🌷 पढ़ाई में मन एकाग्र कैसे करें? 🌷

पढ़ाई के क्षेत्र में एकाग्रता बहुत बड़ी प्रतिभा है। और एकाग्रता का ना होना बहुत बड़ी समस्या हैयोग के अनुसार लगभग प्रत्येक विद्यार्थियों में अपार प्रतिभा छिपी हुई अवस्था में विद्यमान होती है। पश्चिमी मनोवैज्ञानिकों के अनुसार भी दुनिया के लगभग 90% बच्चे जीनियस की तरह पैदा होते हैं। लेकिन देश, काल, वातावरण के प्रभाव तथा अन्य विभिन्न कारणों से विद्यार्थियों का मन-मस्तिष्क  एकाग्र नहीं होने पाने के कारण प्राकृतिक रूप से छिपी अपार प्रतिभा अभिव्यक्त नहीं हो पाता,जिससे विद्यार्थी साधारण प्रतीत होने लगते हैं। उन्हें पढ़ाई बोझ तथा अत्यधिक कठिन प्रतीत होने लगता है।
         पढ़ाई में सफल होने के लिए विद्यार्थियों के लिए मन मस्तिष्क की एकाग्रता अत्यंत आवश्यक है। क्योंकि एकाग्रता के अनुपात में ही विद्यार्थी पढ़ाई में आगे या पीछे होते हैं। जिस विद्यार्थी में जितना अधिक एकाग्रता होती है, वह पढ़ाई में उतना ही आगे और जिसमें एकाग्रता जितनी कम होती है, अर्थात मन यत्र-तत्र-सर्वत्र भटकता रहता है। वह पढ़ाई में उतने ही पीछे होते हैं।
          विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क में एकाग्रता पैदा करने के लिए मेडिकल साइंस, आयुर्वेद, मनोविज्ञान या वर्तमान शिक्षा पद्धति में कोई खास प्रभावी उपाय उपलब्ध नहीं होने के कारण ही अभी तक विद्यार्थी मन के एकाग्र नहीं होने की समस्या से जूझ रहे हैं।
          सभी तरह के योग ध्यान की पद्धतियों में खासकर पतंजलि योग में एकाग्रता साधने के उपाय वर्णित, उपलब्ध है। पतंजलि योग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, के पश्चात छठवां चरण धारणा को ही एकाग्रता की स्थिति कहा जाता है। जो जनसामान्य के लिए अथवा विद्यार्थियों के लिए सार्वजनिक, सरल-सुलभ नहीं होने अर्थात जटिल होने के कारण अभी तक उन पद्धतियों का लाभ विद्यार्थियों को नहीं मिल पाया है।
         योग में तथा जनसामान्य की मान्यता में एकाग्रता साधने के लिए त्राटक अथवा चित्तवृत्ति निरोध की बात कही गई है।आंखों से किसी वस्तु को लगातार एकटक देखने की क्रिया त्राटक है। जो जनसामान्य के लिए अत्यधिक कठिन है। और चित्त वृत्ति निरोध अर्थात मन को जबरदस्ती /बलपूर्वक एक विषय पर केंद्रित करने के लिए अभ्यास करने की विधि बतलाई गई है। अथवा कठोरतापूर्वक मनोभावों, मनोविचारों को नियंत्रित करने की बात कही गई है। जो व्यावहारिक रूप से अधिकांश लोगों / अधिकांश विद्यार्थियों के लिए अत्यंत कठिन साधना है। जिसका काफी समय तक अभ्यास करने के बावजूद भी अपेक्षित परिणाम लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है। इसलिए विद्यार्थियों के लिए तथा सबके लिए एकाग्रता उपलब्ध करने की सुगम विधि की अत्यन्त आवश्यकता है।
         मन को अगर ठीक से समझा जाए, गहरे में समझा जाए तो एकाग्रता के लिए सुगम उपाय उपलब्ध हो पाना संभव है।
         एकाग्रता को ठीक से समझने के लिए उनके अन्य नामों की ओर गौर करने की आवश्यकता है। एकाग्रता के और अन्य नाम/ पर्यायवाची जैसे- तल्लीनता या रसमयता है। एकाग्रता को अगर हम तल्लीनता या रसमयता के रूप में समझेंगे तो समझना अधिक आसान होगा। एकाग्रता-रसमयता तथा तल्लीनता मन की एक ही अवस्था है। एक ही अवस्था के अलग-अलग नाम है। तल्लीनता या रसमयता मन या चेतना की किस तरह की अवस्था को कहा जाता है?
          किसी खेल, गीत-संगीत, मनोरंजन के विषय या मनपसंद विषय में हमारा मन जब डूब जाता है, अर्थात तल्लीन हो जाता है, और उसमें हमको रस अर्थात मजा आने लगता है। वही रसमयता, तल्लीनता या एकाग्रता है।
          इसलिए पढ़ाई या किसी भी विषय पर रसमयता- तल्लीनता या एकाग्रता की स्थिति उपलब्ध करने के लिए उस विषय को मनोरंजन का साधन मानकर या भविष्य में उसके अपार लाभ अनुभव करके उस विषय में मन लगाया अर्थात रसमय, तल्लीन या एकाग्र हुआ जा सकता है।
         पढ़ाई में रसमय-तल्लीन या एकाग्र होने के लिए पढ़ाई को खेल की तरह लेना पड़ेगा तथा पढ़ाई से भविष्य में होने वाले अनेक लाभों को सतत मन-मस्तिष्क में चित्रित करते रहना पड़ेगा/चाहिए। जिससे कि पढ़ाई में मन लगने लगे। सतत अभ्यास से यह उपाय अत्यंत कारगर है। इसके उपयोग से विद्यार्थी अपने भीतर छिपी अपार प्रतिभा का बेहतर उपयोग कर सकेंगे।
            🌷 धन्यवाद 🌷
          रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
      पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)