🌷योग की व्यापकता तथा शिक्षा में उपयोगिता🌷
योग का इतिहास बहुत पुराना है। मानव जाति के इतिहास के साथ ही योग का संकेत मिलता है।आदि देव शिव को योग का जनक माना जाता है। योग का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, हठयोगप्रदीपिका, योगदर्शन, शिव संहिता,और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग का उल्लेख मिलता है।
योग के अनेक प्रकार हैं-
ध्यान योग
राजयोग
सांख्य योग
ज्ञानयोग
पतंजलि योग
हठयोग
कुण्डलिनी योग
तंत्र योग
मंत्रयोग
कर्मयोग
भक्ति योग आदि।
विभिन्न प्राचीन धर्म ग्रंथों में विभिन्न रूपों में योग के उल्लेख/वर्णन मिलने के साथ-साथ योग के अनेक प्रसिद्ध प्रामाणिक ग्रंथ भी हैं।
जैसे-
महर्षि पतंजलि का -योगसूत्र
वेदव्यास का -योग भाष्य
वाचस्पति मिश्र का -तत्ववेशारदी
राजा भोज का -भोजवृत्ति
गुरु गोरखनाथ का -गोरक्ष शतक
विज्ञान भिक्षु का -योगवार्तिक
तथा योगसार संग्रह
स्वामी स्वात्माराम का -हठयोग प्रदीपिका
गणेश भावा का -सूत्रवृत्ति
नागेश भट्ट का -योगसूत्रवृत्ति
रामानंद यति का -मणिप्रभा
घेरंड मुनि का -घेरण्ड संहिता
इसके साथ ही शिव संहिता
योगचूड़ामण्योपनिषद आदि, योग के प्रसिद्ध ग्रंथ है।
योग के विभिन्न साहित्यों में वर्णित सैद्धांतिक तथा उनका प्रायोगिक पक्ष इतना विस्तारित है कि- सबके बारे में एक साथ ठीक से गहराई, विस्तार पूर्वक एक मनुष्य जन्म में जानना/ अनुभव करना लगभग असंभव है। इन योग परंपराओं के बारे में मोटे तौर पर या किसी एक योग परंपरा के बारे में ही गहराई, विस्तारपूर्वक समझ, अनुभव कर पाना एक मनुष्य जन्म में संभव है। जिस तरह शरीर के अलग अलग अंगों के अलग-अलग विशेषज्ञ डॉक्टर होते हैं अथवा अलग-अलग विषय के लेक्चरर, प्रोफेसर होते हैं,उसी तरह सब योग साहित्य में से एक जन्म में एक तरह के योग परंपरा के बारे में ही गहराई, व्यापकता से समझ सकना/ अनुभव कर सकना संभव है। सब के बारे में एक मनुष्य को अकेले सामान्य बुद्धि से जानना/ अनुभव कर सकना असंभव् जैसा है।
अगर किसी को योग के सभी परंपराओं के बारे में जानने की प्रबल इच्छा हो तो योग के संबंध में अनेक ध्यानी, शोधार्थी/ विशेषज्ञ विद्वानों के जीवन भर के उपलब्ध सारांश के सहयोग से योग की व्यापकता को गहराई से महसूस किया जा सकना/ समझा जा सकना सम्भव हो सकता है।
योग के विभिन्न परंपराओं में पतंजलि योग सबसे व्यवस्थित, वैज्ञानिक और सरल पद्धति है। पतंजलि योग लगभग सभी तरह के योग परंपराओं का सारांश है। इसलिए आधुनिक युग में पतंजलि योग को ही समझना, अपनाना अधिक सुगम है। वैसे रुचि या मनोवृत्ति के अनुसार लोग अन्य तरह के योग परंपराओं के रास्ते पर भी चलने में अनुकूलता महसूस कर सकते हैं।
पतंजलि योग के आठ चरणों- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान-समाधि में से - यम-नियम के साथ आसन और प्राणायाम के उपयोग से शारीरिक स्वास्थ्य तथा सबलता उपलब्ध होता है, और इसके साथ प्रत्याहार-धारणा-ध्यान के उपयोग से मन-मस्तिष्क का स्वास्थ्य, सबलता, पढ़ाई-लिखाई, ध्यान को बाधित करने वाले मनोविकारों से छुटकारा प्राप्त/ अनुभव होता है, तथा ध्यान-समाधि के उपयोग या अनुभव से अस्तित्व,स्वयं के भ्रम/ माया से मुक्ति अर्थात सत्य का ज्ञान/ अनुभव होता है।
