"विद्यार्थियों के बौद्धिक क्षमता पर स्वास्थ्य का प्रभाव"

🌷"विद्यार्थियों के बौद्धिक क्षमता पर स्वास्थ्य का प्रभाव"🌷

 प्रसिद्ध प्रचलित कहावत है-
"स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मन-मस्तिष्क निवास करता है।"
        आधुनिक मनोवैज्ञानिक खोजों के अनुसार- मानव साइकोसोमैटिक अर्थात शरीर और मन एक साथ है। शरीर का प्रभाव मन पर और मन मस्तिष्क का प्रभाव शरीर पर पड़ता है, अर्थात मन मस्तिष्क (बौद्धिक क्षमता) और शरीर एक दूसरे के पूरक हैं, इसलिए शारीरिक स्वास्थ्य का प्रभाव बौद्धिक क्षमता पर पड़ता है। जिसका असर विद्यार्थियों के पढ़ाई लिखाई पर देखने को मिलता है।
        योग-ध्यान मानव मन-चेतना को उच्च स्तरीय बनाने अर्थात उच्च स्तरीय स्वरूप को प्रकट करने का उपाय है। इसलिए इसके लिए निर्धारित सात्विक आहार मन-मस्तिष्क (बौद्धिक क्षमता) पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। शान्त/ मजबूत  बनाने में सहयोग करता है।
        जबकि इसके विपरीत राजसिक, तामसिक आहार मन-मस्तिष्क (चेतना)को उत्तेजित/कमजोर करते हैं।
        जिस प्रकार मानव का स्वस्थ होना एक प्राकृतिक रूप/ अवस्था है, और अस्वस्थ होना अप्राकृतिक घटना है। जो शारीरिक रोग का लक्षण है। ठीक उसी तरह-
         मानव का जीनियस होना प्राकृतिक घटना है, और बुद्धिहीन या बौद्धिक क्षमता में कमजोर होना अप्राकृतिक घटना है। जो मनोरोग का लक्षण है। जिस तरह शारीरिक रोग में औषधि के उपयोग से लक्षणों या कारणों को मिटा देने/ रोग दूर कर देने से शरीर का स्वस्थ रुप प्रकट होता है।
        ठीक उसी तरह योग,आयुर्वेद या किसी उचित चिकित्सा पद्धति के उपयोग से मानसिक कमजोरियों को दूर करने से मानव/विद्यार्थियों का प्राकृतिक जीनियस रूप प्रकट हो जाता है। यह मनोवैज्ञानिक शिक्षा, बौद्धिक क्षमता विकास के क्षेत्र में बहुत उपयोगी है।
         क्योंकि अभी सामान्यतः मान्यता है कि- सामान्य मानव/ विद्यार्थियों को उपलब्ध बौद्धिक क्षमता ही मानव की वास्तविक बौद्धिक क्षमता है, और अति बुद्धिमान लोगों की बौद्धिक क्षमता को किसी विशेष कारण से प्रकृति प्रदत्त विकसित प्रतिभा,क्षमता माना जाता है। सामान्य बौद्धिक क्षमता के लोगों का बहुमत अधिक होने के कारण ऐसा माना जाता है।
        जबकि वास्तविकता यह है कि- जीनियस होना मानव का मूल स्वरुप है। सामान्य बौद्धिक क्षमता का होना पिछड़ा हुआ स्वरूप है।
        देश-काल-वातावरण के सभी चीजों का प्रभाव हमारे शारीरिक स्वास्थ्य पर पड़ता है। वर्तमान विभिन्न आयामों में प्रदूषित देश-काल-वातावरण का अधिकांश प्रभाव नकारात्मक है, जिससे शरीर अस्वस्थ होता है। जिसके कारण ही चिकित्सा विज्ञान का लगातार उत्तरोत्तर विकास होने के बावजूद भी रोग का फैलाव रुक नहीं रहा है। जब देश काल वातावरण के प्रभाव से शरीर अस्वस्थ हो जाता है तो- चूँकि मन-मस्तिष्क भौतिक शरीर की तुलना में अधिक संवेदनशील है, इसलिए वह अधिक प्रभावित, अस्वस्थ होता है।
        लेकिन शारीरिक चिकित्सा के विकास विस्तार की तुलना में मनोचिकित्सा के विकास विस्तार की सुविधा नगण्य होने के कारण तथा मन-मस्तिष्क का विज्ञान अपेक्षाकृत कम विकसित होने के कारण अभी हम देश-काल-वातावरण से मन मस्तिष्क की पर पड़ने वाले नकारात्मक प्रभाव को आसानी से पहचान या महसूस नहीं कर पाते। जिसके कारण वर्तमान में दुनिया में बौद्धिक क्षमता का पर्याप्त विकास, सुधार नहीं हो पा रहा है।
        अतः देश-काल-वातावरण के नकारात्मक  प्रभाव से योग,आयुर्वेद के सहयोग या स्वयं के समझ/सतर्कता के द्वारा बच कर रहते हुए अर्थात सावधानी ही बचाव सूत्र का पालन करते हुए शरीर को स्वस्थ रखने का प्रयास करते हुए बौद्धिक क्षमता को बेहतर बनाने में सहयोगी हुआ जा सकता है।
                       🌷धन्यवाद🌷
                           रामेश्वर वर्मा (शिक्षक) 
                           पथरिया, मुंगेली (छ.ग.)

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