छत्तीसगढ़ / किसी भी देश की शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने के लिए- "उन्नत मनोवैज्ञानिक सूत्र"
वर्तमान शिक्षा पद्धति में सुधार/ पुनर्विचार की जरूरत सभी महसूस करते है। जिसके लिए सतत नित नए उपाय भी किए जा रहे हैं, लेकिन कुछ गहरे मनोवैज्ञानिक कारणों से वह सब अपेक्षित रूप से सफल नहीं हो पा रहा है। इसलिए हमें इसके गहरे मनोवैज्ञानिक पहलुओं को भी देखने, समझने, अपनाने की आवश्यकता है।
जिस प्रकार खेल के क्षेत्र में किसी नए खिलाड़ी को अच्छा खिलाड़ी बनाने के लिए पहले मानसिक के साथ खासकर शारीरिक रूप से मजबूत/ शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया जाता है, जिससे कि वह खेल में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
ठीक इसी तरह-
विद्यार्थियों को भी पढ़ाई के मैदान में सबसे पहले बौद्धिक रूप से मजबूत/ शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
वर्तमान शिक्षा पद्धति में सुधार/ पुनर्विचार की जरूरत सभी महसूस करते है। जिसके लिए सतत नित नए उपाय भी किए जा रहे हैं, लेकिन कुछ गहरे मनोवैज्ञानिक कारणों से वह सब अपेक्षित रूप से सफल नहीं हो पा रहा है। इसलिए हमें इसके गहरे मनोवैज्ञानिक पहलुओं को भी देखने, समझने, अपनाने की आवश्यकता है।
जिस प्रकार खेल के क्षेत्र में किसी नए खिलाड़ी को अच्छा खिलाड़ी बनाने के लिए पहले मानसिक के साथ खासकर शारीरिक रूप से मजबूत/ शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया जाता है, जिससे कि वह खेल में बेहतर प्रदर्शन कर सकें।
ठीक इसी तरह-
विद्यार्थियों को भी पढ़ाई के मैदान में सबसे पहले बौद्धिक रूप से मजबूत/ शक्तिशाली बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
जिसके लिए ध्यान और योग के साथ-साथ अब राष्ट्रीय/ अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अनेक "आधुनिक मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक" उपलब्ध है।
लेकिन इन्हीं कारणों से वर्तमान में हमारे देश-राज्य की शिक्षा में - इसका विशेष उपयोग नहीं हो पा रहा है।
लेकिन इन्हीं कारणों से वर्तमान में हमारे देश-राज्य की शिक्षा में - इसका विशेष उपयोग नहीं हो पा रहा है।
हम स्कुल में विद्यार्थियो को उनके प्रायः पढ़ाई के विपरीत देशकाल वातावरण के प्रभाव से जन्मजात उपलब्द्ध मस्तिष्क क्षमता में आवश्यक सुधार किये बिना सीधे-सीधे पढ़ाई-लिखाई के मैदान में उतार देते हैं जिससे विद्यार्थियों को पढ़ाई-
"पढ़ाई नहीं जंग जैसा प्रतीत होता है।"
"पढ़ाई नहीं जंग जैसा प्रतीत होता है।"
पढ़ाई में मन नहीं लगने, रूचि नहीं होने के बावजूद हम उन्हें जबरदस्ती शिक्षा दे रहे हैं। जिसके कारण ही शिक्षा में अपेक्षित गुणवत्ता नही आ पा रहा है।
क्योंकि-
"शिक्षा देने की नहीं ग्रहण करने की चीज़ है।"
इसलिए
विद्यार्थियों की मनोदशा को सुधारकर अर्थात पढ़ाई में मन लगाने योग्य, शिक्षा ग्रहण करने योग्य बनाने के उपाय करने, शिक्षा ग्रहण करने अनुकूल मनोदशा/ वातावरण (माहौल )निर्मित करने के पश्चात शिक्षा देना अधिक सार्थक सिद्ध होता है।
चूँकि विद्यार्थी भी एक सामाजिक प्राणी है, जिस पर समाज का प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष काफी प्रभाव पड़ता है। इसलिए इस तरह का सुधार कार्य सामूहिक और खासकर उच्च स्तरीय प्रयास से ही संभव है।
