✍विस्तारित संशोधित लेख✍
*Five in One*(लेख)
🌷🌟☀🌅☀🌟🌷
विद्यार्थियों में छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता का भारतीय शिक्षा में उपयोग
******* रामेश्वर वर्मा
आधुनिक विज्ञान कहता है कि-
[ 1.] मानव,विद्यार्थियों में प्राकृतिक रुप से अपार मन-मस्तिष्क क्षमता विद्यमान है।जिसमे से सिर्फ 5 से 10%क्षमता,प्रतिभा का ही उपयोग वर्तमान में हमारे देश की शिक्षा के क्षेत्र में हो पा रहा है।और शेष लगभग 95% क्षमता छिपी हुई स्थिति में अपरिचित,अज्ञात है।
[ 2.] अस्तित्व (संसार) का लगभग 4% के आसपास ही ज्ञात पदार्थ है,जिससे सभी दृश्य चीजें- ग्रह,चाँद-सितारे तथा सभी वस्तुएँ निर्मित है। विज्ञान के लिए -शेष 96% से अधिक डार्क मैटर,डार्क एनर्जी के रूप में अज्ञात है।रहस्य है।
[ 3.] मेडिकल साइंस के अनुसार -मानव कोशिका में उपस्थित DNA में से सिर्फ लगभग 3% ही हमारे शरीर के सभी क्रिया-कलापों को संचालित करते है।शेष 97% DNA जंक या बेकार DNA है।जिसका सही कार्य अभी तक अज्ञात है।
अर्थात अभी भी आधुनिक विज्ञान,मनोविज्ञान के लिए संसार में बहुत क (अधिकांश) रहस्य जानना शेष है।तथा अभी भी विकास की अपार सम्भावनाएं शेष है।
शिक्षा,विज्ञान और टेक्नोलॉजी,विद्यार्थियों के साथ जीवन,मानव,अस्तित्व(ब्रह्मांड) का समस्त रहस्य छिपा हुआ इसी लगभग 5%से अधिक अर्थात लगभग 95% हिस्से में है।
यह आधुनिक विज्ञान के लिए भले ही अभी तक अज्ञात,रहस्य है,लेकिन-
इसका रहस्य हमारे प्राचीन भारतीय ऋषियों के लिए हजारों वर्षों से ज्ञात है।जो हमारे देश के प्राचीन ग्रन्थों- पतंजलि योग,गुरु ग्रन्थों, वेद, पुराण,उपनिषदों,दर्शन,विज्ञान भैरव तन्त्र,विभिन्न योग-ध्यान सम्बन्धी साहित्यों,आदि में प्रतीक,कोड रूप में विद्यमान है। इसके साथ ही हिमालय में साधनारत योगियो,सिद्धों के पास उनके अनुभव के रूप में उपलब्ध है।उस ज्ञान का खासकर योग के साथ मनोविज्ञान का- शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग विद्यार्थियों में प्राकृतिक रूप से छिपी मन-मस्तिष्क क्षमता को प्रकट,विकसित करने के साथ हमारे भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को विकसित देशों की तरह उन्नत/उनसे भी बेहतर बनाने वाला सिद्ध होगा।
असल में प्राचीन भारतीय शिक्षा में विज्ञान और आध्यात्म का समन्वित अध्ययन/अध्यापन हुआ करता था।आध्यात्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे।जिससे उपलब्ध ज्ञान के कारण ही हमारा देश विश्वगुरु हुआ करता था।
लेकिन भारत देश के गुलाम रहने की अवधि में विदेशियों द्वारा इसे नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया गया।तथा लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति में इसे फुट डालो राज करो की नीति के तहत अलग-अलग कर दिया गया।
और अब विज्ञान तथा आध्यात्म के अलग-अलग होने के कारण आध्यात्म के जानकर अपने आध्यात्मिक ज्ञान को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्त्तुत नही कर पा रहे हैं।जिसके कारण वैज्ञानिक भी इसे अवैज्ञानिक समझकर इस ओर ध्यान नही दे पा रहे हैं। और यही हमारे देश की शिक्षा और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के पिछड़ने का गहरा कारण है।
क्योंकि विश्वप्रसिद्ध महान वैज्ञानिक मिसाइल मैन श्री डा.ए.पी. जे.अब्दुल कलाम तथा अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी कहा है कि-
विज्ञान और आध्यात्म के संयोग से ज्ञान की नई ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है।
इसलिए भारतीय विद्यार्थियों द्वारा विज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान का समन्वित उपयोग,अध्ययन विश्व ज्ञान के साथ भारतीय शिक्षा की नई शिखर को छूने वाला सिद्ध होगा।
