भारत मे विद्यमान विश्वगुरु ज्ञान

               भारत में विद्यमान- विश्व गुरु ज्ञान

भारत प्राचीन काल में विश्व गुरु हुआ करता था। विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र था। प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में योग-ध्यान के रूप में मानव मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था। विद्याध्ययन/अध्यापन करने वाले सभी विद्यार्थी तथा गुरु विद्याध्ययन/अध्यापन के पहले अनिवार्य रूप से योग- ध्यान किया करते थे। जिससे मानव/विद्यार्थियों में छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता सक्रिय हो जाती है। जो मानव/ विद्यार्थियों को उच्चस्तरीय ज्ञान प्राप्त करने में सक्षम बना देता है। जिसके कारण ही प्राचीन काल में भारतीय ज्ञान-विज्ञान उन्नत स्थिति में रहा है।
                  मानव मस्तिष्क को उन्नत, विकसित बनाने वाले ज्ञान का उपयोग अगर वर्तमान शिक्षा पद्धति में किया जा सका तो पुनः भारतीय शिक्षा को उन्नत बनाया जा सकता है। देश को विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाया जा सकना संभव है।
                 वह ज्ञान आज भी अप्रत्यक्ष रुप में विकसित देशों की आधुनिक शिक्षा में उपयोग हो रहा है। क्योंकि आधुनिक शिक्षा से उपलब्ध सभी महत्वपूर्ण ज्ञान तथा वैज्ञानिक उपलब्धि, योग के अंतर्गत धारणा-ध्यान/ योग तन्द्रा की अवस्था की तरह अप्रत्यक्ष रूप से प्राप्त मन-मस्तिष्क की बहुत शांत-तल्लीन  स्थिति अर्थात गहरे एकाग्रता/ मस्तिष्क की अल्फा तरंग अवस्था में उपलब्ध हुआ है।
                  निम्नलिखित तथ्यों के आधार पर इसे और बेहतर ढंग से समझा जा सकता है-
आधुनिक विज्ञान का ही तथ्य है कि-
     
  1.मानव,विद्यार्थियों में प्राकृतिक रुप से अपार मानसिक क्षमता विद्यमान है। जिसमे से सिर्फ 5 से 10 % क्षमता का ही उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में हो पा रहा है।शेष लगभग 95% क्षमता अभी विज्ञान के लिए अपरिचित, अज्ञात है। आधुनिक विज्ञान में इससे सम्बंधित ज्ञान उपलब्ध नहीं होने तथा इससे संबंधित प्राचीन भारतीय ज्ञान सरल रुप में सार्वजनिक नही होने के कारण शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग नही हो पा रहा है। जिसमें मानव-विद्यार्थियो-शिक्षकों-वैज्ञानिको की अपरिसीम बौद्धिक क्षमता छिपी हुई है।

2. आधुनिक विज्ञान के अनुसार अस्तित्व (संसार) का लगभग 4% के आसपास ही ज्ञात पदार्थ है, जिससे सभी दृश्य चीजें- ग्रह, चाँद-सितारे तथा सभी वस्तुएँ निर्मित है। विज्ञान के लिए -शेष 96% से अधिक डार्क मैटर, डार्क एनर्जी के रूप में अज्ञात है, रहस्य है। अर्थात विज्ञान के लिए अस्तित्व का 96 प्रतिशत हिस्सा जानना शेष है।

3.मेडिकल साइंस के अनुसार -मानव कोशिका में उपस्थित DNA में से सिर्फ लगभग 3% ही हमारे शरीर के सभी क्रिया-कलापों को संचालित करते है।शेष 97% DNA जंक या बेकार DNA है। जिसका सही कार्य अभी तक अज्ञात है। जिस पर विस्तृत शोध लगातार जारी है।
                    इसी लगभग 5% से अधिक अर्थात लगभग 95% हिस्से में जीवन, मानव, अस्तित्व (ब्रह्मांड) का समस्त रहस्य छिपा हुआ है। जिसे जानने के लिए विश्वभर में अनेक स्तर पर, अनेक रुपों में शोध कार्य जारी है।
     
