🌷 मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में पतंजलि योग🌷
पतंजलि योग वास्तव में मूल रूप से मानव मन मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता विकास की प्राचीन उन्नत तकनीक है।
योग के सभी परंपराओं का मानना है तथा भारत के अनेक संत-साधक इसके प्रमाण हैं कि-प्रत्येक मानव/विद्यार्थियों में अवचेतन-मन के रूप में छिपी हुई अवस्था में अपार प्रतिभा/ क्षमता विद्यमान है। जिसे अज्ञात अर्थात नए ज्ञान, आध्यात्मिक ज्ञान, उपलब्धि, सिद्धि साधना या अस्तित्व के मूलतत्व, सत्य अर्थात परमात्मा, आत्मा, सूक्ष्म जगत को जानने अर्थात अनुभव करने के लिए योग के माध्यम से सक्रिय,जागृत करना आवश्यक रहता है।
जिसके लिए ही योग की समस्त प्रक्रियाएं खासकर अष्टांग योग या पतंजलि योग के आठ चरणों को निर्मित करने की आवश्यकता महसूस हुई जिसके कारण ही था इसका निर्माण खोज आविष्कार किया गया है।
जिस तरह बिजली रूपी उर्जा के एक नहीं अनेक उपयोग होते हैं। तथा जिस तरह मानव मन मस्तिष्क की बौद्धिक क्षमता का एक नहीं अनेक विषयों में उपयोग किया जा रहा है।
ठीक उसी तरह-
योग के विभिन्न चरणों के उपयोग से विकसित मानव चेतना-मन-मस्तिष्क की प्रतिभा क्षमता के उपयोग से सिर्फ अस्तित्व के सत्य,आत्मा, परमात्मा, सूक्ष्म जगत के रहस्य को ही समझा जा सकता है, ऐसा नहीं है।उस मानव चेतना मन मस्तिष्क की प्रतिभा-क्षमता का उपयोग किसी भी विषय/ क्षेत्र खासकर शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी किया जा सकता है। जाने अनजाने शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलाजी के क्षेत्र में कार्य करने वाले नेचुरल जन्मजात बहुत प्रतिभावान लोगों द्वारा किया भी जा रहा है।
जिस समय मानव मन- मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक रूपी योग की प्रक्रियाओं की खोज की गई, उस जमाने में इन प्रक्रियाओं से सक्रिय/प्रकट किए गए मानव मन-मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता से अस्तित्व के सत्य, आत्मा-परमात्मा, सूक्ष्म जगत के रहस्य को जानने के साथ-साथ विज्ञान के क्षेत्र में भी उपयोग किया जाता रहा है।
लेकिन-
प्राचीन ऋषियों, विद्वानों द्वारा योग की प्रक्रियाओं से सक्रिय/प्रकट किए गए मन-मस्तिष्क क्षमता के कुछ लोगों के द्वारा अहंकार वश दुरुपयोग शुरू करने तथा विज्ञान के रुप में विकसित किए गए भौतिक यंत्रों से प्रकृति तथा मानव और अन्य जीव को होने वाले साइड इफेक्ट (दुष्प्रभाव) के कारण और साथ ही उस जमाने के विद्वानों, ऋषि-मुनियों में आध्यात्मिक क्षेत्र में अधिक रुचि होने के कारण इसके विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग को जानबूझकर, मजबूरन के छिपाया गया था। छुपाना पड़ा था. जो परंपरागत रुप से आज पर्यन्त जारी है।
लेकिन- अब जमाना बदल चुका है। आज के समय की आवश्यकता के अनुसार उक्त प्रतिभा/क्षमता का उपयोग शिक्षा के साथ विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में किया जा सकना संभव है। किया जाना चाहिए।
परन्तु -
आधुनिक जमाने के उपर्युक्त तरह के मानव प्रतिभा/क्षमता के जानकार लोगों अर्थात ऋषि-मुनियों साधु-संतों विद्वानों द्वारा प्राचीन परंपरा के पालन करने, गुरु आज्ञा के पालन करने के रूप में योग या अन्य आध्यात्मिक विधियों से विकसित मानव मन मस्तिष्क प्रतिभा क्षमता या इसके तकनीकों का शिक्षा या विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जा रहा है।
