*लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति*
में
सुधार
🌷 प्रसिद्ध योग गुरु सम्माननीय स्वामी रामदेव जी एवं अन्य भारतीय विद्वानों (शिक्षाविदों), भारतीय शिक्षा में सुधार हेतु गठित समिति के शिक्षा-विदों के साथ समय-समय पर मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति में सुधार के रूप में नई भारतीय शिक्षा पद्धति लागु करने/करवाने का प्रयास सराहनीय एवं अनुकरणीय है।
परन्तु-
भारतीय शिक्षा पद्धति के रूप में आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा के साथ-साथ प्राचीन भारतीय ग्रन्थों (विषयों) की पढ़ाई या अन्य प्रशासनिक,आर्थिक,नीतिगत सुधार ही पर्याप्त नही है।क्योकि यह शिक्षा सुधार तथा प्राचीन भारतीय गूढ़ ज्ञान का सिर्फ बाहरी रूप है।
इसके साथ ही साथ भारतीय शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, विद्यार्थियों में छिपी आंतरिक प्रतिभा को बाहर लाने तथा विश्वस्तरीय शिक्षा के लिए- विद्यार्थियों,शिक्षको में प्राकृतिक रूप से विद्यमान अपार बौद्धिक/ मस्तिष्क क्षमता, प्रतिभा के विकास हेतु- मानव मस्तिष्क क्षमता विकसित करने की प्राचीन भारतीय तकनीक के रूप में योग-ध्यान-मनोविज्ञान का उपयोग,शिक्षा,प्रशिक्षण सर्वाधिक आवश्यक है।
क्योंकि यही वह गूढ़ ज्ञान है, जिसके बदौलत हमारा देश भारत कभी विश्वगुरु हुआ करता था। और आगे भी हो सकता है। जोकि जाने-अनजाने विकसित देशों के वर्तमान शिक्षा पद्धति का गूढ़, मूल आधार है।
विश्व प्रसिद्ध भारतीय शिक्षाविदों, विद्वानों का भी मानना है कि शिक्षा का वास्तविक अर्थ सिर्फ बाहर की जानकारी को विद्यार्थियों के मस्तिष्क में भरना नहीं बल्कि प्राकृतिक रूप से विद्यार्थियों के भीतर छिपी नैसर्गिक समझ/ प्रतिभा को बाहर लाने का तथा क्यों? कैसे? को जानने की क्षमता/जिज्ञासा को विकसित होने का अवसर देना है।
* धन्यवाद *
रामेश्वर वर्मा
(शिक्षक पं)
पथरिया, मुंगेली(छत्तीसगढ़)
में
सुधार
🌷 प्रसिद्ध योग गुरु सम्माननीय स्वामी रामदेव जी एवं अन्य भारतीय विद्वानों (शिक्षाविदों), भारतीय शिक्षा में सुधार हेतु गठित समिति के शिक्षा-विदों के साथ समय-समय पर मानव संसाधन मंत्रालय भारत सरकार द्वारा लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति में सुधार के रूप में नई भारतीय शिक्षा पद्धति लागु करने/करवाने का प्रयास सराहनीय एवं अनुकरणीय है।
परन्तु-
भारतीय शिक्षा पद्धति के रूप में आधुनिक पाश्चात्य शिक्षा के साथ-साथ प्राचीन भारतीय ग्रन्थों (विषयों) की पढ़ाई या अन्य प्रशासनिक,आर्थिक,नीतिगत सुधार ही पर्याप्त नही है।क्योकि यह शिक्षा सुधार तथा प्राचीन भारतीय गूढ़ ज्ञान का सिर्फ बाहरी रूप है।
इसके साथ ही साथ भारतीय शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने, विद्यार्थियों में छिपी आंतरिक प्रतिभा को बाहर लाने तथा विश्वस्तरीय शिक्षा के लिए- विद्यार्थियों,शिक्षको में प्राकृतिक रूप से विद्यमान अपार बौद्धिक/ मस्तिष्क क्षमता, प्रतिभा के विकास हेतु- मानव मस्तिष्क क्षमता विकसित करने की प्राचीन भारतीय तकनीक के रूप में योग-ध्यान-मनोविज्ञान का उपयोग,शिक्षा,प्रशिक्षण सर्वाधिक आवश्यक है।
क्योंकि यही वह गूढ़ ज्ञान है, जिसके बदौलत हमारा देश भारत कभी विश्वगुरु हुआ करता था। और आगे भी हो सकता है। जोकि जाने-अनजाने विकसित देशों के वर्तमान शिक्षा पद्धति का गूढ़, मूल आधार है।
विश्व प्रसिद्ध भारतीय शिक्षाविदों, विद्वानों का भी मानना है कि शिक्षा का वास्तविक अर्थ सिर्फ बाहर की जानकारी को विद्यार्थियों के मस्तिष्क में भरना नहीं बल्कि प्राकृतिक रूप से विद्यार्थियों के भीतर छिपी नैसर्गिक समझ/ प्रतिभा को बाहर लाने का तथा क्यों? कैसे? को जानने की क्षमता/जिज्ञासा को विकसित होने का अवसर देना है।
* धन्यवाद *
रामेश्वर वर्मा
(शिक्षक पं)
पथरिया, मुंगेली(छत्तीसगढ़)
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