  यह आधुनिक विज्ञान के लिए भले ही अभी तक अज्ञात है, लेकिन-
             भारतीय ऋषियों के लिए हजारों वर्षों से ज्ञात है। आधुनिक विज्ञान के द्वारा पदार्थ को गहराई से समझने पर इलेक्ट्रान-प्रोटान न्यूट्रान के रूप में ऊर्जा का अनुभव हो चुका है। जिसको और गहराई से जानने के प्रयास के रूप में शोध कार्य जारी है। जिसे प्राचीन ऋषि मुनि बहुत पहले अपने अपार मन-मस्तिष्क क्षमता से जान चुके हैं।
                  प्राचीन ऋषि मुनि पहले ही अस्तित्व, प्रकृति के संबंध में बहुत कुछ बतला, खोज. समझ चुके हैं। जिस पर शोध कार्य करना आधुनिक विज्ञान को उन्नत बनाने में बहुत सहयोगी सिद्ध होगा।
 जैसे कि-  
 1. पदार्थ संसार माया है, भ्रम है, जैसा दिखता है वैसा है नहीं। सिर्फ भाषता है अर्थात सिर्फ प्रतीत होता है। और विज्ञान भी कहता है कि पदार्थ सिर्फ दिखता है, वास्तव में इलेक्ट्रान प्रोटान न्यूट्रान रूपी ऊर्जा का समूह है।
पदार्थ को पूरी तरह नष्ट नही किया जा सकता है। पदार्थ को ऊर्जा में बदला जा सकता है और ऊर्जा का सिर्फ रूप बदला जा सकता है, नष्ट नहीं किया जा सकता अर्थात विज्ञान के अनुसार ही ऊर्जा अमर है। और अध्यात्म/ ऋषि मुनियों का भी कहना है कि मानव का सिर्फ शरीर बदलता है आत्मा [चेतना ] अमर है। उर्जा का ही सूक्ष्म रूप ध्वनि और चेतना है।तथा ध्वनि, चेतना का ही सघन रूप ऊर्जा और ऊर्जा का सघन रूप पदार्थ है।

2. पदार्थ/ संसार ऊर्जा से भी गहरी चीज ध्वनि से निर्मित है। ओम ध्वनि संसार का मूल तत्व है। जो सघन होकर ऊर्जा बनता है/ ध्वनि का सघन रूप ऊर्जा कहलाता है। और ऊर्जा सघन होकर पदार्थ बनता है/ उर्जा का सघन रूप पदार्थ कहलाता है। जो नष्ट होकर ऊर्जा बनता है और ऊर्जा में परिवर्तित होकर अंत में ओम ध्वनि के महासागर में मिल जाता है।जो सघन होकर धीरे-धीरे फिर पदार्थ रूप में प्रकट होता है . इसी तरह अस्तित्व/ प्रकृति में परिवर्तन होता रहता है. क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है।

3. प्राचीन ऋषि मुनियों का अनुभव है कि पदार्थ ध्वनि उर्जा का बाय प्रोडक्ट है।परन्तु अभी आधुनिक विज्ञान का मानना है पदार्थ मूल तत्व है और ऊर्जा बाई प्रोडक्ट है, लेकिन विज्ञान का खोज आगे जारी है, और धीरे-धीरे क्वांटम फिजिक्स, नैनो टेक्नोलॉजी, क्लोनिंग साइंस आदि विभिन्न रूपों में ऋषि मुनियों द्वारा अनुभव किए गए सत्य की ओर अग्रसर है।
                 प्राचीन ऋषि मुनियों के प्राप्त समझ के आधार पर अर्थात ध्वनि/ऊर्जा को आधार मानकर शोध करना विश्व विज्ञान के अनेक अनसुलझे रहस्य को सुलझाने वाला सिद्ध होगा।

4. प्राचीन भारतीय ऋषि मुनियों का मानना है कि मानव शरीर मुख्यतः तीन तरह के शरीरों से मिलकर बना है।

    प्रथम- अन्नमय कोष के रूप में भौतिक पदार्थों से निर्मित भौतिक शरीर।

   दूसरा-  प्राणमय कोष, मनोमय कोश, विज्ञानमय कोष के रूप में सूक्ष्म तरंगों से निर्मित सूक्ष्म शरीर।

   तीसरा- आनंदमय कोष के रूप में चेतना/ ब्रम्ह शरीर।
             
               आधुनिक विश्व विज्ञान के रिसर्च से विभिन्न क्षेत्रों में पिछले कुछ सौ वर्षों में सैकड़ों/ हजारों गुना सुधार ,विकास, उन्नत स्थिति प्राप्त हुआ है। लेकिन मानव मस्तिष्क के संबंध में पर्याप्त शोध के बावजूद जानकारी अभी अपेक्षाकृत बहुत कम है। क्योंकि-
               आधुनिक विज्ञान के द्वारा भौतिक शरीर [ हार्डवेयर ] को ही आधार मानकर शोध कार्य जारी हैं
         
