अति प्रतिभावान और सामान्य विद्यार्थियों में अंतर ( Differences between Extraordinary and General Students)

        🌷 *अति प्रतिभावान और सामान्य विद्यार्थियों में अंतर* 🌷
    ( Differences between Extraordinary and General Students)

सामान्य/ औसत से अधिक प्रतिभा-क्षमता का प्रदर्शन करने वाले विद्यार्थियों को अति प्रतिभावान विद्यार्थी (एक्स्ट्राऑर्डिनरी स्टूडेंट) कहा जाता है। योग ध्यान/ मनोविज्ञान के गहरे जानकार लोगों का अनुभव है कि- प्राकृतिक रूप से अति प्रतिभावान स्थिति ही विद्यार्थियों की मूल अवस्था है। सामान्य समझे जाने वाले विद्यार्थियों की संख्या अधिक होने अर्थात बहुमत होने के कारण इन्हें ही आधार/औसत माना जाता है। जबकि यह वास्तविकता से कम प्रतिभा की स्थिति है। विभिन्न कारणों से प्राकृतिक रुप से प्राप्त प्रतिभा क्षमता छिप जाती है, जिसके कारण इस तरह के विद्यार्थियों को सामान्य माना जाता है।
              जिसे कुछ आवश्यक सुधार संबंधी तकनीक के उपयोग अर्थात योग-ध्यान के साथ मनोविज्ञान के रूप में मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के उपयोग से अति प्रतिभावान विद्यार्थियों की तरह मूल स्थिति में लाया जा सकता है।
             मानव ,विद्यार्थियों में मुख्यतः दो तरह की ही मस्तिष्क क्षमता होती है-
 प्रथम- बौद्धिक क्षमता है-
            विचार ,बुद्धि, तर्क और विषय वस्तु को रटने की क्षमता अर्थात स्मरण शक्ति। यह लगभग सभी विद्यार्थियों में होती है।यह मानव मस्तिष्क की सामान्य क्षमता है। इस तरह के प्रतिभा संपन्न  विद्यार्थी सामान्य कहे जाने वाले विद्यार्थी के अंतर्गत आते हैं।
             वर्तमान भारतीय शिक्षा पद्धति इसी मस्तिष्क क्षमता पर आधारित है। इसके अलावा भी इसके साथ साथ अवचेतन-मन के रूप में एक और मन-मस्तिष्क क्षमता छिपी अवस्था में प्रत्येक विद्यार्थियों में होती है। लेकिन विभिन्न कारणों से खासकर शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग के अभाव में बहुत कम विद्यार्थियों में यह सक्रिय, प्रकट रूप में रह पाता है। और-
 वह दूसरी क्षमता है-
              विषय वस्तु को चित्र मय भाषा में समझने की शक्ति (साइकिक विजन) अथवा विकसित कल्पना शक्ति /मन की आंख से देखने की क्षमता या पांच ज्ञानेंद्रियों में से किसी एक की अधिक विकसित अवस्था,क्षमता- यही वह प्रतिभा है, जो किसी विद्यार्थी को विशेष प्रतिभावान बनाती हैह क्षमता कुछ विद्यार्थियों में जन्मजात, प्राकृतिक रुप से प्राप्त होती है,जिसके कारण ही वे विशेष प्रतिभावान होते हैं।
             जिन विद्यार्थियों में यह क्षमता जन्मजात रूप से प्रदर्शित नहीं होती, उनमें यह प्रतिभा- क्षमता छिपी हुई अवस्था में होती है। जिसे विषय वस्तु को चित्रमय भाषा में समझने के अभ्यास और कुछ आवश्यक व्यवहारगत अनुशासन नियम के पालन के साथ योग-ध्यान-मनोविज्ञान के मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग द्वारा सक्रिय, प्रकट करने संबन्धी शिक्षा तथा मार्गदर्शन उपयोग से  विकसित किया जा सकता है।
             अथवा  योग-ध्यान के पश्चात मोटिवेशन रूपी मनोचिकित्सा से विचार, बुद्धि, तर्क, स्मरण शक्ति या सह संज्ञानात्मक प्रतिभा को विकसित कर प्रतिभावान बनाया जा सकता है।
              विकसित देशों में इसी तरह की आधुनिक उन्नत तकनीक मिड ब्रेन एक्टिवेशन, एनएलपी तकनीक, कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक आदि जैविक ऊर्जा, मनोविज्ञान पर आधारित तकनीक विभिन्न नामों से काफी प्रचलन में है। जो उनके शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के उन्नत होने का  एक महत्वपूर्ण कारण है।
              इस क्षमता के विकास से जन्म से सामान्य प्रतीत होने वाले विद्यार्थियों द्वारा भी जन्मजात प्रतिभावान बच्चों की तरह प्रतिभा का प्रदर्शन किया जा सकता है। इसका उपयोग अगर शिक्षा जगत में किया जा सका तो यह देश राज्य के शिक्षा को उन्नत बनाने, शिक्षा गुणवत्ता में सुधार करने के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि सिद्ध होगी।विद्यार्थियों के बौद्धिक क्षमता का देश, राज्य समाज के हित में बेहतर उपयोग किया जा सकेगा।
               🌷धन्यवाद 🌷
           रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
       पथरिया,मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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