इसलिए शिक्षा गुणवत्ता सम्बन्धी हर समस्या/कमजोरियों के लिए शिक्षकों को ही दोषी ठहराना भी न्याय संगत नहीं है।
आज विज्ञान का जमाना है। इसे वैज्ञानिक नजरिये से समझें तो- मानव, विद्यार्थियों के मस्तिष्क में चार तरह की तरंग अवस्था- बीटा, अल्फ़ा, थीटा, गामा होती है। जिनकी आवृत्ति क्रमशः कम होती जाती है। जो मस्तिष्क तथा सीखने की बढ़ती क्षमता का लक्षण है।
"मस्तिष्क की तरंग की आवृत्ति कम होने के अनुपात में मस्तिष्क तथा सीखने की क्षमता बढ़ती है।"
स्कुल, कालेजों खासकर ग्रामीण स्कुलों में अधिकांश विद्यार्थियो की मस्तिष्क क्षमता पढ़ाई-लिखाई के प्रतिकूल देश, काल, वातावरण में रहने के कारण उसके प्रभाव से प्रायः बीटा तरंग की अवस्था में होता है।जो पढ़ाई के लिए बिलकुल भी अनुकूल स्थिति नही है। इस मानसिक दशा में पढ़ाई-लिखाई अत्यंत कठिन महसूस होता है। मन एकाग्र नहीं होता तथा पढ़ने में मन नहीं लगता। जिसमें सुधार किए बिना शिक्षा देने के प्रयास करने के कारण ही शिक्षा में गुणवत्ता नही आ पा रहा है।शिक्षा में गुणवत्ता परिलक्षित नही हो रहा है।
जिसमे सुधार करते हुए सही गुणवत्तापूर्ण पढ़ाई के लिए विद्यार्थियो को अल्फ़ा तरंग की अवस्था अर्थात शांत, एकाग्र अवस्था में लाकर शिक्षा देना आवश्यक है।
जिसके लिए-
"चूंकि ज्ञान प्राप्त करने के लिए पढ़ाई में रूचि/एकाग्रता तथा ध्यान देने ज्ञान देने वाले गुरुओं के प्रति श्रद्धा,सम्मान तथा शिष्यत्व का भाव आवश्यक है।"
इसलिए-
1. मनोविज्ञान कहता है की विद्यार्थियों का मन मुख्यतः दो तरफ से ही एकाग्र हो पाता है।
प्रथम- भय और दूसरा- प्रलोभन।
शिक्षा में भय का उपयोग शिक्षकों द्वारा बच्चों को डांटने के रूप में काफी समय से किया जाता रहा है, पर सबका खासकर मनोवैज्ञानिकों का अनुभव है यह बिल्कुल भी कारगर और मानवीय उपाय नहीं है, क्योंकि इस उपाय से बच्चों के कोमल मन पर काफी दुष्प्रभाव पड़ता है जिससे फायदा कम और नुकसान ज्यादा होता है। इसीलिए वर्तमान में शिक्षा के अधिकार कानून के तहत इस को प्रतिबंधित भी किया जा चुका है।
इसलिए-
हमारे लिए दूसरा ऑप्शन खुला हुआ है और यह मनोवैज्ञानिक ढंग से भी काफी कारगर उपाय है। इसके लिए-
विद्यार्थियों को पढ़ाई लिखाई के प्रति रुचि पैदा करने/ पढ़ाई-लिखाई में मन लगाने के लिए "पढ़ाई से वर्तमान तथा भविष्य में मिलने वाले सम्मान तथा विभिन्न रूपों में होने वाले लाभ से सतत परिचित कराते रहना चाहिए, शिक्षकों तथा पालकों के द्वारा पढ़ाई-लिखाई से होने वाले फायदे का सतत एहसास करवाते रहना चाहिए। जिस से धीरे-धीरे विद्यार्थियों का मन मनोवैज्ञानिक नियमानुसार परिवर्तित होने लगेगा तथा पढ़ाई के प्रति रुचि एकाग्रता बढ़ने लगी लगेगी जो कि बेहतर शिक्षा के लिए आवश्यक है।
2. अच्छी शिक्षा प्राप्त करने के लिए विद्यार्थियों का शिक्षकों के प्रति श्रद्धा बढ़ाने, शिष्यत्व का भाव विकसित करने के लिए के लिए सभी पालको, कर्मचारियों, अधिकारियों, नेताओं को शिक्षकों के प्रति सच्चे सम्मान का भाव प्रदर्शित कर, विकसित कर विद्यार्थियों के लिए आदर्श प्रस्तुत करना चाहिए। सब के सहयोग से विद्यार्थियों में उत्पन्न यह सदगुण भविष्य में उसे एक अच्छा नागरिक बनाने में भी सहयोगी होगा।
