आज भी छुपा है- प्राचीन भारतीय ग्रन्थो में "विश्वगुरु ज्ञान"
प्राचीन भारतीय ऋषियों, विद्वानों द्वारा खोज-आविष्कार किए गए /उपलब्ध कराए गए योग-ध्यान रूपी उन्नत ज्ञान का भारतीय शिक्षा में उपयोग की बदौलत हमारा देश भारत आज भी विकसित देशों की तरह उन्नत तथा विश्वगुरु बन सकने की हैसियत रखता है।
जो ज्ञान आज भी प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में उपलब्ध है, लेकिन बस हम उसे पहचान नही पा रहे है,और अगर पहचान भी पा रहें हों तो उपयोग नही कर पा रहे है। हम पश्चिमी ज्ञान के चकाचौन्ध और लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से प्रभावित होने आदि अनेक कारणों से प्राचीन भारतीय ज्ञान के गौरव को विस्मृत करने लगे हैं।
हमारे देश में अजीब विडम्बना है कि- जो जानते है उनकी बाते नही सुनी जाती और जिनकी बातें सुनी जाती है उनके पास प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में उपलब्ध ज्ञान में से भारत को विकसित, विश्वगुरु बना सकने योग्य ज्ञान को डिकोड कर सकने की ध्यान अनुभव, वैज्ञानिक सोच की कमी तथा किसी मान्यता से बंधे होने के कारण समझ की कमी है।
प्राचीन भारतीय ऋषि जिस ज्ञान/ विद्या के जिस कुंजी की बदौलत सैकड़ों हजारो वर्ष पूर्व बिना किसी भौतिक यंत्रो, बिना विशेष प्रयोगशाला के विभिन्न क्षेत्रो में उस जमाने की आवश्यकता के अनुसार जो विश्वस्तरीय खोज किये थे वे उस ध्यान-योग और इसके अंतर्गत- धारणा, ध्यान, समाधि तथा इसका सम्मिलित रूप संयम आदि अनेक तरह के ज्ञान रूपी कुंजी को प्राचीन भारतीय साहित्य रूपी खजाने में रख छोड़े है।
जिसके विधिवत प्रयोग करने पर किसी भी विद्यार्थी/ मानव को बहुत प्रतिभावान बना सकने में समर्थ है| बस उसे पहचानने की जरूरत है। उस कुंजी से आज भी बड़े बड़े वैज्ञानिक खोज तथा अविष्कार किये जा सकते हैं।हमारे देश को विकसित राष्ट्रों से भी विकसित और भारतीय विश्वविद्यालयों को विश्व का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय बनाया जा सकना सम्भव है।
अन्य विकसित देश जहां विज्ञान और टेक्नोलॉजी, शक्ति और समृद्धि के मामले में तो काफी आगे हैं, लेकिन उसी अनुपात में मानसिक तनाव तथा अन्य मनोविकारों से अपेक्षाकृत अधिक परेशान हैं, जिसके कारण ही विश्व भर से काफी संख्या में लोग स्वस्थ सुखी समृद्ध जीवन शैली की तलाश में भारत भ्रमण में आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि शक्ति और समृद्धि ही स्वस्थ सुखी जीवन का के लिए पर्याप्त नहीं है।
विकसित देश अधूरे हैं- ध्यान योग, आध्यात्म के बिना और भारत अधूरा है विकसित विज्ञान और टेक्नोलॉजी के बिना। दोनों मिलकर अर्थात विकसित देशों का विज्ञान और भारतीय ध्यान-योग, अध्यात्म मिलकर एक सुंदर स्वस्थ सुखी समृद्ध संसार की कर सकते हैं।
जिसमें भारत की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राचीन काल के विश्व गुरु की तरह हो सकती है।
चूंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और आवश्यकता आविष्कार की जननी है, इसीलिए धीरे धीरे इसके अनुकूल स्थिति परिस्थिति का निर्माण होता नजर आने लगा है।
बस योग-ध्यान को शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलोजी के क्षेत्र में मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग करने के रूप में आधुनिक साइंस और भारतीय आध्यात्म को मिलकर काम करने की जरूरत है।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया
