🌷 योग से मन-मस्तिष्क क्षमता विकास की क्रियाविधि- 🌷
✍योग तथा आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार भी प्रत्येक मानव/ विद्यार्थियों में अवचेतन-मन के रूप में प्राकृतिक रूप से अपार मन- मस्तिष्क प्रतिभा/ क्षमता प्रतिभा छिपी हुई अवस्था में विद्यमान है। जिसे सक्रिय, प्रगट कर शिक्षोपयोगी बनाने की अनेक आधुनिक तकनीक विकसित देशों के साथ दुनिया भर में प्रचलित है। जिनके अध्ययन, प्रशिक्षण, प्रयोग से पता चलता है कि- पतंजलि योग भी मानव मन-मस्तिष्क क्षमता, प्रतिभा विकास की दुनिया की सबसे सुगम, व्यवस्थित, वैज्ञानिक अर्थात सर्वोत्तम तकनीक है।
जिसके प्रत्येक चरणों का मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में क्रिया विधि निम्नानुसार है-
1. * यम-* इससे अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय अर्थात चोरी न करना, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का मन वचन कर्म से पालन करना योग साधकों के साथ विद्यार्थियों के लिए भी लाभदायक तथा पढ़ाई के अनुकूल व्यक्तित्व निर्माण में सहायक है।यह विद्यार्थियों में उपस्थित पढ़ाई को बाधित करने वाले मनोविकार, अशुद्धि में कमी लाने, शारीरिक मानसिक शुद्धता/ स्वच्छता में वृद्धि करने में सक्षम है। इसके उपयोग से विद्यार्थी समाज के साथ अनुकूल तालमेल बना सकने में समर्थ होते हैं, जिससे सहयोग के रूप में पढ़ाई के लिए अनुकूलता उपलब्ध होती है।
2. *नियम-* इसके अंतर्गत शौच अर्थात शारीरिक मानसिक शुद्धता, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान। यह सभी मानसिक साधना है, जो शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक तत्व है। इसके उपयोग से विद्यार्थियों में आत्मविश्वास का विकास होता है। विद्या-अध्ययन करना भी विद्यार्थियों के लिए एक साधना की तरह है,जिसकी सफलता के लिए यह सब आवश्यक सहयोगी तत्व है।
*आसन-* विद्यार्थी/बच्चे चूँकि अक्सर खेलते-कूदते, प्रसन्न रहते हैं, तथा मानसिक रूप से प्रायः तनाव मुक्त होते हैं, इसलिए इन्हें कठिन आसनों को साधने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बड़े उम्र के विद्यार्थियों या परिस्थितिवश तनाव पूर्ण जीवन जीने वाले विद्यार्थियों को ही कठिन प्रतीत होने वाले कुछ आसनों को आवश्यकतानुसार करने की जरूरत है।
आसनों के उपयोग से शरीर के बचपन के अतिरिक्त ऊर्जा का शारीरिक स्वस्थता में सदुपयोग हो जाता है, तथा इसके उपयोग से शारीरिक मानसिक रुप से कमजोर विद्यार्थियों में छिपी ऊर्जा/ शक्ति सक्रिय, प्रकट हो जाती है, जिससे शरीर स्वस्थ संतुलित हो जाता है। जो पढ़ाई में बहुत सहायक है।
और कहा भी गया है कि- *स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।*
विद्यार्थियों को मुख्य रुप से सुखासन साधने की आवश्यकता है। जिससे पढ़ाई के लिए लंबे समय तक बिना तनाव के सुखपूर्वक बैठने का अभ्यास हो जाता है ।जो पढ़ाई- लिखाई के लिए आवश्यक तत्व है।
4. *प्राणायाम-* वैसे तो बच्चे नेचुरल अवचेतन अवस्था में जीते हैं, तथा इनका श्वास प्राकृतिक रूप से चलता है। इसलिए किसी विशेष प्राणायाम साधना की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन फिर भी अनुवांशिक गुण या देश-काल-वातावरण के प्रभाव से यदा-कदा उत्पन्न हुए दोषों को दूर करने या अतिरिक्त लाभ के लिए -भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भ्रामरी प्राणायाम का उपयोग सहयोगी होता है। जो शरीर को ऊर्जावान बनाने तथा ऊर्जा को संतुलित करने तथा मन-मस्तिष्क को शांत करने/रखने में सक्षम है। जो पढ़ाई लिखाई के लिए बहुत आवश्यक है।