3. शिक्षा में बेहतर गुणवत्ता के लिए पढ़ाई के अनुकूल वातावरण निर्मित करना भी अनिवार्य है, जिसमे पालकों का सहयोग भी अत्यावश्यक है। जिसके लिए शिक्षको तथा पालकों को समय-समय पर मोटिवेशनल प्रशिक्षण के माध्यम से व्यापक रूप से जागरूक, प्रेरित, करने की आवश्यकता है जिससे वे स्कुल तथा समाज में पढ़ाई के अनुकूल वातावरण निर्मित करने में अपना बेहतर योगदान देकर शिक्षा को उन्नत तथा समाज और देश को बेहतर बनाने में सहभागी बन सकें।
4. शिक्षकों, विद्यार्थियों, स्कूलों को विकसित देशों की तरह पर्याप्त महत्त्व देते हुए आवश्यक सुविधा, तथा आधुनिक हाईटेक संसाधन उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है, जिससे विद्यार्थी बेहतर से बेहतर शिक्षा प्राप्त कर सकें। क्योंकि यह आधारभूत आवश्यकता है, इसलिए इसके बिना शिक्षा में बेहतर गुणवत्ता की उम्मीद करना बेमानी है।
5. किसी विद्वान ने कहा है कि- 'हर बच्चा अद्वितीय होता है, तथा उनमें अपार प्रतिभा क्षमता छिपी हुई अवस्था में विद्यमान होती है। जिसका वे सामान्यतः 5 से 10% ही उपयोग कर पाते हैं।
इसके पूर्ण सदुपयोग के लिए विद्यार्थियों को बौद्धिक रूप से सबल बनाने के लिए वर्तमान में विश्व स्तर या राष्ट्रीय स्तर पर प्रचलित विभिन्न मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीकों के प्रशिक्षण के साथ शारीरिक, मानसिक तथा चारित्रिक नैतिक रूप से स्वस्थ,सबल बनाने के लिए ध्यान और योग का सहारा लिया जा सकता है। जो कि शिक्षा गुणवत्ता सुधारने में "सोने पे सुहागा" सिद्ध होगा। शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने में सहयोगी होगा।
6. पालकों में सच्चे पालकत्व के गुण विकसित करने तथा शिक्षकों को उत्साह तथा लगन पूर्वक अध्ययन/अध्यापन करने और विद्यार्थियों में छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता को प्रगट करने के लिए उच्चाधिकारियों या मोटिवेशनल गुरुओ द्वारा शिक्षकों, पालको तथा विद्यार्थियों को मार्केटिंग कंपनियों के मोटिवेशनल गुरुओं की तरह प्रेरित, प्रशिक्षित करने शिक्षा देने की आवश्यकता है। जिससे सबके भीतर छिपी अपार बौद्धिक क्षमता प्रगट हो सके तथा जिसके उपयोग से शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाने, शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने में अपना बेहतर से बेहतर योगदान दे सकें।
7. "किसी भी कला/ चीज में प्रवीणता, सफलता प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहन का चमत्कारी प्रभाव पड़ता है।"
इसलिए-
विकसित देशों की तरह पढ़ाई में उन्नत वैज्ञानिक तकनीको, इलेक्ट्रॉनिक माध्यम के उपयोग और प्राचीन भारतीय गुरुकुलों की तरह ध्यान योग तथा इसके आधुनिकतम रूप मिड ब्रेन एक्टिवेशन का "मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक" के रूप में उपयोग किए जानेे के साथ-साथ ग्रामीण विद्यार्थियोंं को भी अच्छी राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्यार्थियों की तरह पढ़ाई करने के लिए तथा शिक्षकों को बेस्ट शिक्षक बनने के लिए सतत प्रेरित/ प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
धन्यवाद
- रामेश्वर वर्मा की कलम से.....
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