योग का सामान्य अर्थ है- जोड़/ जुड़ना या मिलन। योग का मूल उद्देश्य योग के विभिन्न प्रक्रियाओं के साथ ध्यान-समाधि के द्वारा/ ध्यान-समाधि की अवस्था में मानव की चेतना-मन-मस्तिष्क की प्रतिभा/क्षमता के उन्नत रूप को प्रकट, सक्रिय, अनुभव करके भौतिक शरीर के साथ सुक्ष्म शरीर/चेतना के योग/सम्बन्ध को महसूस कर पाना। आत्मा-परमात्मा के सत्य/ संयुक्त अस्तित्व को अनुभव कर पाना। स्वयं का प्रकृति रुपी परमात्मा से योग अर्थात जुड़ाव महसूस कर पाना। अस्तित्व के परम सत्य को समझ/अनुभव कर पाना है।
लेकिन आधुनिक युग में योग के अन्य उपयोग भी किए जा रहे हैं।योग के द्वारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना शुरूआत तथा अप्रत्यक्ष लाभ है।योग के विद्वानों के अनुसार मूल उद्देश्य तो ऊपर वर्णित तथ्यों की तरह है। योग के विद्वानों ने हमेशा हिदायत दी है कि योग से ध्यान-समाधि के रास्ते में हमेशा मंजिल पर ध्यान देना है। रास्ते में मिलने वाली शारीरिक या मानसिक उपलब्धियों की ओर भटकाव से बचने के लिए विशेष ध्यान नहीं देना है। लेकिन वर्तमान समय में मूल उद्देश्य को छोड़कर योग के अन्य लाभ की ओर ही अधिक ध्यान दिया जा रहा है।आधुनिक देश काल वातावरण के हिसाब से यह ठीक हो सकता है। क्योंकि आधुनिक युग में किसी विधि से शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य तथा सबलता प्राप्त करना बहुत आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है। जिसके लिए योग खासकर पतंजलि योग अपेक्षाकृत अधिक अच्छा है।
वर्तमान में पूरे विश्व में योग को अधिकांश रूप में स्वास्थ्य लाभ तकनीक के रूप में ही उपयोग किया जा रहा है। यह योग का सिर्फ प्रारंभिक उपयोग/लाभ है। योग का महत्वपूर्ण उपयोग,लाभ मुख्य रूप से ध्यान- समाधि अनुभव के अलावा मन मस्तिष्क को विकसित करने की तकनीक के रूप में है। तो जब लोग मूल उद्देश्य के अलावा इसके चिकित्सा रूप का उपयोग कर ही रहे हैं, तो इससे भी बेहतर उपयोग मानव खासकर विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में किया जाना है।
अभी तक योग के इस रूप का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में ठीक तरह से नहीं हो पाया है। शिक्षा के क्षेत्र में योग का मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग किया जाना आधुनिक युग के लिए एक नया कान्सेप्ट है। लेकिन अति उपयोगी और मानव/विद्यार्थियों के हित में है। पतंजलि योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम के साथ प्रत्याहार-धारणा-ध्यान और मनोविज्ञान का उपयोग दुनिया का सर्वोत्तम मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक है।
अगर शिक्षा सुधार में मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में योग का उपयोग किया जा सका तो यह योग तथा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धि सिद्ध होगी तथा देश को योग के साथ शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाने वाला सिद्ध होगा।
🌷 धन्यवाद 🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया,मुंगेली (छत्तीसगढ़)