               अगर सूक्ष्म शरीर या ऊर्जा को आधार और भौतिक शरीर (पदार्थ) को बाय प्रोडक्ट मानकर रिसर्च किया जाए तो मानव मन- मस्तिष्क तथा अस्तित्व के रहस्यों को अपेक्षाकृत आसानी से समझा/ सुलझाया जा सकता है।
क्योंकि-
                जिस तरह कंप्यूटर हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर का बना होता है। उसी तरह मानव शरीर- मस्तिष्क का भौतिक रूप- हार्डवेयर के समान है, और सूक्ष्म शरीर-मन सॉफ्टवेयर के समान हैं। विज्ञान में जिस तरह क्वांटा कण और तरंग का सेतु है। उसी तरह मस्तिष्क पदार्थ और ऊर्जा का सेतु है।
इसीलिए-
               आधुनिक विज्ञान के लिए मानव मस्तिष्क को समझना अत्यंत जटिल अनुभव हो रहा है। मानव शरीर के गहरे तल या मस्तिष्क अर्थात सॉफ्टवेयर के बारे में जानना हो तो हार्डवेयर पर रिसर्च करने से सॉफ्टवेयर के बारे में जानना अत्यंत कठिन है। सूक्ष्म शरीर/ मन/ उर्जा रूपी सॉफ्टवेयर के स्तर पर ही शोध करने से मानव मन- मस्तिष्क को इसके गहरे तले को समझ जा सकना आसान होगा।

5.प्राचीन विज्ञान की तरह आधुनिक विज्ञान के विकास के साथ मन से चलने वाले कुछ यंत्रों का निर्माण हो चुका है।और मन से संचालित यंत्रों के संबंध में शोध कार्य जारी है। जिसमें काफी कुछ सफलता भी प्राप्त हो चुका है। आगे और सफलता संभव है ।
               इस तरह के विज्ञान का विकास प्राचीन काल में भी हो चुका था। रामायण और महाभारत काल में मन से संचालित होने वाले पुष्पक विमान तथा युद्ध के दौरान उपयोग होने वाले मनुष्य संचालित धनुष बाण मन से संचालित होकर खास रुप ले लेते थे। वे यंत्रों के मन से चलने या पदार्थ के मन से प्रभावित होने के प्रमाण है। वर्तमान मिसाइल लगभग इसी सिद्धांत पर संचालित है। इस पर अभी आगे और विकास संभव है, इसका और इसका और उन्नत वर्जन आना शेष है। जो लगभग प्राचीन तकनीक/ सिद्धांत पर कार्य करेगा।अर्थात मन से संचालित होगा। जिस पर सतत शोध कार्य जारी है।

