आपका विद्यार्थी अद्वितीय है ( your student is special )

      🌷 आपका विद्यार्थी अद्वितीय है 🌷

           दुनिया के अधिकांश विश्वप्रसिद्ध  शिक्षाविदों, मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि-विद्यार्थियों में जन्मजात प्राकृतिक रूप से उपलब्ध आंतरिक प्रतिभा, ज्ञान को प्रगट होने का अवसर देना वास्तविक शिक्षा है।
        लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति पर आधारित शिक्षा पद्धति के अंतर्गत स्कूलों में बाहर से उपलब्ध ज्ञान को विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क में भरना वास्तविक ज्ञान या शिक्षा नहीं बल्कि सिर्फ सूचना या जानकारी है।
इसलिए- प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति तथा विकसित देशों की तरह विद्यार्थियों  के भीतर छिपी प्रतिभा को प्रकट होने का अवसर देना, शोध को बढ़ावा देना अधिकाधिक विश्व स्तरीय प्रतिभा पैदा/ प्रगट करने के लिए अत्यंत आवश्यक है।
            इसके साथ ही पश्चिमी देशों के विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि- दुनिया के 90% बच्चे जीनियस की तरह पैदा होते हैं। लेकिन हम सब मिलकर जाने अनजाने ऐसी व्यवस्था, नकारात्मक आचार विचार व्यवहार करते हैं, शिक्षा-संस्कार प्रदान करते हैं कि- बड़े होते होते अधिकांश बच्चे-विद्यार्थी सामान्य प्रतीत होने लगते हैं।
   इसलिए-
            परिवार तथा समाज के तरफ से पढ़ाई तथा विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क क्षमता विकास के अनुकूल परवरिश तथा माहौल उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है, जिससे कि- विद्यार्थी प्रकृति प्रदत्त अपने भीतर अवचेतन मन के रूप में छिपी अपार मन-मस्तिष्क बौद्धिक प्रतिभा का बेहतर उपयोग कर सकें।
    तथा-
           इसके साथ ही वर्तमान शिक्षा पद्धति के अंतर्गत स्कूलों में दिए जाने वाले विषयगत जानकारी/सुचना के साथ-साथ विद्यार्थियों के लिए आयोजित होने वाले विज्ञान प्रदर्शनी या विभिन्न शैक्षणिक/गैर शैक्षणिक गतिविधियों की तर्ज पर विद्यार्थियों में जन्मजात प्राकृतिक रूप से छिपी प्रतिभा को प्रकट करने/ होने का अधिकाधिक अवसर देना शिक्षा को उन्नत बनाने वाला सिद्ध होता है ।
            प्रकृति इतना विकसित है कि- किसी आदमी के चेहरे, व्यक्तित्व, DNA, बौद्धिक क्षमता को कॉपी करने की आवश्यकता नहीं पड़ती। प्रत्येक व्यक्ति को अनूठा बनाता है। किसी एक विद्यार्थी के चेहरे, व्यक्तित्व, DNA, बौद्धिक क्षमता,आँख, हाथ की रेखाओं की तरह का ठीक दूसरा विद्यार्थी पूरे संसार में मिलना असंभव है। इसीलिए आजकल आधुनिक कंप्यूटर के जमाने में भी प्रत्येक व्यक्तियों, विद्यार्थियों के आइडेंटिटी के लिए हाथ की रेखाओं या आंख का स्कैन किया जाता है।
      अर्थात- 
                 प्रत्येक विद्यार्थी जन्मजात प्राकृतिक रूप से अद्वितीय है।
