संसार में विद्यार्थी बहुत महत्वपूर्ण है

       🌷 *संसार में विद्यार्थी बहुत महत्वपूर्ण है* 🌷

       ✍मानव/ विद्यार्थी कितना कीमती है? इसे जापान से सीखने की जरूरत है। आमतौर पर प्राकृतिक संसाधनों को बहुत कीमती माना जाता है, लेकिन पंचतत्व के पश्चात मानव या विद्यार्थी संसार में सबसे कीमती है।
           दुनिया में प्राकृतिक/कृत्रिम संसाधनों को सबसे कीमती माना जाता है। लेकिन दुनिया में मानव सबसे कीमती है। क्योंकि दुनिया में अगर मानव ही नहीं तो किसी संसाधन का कोई कीमत नहीं है । मानव ही उपयोगिता और उपलब्धता के आधार पर संसाधनों का कीमत तय करता है। लेकिन स्वयं सबसे कीमती है। इस बात को सबसे अच्छी तरह समझने वाला देश जापान है। जो उनके विकसित होने का मुख्य कारण है।
           और जिस देश में प्राकृतिक संसाधन तथा मानव दोनों की प्रचुरता हो उस देश को दुनिया में सबसे विकसित होना चाहिए पर कई देशों के मामले में ऐसा नहीं है। जिस मुख्य कारण है- मानव के महत्व को अर्थात मानव में अवचेतन-मन के रूप में छिपी अपार प्रतिमा को नहीं समझ पाना तथा शिक्षा के क्षेत्र में उसका पर्याप्त का सदुपयोग नहीं कर पाना है ।
           दुनिया में जिस देश को भी मानव तथा शिक्षा का महत्व ठीक से समझ में आ गया तथा उसका सदुपयोग करने लगा उसे विकसित देश बनने से कोई नहीं रोक सकता।
           दुनिया में दूसरे देशों की तुलना में जापान एक ऐसा देश है, जिसे मानव तथा शिक्षा के महत्व की गहरी समझ है। जिसके कारण ही वह प्राकृतिक संसाधन तथा जनसंख्या कम होने, छोटे देश होने के बावजूद भी विकसित देश की स्थिति में है।
            इस बात को जिस देश में भी ठीक से समझ कर अपना लिया तो समझ लीजिए उसने विकसित राष्ट्र बनने की दिशा में पहला कदम बढ़ा लिया। दुनिया में मानव तथा शिक्षा सबसे कीमती चीज है। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. मानव के बिना शिक्षा अधूरी है, और शिक्षा के बिना मानव अधूरा है। दोनों अगर मिल जाएं तो दुनिया में सफलता का एवरेस्ट छुआ जा सकता है। जैसा कि जनसंख्या तथा क्षेत्रफल की दृष्टि से छोटे से देश जापान ने किया है।
           आज जो भी देश विकसित देश की श्रेणी हैं, वह विज्ञान और टेक्नोलॉजी के कारण विकसित है, और विज्ञान और टेक्नोलॉजी उन्नत शिक्षा के कारण विकसित है, और उन्नत शिक्षा मानव/ विद्यार्थियों के कारण विकसित है।
            यूं तो मानव प्राकृतिक रूप से कीमती है, लेकिन शिक्षा/ ज्ञान उसे और अधिक कीमती बनाता है।
           जापान के विकसित होने का मुख्य कारण - मानव के अवचेतन में छिपी अपार मन-मस्तिष्क क्षमता के महत्व को गहरे में समझना तथा उसका शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में पूर्ण सदुपयोग करना है और-
           मानव को महत्वपूर्ण बनाने अर्थात मानव के भीतर प्राकृतिक रुप से छिपी अपार मन मस्तिष्क क्षमता  को सक्रिय/ प्रकट करने का उपाय है- "मार्शल आर्ट और ध्यान" जो जापानियों के जीवन का मुख्य और अनिवार्य हिस्सा है। मार्शल आर्ट मनुष्य को शारीरिक तथा मानसिक रूप से सबल/ शक्तिशाली बनाता है, तथा ध्यान मनुष्य को मानसिक रूप से बहुत प्रतिभावान बनाता है। बौद्धिक मानसिक रूप से बहुत उन्नत बना देता है। सामान्य कहे जाने वाले व्यक्तियों द्वारा अस्तित्व के नहीं समझे तथा महसूस नहीं किए जा सकने योग्य चीजों को समझने तथा अनुभव कर सकने योग्य बना देता है।