6. योग के उपयोग से वैज्ञानिक प्रमाणिक रुप से मेडिकल साइंस के लिए असाध्य अनेक रोगों का इलाज तथा स्वास्थ्य लाभ संभव हो गया है। वर्तमान में विश्व प्रसिद्ध योग गुरु सम्माननीय रामदेव जी के पतंजलि योगपीठ के माध्यम से संचालित योग चिकित्सा इसका प्रमाण है।
               योग से रोग कैसे दूर होता है? योग का अनुभव है कि प्राणायाम के रूप में खास ढंग से श्वास के रूप में प्राणवायु (ऊर्जा) लेने से शरीर का पूरा सिस्टम, रसायन, हार्मोन्स, स्नायु तंत्र प्रभावित/ संतुलित होता है। जिससे शरीर स्वस्थ होता है, तथा योग आसन के रूप में शरीर में स्थित ऊर्जा केंद्र सक्रिय होते हैं, जिसके प्रभाव से शरीर में रुके /अटके हुए ऊर्जा का सुचारु रुप से संचालन होने लगता है। जिससे शरीर स्वस्थ होता है। चाइनीज एक्यूपंचर चिकित्सा तथा जापानी रेकी चिकित्सा का भी लगभग इसी तरह का जैविक ऊर्जा सिद्धांत है।
जो आधुनिक विज्ञान के लिए प्रेरणादायक है।
 आधुनिक क्वान्टम फिजिक्स, क्लोनिंग साइंस, नैनो तकनीक के अंतर्गत किए जा रहे शोध कार्य प्राचीन ऋषि रुपी विद्वानों द्वारा खोजे गए,अनुभव किए गए सूक्ष्म जगत/ सूक्ष्मशरीर/ ऊर्जा-ध्वनि सम्बन्धी ज्ञान की ओर ही गतिशील है।
              और रूसी वैज्ञानिक दंपत्ति किरिलियान द्वारा खोजे गए किरिलियान फोटोग्राफी या इसी तरह के अन्य यंत्रों के माध्यम से मानव, पौधों,पदार्थ के चारों तरफ ऊर्जा तरंग को आरा मंडल (ओजवलय) के रूप में समझा/ अनुभव किया जा चुका है। जो प्राचीन ऋषि मुनियों द्वारा खोजा गया,अनुभव किया गया सूक्ष्म शरीर है।
            इन प्राचीन काल से उपलब्ध ज्ञान को शोध करके सिर्फ वैज्ञानिक ढंग से प्रस्तुत किए जाने की आवश्यकता है। प्राचीन ऋषि मुनियों के अनुभव को अभिव्यक्त करने का तरीका आधुनिक विज्ञान की तरह नहीं होने अर्थात प्रतीकात्मक रुप से कथा के रुप में वर्णित होने के कारण हमें उसे ठीक से समझने में कठिनाई हो रही हैं, तथा अवैज्ञानिक, कपोल कल्पना प्रतीत हो रहा है। उसे सिर्फ आधुनिक विज्ञान के तरीके से शोध कर समझने की आवश्यकता है।जो आधुनिक विज्ञान के विकास में भी बहुत सहयोगी सिद्ध हो सकता है।
              आधुनिक विज्ञान भी विकसित हो कर एक दिन वह वही पहुंचेगा, उसे ही अनुभव करेगा जिसे प्राचीन ऋषि मुनि पहले अनुभव कर चुके हैं। क्योंकि किसी सत्य या तथ्य को अनुभव करने वाले अनेक हो सकते हैं, जानने अनुभव करने का तरीका अलग हो सकता है, पर सत्य सदा अद्वैत होता है।
             वह ज्ञान प्राचीन भारतीय ग्रन्थों - पतंजलि योग, वेद, पुराण, उपनिषदों, विज्ञान भैरव तन्त्र, विभिन्न योग-ध्यान सम्बन्धी साहित्यों आदि में प्राचीन समय के देश काल वातावरण के अनुरूप आसानी से स्मरण रख सकने योग्य भाषा-शैली अर्थात कथा-कहानी के माध्यम से प्रतीक, कोड, सूत्र रूप में वर्णित है। तथा इसके साथ ही ऐसा कहा जाता है कि हिमालय में साधनारत योगियो के पास अज्ञात को जानने की मन-मस्तिष्क क्षमता उपलब्ध है। लेकिन उन्हें विज्ञान के क्षेत्र में विशेष रुचि नहीं होने के कारण उनके प्रतिभा, क्षमता का वैज्ञानिक रूप सार्वजनिक रूप में प्रकट नही हो पाया है.
              इस ज्ञान का उपयोग अगर भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी में किया जा सका तो यह हमारे देश के साथ-साथ विश्व की शिक्षा स्तर तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को और अधिक उन्नत बनाने वाला सिद्ध होगा।
  क्योकि-
              मानव/विद्यार्थियों में छिपी 5% से अधिक मन-मस्तिष्क क्षमता में से कुछ के जाने अनजाने उपयोग से ही कुछ देश विकसित राष्ट्र की श्रेणी में हैं
              दुनिया में अभी तक विज्ञान या किसी भी क्षेत्र में जितने भी महत्वपूर्ण खोज,उपलब्धि प्राप्त हुए हैं। वह सब जाने-अनजाने इसी ज्ञान, क्षमता के बदौलत हुए है।
             क्योकि मानव में मुख्यतः दो ही प्रकार की मस्तिष्क क्षमता होती है-
 प्रथम -
विचार, तर्क, बुद्धि, स्मृत्ति है जो कि वर्तमान में हमारे देश की शिक्षा पद्धति का आधार है। जिसे भले ही सबसे उच्च कोटि का मस्तिष्क क्षमता माना जाता है। लेकिन ध्यान योग के गहरे प्रयोग करने वालो का अनुभव है कि यह चेतन मन=बाएं मस्तिष्क पर आधारित क्षमता सामान्य बौद्धिक क्षमता है।
दूसरा -
            दायें मस्तिष्क=अवचेतन मन पर आधारित कल्पनाशीलता (मन की आंख से देख रखने की क्षमता) सृजनात्मकता, अंतर्बोध, थाट-रीडिंग, टेलीपैथी, साइकिक विजन,पांच ज्ञानेन्द्रियों में से किसी एक की बहुत विकसित अर्थात अतिन्द्रिय क्षमता। जो कि पहले से कई गुना अधिक उन्नत प्रतिभा,क्षमता है। जो प्राचीन भारतीय शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था। जिसके उपयोग से ही हमारा देश विश्वगुरु की हैसियत रखता था।
             और अंग्रेज तथा अन्य आक्रमणकारी इस बात को बखूबी समझते थे।जिसके कारण ही उनके द्वारा अधिकांश कीमती भारतीय साहित्य जला दिए गए, लूट लिए गए, और भारतीय सभ्यता-संस्कृति ज्ञान को पूरी तरह नष्ट करने तथा भारतीयो/ भारतीय विद्यार्थियो को मानसिक रूप से भी गुलाम बनाने के लिए-
              अंग्रेजो द्वारा हमारे देश में लार्ड मैकाले के शिक्षा पद्धति को लागु किया गया, जो अभी तक प्रचलित है।जिसके कारण ही भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी विश्व वरीयता सूची में काफी पीछे है।
              उपर्युक्त रूप में दुनिया का सर्वाधिक् कीमती ज्ञान चूँकि आज भी हमारे भारत देश में हजारों साल से विद्यमान है।और हमारा देश सर्वाधिक आध्यात्मिक वातावरण वाला देश होने के कारण इसके उपयोग के लिए सर्वाधिक अनुकूल परिस्थिति वाला भी देश है।
             इसलिए प्राचीन उन्नत ज्ञान के व्यवस्थित ,सतत, पर्याप्त उपयोग से-