           विद्यार्थियों को स्कूली शिक्षा के अंतर्गत सफल होने तथा अच्छा इंसान बनने के लिए महापुरुषों, नेताओं, वैज्ञानिकों, गुरुओं के प्रेरणादायक प्रसंग उनके अनुकरण करने के लिए सुनाया जाता हैं। यह सीखने, समझ बढ़ाने, प्रेरणा ग्रहण करने के लिए बहुत ही अच्छा प्रयास है। लेकिन-
            नैतिक और प्रेरणादायक शिक्षा के साथ विद्यार्थियों को अगर यह भी सिखाया जा सके कि- लगभग प्रत्येक विद्यार्थी में कोई न कोई एक या एक से अधिक अनूठा गुण, प्रतिभा-क्षमता विद्यमान होता है। जिसे पहचान कर उसे विकसित करना तथा इसके विकास के लिए सुविधा उपलब्ध करवाया जाना विद्यार्थियों को जीनियस बनाने में सहयोगी सिद्ध होता है, तो यह -
 सोने पे सुहागा जैसा होगा|
           क्योंकि आज तक 100% किसी विद्यार्थी या मानव की तरह कोई ठीक दूसरा विद्यार्थी या मानव पैदा नहीं हुआ है, और न ही होने की संभावना है।इसलिए भी प्रत्येक विद्यार्थी अद्वितीय है। और विद्यार्थियों को उनके इस अनूठेपन से परिचित कराना उनसे प्रतिभा विकास में सहयोगी होगा।
           चूँकि लगभग प्रत्येक विद्यार्थी जन्मजात प्राकृतिक रूप से अपार प्रतिभा क्षमतावान तथा अद्वितीय है। इसलिए उन्हें किसी दूसरे जैसा बनने/ दूसरों के नकल करने के लिए प्रेरित करने के बजाए विद्यार्थियों को महापुरुषों से प्रेरणा लेकर स्वयं के गुणों को विकसित कर विजेता बनने के लिए प्रेरित करना, सुविधा, मार्गदर्शन देना अधिक बेहतर है।
          अगर कोई व्यक्ति/विद्यार्थी किसी का अनुसरण/नकल करने का प्रयास करे भी तो लाख प्रयास के बावजूद भी ठीक दूसरे जैसा बन पाना असंभव है, और इस एक दूसरे जैसा बनने,अनुकरण करने के प्रयास में स्वयं में छिपी मौलिक प्रतिभा को विकसित नही कर पाते अर्थात स्वयं भी नही बन पाते।
           साथ ही किसी का अनुसरण करना एक तरह का सुक्ष्म मानसिक गुलामी हैं, और गुलामी किसी भी तरह का हो विद्यार्थियों /मानव की गरिमा के खिलाफ है। विद्यार्थी स्वयं में छुपी अपार प्रतिभा को प्रगट कर पाए/ सदुपयोग कर पाए यह भी बहुत बड़ी उपलब्धि है। और अगर हम सब इसमें सहयोग कर पाए वह सबसे बड़ी मानवता है।
           प्रत्येक व्यक्ति/विद्यार्थियों की संयोजित अर्जित चेतना अर्थात पूरे जन्म में उपलब्ध की गई समझ अलग-अलग स्तर का होता है, जिसके कारण सबकी प्राकृतिक संभावना भी अलग-अलग है। विद्यार्थियों में प्रकृति की तरफ से अनंत संभावना विद्यमान है।अपने संयोजित अर्जित चेतना और देश काल वातावरण के हिसाब से अपने प्रतिभा क्षमता का विकास कर पाना ही मानव की गरिमा है। यह बात विद्यार्थियों को भी अच्छे से समझने /समझाने की जरूरत है।
           दुनिया के प्रत्येक मानव/ विद्यार्थियों का मन मस्तिष्क क्षमता अपार है, फिर भी प्रत्येक विद्यार्थियों का व्यक्तित्व अपने तरह का अलग -अलग है। तुलना समान चीजों में होती है। और प्रत्येक विद्यार्थियों का व्यक्तित्व अलग अलग है इसलिए- प्रत्येक विद्यार्थी अतुलनीय भी है।
         
                         🌷 धन्यवाद 🌷
                           - रामेश्वर वर्मा

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