5. *प्रत्याहार-* इसका उपयोग विद्यार्थियों के मन को खेलने कूदने या बाहरी दुनिया की बातों से हटाकर पढ़ाई की ओर मोड़ने में सक्षम है। यम नियम आसन प्राणायाम के पश्चात विद्यार्थियों को शांत अवस्था में बैठा कर पढ़ाई के लाभ को बतलाना या विजुअलाइजेशन करवाना मन, ध्यान को पढ़ाई की ओर मोड़ने में सक्षम है।
6. *धारणा-* यह मन/चेतना की एकाग्रता की अवस्था है। यह पढ़ाई लिखाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण तथा आवश्यक अवस्था है। इसके उपयोग से मन को पढ़ाई-लिखाई में एकाग्र/तल्लीन किया जा सकता है। इस अवस्था में विद्यार्थियों का मन एकाग्र रहता है। पढ़ने में मन लगता है तथा विषय वस्तु आसानी से समझ में आता है। इस अवस्था में पढ़ी गई बातें लंबे समय तक स्मृत्ति में बनी रहती है।अगर विद्यार्थियों में कोई मनोविकार उपस्थित हो तो इस अवस्था में उसे मनोचिकित्सा रूपी सकारात्मक सुझाव दे कर सुधारा जा सकता है। यह पढ़ाई के लिए बहुत उन्नत अवस्था है।
एक्स्ट्राऑर्डिनरी स्टूडेंट या प्रथम श्रेणी व्यक्ति, विद्यार्थी, वैज्ञानिक जाने-अनजाने इसी अवस्था का उपयोग करते हैं। यह अवस्था इनको जन्मजात उपलब्ध होता है,
लेकिन -
जिन लोगों, विद्यार्थियों को विपरीत परिस्थिति के प्रभाव या आनुवंशिक गुण के वजह से उतपन्न विभिन्न मनोविकारों या अन्य किसी भी कारण से यह अवस्था उपलब्ध नहीं होती वे पतंजलि योग से इन चरणों के उपयोग से उपलब्ध कर सकते हैं।
7. *ध्यान-* यह धारणा की गहरी तथा सांसारिक दृष्टि से मन-चेतना की सर्वाधिक उन्नत अवस्था है। विज्ञान की भाषा में यह मस्तिष्क की अल्फा-थीटा तरंग की अवस्था है।
ध्यान धारणा की तल्लीन अवस्था है। धारणा की अवस्था में कोई विद्यार्थी अगर पढ़ते-पढ़ते एकदम तल्लीन/ तद्रूप हो जाए अर्थात पढ़ते समय दिन-दुनिया को भूल जाए तो इस अवस्था को ध्यान कहा जाता है। विश्व प्रसिद्ध भारतीय योगी स्वामी विवेकानंद जी पढ़ाई पढ़ते समय ऐसी अवस्था को उपलब्ध कर पाने के कारण एक दिन में ही कई किताब पढ़ सकने में समर्थ थे।
यह अवस्था न्यूनाधिक रूप में एक्स्ट्राऑर्डिनरी या प्रथम श्रेणी के लोगों/ विद्यार्थियों को जन्मजात उपलब्ध होती है।
सांसारिक दृष्टि से यह मन- चेतना की सर्वाधिक उन्नत स्थिति होने के कारण इस अवस्था को बहुत कम लोग ही उपलब्ध कर पाते हैं। लेकिन इसकी शुरुआत अवस्था को अनेक लोग/ विद्यार्थी उपलब्ध कर सकते हैं। जिन लोगों को यह अवस्था जन्मजात रूप से उपलब्ध नहीं होती उन्हें योग के विभिन्न चरणों के विधिवत उपयोग या योग के मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में शिक्षा, प्रशिक्षण से उपलब्ध होना सम्भव होता है।
योग की भाषा में इसे धारणा-ध्यान-समाधि की सम्मिलित अवस्था संयम या सवितर्क समाधि भी कहा जाता है। और ऐसी स्थिति में उपलब्ध ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता को ही वास्तव में प्रतिभा कहा जाता है।
यह अवस्था विद्यार्थियों को अंतर्बोध करा सकने में सक्षम है। जिससे कि कठिन से कठिन विषय सुगमतापूर्वक तथा कभी-कभी स्वमेव समझ में आने लगता है। तथा इस अवस्था में विद्यार्थी/ वैज्ञानिक महत्वपूर्ण नए खोज आविष्कार कर सकने में समर्थ होते हैं। इसलिए यह अवस्था विद्यार्थियों के पढ़ाई- लिखाई के लिए सबसे कीमती, महत्वपूर्ण, उन्नत अवस्था है। यह अवस्था शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को विकसित देशों की तरह बहुत अधिक उन्नत बना सकने में सक्षम है।