1. भारतीय वैज्ञानिकों का विकसित देशों के समकक्ष नोबल प्राइज विनर, विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक बन सकना संभव है।
2. भारत के विज्ञान टेक्नॉलोज़ी उन्नत हो सकना संभव है। जिससे हमारे देश का विकसित,विश्वगुरु राष्ट्र बन सकना सम्भव है।
3. भारतीय शिक्षा विश्व रैंकिंग में टॉपर बन सकना सम्भव है।
4. विश्व विज्ञान के अनेक अनसुलझे रहस्यों को सुलझाया जा सकना सम्भव है।
5. भारतीय व्यापार विश्वस्तरीय/विश्वव्यापी हो सकता है।
             इसके लिए-

1. देशवासियों को पतंजलि योग या प्राचीन भारतीय ऋषियो द्वारा खोजे गए अन्य किसी भी ध्यान,योग विधि का मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में अधिकाधिक उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नॉलोजी में करने की आवश्यकता है।
               क्योकि योग सिर्फ शारीरिक रोग दूर करने का ही उपाय नही बल्कि मानव मन-मस्तिष्क क्षमता बढ़ाने का विश्व का सर्वोत्तम प्रमाणिक ज्ञान तथा सबसे विकसित मनोविज्ञान है।

2. वर्तमान आधुनिक विज्ञान के रूप में विदेशी सोच, मान्यता के साथ साथ भारतीय आध्यात्मिक ज्ञान में रिसर्च को बढ़ावा देकर प्राप्त सही, उन्नत, सकारात्मक ज्ञान को अपनाकर उसका शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलाजी  के क्षेत्र में उपयोग करने की आवश्यकता है।

3. चूँकि प्रत्येक मानव प्राकृतिक रूप से अपार क्षमतावान है इसलिए भारतीय विद्यार्थियों के दायां मस्तिष्क=अवचेतन मन को प्रभावी बनाने के लिए इसी पर आधारित शिक्षा की व्यवस्था करने तथा विद्यार्थियो को उनमे छिपी अपार मन-मस्तिष्क क्षमता को जगाने के लिए मोटिवेट करने की आवश्यकता है।
4. उपर्युक्त सम्बन्धी शोध तथा विभिन्न माध्यमों से विस्तृत ज्ञान, समझ, जानकारी एकत्र कर उसका शिक्षा के क्षेत्र में सदुपयोग करना शिक्षा को उन्नत बनाने में सहयोगी होगा।

5. आधुनिक गुरु रूपी शिक्षक खासकर पैरा शिक्षकों (शिक्षा कर्मियों) को भी पर्याप्त सम्मान तथा सुविधा देने की आवश्यकता है।जिससे शिक्षा को उन्नत बनाने/ शिक्षा में गुणवत्ता सुधार के लिए पूरे मनोयोग से ज्ञानार्जन कर अध्यापन कार्य में अपना बेहतर योगदान दे सकें।
              चूँकि हमारे देश में विश्वगुरु की हैसियत दिलाने वाला ज्ञान आज भी उपलब्ध है। इसलिए अगर ऐसा हो सका तो हमारा देश एक बार फिर विश्व ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र सिद्ध हो सकेगा।
                                              रामेश्वर वर्मा
                                              (शिक्षक पं.)
                                               छत्तीसगढ़

                                               

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