योग का इतिहास बहुत पुराना है। मानव जाति के इतिहास के साथ ही योग का संकेत मिलता है।आदि देव शिव को योग का जनक माना जाता है। योग का क्षेत्र बहुत ही व्यापक है। वेद, उपनिषद, भगवद्गीता, हठयोगप्रदीपिका, योगदर्शन, शिव संहिता,और विभिन्न तंत्र ग्रंथों में योग का उल्लेख मिलता है।
योग के अनेक प्रकार हैं-
ध्यान योग
राजयोग
सांख्य योग
ज्ञानयोग
पतंजलि योग
हठयोग
कुण्डलिनी योग
तंत्र योग
मंत्रयोग
कर्मयोग
भक्ति योग आदि।
विभिन्न प्राचीन धर्म ग्रंथों में विभिन्न रूपों में योग के उल्लेख/वर्णन मिलने के साथ-साथ योग के अनेक प्रसिद्ध प्रामाणिक ग्रंथ भी हैं।
जैसे-
महर्षि पतंजलि का -योगसूत्र
वेदव्यास का -योग भाष्य
वाचस्पति मिश्र का -तत्ववेशारदी
राजा भोज का -भोजवृत्ति
गुरु गोरखनाथ का -गोरक्ष शतक
विज्ञान भिक्षु का -योगवार्तिक
तथा योगसार संग्रह
स्वामी स्वात्माराम का -हठयोग प्रदीपिका
गणेश भावा का -सूत्रवृत्ति
नागेश भट्ट का -योगसूत्रवृत्ति
रामानंद यति का -मणिप्रभा
घेरंड मुनि का -घेरण्ड संहिता
इसके साथ ही शिव संहिता
योगचूड़ामण्योपनिषद आदि, योग के प्रसिद्ध ग्रंथ है।
योग के विभिन्न साहित्यों में वर्णित सैद्धांतिक तथा उनका प्रायोगिक पक्ष इतना विस्तारित है कि- सबके बारे में एक साथ ठीक से गहराई, विस्तार पूर्वक एक मनुष्य जन्म में जानना/ अनुभव करना लगभग असंभव है। इन योग परंपराओं के बारे में मोटे तौर पर या किसी एक योग परंपरा के बारे में ही गहराई, विस्तारपूर्वक समझ, अनुभव कर पाना एक मनुष्य जन्म में संभव है। जिस तरह शरीर के अलग अलग अंगों के अलग-अलग विशेषज्ञ डॉक्टर होते हैं अथवा अलग-अलग विषय के लेक्चरर, प्रोफेसर होते हैं,उसी तरह सब योग साहित्य में से एक जन्म में एक तरह के योग परंपरा के बारे में ही गहराई, व्यापकता से समझ सकना/ अनुभव कर सकना संभव है। सब के बारे में एक मनुष्य को अकेले सामान्य बुद्धि से जानना/ अनुभव कर सकना असंभव् जैसा है।
अगर किसी को योग के सभी परंपराओं के बारे में जानने की प्रबल इच्छा हो तो योग के संबंध में अनेक ध्यानी, शोधार्थी/ विशेषज्ञ विद्वानों के जीवन भर के उपलब्ध सारांश के सहयोग से योग की व्यापकता को गहराई से महसूस किया जा सकना/ समझा जा सकना सम्भव हो सकता है।
योग के विभिन्न परंपराओं में पतंजलि योग सबसे व्यवस्थित, वैज्ञानिक और सरल पद्धति है। पतंजलि योग लगभग सभी तरह के योग परंपराओं का सारांश है। इसलिए आधुनिक युग में पतंजलि योग को ही समझना, अपनाना अधिक सुगम है। वैसे रुचि या मनोवृत्ति के अनुसार लोग अन्य तरह के योग परंपराओं के रास्ते पर भी चलने में अनुकूलता महसूस कर सकते हैं।
पतंजलि योग के आठ चरणों- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान-समाधि में से - यम-नियम के साथ आसन और प्राणायाम के उपयोग से शारीरिक स्वास्थ्य तथा सबलता उपलब्ध होता है, और इसके साथ प्रत्याहार-धारणा-ध्यान के उपयोग से मन-मस्तिष्क का स्वास्थ्य, सबलता, पढ़ाई-लिखाई, ध्यान को बाधित करने वाले मनोविकारों से छुटकारा प्राप्त/ अनुभव होता है, तथा ध्यान-समाधि के उपयोग या अनुभव से अस्तित्व,स्वयं के भ्रम/ माया से मुक्ति अर्थात सत्य का ज्ञान/ अनुभव होता है।