धन्यवाद
प्राचीन भारतीय ऋषियों, विद्वानों द्वारा खोज-आविष्कार किए गए /उपलब्ध कराए गए योग-ध्यान रूपी उन्नत ज्ञान का भारतीय शिक्षा में उपयोग की बदौलत हमारा देश भारत आज भी विकसित देशों की तरह उन्नत तथा विश्वगुरु बन सकने की हैसियत रखता है।
जो ज्ञान आज भी प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में उपलब्ध है, लेकिन बस हम उसे पहचान नही पा रहे है,और अगर पहचान भी पा रहें हों तो उपयोग नही कर पा रहे है। हम पश्चिमी ज्ञान के चकाचौन्ध और लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति से प्रभावित होने आदि अनेक कारणों से प्राचीन भारतीय ज्ञान के गौरव को विस्मृत करने लगे हैं।
हमारे देश में अजीब विडम्बना है कि- जो जानते है उनकी बाते नही सुनी जाती और जिनकी बातें सुनी जाती है उनके पास प्राचीन भारतीय ग्रन्थों में उपलब्ध ज्ञान में से भारत को विकसित, विश्वगुरु बना सकने योग्य ज्ञान को डिकोड कर सकने की ध्यान अनुभव, वैज्ञानिक सोच की कमी तथा किसी मान्यता से बंधे होने के कारण समझ की कमी है।
प्राचीन भारतीय ऋषि जिस ज्ञान/ विद्या के जिस कुंजी की बदौलत सैकड़ों हजारो वर्ष पूर्व बिना किसी भौतिक यंत्रो, बिना विशेष प्रयोगशाला के विभिन्न क्षेत्रो में उस जमाने की आवश्यकता के अनुसार जो विश्वस्तरीय खोज किये थे वे उस ध्यान-योग और इसके अंतर्गत- धारणा, ध्यान, समाधि तथा इसका सम्मिलित रूप संयम आदि अनेक तरह के ज्ञान रूपी कुंजी को प्राचीन भारतीय साहित्य रूपी खजाने में रख छोड़े है।
जिसके विधिवत प्रयोग करने पर किसी भी विद्यार्थी/ मानव को बहुत प्रतिभावान बना सकने में समर्थ है| बस उसे पहचानने की जरूरत है। उस कुंजी से आज भी बड़े बड़े वैज्ञानिक खोज तथा अविष्कार किये जा सकते हैं।हमारे देश को विकसित राष्ट्रों से भी विकसित और भारतीय विश्वविद्यालयों को विश्व का सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालय बनाया जा सकना सम्भव है।
अन्य विकसित देश जहां विज्ञान और टेक्नोलॉजी, शक्ति और समृद्धि के मामले में तो काफी आगे हैं, लेकिन उसी अनुपात में मानसिक तनाव तथा अन्य मनोविकारों से अपेक्षाकृत अधिक परेशान हैं, जिसके कारण ही विश्व भर से काफी संख्या में लोग स्वस्थ सुखी समृद्ध जीवन शैली की तलाश में भारत भ्रमण में आते हैं। इससे स्पष्ट होता है कि शक्ति और समृद्धि ही स्वस्थ सुखी जीवन का के लिए पर्याप्त नहीं है।
विकसित देश अधूरे हैं- ध्यान योग, आध्यात्म के बिना और भारत अधूरा है विकसित विज्ञान और टेक्नोलॉजी के बिना। दोनों मिलकर अर्थात विकसित देशों का विज्ञान और भारतीय ध्यान-योग, अध्यात्म मिलकर एक सुंदर स्वस्थ सुखी समृद्ध संसार की कर सकते हैं।
जिसमें भारत की भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्राचीन काल के विश्व गुरु की तरह हो सकती है।
चूंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और आवश्यकता आविष्कार की जननी है, इसीलिए धीरे धीरे इसके अनुकूल स्थिति परिस्थिति का निर्माण होता नजर आने लगा है।
बस योग-ध्यान को शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलोजी के क्षेत्र में मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग करने के रूप में आधुनिक साइंस और भारतीय आध्यात्म को मिलकर काम करने की जरूरत है।
सर्वे भवंतु सुखिनः सर्वे संतु निरामया
धन्यवाद
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