शिक्षाकर्मी- विद्यार्थियों का जैविक सॉफ्टवेयर इंजीनियर

🌷  शिक्षाकर्मी- विद्यार्थियों का जैविक सॉफ्टवेयर इंजीनियर 🌷

जिस तरह कंप्यूटर का सॉफ्टवेयर इंजीनियर कंप्यूटर के सॉफ्टवेयर को बनाने, सुधारने, रुपांतरित करने का कार्य करता हैउसी तरह एक शिक्षक (शिक्षाकर्मी)- मानव/ विद्यार्थी रूपी जैविक कंप्यूटर के मन रूपी सॉफ्टवेयर को बनाने, सुधारने, रुपांतरित करने का कार्य करता है। वह मन के विज्ञान अर्थात मनोविज्ञान का प्रायोगिक कार्य करने वाला है। मनोविज्ञान मानव के मन रूपी सॉफ्टवेयर का विज्ञान है, इसलिए इसे मानव सॉफ्टवेयर विज्ञान भी कह सकते हैं।
          और स पर प्रायोगिक कार्य करने वाले शिक्षक (शिक्षाकर्मी) को मानव का जैविक सॉफ्टवेयर इंजीनियर कहा जा सकता हैं।
           कंप्यूटर की क्षमता से हम सभी परिचित हैं, लेकिन मानव/ विद्यार्थियों की प्रतिभा/क्षमता से समान्यतः लगभग 10% ही परिचित और 90% अपरिचित हैं। इसलिए कंप्यूटर को मानव की तुलना में तेज अर्थात श्रेष्ठ मानते हैं। इसी कारण एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर को बहुत महत्व देते हैं। हालाँकि सॉफ्टवेयर इंजीनियर अपनी प्रतिभा, हुनर का हकदार है। परंतु शिक्षाकर्मी को अपनी प्रतिभा, क्षमता, कार्य के अनुरूप सुविधा तथा सम्मान प्राप्त होना शेष है।
          शासन-प्रशासन, समाज समझे या न समझे / माने या न माने लेकिन शिक्षक (शिक्षाकर्मी) का कार्य संसार में बहुत महत्वपूर्ण तथा कीमती है।
            शिक्षक विद्यार्थी को पढ़ाने-लिखाने अर्थात शिक्षा देने का कार्य करते है, और शिक्षा विद्यार्थियों अर्थात मानव के मन मस्तिष्क से संबंधित कार्य है। मन मस्तिष्क को सुधारने, रुपांतरित करने, विकसित करने का कार्य है, और मानव मन-मस्तिष्क अस्तित्व का सबसे कीमती चीज है।
            किसी भी कंप्यूटर से बेहतर कला, प्रतिभा, क्षमतावान है। कंप्यूटर सुपर कंप्यूटर तेज गणना और विश्लेषण कर सकने में माहिर है। लेकिन मानव मन-मस्तिष्क में इसके अलावा चेतना, बुद्धि, विचार, भाव, प्रेम, स्नेह सम्मान, ममता, वात्सल्य, दया, कृपा, करुणा, सहानुभूति आदि भावों से युक्त है। जो ऐसी कला, प्रतिभा, क्षमता या गुण है, जो कभी भी किसी भी कंप्यूटर में हो ही नहीं सकता। और किसी भी चीज को मानव से श्रेष्ठ होने के लिए उसमें यह सब कला प्रतिभा क्षमता आवश्यक है।
           इसके अलावा मानव/ विद्यार्थियों में अवचेतन-मन के रूप में छिपी हुई अपार प्रतिभा, क्षमता विद्यमान हैं, जो योग या अन्य किसी विधि से सक्रिय, जाग्रत हो जाए तो मानव- प्राचीन ऋषियों की तरह कई प्रतिभाओं में कंप्यूटर से और भी श्रेष्ठ हो सकता है।
           योग, मस्तिष्क-विज्ञान, मनोविज्ञान के अनुसार मानव मस्तिष्क करोड़ों नाडियों, तंत्रिका कोशिकाओं से मिलकर बना है। और प्रत्येक कोशिका हजारों जीबी के बराबर जानकारी इकट्ठा कर सकने में सक्षम है। इस तरह अगर जी बी की भाषा में मस्तिष्क क्षमता को मापा जाए तो विद्यार्थियों/ मानव की मेमोरी करोड़ों-अरबो GB से भी अधिक है। जिसमें मनोवैज्ञानिकों के अनुसार दुनिया के समस्त पुस्तकालय को स्वयं में रिकॉर्ड करने अर्थात समाहित करने की क्षमता नैसर्गिक रुप से विद्यमान है।