योग का सामान्य अर्थ है- जोड़/ जुड़ना या मिलन। योग का मूल उद्देश्य योग के विभिन्न प्रक्रियाओं के साथ ध्यान-समाधि के द्वारा/ ध्यान-समाधि की अवस्था में मानव की चेतना-मन-मस्तिष्क की प्रतिभा/क्षमता के उन्नत रूप को प्रकट, सक्रिय, अनुभव करके भौतिक शरीर के साथ सुक्ष्म शरीर/चेतना के योग/सम्बन्ध को महसूस कर पाना। आत्मा-परमात्मा के सत्य/ संयुक्त अस्तित्व को अनुभव कर पाना। स्वयं का प्रकृति रुपी परमात्मा से योग अर्थात जुड़ाव महसूस कर पाना। अस्तित्व के परम सत्य को समझ/अनुभव कर पाना है।
लेकिन आधुनिक युग में योग के अन्य उपयोग भी किए जा रहे हैं।योग के द्वारा शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करना शुरूआत तथा अप्रत्यक्ष लाभ है।योग के विद्वानों के अनुसार मूल उद्देश्य तो ऊपर वर्णित तथ्यों की तरह है। योग के विद्वानों ने हमेशा हिदायत दी है कि योग से ध्यान-समाधि के रास्ते में हमेशा मंजिल पर ध्यान देना है। रास्ते में मिलने वाली शारीरिक या मानसिक उपलब्धियों की ओर भटकाव से बचने के लिए विशेष ध्यान नहीं देना है। लेकिन वर्तमान समय में मूल उद्देश्य को छोड़कर योग के अन्य लाभ की ओर ही अधिक ध्यान दिया जा रहा है।आधुनिक देश काल वातावरण के हिसाब से यह ठीक हो सकता है। क्योंकि आधुनिक युग में किसी विधि से शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य तथा सबलता प्राप्त करना बहुत आवश्यक तथा महत्वपूर्ण है। जिसके लिए योग खासकर पतंजलि योग अपेक्षाकृत अधिक अच्छा है।
वर्तमान में पूरे विश्व में योग को अधिकांश रूप में स्वास्थ्य लाभ तकनीक के रूप में ही उपयोग किया जा रहा है। यह योग का सिर्फ प्रारंभिक उपयोग/लाभ है। योग का महत्वपूर्ण उपयोग,लाभ मुख्य रूप से ध्यान- समाधि अनुभव के अलावा मन मस्तिष्क को विकसित करने की तकनीक के रूप में है। तो जब लोग मूल उद्देश्य के अलावा इसके चिकित्सा रूप का उपयोग कर ही रहे हैं, तो इससे भी बेहतर उपयोग मानव खासकर विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में किया जाना है।
अभी तक योग के इस रूप का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में ठीक तरह से नहीं हो पाया है। शिक्षा के क्षेत्र में योग का मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग किया जाना आधुनिक युग के लिए एक नया कान्सेप्ट है। लेकिन अति उपयोगी और मानव/विद्यार्थियों के हित में है। पतंजलि योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम के साथ प्रत्याहार-धारणा-ध्यान और मनोविज्ञान का उपयोग दुनिया का सर्वोत्तम मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक है।
अगर शिक्षा सुधार में मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में योग का उपयोग किया जा सका तो यह योग तथा शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धि सिद्ध होगी तथा देश को योग के साथ शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाने वाला सिद्ध होगा।
🌷 धन्यवाद 🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया,मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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