अर्थात साधु-संतों को अध्यात्म के क्षेत्र में अधिक रुचि होने और विज्ञान के क्षेत्र अर्थात भौतिक दुनिया के क्षेत्र या सांसारिक चीजों में कम रुचि होने तथा सांसारिक चीजों में रूचि रखने वाले साधू-सन्तों को इस तरह के मानव प्रतिभा-क्षमता के शिक्षा या विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग संबंधी सुस्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं होने के कारण इसका अभी तक विधिवत रूप से, सार्वजनिक ढंग से शिक्षा या विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जा सका है। उपयोग नहीं किया जा रहा है।
विज्ञान या चाहे किसी भी क्षेत्र में मानव के हित में किसी भी प्रतिभा-क्षमता का उपयोग किया जाना न्यायसंगत है। इसलिए उक्त प्रतिभा क्षमता का उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान के क्षेत्र में किया जाना चाहिए।
वर्तमान में पतंजलि योग का उपयोग शारीरिक स्वास्थ्य लाभ तथा शारीरिक सबलता प्राप्त करने के रुप में उपयोग किया जा रहा है। यह पतंजलि योग का सिर्फ प्रारंभिक उपयोग अर्थात यम, नियम, आसन, प्राणायाम के रूप में प्रारंभिक चार चरणों का ही उपयोग है। अभी प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि के रूप में आगामी चार चरणों का उपयोग शेष है। इसमें से अंतिम आठवें चरण समाधि का उपयोग मानव चेतना की अत्यधिक गहरी अवस्था होने के कारण आध्यात्मिक क्षेत्र में ही किया जा सकना संभव है।
लेकिन-
प्रत्याहार, धारणा, ध्यान का उपयोग विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में जाना संभव है। प्राचीन काल में शिक्षा तथा जीवनोपयोगी विज्ञान के क्षेत्र में किया भी जाता था। इसके उपयोग से प्रत्येक मानव/विद्यार्थियों में अवचेतन-मन के रूप में प्राकृतिक रूप से छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता सक्रिय/ प्रकट होती है। जिसका उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को अत्यधिक विकसित विश्वस्तरीय बना सकने में सक्षम है। यह देश को विकसित राष्ट्र, शिक्षा का प्रमुख केंद्र तथा विश्व गुरु बनाने में समर्थ सिद्ध होगा।
🌷धन्यवाद 🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)
पतंजलि योग वास्तव में मूल रूप से मानव मन मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता विकास की प्राचीन उन्नत तकनीक है।
योग के सभी परंपराओं का मानना है तथा भारत के अनेक संत-साधक इसके प्रमाण हैं कि-प्रत्येक मानव/विद्यार्थियों में अवचेतन-मन के रूप में छिपी हुई अवस्था में अपार प्रतिभा/ क्षमता विद्यमान है। जिसे अज्ञात अर्थात नए ज्ञान, आध्यात्मिक ज्ञान, उपलब्धि, सिद्धि साधना या अस्तित्व के मूलतत्व, सत्य अर्थात परमात्मा, आत्मा, सूक्ष्म जगत को जानने अर्थात अनुभव करने के लिए योग के माध्यम से सक्रिय,जागृत करना आवश्यक रहता है।
जिसके लिए ही योग की समस्त प्रक्रियाएं खासकर अष्टांग योग या पतंजलि योग के आठ चरणों को निर्मित करने की आवश्यकता महसूस हुई जिसके कारण ही था इसका निर्माण खोज आविष्कार किया गया है।
जिस तरह बिजली रूपी उर्जा के एक नहीं अनेक उपयोग होते हैं। तथा जिस तरह मानव मन मस्तिष्क की बौद्धिक क्षमता का एक नहीं अनेक विषयों में उपयोग किया जा रहा है।
ठीक उसी तरह-
योग के विभिन्न चरणों के उपयोग से विकसित मानव चेतना-मन-मस्तिष्क की प्रतिभा क्षमता के उपयोग से सिर्फ अस्तित्व के सत्य,आत्मा, परमात्मा, सूक्ष्म जगत के रहस्य को ही समझा जा सकता है, ऐसा नहीं है।उस मानव चेतना मन मस्तिष्क की प्रतिभा-क्षमता का उपयोग किसी भी विषय/ क्षेत्र खासकर शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में भी किया जा सकता है। जाने अनजाने शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलाजी के क्षेत्र में कार्य करने वाले नेचुरल जन्मजात बहुत प्रतिभावान लोगों द्वारा किया भी जा रहा है।