           यह क्षमता मानव के मन रूपी सॉफ्टवेयर की प्रतिभा, क्षमता है।इस मानव मन रुपी सॉफ्टवेयर की अपार प्रतिभा/क्षमता संबंधी पर्याप्त जानकारी ध्यान, योग, मनोविज्ञान, सम्मोहन विज्ञान के रूप में विभिन्न प्राचीन तथा आधुनिक साहित्यों में उपलब्ध है। जिसे आगे और शोध करके शिक्षा में उपयोगी बनाया जा सकता है।
           मानव मन बिल्कुल सॉफ्टवेयर की तरह है। मन रूपी सॉफ्टवेयर के संबंध में जनमानस के पास पर्याप्त जानकारी उपलब्ध नहीं होने के कारण बेहतर सॉफ्टवेयर के निर्माण में सहयोग नहीं दे पाते। अगर इस संबंध में पालकों को इसका शिक्षा, प्रशिक्षण दिया जाए तो बेहतर मानव सॉफ्टवेयर बनाने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग दे सकते हैं। जो शिक्षा गुणवत्ता के विकास में बहुत सहयोगी होगा।
           मानव शरीर रूपी हार्डवेयर का संचालन कर्ता मानव चेतना का मन रूपी सॉफ्टवेयर है, जो सामान्यतः मानव के जैविक सॉफ्टवेयर निर्माण संबंधित शिक्षा प्रशिक्षण तथा अनुकूल देश काल वातावरण के अभाव में अज्ञानतावश, अनजाने रूप में निर्मित होता है। जिसके कारण ही विद्यार्थियों मानव के व्यवहार, गुणवत्ता में विभिन्नता, कमी, अराजकता देखने को मिलता है।
        विश्व में मानव-मन-चेतना के संबंध में प्राचीन काल के सर्वाधिक ज्ञान रखने वाले, खोज आविष्कार करने वाले- " योग-ध्यान " तथा मन का आधुनिक विज्ञान- मनोविज्ञान तथा मस्तिष्क विज्ञान पर शोध कार्य करके इसका उपयोग मानव मन रूपी सॉफ्टवेयर को सुधारने में किया जा सके तो दुनिया में बेहतर मानव/ विद्यार्थी निर्मित/पैदा किया जा सकना संभव है।
           मानव मन में यह नैसर्गिक खासियत है कि- आस-पास में घटने वाली घटनाएं, लोगों के कार्य व्यवहार, शिक्षा-संस्कार, मान्यता से जाने-अनजाने रूप में प्रभावित, निर्मित होता है। जो ज्ञान, शिक्षा-संस्कार, मान्यता, विचार, भाव हमारे मां-बाप पूर्वजों में होता है, वह भी आनुवंशिक गुण के रूप में मानव मन रुपी सॉफ्टवेयर में आता है। इसके साथ-साथ वर्तमान में परिवार समाज देश दुनिया में प्रचलित शिक्षा-संस्कार, ज्ञान विज्ञान, मान्यता का प्रभाव मन मस्तिष्क में पड़ता है। यह वह जिस तरह/ स्तर का होता है, लगभग उसी तरह/ स्तर का सॉफ्टवेयर जाने अनजाने तैयार होता है। जिसके अनुसार ही विद्यार्थी/ मानव जीवन भर देखते-सुनते समझते तथा कार्य व्यवहार करते हैं।
          कोई माने या ना माने, कोई महत्व दे या ना दे लेकिन इस तरह के महत्वपूर्ण कार्य करने वाले शिक्षाकर्मी साधारण नहीं हो सकते। वे असाधारण है। 21वीं सदी का वर्जन अर्थात उन्नत वर्जन है। विद्यार्थियों के मन रूपी सॉफ्टवेयर पर कार्य करने वाले आधुनिक जैविक सॉफ्टवेयर इंजीनियर है।
          अगर इससे संबंधित शिक्षा/ प्रशिक्षण उपलब्ध करवाया जाए तथा शिक्षाकर्मियों को भी पर्याप्त  सम्मान और समृद्धि प्रदान किया जाए तो और बेहतर मानव-सॉफ्टवेयर के निर्माण में अपना महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं। जो भारतीय शिक्षा को उन्नत बनाने, विश्वस्तरीय बनाने में सहयोगी  होगा।
            
              🌷 धन्यवाद🌷
           रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
      पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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