            मानव जाति के इतिहास में दुनिया में जितने भी महत्वपूर्ण खोज आविष्कार या ज्ञान प्राप्त हुए हैं, वे सब जाने अनजाने ध्यान की ही मानसिक अवस्था में प्राप्त हुए हैं। ध्यान मानव के मन- मस्तिष्क की छुपी हुई सबसे विकसित उन्नत रूप को प्रकट/ सक्रिय करने की अवस्था तथा प्रक्रिया है। जो दुनिया/अस्तित्व के नए तथा महत्वपूर्ण ज्ञान को अनुभव कर सकने की मानसिक स्थिति है।
            दुनिया में ध्यान की अनेक विधियां है, और चूँकि ध्यान मानव के मन-मस्तिष्क को विकसित करके दुनिया के नए तथा महत्वपूर्ण ज्ञान को ग्रहण कर सकने योग्य बनाने की सर्वोत्तम और मुख्य विधि है इसलिए किसी भी विधि से हो खासकर पतंजलि योग विधि से ध्यान की स्थिति को उपलब्ध करना अर्थात विज्ञान की भाषा में मन मस्तिष्क की अल्फा तरंग अवस्था को अनुभव करना ही ध्यान की अवस्था है।जहां से संसार के सब महत्वपूर्ण ज्ञान पैदा होते थे, पैदा होते है, पैदा होते रहेंगे। यह बात जिस देश ने भी समझ लिया और जिसने भी किसी भी विधि से ध्यान की अवस्था को अनुभव कर लिया और उस अवस्था में प्राप्त ज्ञान को शिक्षा के क्षेत्र में सदुपयोग करना सीख लिया उनको विकसित, सुखी, समृद्ध, शक्तिशाली, शिक्षित राष्ट्र/ राज्य बनने से कोई नहीं रोक सकता। यह बात अभी विश्व के कई देशों को गहरे में समझने की बहुत आवश्यकता है।
             देश दुनिया में प्राचीन काल से अब तक जो भी महत्वपूर्ण ज्ञान, खोज आविष्कार उपलब्ध हुए हैं, वह चाहे देवी-देवताओं के माध्यम से प्राप्त हो या ऋषि-मुनियों के माध्यम से प्राप्त हो या अन्य किसी विद्वानों, वैज्ञानिकों द्वारा प्राप्त ज्ञान हो, वह सब जाने- अनजाने खोजने वाले की मन मस्तिष्क की ध्यान अर्थात मस्तिष्क की अल्फा- थीटा अवस्था में ही प्राप्त हुए हैं।
            भारत के लिए एक बहुत अच्छी बात है कि अब योग के पर्याप्त प्रचार-प्रसार तथा सर्वसुलभ होने/ सार्वजनिक होने से ध्यान की ओर कदम बढ़ने लगा है। योग के आठ चरणों में से यम नियम आसन प्राणायाम तक यात्रा अनुभव बहुत लोगों को हो चुका है। प्रत्याहार-धारणा-ध्यान का अनुभव तथा इससे उपलब्ध ज्ञान का शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग शेष है। जिस दिन भारत के अधिकाधिक लोगों द्वारा यह अनुभव किया जाने लगा तथा शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग किया जाने लगा। उस दिन भारत फिर से विश्व गुरु होगा, विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र होगा, और हिंदी भाषा विश्वभाषा सिद्ध होगा। क्योंकि अगर महत्वपूर्ण ज्ञान भारत में खोजा गया तो उसे अंग्रेजी में लिखना अनिवार्य नहीं होगा। हिंदी में लिखना पर्याप्त तथा देश हित में होगा।
                🌷धन्यवाद🌷
           रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
      पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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