🌷 धन्यवाद 🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)
✍योग तथा आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार भी प्रत्येक मानव/ विद्यार्थियों में अवचेतन-मन के रूप में प्राकृतिक रूप से अपार मन- मस्तिष्क प्रतिभा/ क्षमता प्रतिभा छिपी हुई अवस्था में विद्यमान है। जिसे सक्रिय, प्रगट कर शिक्षोपयोगी बनाने की अनेक आधुनिक तकनीक विकसित देशों के साथ दुनिया भर में प्रचलित है। जिनके अध्ययन, प्रशिक्षण, प्रयोग से पता चलता है कि- पतंजलि योग भी मानव मन-मस्तिष्क क्षमता, प्रतिभा विकास की दुनिया की सबसे सुगम, व्यवस्थित, वैज्ञानिक अर्थात सर्वोत्तम तकनीक है।
जिसके प्रत्येक चरणों का मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में क्रिया विधि निम्नानुसार है-
1. * यम-* इससे अंतर्गत अहिंसा, सत्य, अस्तेय अर्थात चोरी न करना, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह का मन वचन कर्म से पालन करना योग साधकों के साथ विद्यार्थियों के लिए भी लाभदायक तथा पढ़ाई के अनुकूल व्यक्तित्व निर्माण में सहायक है।यह विद्यार्थियों में उपस्थित पढ़ाई को बाधित करने वाले मनोविकार, अशुद्धि में कमी लाने, शारीरिक मानसिक शुद्धता/ स्वच्छता में वृद्धि करने में सक्षम है। इसके उपयोग से विद्यार्थी समाज के साथ अनुकूल तालमेल बना सकने में समर्थ होते हैं, जिससे सहयोग के रूप में पढ़ाई के लिए अनुकूलता उपलब्ध होती है।
2. *नियम-* इसके अंतर्गत शौच अर्थात शारीरिक मानसिक शुद्धता, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान। यह सभी मानसिक साधना है, जो शारीरिक, मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक तत्व है। इसके उपयोग से विद्यार्थियों में आत्मविश्वास का विकास होता है। विद्या-अध्ययन करना भी विद्यार्थियों के लिए एक साधना की तरह है,जिसकी सफलता के लिए यह सब आवश्यक सहयोगी तत्व है।
*आसन-* विद्यार्थी/बच्चे चूँकि अक्सर खेलते-कूदते, प्रसन्न रहते हैं, तथा मानसिक रूप से प्रायः तनाव मुक्त होते हैं, इसलिए इन्हें कठिन आसनों को साधने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बड़े उम्र के विद्यार्थियों या परिस्थितिवश तनाव पूर्ण जीवन जीने वाले विद्यार्थियों को ही कठिन प्रतीत होने वाले कुछ आसनों को आवश्यकतानुसार करने की जरूरत है।
आसनों के उपयोग से शरीर के बचपन के अतिरिक्त ऊर्जा का शारीरिक स्वस्थता में सदुपयोग हो जाता है, तथा इसके उपयोग से शारीरिक मानसिक रुप से कमजोर विद्यार्थियों में छिपी ऊर्जा/ शक्ति सक्रिय, प्रकट हो जाती है, जिससे शरीर स्वस्थ संतुलित हो जाता है। जो पढ़ाई में बहुत सहायक है।
और कहा भी गया है कि- *स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का निवास होता है।*
विद्यार्थियों को मुख्य रुप से सुखासन साधने की आवश्यकता है। जिससे पढ़ाई के लिए लंबे समय तक बिना तनाव के सुखपूर्वक बैठने का अभ्यास हो जाता है ।जो पढ़ाई- लिखाई के लिए आवश्यक तत्व है।
4. *प्राणायाम-* वैसे तो बच्चे नेचुरल अवचेतन अवस्था में जीते हैं, तथा इनका श्वास प्राकृतिक रूप से चलता है। इसलिए किसी विशेष प्राणायाम साधना की आवश्यकता नहीं है।
लेकिन फिर भी अनुवांशिक गुण या देश-काल-वातावरण के प्रभाव से यदा-कदा उत्पन्न हुए दोषों को दूर करने या अतिरिक्त लाभ के लिए -भस्त्रिका, अनुलोम-विलोम, कपालभाति और भ्रामरी प्राणायाम का उपयोग सहयोगी होता है। जो शरीर को ऊर्जावान बनाने तथा ऊर्जा को संतुलित करने तथा मन-मस्तिष्क को शांत करने/रखने में सक्षम है। जो पढ़ाई लिखाई के लिए बहुत आवश्यक है।
