मानव मस्तिष्क ही कल्पवृक्ष
मानव मस्तिष्क ही कल्प वृक्ष है। वृहद शोध से स्पष्ट हुआ है कि- कल्पवृक्ष कोई वनस्पत्ति या काल्पनिक वृक्ष नही बल्कि यह एक प्रतीक वृक्ष है। प्राचीन भारतीय धर्म ग्रन्थो में किसी ज्ञान को गलत हाथों में जाने से बचाने के लिए तथा उस जमाने के आम लोगो में बुद्धि का अधिक विकास ,शिक्षा का अधिक प्रचार प्रसार नही हो पाने के कारण कहानी या चित्रमय भाषा को ही लोग ठीक तरह से समझ पाते थे जिसके कारण प्राचीन विद्वानों के द्वारा किसी गूढ़ ज्ञान को सीधे बतलाने के बजाय प्रतीक रूप में कहने की परम्परा रही है।
इसलिए बहुत से प्राचीन ज्ञान को सामान्य समझ से समझने में कठिनाई होती है। योग, तन्त्र, ध्यान, कुण्डलनी सम्बन्धी साधनाओं में आज्ञाचक्र या तीसरी आँख तथा सहस्त्रार चक्र का अनुभव,वर्णन मिलता है। जो साधना की गहरी अवस्था, गहरे ध्यान की अवस्था में अनुभव होता है।जिसे कल्प वृक्ष कहा गया है। जहां तक पहुंचने वाले, जिसे अनुभव करने वाले साधको ,ध्यानीयों अर्थात मस्तिष्क के नीचे स्थित चेतना युक्त साधकों या सिद्धों द्वारा आज्ञाचक्र या तीसरी आँख आधुनिक विज्ञान की भाषा में पीनियल ग्रन्थि का ध्यान करने पर मन इतना शांत. एकाग्र और शक्तिशाली हो जाता है कि वे हर इच्छित चीज उपलब्ध कर सकने में समर्थ हो जाते है। और वहां तक पहुंचने के लिए नियमित लंबे ,कठिन अभ्यास की जरूरत पड़ती है। ऐसे अनेक सिद्धों,साधकों का आज भी हिमालय के साथ-साथ देश के अन्य गुप्त स्थानों में शरीरी,अशरीरी रूप में रहने का जिक्र कुछ साहित्यों में पढ़ने तथा इस तरह की साधना करने वाले अनुभवी साधकों से सुनने को मिलता है। जिनका प्रत्यक्ष दर्शन सौभाग्यशालियो को ही हो पाने की बात कही जाती है।
इसके साथ ही साथ आधुनिक जमाने में भी आज तक संसार या विज्ञान में जो भी खोज ,आविष्कार या ज्ञान उपलब्ध हुआ है ,वह वैज्ञानिकों, विद्वानों को इसी मस्तिष्क रूपी कल्प वृक्ष के नीचे बैठने से ही उपलब्ध हुआ है।
धन्यवाद
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया,मुंगेली (छत्तीसगढ़)
मानव मस्तिष्क ही कल्प वृक्ष है। वृहद शोध से स्पष्ट हुआ है कि- कल्पवृक्ष कोई वनस्पत्ति या काल्पनिक वृक्ष नही बल्कि यह एक प्रतीक वृक्ष है। प्राचीन भारतीय धर्म ग्रन्थो में किसी ज्ञान को गलत हाथों में जाने से बचाने के लिए तथा उस जमाने के आम लोगो में बुद्धि का अधिक विकास ,शिक्षा का अधिक प्रचार प्रसार नही हो पाने के कारण कहानी या चित्रमय भाषा को ही लोग ठीक तरह से समझ पाते थे जिसके कारण प्राचीन विद्वानों के द्वारा किसी गूढ़ ज्ञान को सीधे बतलाने के बजाय प्रतीक रूप में कहने की परम्परा रही है।
इसलिए बहुत से प्राचीन ज्ञान को सामान्य समझ से समझने में कठिनाई होती है। योग, तन्त्र, ध्यान, कुण्डलनी सम्बन्धी साधनाओं में आज्ञाचक्र या तीसरी आँख तथा सहस्त्रार चक्र का अनुभव,वर्णन मिलता है। जो साधना की गहरी अवस्था, गहरे ध्यान की अवस्था में अनुभव होता है।जिसे कल्प वृक्ष कहा गया है। जहां तक पहुंचने वाले, जिसे अनुभव करने वाले साधको ,ध्यानीयों अर्थात मस्तिष्क के नीचे स्थित चेतना युक्त साधकों या सिद्धों द्वारा आज्ञाचक्र या तीसरी आँख आधुनिक विज्ञान की भाषा में पीनियल ग्रन्थि का ध्यान करने पर मन इतना शांत. एकाग्र और शक्तिशाली हो जाता है कि वे हर इच्छित चीज उपलब्ध कर सकने में समर्थ हो जाते है। और वहां तक पहुंचने के लिए नियमित लंबे ,कठिन अभ्यास की जरूरत पड़ती है। ऐसे अनेक सिद्धों,साधकों का आज भी हिमालय के साथ-साथ देश के अन्य गुप्त स्थानों में शरीरी,अशरीरी रूप में रहने का जिक्र कुछ साहित्यों में पढ़ने तथा इस तरह की साधना करने वाले अनुभवी साधकों से सुनने को मिलता है। जिनका प्रत्यक्ष दर्शन सौभाग्यशालियो को ही हो पाने की बात कही जाती है।
इसके साथ ही साथ आधुनिक जमाने में भी आज तक संसार या विज्ञान में जो भी खोज ,आविष्कार या ज्ञान उपलब्ध हुआ है ,वह वैज्ञानिकों, विद्वानों को इसी मस्तिष्क रूपी कल्प वृक्ष के नीचे बैठने से ही उपलब्ध हुआ है।
धन्यवाद
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया,मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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