* स्वामी विवेकानंद जी - योग ध्यान से विकसित प्रतिभा *
🌷*स्वामी विवेकानंद जी- योग ध्यान के द्वारा अपार बौद्धिक क्षमता विकसित होने के प्रमाण हैं*🌷
प्रत्येक विद्यार्थियों/मानव में अवचेतन-मन के रूप में प्राकृतिक रूप से अपार मन-मस्तिष्क क्षमता छिपी हुई अवस्था में विद्यमान है! जिसको योग ध्यान के अभ्यास/ उपयोग से सक्रिय, प्रकट कर शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग किया जा सकता है। जैसा कि प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में किया जाता रहा है।
इस बात के प्रमाण स्वामी विवेकानंद जी भी हैं। बचपन का साधारण जिज्ञासु बालक नरेंद्र अपने गुरु से प्राप्त ज्ञान रूपी आशीर्वाद तथा योग के उपयोग से विश्वप्रसिद्ध विद्वान् तथा भारतीय युवाओं के आदर्श सिद्ध हुए।
विद्यार्थियों के लिए अत्यावश्यक / अनिवार्य गुण- ज्ञान प्राप्ति की जिज्ञासु प्रवृत्ति, गुरु के प्रति श्रद्धा तथा यम-नियम पूर्वक जीवनशैली अपनाते हुए नियमित ध्यान-योग का उपयोग उन्हें अपार मन-मस्तिष्क क्षमता / प्रतिभा युक्त विश्वप्रसिद्ध विद्वान् बनाने में सर्वाधिक सहयोगी रहा है।
अगर सभी / अधिकांश विद्यार्थी विवेकानन्द जी से प्रेरणा लेकर ऐसा कर सकें तो यह विद्यार्थियों के बौद्धिक स्तर को उन्नत बनाने, देश की शिक्षा को उच्चस्तरीय बनाने के साथ स्वामी विवेकानंद के प्रति सच्ची श्रद्धा तथा उनसे प्राप्त प्रेरणा होगी।
हमारा भारत देश हजारों साल से योगमय है। पिछले कुछ सौ वर्षों में विदेशी आक्रमणकारियों के प्रभाव तथा आधुनिक भौतिक ज्ञान विज्ञान के चकाचौंध के कारण हम भारतवासी योग-ध्यान से कुछ दूर हो गए थे, जो कि विश्व प्रसिद्ध योग गुरु सम्माननीय रामदेव जी तथा अन्य भारतीय योगियों/ध्यानियों के अथक प्रयास से फिर से हमारा देश योगमय होने लगा है. विश्व स्तर पर योग का प्रमुख केंद्र सिद्ध होने लगा है। योग के मामले में हमारा देश हजारों साल पहले भी टॉपर था,और आज भी टॉपर हो गया है।
अभी योग के प्रारम्भिक चरण में इसका उपयोग शारीरिक स्वास्थ्य लाभ के लिए चिकित्सा विधि के रूप में हो रहा है। यह सिर्फ शुरुआत है।
योग का सच्चा लाभ तब सिद्ध होगा, जब स्वामी विवेकानन्द जी की तरह इसका उपयोग शरीर-मन-मस्तिष्क क्षमता / प्रतिभा तकनीक के रूप में करके इससे उपलब्द्ध बौद्धिक क्षमता का उपयोग ज्ञान प्राप्ति हेतु शिक्षा के क्षेत्र में किया जा सकेगा।
इसके लिए-
शारीरिक स्वास्थ्य लाभ के लिए किए जाने वाले- यम नियम पूर्वक योगासन, प्राणायाम के पश्चात किसी योग्य गुरु के सानिध्य में ध्यान का भी कुछ समय अभ्यास करना आवश्यक है। क्योंकि धारणा-ध्यान वास्तव में मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास की प्राचीन और विकसित तकनीक है, जिसका उपयोग प्राचीन शिक्षा पद्धति में गुरुकुलों में किया जाता था।
आधुनिक शिक्षा पद्धति में सिर्फ चेतन मन मस्तिष्क, विज्ञान की भाषा में बाएं मस्तिष्क का ही विकास हो पाता है, जो कि संपूर्ण मस्तिष्क क्षमता का लगभग 5% है। धारणा ध्यान के उपयोग से अपार क्षमता प्रतिभावान अवचेतन मन/ मस्तिष्क सक्रिय तथा बांया और दायां मस्तिष्क आपस में संयुक्त हो जाता है, जिससे साधक अपने मन मस्तिष्क का अधिकाधिक उपयोग कर उन्नत प्रतिभा क्षमता प्रदर्शित करने में समर्थ हो पाते हैं।
