आधुनिक विज्ञान के ज्ञान का गुप्त स्रोत- प्राचीन सभ्यता
वर्तमान आधुनिक युग में विज्ञान और टेक्नोलॉजी के मामले में विकसित देश भले ही हमसे आगे हैं। परन्तु मानव, मन मस्तिष्क के बारे में प्राचीन काल से ही हमारा देश भारत सर्वाधिक समझ रखने वाला ,जानकर देश रहा है।
विज्ञान और टेक्नोलॉजी का जन्म मानव मन-मस्तिष्क में होता है।जिसका सर्वाधिक समझ/ ज्ञान प्राचीन काल से ही भारत में है। जिसका वर्णन योग-ध्यान के रूप में भारतीय योग, वेद, पुराण, उपनिषद आदि प्राचीन ग्रन्थो में आज भी उपलब्ध है। जरूरत सिर्फ इन ग्रन्थो में वर्णित दुर्लभ ज्ञान को विज्ञान के नजरिए से समझने,रिसर्च करके शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उपयोग करने की है।
विज्ञान और टेक्नोलॉजी की कुंजी भारत के पास हजारो साल से "कस्तूरी कुण्डल बसै" की तरह उपलब्ध है। लेकिन हम अपनी ज्ञान को विज्ञान की कसौटी पर कस कर सदुपयोग करने के बजाय "दूर के ढोल सुहावने" की तरह विदेशो की नकल कर रहे है ।
आध्यात्मिक रूप से या योग साधना, ध्यान, कुण्डलिनी जागरण आदि अनेक प्राचीन मानव क्षमता विकास तकनीक से मानव मन-मस्तिष्क के पांच प्रतिशत से अधिक छिपी, सुप्त प्रतिभा-क्षमता सक्रिय,जाग्रत हो जाता है। जिसका अथवा नैसर्गिक रूप से हमारे देश के अनेक वैज्ञानिको, छात्रो, शिक्षकों, युवाओं को प्राप्त सुपर सेन्स रूपी मस्तिष्क क्षमता का उपयोग विज्ञान और टेक्नोलॉजी में किया जाय तो दुनिया से किसी भी विकसित देश का बराबरी किया जा सकना सम्भव है।
विदेशी वैज्ञानिक जिस प्राकृतिक रूप से प्राप्त मस्तिष्क क्षमता का उपयोग विज्ञान और टेक्नोलॉजी में करते है।उसका पूरा साइंस योग-ध्यान के रूप में हजारो साल से प्राचीन भारतीय सहित्य में उपलब्ध है।और हम विदेशो के अंधानुकरण में इसे समझने का ठीक से प्रयास ही नही कर रहे हैं।
दुनिया के सबसे बड़े ज्ञान के इस खजाने का उपयोग विश्व विज्ञान के समस्त अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने तथा भारत को विकसित,शक्तिशाली और विश्वगुरु देश बनाने में सक्षम है।
इस दिशा में पतंजलि योगपीठ विश्वविद्यालय द्वारा किये जा रहे प्रयास सराहनीय है। परन्तु योग के साथ मनोविज्ञान का उपयोग शिक्षा, विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के साथ योग चिकित्सा तथा रिसर्च के क्षेत्र में किया जा सका तो सोने पे सुहागा सिद्ध होगा। देश को शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाने वाला सिद्ध होगा।
* धन्यवाद *
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया ,मुंगेली (छत्तीसगढ़)
वर्तमान आधुनिक युग में विज्ञान और टेक्नोलॉजी के मामले में विकसित देश भले ही हमसे आगे हैं। परन्तु मानव, मन मस्तिष्क के बारे में प्राचीन काल से ही हमारा देश भारत सर्वाधिक समझ रखने वाला ,जानकर देश रहा है।
विज्ञान और टेक्नोलॉजी का जन्म मानव मन-मस्तिष्क में होता है।जिसका सर्वाधिक समझ/ ज्ञान प्राचीन काल से ही भारत में है। जिसका वर्णन योग-ध्यान के रूप में भारतीय योग, वेद, पुराण, उपनिषद आदि प्राचीन ग्रन्थो में आज भी उपलब्ध है। जरूरत सिर्फ इन ग्रन्थो में वर्णित दुर्लभ ज्ञान को विज्ञान के नजरिए से समझने,रिसर्च करके शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में उपयोग करने की है।
विज्ञान और टेक्नोलॉजी की कुंजी भारत के पास हजारो साल से "कस्तूरी कुण्डल बसै" की तरह उपलब्ध है। लेकिन हम अपनी ज्ञान को विज्ञान की कसौटी पर कस कर सदुपयोग करने के बजाय "दूर के ढोल सुहावने" की तरह विदेशो की नकल कर रहे है ।
आध्यात्मिक रूप से या योग साधना, ध्यान, कुण्डलिनी जागरण आदि अनेक प्राचीन मानव क्षमता विकास तकनीक से मानव मन-मस्तिष्क के पांच प्रतिशत से अधिक छिपी, सुप्त प्रतिभा-क्षमता सक्रिय,जाग्रत हो जाता है। जिसका अथवा नैसर्गिक रूप से हमारे देश के अनेक वैज्ञानिको, छात्रो, शिक्षकों, युवाओं को प्राप्त सुपर सेन्स रूपी मस्तिष्क क्षमता का उपयोग विज्ञान और टेक्नोलॉजी में किया जाय तो दुनिया से किसी भी विकसित देश का बराबरी किया जा सकना सम्भव है।
विदेशी वैज्ञानिक जिस प्राकृतिक रूप से प्राप्त मस्तिष्क क्षमता का उपयोग विज्ञान और टेक्नोलॉजी में करते है।उसका पूरा साइंस योग-ध्यान के रूप में हजारो साल से प्राचीन भारतीय सहित्य में उपलब्ध है।और हम विदेशो के अंधानुकरण में इसे समझने का ठीक से प्रयास ही नही कर रहे हैं।
दुनिया के सबसे बड़े ज्ञान के इस खजाने का उपयोग विश्व विज्ञान के समस्त अनसुलझे रहस्यों को सुलझाने तथा भारत को विकसित,शक्तिशाली और विश्वगुरु देश बनाने में सक्षम है।
इस दिशा में पतंजलि योगपीठ विश्वविद्यालय द्वारा किये जा रहे प्रयास सराहनीय है। परन्तु योग के साथ मनोविज्ञान का उपयोग शिक्षा, विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के साथ योग चिकित्सा तथा रिसर्च के क्षेत्र में किया जा सका तो सोने पे सुहागा सिद्ध होगा। देश को शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाने वाला सिद्ध होगा।
* धन्यवाद *
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया ,मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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