⭐विद्यार्थियों में उत्पन्न/ इकट्ठी अतिरिक्त शक्ति⭐
       - - - - - - - - - - - - - - - - - - - -- - - - - - -

बच्चों/ विद्यार्थियों में योग विज्ञान के अनुसार- नैसर्गिक जीवन जीने, नाभि से श्वास लेने, सांसारिक प्रपंचों से मुक्त रहने, विभिन्न ग्रंथियों हार्मोन के काफी सक्रिय होने आदि अनेक कारणों से अपार शक्ति/ऊर्जा उत्पन्न तथा इकट्ठी होती है। जिसका सृजनात्मक उपयोग नहीं होने के कारण अधिकांश विद्यार्थी उपद्रवी हो जाते हैं, जिससे लगभग सभी माता-पिता, शिक्षक परेशान रहते हैं। जिसका किसी एलोपैथी, आयुर्वेदिक ढंग से या देश में प्रचलित तंत्र मंत्र के उपयोग से सुधार संभव नहीं है, अगर होता तो अब तक देश दुनिया में किशोर तथा युवा विद्यार्थी  प्रसन्न, जीनियस हो चुके होते लेकिन दुनिया मे यथार्थ स्थिति सबके सामने हैं, और जिससे सभी परिचित हैं।

          योग तथा आधुनिक मनोविज्ञान के अनुसार विद्यार्थियों/बच्चों में उत्पन्न, इकट्ठी शक्ति का सृजनात्मक उपयोग करना ही प्रभावी उपाय है, जिसका उपयोग जागरूकता के अभाव में काफी कम हो पा रहा है। विद्यार्थियों को पढ़ाई में अच्छा बनाने, व्यवहार कुशल बनाने के लिए कुछ मनोवैज्ञानिक उपाय देश दुनिया में उपलब्ध है, जो इस प्रकार है-

 पहला- विद्यार्थियों का पढ़ाई में रूचि बढ़ाने तथा उन्हें होशियार बनाने के लिए पढ़ाई से होने वाले विभिन्न लाभों के बारे में पालक तथा शिक्षकों के द्वारा जानकारी दिया जाना चाहिए तथा विद्यार्थियों को पढ़ाई से होने वाले लाभों को प्रतिदिन विजुवलाईज करने(मन की आंखों से देखने) के लिए कहना चाहिए, प्रेरित करना चाहिए, सहयोग करना चाहिए क्योंकि-

 मनोविज्ञान के अनुसार मन का यह नियम है कि-
            मन मुख्यतः दो चीजों से किसी विषय में एकाग्र होता है। पहला दंड और दूसरा पुरस्कार या लाभ रूपी प्रलोभन।
     चूंकि एकाग्रता पढ़ाई के लिए सबसे जरूरी चीज है।
         और इसमें से दंड का उपयोग काफी पुराने समय से होता आ रहा है लेकिन यह प्रायः असफल उपाय है, क्योंकि इससे अपेक्षित/पर्याप्त लाभ नहीं मिल पाता, जिससे सभी परिचित हैं। यह बहुत कम प्रतिशत प्रभावी है, क्योंकि बच्चों/ विद्यार्थियों को सुधारने के लिए- लगभग सभी पालक और शिक्षक बच्चों/ विद्यार्थियों को डांट-डांट कर थक चुके हैं।
       नवीनतम मनोंवैज्ञानिक खोजों से स्पष्ट हुआ है कि- पुरस्कार या फायदा रूपी प्रलोभन मानव मन को प्रभावित करने के लिए अधिक कारगर उपाय है, इसलिए बच्चों को पढ़ाई से होने वाले फायदे का विजुलाइजेशन कर सकने योग्य रूप में सतत स्मरण करवाते रहना चाहिए।

दूसरा- बच्चों विद्यार्थियों में इतनी अपार शक्ति/ऊर्जा होती है कि- पढ़ने-लिखने के बाद भी खेलने-कूदने के लिए अपार ऊर्जा बची रहती है, जिसका सृजनात्मक उपयोग नहीं करने पर बच्चे उपद्रवी अराजक हो जाते हैं, इसलिए बच्चों/ विद्यार्थियों में इकट्ठी अतिरिक्त ऊर्जा के सृजनात्मक उपयोग के लिए देश दुनिया में प्रचलित विभिन्न प्रतियोगी खेलों में से रुचि अनुकूल खेल को विधिवत खेलने/ प्रैक्टिस करने के लिए सतत प्रेरित करना चाहिए, जिससे उनके अतिरिक्त ऊर्जा का सृजनात्मक उपयोग हो सकेगा, जिससे तन-मन स्वस्थ रहेगा, समय का सदुपयोग होगा, फालतू विचारों से मुक्त रहेंगे तथा बहुत संभावना है कि- वे पढ़ाई में तेज होने के साथ ही किसी खेल के क्षेत्र में भी काफी आगे बढ़ जाएं।

तीसरा- जरूरी नहीं कि सभी बच्चों को खेल में रुचि हो इसलिए जिन बच्चों को खेल में रुचि ना हो उन्हें योग से परिचित करवाने/ योग का अभ्यास करवाने का प्रयास किया जाए। जो बच्चों विद्यार्थियों के शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ बौद्धिक उन्नति में भी सर्वाधिक सहायक है।

 चौथा- चूंकि देश-दुनिया में अलग-अलग देश काल वातावरण में पले बढ़े अनेक अलग-अलग तरह के सोंच, रुचि, मानसिकता के बच्चे विद्यार्थी है, इसलिए जिन बच्चों को खेल या योग में अधिक रुचि ना हो उन्हें सिर्फ डांटने के बजाय अन्य सृजनात्मक कार्य जैसे-
       ड्राइंग, पेंटिंग, गीत-संगीत, एडवेंचर अच्छे साहित्य पढ़ने, कविता, लेख  लिखने, वैज्ञानिक मॉडल बनाने या अन्य दैनिक जीवन में उपयोगी हुनर को सीखने के लिए प्रेरित किया जाए।

पांचवा- व्यवहार को अच्छा बनाने के लिए, मानवीय गुणों को विकसित करने के लिए अच्छे व्यवहार से होने वाले लाभ तथा प्राप्त होने वाले सम्मान से अवगत कराया जाए इस तरह हम बच्चे विद्यार्थियों में उत्पन्न, इकट्ठी अतिरिक्त शक्ति/ऊर्जा का सृजनात्मक उपयोग करते हुए हम उन्हें पढ़ाई-लिखाई, खेल, कला के क्षेत्र में पारंगत तथा शारीरिक मानसिक आध्यात्मिक तथा नैतिक रूप से उन्नत बनाने में सहयोगी हो सकते हैं।

            *🙏धन्यवाद🙏*