देश दुनिया की उन्नति में शिक्षा का मुख्य योगदान

       * देश-दुनिया की उन्नति में शिक्षा का मुख्य योगदान *

          ✍ यह सर्व विदित तथ्य है कि- दुनिया के लगभग सभी समस्याओं के समाधान तथा दुनिया के विकसित होने का मुख्य आधार शिक्षा है। दुनिया में सदा से आज आधुनिक वैज्ञानिक विकास के युग तक समाज, देश-दुनिया के सुधार के हर संभव प्रयास के बावजूद आधुनिक भौतिक सुख-सुविधाओं की उपलब्धता तथा विभिन्न समस्याओं के समाधान के साथ-साथ बहुत सारी समस्याएं फिर भी विद्यमान है। जो मनुष्य के दुख परेशानियों का कारण है। दुनिया का प्रत्येक आदमी किसी न किसी रूप में समस्याओं से निजात पाना सुखी- समृद्धि जीवन जीना चाहता है।
            हर आदमी अपने स्तर पर अपनी समझ के आधार पर जीवन, समाज, देश, दुनिया के समस्याओं के समाधान के प्रयास में जीवन भर लगे रहते है। मानव का समस्त प्रयास प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से समस्याओं के समाधान, सुखी-समृद्ध होने के लिए रहता है। सभी सरकार, समाजसेवी संस्था, व्यक्ति भी इस संबंध में सतत प्रयासरत रहते हैं। इन सबके बावजूद दुनिया में प्रत्येक स्तर पर समस्याएं अधिकतम रूप में विद्यमान है।
और इन सब का एक मुख्य कारण है- अशिक्षा
            और इसलिए, सभी समस्याओं का समाधान है- शिक्षा।
            हालांकि आदिमानव युग से लेकर आज तक शिक्षा के स्तर में कई गुना सुधार और विस्तार हुआ है। फिर भी वर्तमान में उपलब्ध शिक्षा सुविधा विश्व के समस्त या बहुत सारी समस्याओं को सुधार पाने में सफल नही हो पाया  है। इसलिए अभी भी शिक्षा के स्तर में कई गुना सुधार तथा विस्तार की आवश्यकता है तथा शिक्षा तथा इसके मुख्य वाहक शिक्षकों, विद्यार्थियों को भी और अधिक महत्व/ सुविधा दिया जाना अपेक्षित है|
             शिक्षा पद्धति में सुधार के रूप में शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलोजी/ स्कूल-कॉलेजों में पढ़ाई को उन्नत बनाने से दुनिया, मानव जीवन की बहुत सारी समस्याओं को सुधारा जाना सम्भव है, लेकिन पर्याप्त सुधार के लिए मानव सुधार के रूप में नैतिक शिक्षा भी अनिवार्य है ।इसलिए प्रचलित परंपरागत शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा के रूप में अन्य ज्ञानवर्धक शिक्षा देना ही सही/ संपूर्ण शिक्षा है।
            लेकिन अभी तक के समाज सुधार, नैतिक शिक्षा का इतिहास बतलाता है कि- अभी तक प्रचलित परंपरागत नैतिक शिक्षा मानव सुधार कार्य में पर्याप्त सफल नही है क्योंकि-
            मानव/ विद्यार्थियों का व्यवहार चेतन-मन से कम और अवचेतन-मन से अधिक संचालित होता है इसलिए- कोई भी नैतिक शिक्षा किसी भी विधि से जब तक मानव/ विद्यार्थियों के अवचेतन मन तक न पहुंचे तब तक गहरे मनोविज्ञान के नियमानुसार अपेक्षित सुधार नही आ पाता,तथा कुछ मात्रा में शारीरिक-मानसिक अस्वस्थता (असंतुलन) के कारण सीखने की मनोदशा उपलब्ध नही होने के कारण लोग चाहकर भी नैतिक शिक्षा से नही सुधर पाते|
             जिसके सुधार के लिए शारीरिक-मानसिक स्वस्थता उपलब्ध करवाकर सीखने की मनोदशा अर्थात एकाग्रता की अवस्था,विज्ञान की भाषा में मन-मस्तिष्क की अल्फ़ा तरंग अवस्था में लाने की कोई प्रमाणिक असरकारक विधि उपयोग करके नैतिक शिक्षा प्रदान किया जाना आवश्यक है| 
            जिस सुधार कार्य में प्रायोगिक नैतिक शिक्षा के रूप में योग खासकर पतंजलि योग-ध्यान के साथ मोटिवेशनल मनोचिकित्सा के रूप में मनोविज्ञान का उपयोग या प्रमाणित होने पर आधारित नैतिक शिक्षा जीवन-विद्या (मानव चेतना विकास मूल्य शिक्षा) या इसी तरह की अन्य प्रायोगिक नैतिक शिक्षा रूपी मानव सुधार तकनीक का उपयोग पर्याप्त सहयोगी है।
           वर्तमान में हमारे देश में शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया है। यह शिक्षा के विकास की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। लेकिन इसका बेहतर ढंग से क्रियान्वयन किया जा सकना ही वास्तविक सफलता है। इस कानून के अंतर्गत अगर विद्यार्थियों को स्वयं, परिवार, समाज, देश, प्रकृति के सभी समस्याओं के समाधान से संबंधित शिक्षा भी दिया जा सका तो शिक्षा का अधिकार कानून  की सार्थकता और बढ़ जाएगी।
            दुनिया में शिक्षा ही एक ऐसी चीज है, जिसके विकास- विस्तार से दुनिया के समस्त समस्याओं को सुधारा जा सकना संभव है। शिक्षा के महत्व का सर्वविदित प्रमाण है- विकसित देशों की उन्नत शिक्षा और उसके लाभ तथा शिक्षा को महत्व देने के अनुपात में उन देशों को विकसित अवस्था उपलब्ध है, अर्थात जिन देशों में शिक्षा और शिक्षक को जितना अधिक महत्व दिया जाता है, उसी अनुपात में विश्व के देश विकसित अवस्था में है। जिससे विकासशील देशों को प्रेरणा लेने की बहुत आवश्यकता है।
             🌷धन्यवाद🌷
         रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
    पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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