भारत में भी न्यूटन, आइंस्टीन की तरह प्रतिभा प्रकट हो सकता है, अगर.......

🌷 *भारत में भी न्यूटन आइंस्टीन की तरह प्रतिभा प्रकट हो सकता हैं, अगर.......!*🌷

               भारत में भी विकसित देशों की तरह अपार प्रतिभा विद्यमान है। जो कि अति प्रतिभावान (एक्स्ट्राऑर्डिनरी) विद्यार्थियों में प्रकट रूप में तथा सामान्य प्रतीत होने वाले विद्यार्थियों में छिपी हुई अवस्था में विद्यमान है। लेकिन क्या कारण है कि न्यूटन,आइंस्टीन की तरह/ नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर सकने योग्य प्रतिभा प्रकट नहीं हो पा रहा है?
              वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति में इस बात को गहराई से सोचने- समझने, शोध करने की सर्वाधिक आवश्यकता है। अगर वर्तमान शिक्षा पद्धति में कुछ बातों का ख्याल रखा जाए/ उपयोग किया जाए तो भारतीय विद्यार्थी भी न्यूटन, आइंस्टीन की तरह नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर सकने योग्य प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकने में समर्थ हैं।
जो इस प्रकार है-

1. विद्यार्थियों को प्राकृतिक रूप से अधिकांशतः छिपी हुई अवस्था में उपलब्ध अपार मन-मस्तिष्क क्षमता का शिक्षा में बेहतर उपयोग के लिए- मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक से सम्बन्धित शिक्षा, प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए।

2. विद्यार्थियों के पढ़ाई लिखाई को बाधित करने वाले विभिन्न मनोविकारों, मानसिक कमजोरियों को योग, मनोविज्ञान अथवा किसी अन्य प्रमाणिक वैज्ञानिक विधि से सुधारने/ दूर करने संबंधी शिक्षा, प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए। देश की वर्तमान परिस्थिति में इस कार्य के लिए पतंजलि योग के साथ मनोविज्ञान सर्वाधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है।

3. शिक्षा मूल रूप से, गहरे में, वास्तव में अवचेतन मन पर आधारित है। कोई भी जानकारी या ज्ञान चेतन मन में अस्थाई रूप में रहता है, अवचेतन मन में पहुंचने पर ही स्थाई अर्थात लंबे समय तक स्मरण, उपयोग करने योग्य हो पाता है। इसीलिए विद्यार्थियों को अवचेतन मन के ज्ञान-विज्ञान पर आधारित मानव चेतना की मूल भाषा चित्रमय भाषा पर आधारित) जानकारी, शिक्षा, प्रशिक्षण सुविधा उपलब्ध करवाने के साथ इसी पर आधारित पाठ्यक्रम का निर्माण किया जाए तथा अवचेतन मन के अनुरूप ही शिक्षा पद्धति लागू की जाए।

4. विद्यार्थियों को बाहरी विषयों से ध्यान हटा कर पढ़ाई-लिखाई में ध्यान केंद्रित कर सकने संबंधी शिक्षा-प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए तथा राज्य, राष्ट्रीय स्तर पर शिक्षा को महत्वपूर्ण बनाने तथा पढ़ाई के अनुकूल मानसिक वातावरण तैयार करने हेतु उच्च स्तर से प्रारम्भ कर ग्राम स्तर तक सामूहिक प्रयास किया जाए।

5. विद्यार्थियों में प्राकृतिक रूप से छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता को सक्रिय करने तथा उपयोगी बनाने के लिए विद्यार्थियों को अधिकाधिक प्रोत्साहित किया जाए तथा मोटिवेशन संबंधी शिक्षा तथा प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए। इसके साथ ही-
        अति प्रतिभावान [एक्स्ट्राऑर्डिनरी] विद्यार्थियों के लिए शिक्षोपयोगी विशेष मार्गदर्शन की सुविधा उपलब्द्ध करवाई जाए.

6. सरकारी स्कूलों को उन्नत बेहतर शिक्षा हेतु आवश्यक पर्याप्त आधुनिक संसाधन उपलब्ध करवाने के साथ विद्यार्थियों के भविष्य का निर्माण करने वाले शिक्षकों (शिक्षाकर्मियों) को पर्याप्त सम्मान तथा वेतन दिया जाना सर्वाधिक सहयोगी सिद्ध होगा।

7. भारतीय शिक्षा के स्तर को बेहतर/ उन्नत बनाने के लिए शिक्षा मनोविज्ञान से संबंधित *शोध* का दायरा बढ़ाते हुए इसमें शिक्षकों को शामिल करने की सुविधा उपलब्ध करवाने के साथ विश्व स्तर पर उपलब्ध इस तरह के उपयोगी ज्ञान का वर्तमान शिक्षा पद्धति में उपयोग किया जाए।
         तथा सभी क्षेत्रों में शोध को पर्याप्त बढ़ावा दिया जाए

8. राष्ट्रीय/ राज्य स्तर पर समाज में पालकों को सही पेरेंटिंग का गुण सीखकर बचपन से बच्चों को पढ़ाई के अनुकूल सही परवरिश दे सकने योग्य शिक्षा, प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाने के साथ परिवार, गांव, समाज, देश, राज्य के पढ़ाई लिखाई को बाधित करने प्रसाद नकारात्मक विचार रखने वाले लोगों से अप्रभावित रहने की शिक्षा प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए।

9. विद्यार्थियों को पढ़ाई के अलावा अन्य चीजों में ध्यान को भटकने/ भटकाने से बचाने के लिए पढ़ाई से होने वाले लाभ को प्रतिदिन विजुअलाइजेशन करने/ करवाने के अभ्यास में सहयोग तथा अन्य बेहतर उपाय करने के साथ-साथ विद्यार्थियों को "खाली दिमाग शैतान का घर" के दुष्प्रभाव से बचाने के लिए सतत सृजनशील रहने की व्यवस्था या अन्य बेहतर उपाय किया जाए।

10.  प्राचीन शिक्षा पद्धति की तरह वर्तमान शिक्षा में  पढ़ाई लिखाई के साथ-साथ योग प्राणायाम ध्यान ब्रह्मचर्य की शिक्षा देने के साथ अभ्यास करवाया जाए।तथा इससे होने वाले लाभ से परिचित करवाया जाए।
      अर्थात-
         *प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति की तरह योग-ध्यान को शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा बनाया जाए।अर्थात वर्तमान शिक्षा में इसका पर्याप्त उपयोग किया जाए।*

11. वर्तमान शिक्षा पद्धति में विद्यार्थियों को अज्ञानी की तरह बाहरी अर्थात दुनिया में उपलब्ध ज्ञान-विज्ञान को देने/ पढ़ाने-लिखाने के साथ-साथ अति प्रतिभावान विद्यार्थियों/ नए खोजकर्ता वैज्ञानिकों की तरह अनेक विद्यार्थियों के भीतर/ मन में स्कूल-कॉलेजों से प्राप्त ज्ञान के अलावा जन्मजात प्राकृतिक रूप से विद्यमान ज्ञान-प्रतिभा को भी प्रकट, विकसित होने की सुविधा उपलब्ध करवाई जाए। जो कि किसी भी देश की शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को बहुत उन्नत बनाने में समर्थ होता है।
                🌷 धन्यवाद 🌷
            रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
       पथरिया,मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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