जिस समय मानव मन- मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक रूपी योग की प्रक्रियाओं की खोज की गई, उस जमाने में इन प्रक्रियाओं से सक्रिय/प्रकट किए गए मानव मन-मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता से अस्तित्व के सत्य, आत्मा-परमात्मा, सूक्ष्म जगत के रहस्य को जानने के साथ-साथ विज्ञान के क्षेत्र में भी उपयोग किया जाता रहा है।
लेकिन-
प्राचीन ऋषियों, विद्वानों द्वारा योग की प्रक्रियाओं से सक्रिय/प्रकट किए गए मन-मस्तिष्क क्षमता के कुछ लोगों के द्वारा अहंकार वश दुरुपयोग शुरू करने तथा विज्ञान के रुप में विकसित किए गए भौतिक यंत्रों से प्रकृति तथा मानव और अन्य जीव को होने वाले साइड इफेक्ट (दुष्प्रभाव) के कारण और साथ ही उस जमाने के विद्वानों, ऋषि-मुनियों में आध्यात्मिक क्षेत्र में अधिक रुचि होने के कारण इसके विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग को जानबूझकर, मजबूरन के छिपाया गया था। छुपाना पड़ा था. जो परंपरागत रुप से आज पर्यन्त जारी है।
लेकिन- अब जमाना बदल चुका है। आज के समय की आवश्यकता के अनुसार उक्त प्रतिभा/क्षमता का उपयोग शिक्षा के साथ विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में किया जा सकना संभव है। किया जाना चाहिए।
परन्तु -
आधुनिक जमाने के उपर्युक्त तरह के मानव प्रतिभा/क्षमता के जानकार लोगों अर्थात ऋषि-मुनियों साधु-संतों विद्वानों द्वारा प्राचीन परंपरा के पालन करने, गुरु आज्ञा के पालन करने के रूप में योग या अन्य आध्यात्मिक विधियों से विकसित मानव मन मस्तिष्क प्रतिभा क्षमता या इसके तकनीकों का शिक्षा या विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जा रहा है।
अर्थात साधु-संतों को अध्यात्म के क्षेत्र में अधिक रुचि होने और विज्ञान के क्षेत्र अर्थात भौतिक दुनिया के क्षेत्र या सांसारिक चीजों में कम रुचि होने तथा सांसारिक चीजों में रूचि रखने वाले साधू-सन्तों को इस तरह के मानव प्रतिभा-क्षमता के शिक्षा या विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग संबंधी सुस्पष्ट जानकारी उपलब्ध नहीं होने के कारण इसका अभी तक विधिवत रूप से, सार्वजनिक ढंग से शिक्षा या विज्ञान के क्षेत्र में उपयोग नहीं किया जा सका है। उपयोग नहीं किया जा रहा है।
विज्ञान या चाहे किसी भी क्षेत्र में मानव के हित में किसी भी प्रतिभा-क्षमता का उपयोग किया जाना न्यायसंगत है। इसलिए उक्त प्रतिभा क्षमता का उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान के क्षेत्र में किया जाना चाहिए।
वर्तमान में पतंजलि योग का उपयोग शारीरिक स्वास्थ्य लाभ तथा शारीरिक सबलता प्राप्त करने के रुप में उपयोग किया जा रहा है। यह पतंजलि योग का सिर्फ प्रारंभिक उपयोग अर्थात यम, नियम, आसन, प्राणायाम के रूप में प्रारंभिक चार चरणों का ही उपयोग है। अभी प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि के रूप में आगामी चार चरणों का उपयोग शेष है। इसमें से अंतिम आठवें चरण समाधि का उपयोग मानव चेतना की अत्यधिक गहरी अवस्था होने के कारण आध्यात्मिक क्षेत्र में ही किया जा सकना संभव है।
लेकिन-
प्रत्याहार, धारणा, ध्यान का उपयोग विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में जाना संभव है। प्राचीन काल में शिक्षा तथा जीवनोपयोगी विज्ञान के क्षेत्र में किया भी जाता था। इसके उपयोग से प्रत्येक मानव/विद्यार्थियों में अवचेतन-मन के रूप में प्राकृतिक रूप से छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता सक्रिय/ प्रकट होती है। जिसका उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को अत्यधिक विकसित विश्वस्तरीय बना सकने में सक्षम है। यह देश को विकसित राष्ट्र, शिक्षा का प्रमुख केंद्र तथा विश्व गुरु बनाने में समर्थ सिद्ध होगा।
🌷धन्यवाद 🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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