इसके उपयोग से विद्यार्थियों में आसानी से पढ़ाई के लिए आवश्यक एकाग्रता आने लगती है प्रथा अर्थात विज्ञान की भाषा में मन मस्तिष्क की अल्फा तरंग अवस्था को उपलब्ध करने लगते हैं जो कि उन्नत मन मस्तिष्क क्षमता का प्रतीक है।
वर्तमान समय में विकसित देशों के साथ साथ भारत के कुछ प्रमुख शहरों में प्राचीन ध्यान पद्धति का आधुनिक रूप मिड ब्रेन एक्टिवेशन नाम से प्रचलित प्रशिक्षण से प्रशिक्षित अद्वितीय मस्तिष्क बौद्धिक क्षमता का प्रदर्शन करने वाले सैकड़ों विद्यार्थी इसके प्रमाण हैं।
प्राचीन भारती ऋषियों द्वारा आविष्कृत ध्यान-योग के उपयोग से वर्तमान में प्रचलित मिड ब्रेन एक्टिवेशन को और बेहतर उपयोगी बनाया जा सकता है। हठयोग या योग की अन्य पद्धतियों की तुलना में स्वामी विवेकानंद जी द्वारा विशेष रूप से उपयोग किए जाने वाला "राजयोग" जिसमें काफी उपयोगी सिद्ध हो सकता है।
इसके अलावा भी सरलतम सर्व सुलभ ध्यान विपस्सना तथा अन्य सैकड़ों ध्यान विधियां हमारे देश में प्रचलित है, जिसका मनोविज्ञान के साथ मन मस्तिष्क क्षमता विकास के रूप में शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग किया जाना चाहिए।
तब स्वामी विवेकानंद जी की प्रेरणा से भारत में लाखों-करोड़ों विद्यार्थी स्वामी विवेकानंद की तरह विद्वान बन कर विश्व शिक्षा के आकाश में शिक्षा के सूर्य की तरह चमकेंगे। तब हमारा देश फिर से विश्व गुरु की स्थिति प्राप्त कर सकेगा, तथा शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन सकेगा।
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योग का प्रारंभिक चरण यम-नियम के साथ आसन प्राणायाम का प्रयोग मानव/ विद्यार्थियों को शारीरिक रूप से स्वस्थ- सबल बनाने तथा प्रत्याहार-धारणा-ध्यान मानसिक, बौद्धिक रुप से स्वस्थ सबल बनाने में सक्षम है। जिसका उपयोग प्राचीन शिक्षा पद्धति में हुआ करता था।स्वामी विवेकानन्द जी अपने जीनियस प्रतिभा अर्थात अवचेतन मन=दायाँ मस्तिष्क क्षमता=आधुनिक विज्ञान की भाषा में मन-मस्तिष्क की अल्फ़ा तरंग अवस्था=योग की धारणा-ध्यान की मनोस्थिति अर्थात एकाग्रता या तल्लीनता की मनोस्थिति का उपयोग विद्याध्ययन में कर सकने में समर्थ थे।
जिसके कारण ही-
स्वामी विवेकानंद जी के बारे में कहा जाता है कि- वे एक दिन में कई पुस्तक (साहित्य) पढ़ सकने में समर्थ थे। यह सब स्वामी जी के द्वारा विद्याध्ययन के साथ-साथ योग ध्यान के उपयोग अर्थात राजयोग के उपयोग से संभव हुआ था।
वर्तमान में योग के बढ़ते प्रभाव के बीच अगर व्यापक रूप में फिर से ऐसा हो सका/किया जा सका तो कल्पना कीजिए कि हमारे देश का शिक्षा स्तर कितना अधिक उन्नत होगा !
🌷 धन्यवाद 🌷
2 Comments
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ReplyDeleteआपका लेख सचमुच बहुत प्रभावशाली और बहुत अच्छा है लेकिन आपने उन विधियों का जिक्र नहीं किया है जिनसे विद्यार्थी एकाग्रचित होकर लाभ उठा सकें
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