़ी विश्वस्तरीय उपलब्धि सिद्ध होगी।
             🌷 धन्यवाद  🌷
          रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
     पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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