🌷 *योग क्या है ?*🌷
What is Yoga?
योग शब्द सुनते ही अक्सर मन में ख्याल आता है कि योग का अर्थ है आसन और प्राणायाम करना। परंतु यह संपूर्ण सत्य नहीं है, योग का इतना ही अर्थ नहीं है। योग का अर्थ व्यापक है।
योग के आठ चरण /आयाम होते हैं -यम, नियम, आसन,प्राणाया, प्रत्याहार, ध्यान, समाधि। इन आठों चरणों को सम्मिलित रूप से योग कहा जाता है। इन सभी चरणों को पूरा करने से योग की उपलब्धि होती है-
और वह उपलब्धि है -आत्मानुभव- परमात्मा अनुभव-अस्तित्व के सत्य का अनुभव इनके साथ गहरे में जुड़े / संयुक्त /अद्वैत होने का अनुभव या बोध ।
यह तो योग के चरण और अनुभव हुए।
योग का वास्तविक अर्थ क्या है? योग अर्थात किसका योग? योग नाम रखा क्यों गया है?
योग का वास्तविक अर्थ क्या है? योग अर्थात किसका योग? योग नाम रखा क्यों गया है?
तो योग का अर्थ है जोड़ या जुड़ना।
जिस तरह प्रकृति(अस्तित्व) विद्युत की तरह दो धाराओं, दो चीजों के मिलने या जुड़ने से ही सुचारू रूप से चलता, संचालित होता तथा विकसित होता है।
योग के अनुसार मानव में सामान्यतः दो तरह के मन- प्रथम चेतन-मन और दूसरा अवचेतन-मन होता हैं। जिनके मिलने से ही व्यक्ति संपूर्ण बनता है।शरीर स्वस्थ और सन्तुलित रहता है।
योग तथा आयुर्वेद में नाक के दो छिद्रों में से एक को चंद्र स्वर और दूसरे को सूर्य स्वर कहा जाता है।और इससे जो नाड़ी तन्त्र जुड़ा होता है, उसमे से एक को चंद्र नाड़ी और दूसरे को सूर्य नाड़ी कहा जाता है। इन दोनों के मिलने से ही,इन दोनों के साथ संतुलन से ही शरीर का स्वस्थ संचालन होता है।
तो इस तरह योग की भाषा में चंद्र स्वर और चंद्र नाड़ी तथा सूर्य स्वर और सूर्य नाड़ी के मिलन, चेतन मन और अवचेतन मन के मिलन,बाएं मस्तिष्क और दायें मस्तिष्क के मिलन को योग कहा जाता है।
हठयोग के अनुसार शरीर की रीढ में सामान्यतः सात प्रकार के योग चक्र/सामान्य भाषा में ऊर्जा केंद्र होता है। जिसके प्रथम चक्र को मूलाधार चक्र और अंतिम चक्र को सहस्त्रार चक्र कहा जाता है। प्रथम चक्र के पास रीढ के नीचे अंतिम छोर में रिजर्व शक्ति (ऊर्जा) के रूप में कुंडलिनी शक्ति सुप्तावस्था में होती है। जिसे जगाकर सहस्त्रार तक के यात्रा से सभी चक्रों के आपस में मिलने को योग कहा जाता है।
तंत्र में इसे शिव शक्ति का मिलन अर्थात योग कहा गया है।
चाइनीज एक्यूपंचर चिकित्सा पद्धति तथा जापानी रेकी चिकित्सा पद्धति की भी यह मान्यता है कि-
मानव शरीर भौतिक शरीर और ऊर्जा का सम्मिलित रूप है। दोनों के ठीक तरह से मिलने से ही शरीर स्वस्थ रहता है।तथा इनके मिलन में किसी वजह से अवरोध होने पर ही रोग पैदा होता है। इस विद्या के अनुसार मानव में उपस्थित जैविक ऊर्जा का संचालन भी विद्युत के धन और ऋण की तरह होता है। जिसके संतुलित रुप में मिलने से शरीर स्वस्थ रहता है। यह मिलन भी एक तरह का योग है।
मानव शरीर भौतिक शरीर और ऊर्जा का सम्मिलित रूप है। दोनों के ठीक तरह से मिलने से ही शरीर स्वस्थ रहता है।तथा इनके मिलन में किसी वजह से अवरोध होने पर ही रोग पैदा होता है। इस विद्या के अनुसार मानव में उपस्थित जैविक ऊर्जा का संचालन भी विद्युत के धन और ऋण की तरह होता है। जिसके संतुलित रुप में मिलने से शरीर स्वस्थ रहता है। यह मिलन भी एक तरह का योग है।
ध्यान विज्ञान के अनुसार मानव शरीर में उपस्थित शरीर मन बुद्धि चेतना(आत्मा) के मिलने को भी योग कहा जाता है। तथा तंत्र विज्ञान के अनुसार मानव का स्वयं को अस्तित्व/परमात्मा के साथ जुड़ा हुआ महसूस करना भी योग है। ध्यान की गहराई में चेतना (आत्मा) का परमात्मा से मिलन अनुभव को भी योग कहा जाता है।
योग का क्षेत्र व्यापक है।इसको समझाने के और अनेक तरीके हो सकते हैं।
योग अनेक प्रकार के होते हैं जैसे-
1. हठयोग
2. पतंजलि योग
3. लय योग
4. स्वर योग
5. राजयोग
6. सांख्य योग
7. भक्तियोग
8. कुंडलिनी योग
9. ध्यान योग
योग अनेक प्रकार के होते हैं जैसे-
1. हठयोग
2. पतंजलि योग
3. लय योग
4. स्वर योग
5. राजयोग
6. सांख्य योग
7. भक्तियोग
8. कुंडलिनी योग
9. ध्यान योग
आदि अनेक तरह के योग होते हैं। आदमी अपनी रुचि सुविधा और व्यक्तित्व के आधार पर इन योगों में से किसी का उपयोग कर सकते है/करते हैं।
'प्रत्येक योग के रास्ते, विधि, सिद्धांत अलग है, लेकिन मंजिल/ उपलब्धि सबका एक है।'
🌷 धन्यवाद 🌷
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