5. *प्रत्याहार-* इसका उपयोग विद्यार्थियों के मन को खेलने कूदने या बाहरी दुनिया की बातों से हटाकर पढ़ाई की ओर मोड़ने में सक्षम है। यम नियम आसन प्राणायाम के पश्चात विद्यार्थियों को शांत अवस्था में बैठा कर पढ़ाई के लाभ को बतलाना या विजुअलाइजेशन करवाना मन, ध्यान को पढ़ाई की ओर मोड़ने में सक्षम है।
6. *धारणा-* यह मन/चेतना की एकाग्रता की अवस्था है। यह पढ़ाई लिखाई के लिए बहुत महत्वपूर्ण तथा आवश्यक अवस्था है। इसके उपयोग से मन को पढ़ाई-लिखाई में एकाग्र/तल्लीन किया जा सकता है। इस अवस्था में विद्यार्थियों का मन एकाग्र रहता है। पढ़ने में मन लगता है तथा विषय वस्तु आसानी से समझ में आता है। इस अवस्था में पढ़ी गई बातें लंबे समय तक स्मृत्ति में बनी रहती है।अगर विद्यार्थियों में कोई मनोविकार उपस्थित हो तो इस अवस्था में उसे मनोचिकित्सा रूपी सकारात्मक सुझाव दे कर सुधारा जा सकता है। यह पढ़ाई के लिए बहुत उन्नत अवस्था है।
एक्स्ट्राऑर्डिनरी स्टूडेंट या प्रथम श्रेणी व्यक्ति, विद्यार्थी, वैज्ञानिक जाने-अनजाने इसी अवस्था का उपयोग करते हैं। यह अवस्था इनको जन्मजात उपलब्ध होता है,
लेकिन -
जिन लोगों, विद्यार्थियों को विपरीत परिस्थिति के प्रभाव या आनुवंशिक गुण के वजह से उतपन्न विभिन्न मनोविकारों या अन्य किसी भी कारण से यह अवस्था उपलब्ध नहीं होती वे पतंजलि योग से इन चरणों के उपयोग से उपलब्ध कर सकते हैं।
7. *ध्यान-* यह धारणा की गहरी तथा सांसारिक दृष्टि से मन-चेतना की सर्वाधिक उन्नत अवस्था है। विज्ञान की भाषा में यह मस्तिष्क की अल्फा-थीटा तरंग की अवस्था है।
ध्यान धारणा की तल्लीन अवस्था है। धारणा की अवस्था में कोई विद्यार्थी अगर पढ़ते-पढ़ते एकदम तल्लीन/ तद्रूप हो जाए अर्थात पढ़ते समय दिन-दुनिया को भूल जाए तो इस अवस्था को ध्यान कहा जाता है। विश्व प्रसिद्ध भारतीय योगी स्वामी विवेकानंद जी पढ़ाई पढ़ते समय ऐसी अवस्था को उपलब्ध कर पाने के कारण एक दिन में ही कई किताब पढ़ सकने में समर्थ थे।
यह अवस्था न्यूनाधिक रूप में एक्स्ट्राऑर्डिनरी या प्रथम श्रेणी के लोगों/ विद्यार्थियों को जन्मजात उपलब्ध होती है।
सांसारिक दृष्टि से यह मन- चेतना की सर्वाधिक उन्नत स्थिति होने के कारण इस अवस्था को बहुत कम लोग ही उपलब्ध कर पाते हैं। लेकिन इसकी शुरुआत अवस्था को अनेक लोग/ विद्यार्थी उपलब्ध कर सकते हैं। जिन लोगों को यह अवस्था जन्मजात रूप से उपलब्ध नहीं होती उन्हें योग के विभिन्न चरणों के विधिवत उपयोग या योग के मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में शिक्षा, प्रशिक्षण से उपलब्ध होना सम्भव होता है।
योग की भाषा में इसे धारणा-ध्यान-समाधि की सम्मिलित अवस्था संयम या सवितर्क समाधि भी कहा जाता है। और ऐसी स्थिति में उपलब्ध ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता को ही वास्तव में प्रतिभा कहा जाता है।
यह अवस्था विद्यार्थियों को अंतर्बोध करा सकने में सक्षम है। जिससे कि कठिन से कठिन विषय सुगमतापूर्वक तथा कभी-कभी स्वमेव समझ में आने लगता है। तथा इस अवस्था में विद्यार्थी/ वैज्ञानिक महत्वपूर्ण नए खोज आविष्कार कर सकने में समर्थ होते हैं। इसलिए यह अवस्था विद्यार्थियों के पढ़ाई- लिखाई के लिए सबसे कीमती, महत्वपूर्ण, उन्नत अवस्था है। यह अवस्था शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को विकसित देशों की तरह बहुत अधिक उन्नत बना सकने में सक्षम है।
🌷 धन्यवाद 🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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