प्राचीन उन्नत ज्ञान विज्ञान
*********************
✍आज जो आधुनिक विज्ञान विश्व में प्रचलित है। इसके पहले भी प्राचीन सभ्यताओ द्वारा विज्ञान का विकास हो चुका है।आधुनिक विज्ञान विभिन्न यंत्रों के विकास की दिशा में सतत प्रयत्नशील है।लेकिन प्राचीन विज्ञान अन्य क्षेत्रों में विकसित हुआ था।जिसका प्रमाण आज विश्व के महान आश्चर्यों तथा अनसुलझे रहस्यों के रूप देखने,सुनने को मिलता है जो आज भी आधुनिक विज्ञान के लिए चुनौति है। अस्तित्व के रहस्यों को जानने का आधुनिक विज्ञान का यंत्रों, के सहारे प्रयोगशाला में बहुत अधिक पैसे खर्च करके खोज,शोध करना अत्यधिक मंहगा जटिल,लम्बा और पाश्चात्य देशों का रास्ता/विधि है।
जबकि प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियो ने उक्त रहस्यों को समझने, जानने (खोज करने) के सरल रास्ते/उपाय/विधि-
"योग,ध्यान,उच्चतर मनोविज्ञान"के उपयोग से वर्तमान शिक्षा तथा विज्ञान में उपयोग किए जाने वाले विचार,तर्क बुद्धि,स्मृत्ति अर्थात 5% मन मस्तिष्क क्षमता से अधिक क्षमता को सक्रिय करके जानने,ज्ञान प्राप्त करने के रास्ते ढूंढ निकाले थे।जिसे योग में धारणा,ध्यान,समाधि का सम्मिलित रूप संयम कहा जाता है।
उस 5%से अधिक मानव मन-मस्तिष्क क्षमता को सक्रिय कर सकने के प्राचीन भारतीय ज्ञान,तकनीक का उपयोग अगर भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी में किया जा सका तो यह हमारे देश की शिक्षा स्तर तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को विश्वस्तरीय बनाने अर्थात विकसित देशों के समकक्ष या उनसे बेहतर बनाने वाला सिद्ध होगा।
क्योकि-
मानव,विद्यार्थियों में छिपी 5%से अधिक मन-मस्तिष्क क्षमता में से कुछ के जाने-अनजाने उपयोग से ही कुछ देशों की विज्ञान टेक्नोलॉजी उन्नत हो सका है।जिससे ही वे विकसित राष्ट्र की श्रेणी में हैं।
क्योंकि विकसित देशों में शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को अधिक बजट तथा सुविधा,महत्व देने के साथ-साथ मानव मन मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी तकनीको पर शोध करके खुले मन से उपयोग करते हैं।जिसको हमारे देश में अन्धविश्वास तथा मनोविज्ञान में मनोरोग की संज्ञा दी गई है।
विश्व भर में उपलब्ध ज्ञान के हर सम्भव खासकर प्राचीन स्रोतों पर शोध करना और उससे प्राप्त उपयोगी ज्ञान का शिक्षा/विज्ञान में सदुपयोग करना विकसित देशों की खास विशेषता तथा विकसित होने का रहस्य है।
गहरे मनोविज्ञान का शिक्षा में उपयोग
वैज्ञानिक मनोविज्ञान तथा उच्चतर मनोविज्ञान के गहन अध्ययन(शोध)से स्पष्ट हुआ है कि विश्व में अभी तक विज्ञान या किसी भी क्षेत्र में जितने भी महत्वपूर्ण खोज,अविष्कार उपलब्धि प्राप्त हुए हैं वह सब जाने-अनजाने अवचेतन मन/दायें मस्तिष्क क्षमता के बदौलत हुए है। जो अभी प्रत्यक्ष [विधिवत] रूप से भारतीय शिक्षा पद्धति का हिस्सा नही है।इसलिए लार्ड मैकाले की प्रचलित शिक्षा पद्धति के स्थान पर इस प्राचीन भारतीय ऋषि ज्ञान पर आधारित शिक्षा पद्धति के उपयोग से ही भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी आसानी से विकसित देशों के समकक्ष हो सकेगा।
क्योकि मानव में मुख्यतः दो ही प्रकार की मस्तिष्क क्षमता होती है-
प्रथम -
विचार,तर्क,बुद्धि,स्मृत्ति (मस्तिष्क की बीटा तरंग अवस्था)है जो कि वर्तमान में हमारे देश की शिक्षा पद्धति का मुख्य आधार है।जिसे भले ही सबसे उच्च कोटि का मस्तिष्क क्षमता माना जाता है।लेकिन ध्यान योग के गहरे प्रयोग करने वालो का अनुभव है कि यह चेतन मन=बाएं मस्तिष्क पर आधारित क्षमता सामान्य बौद्धिक क्षमता है। और
दूसरा है-
मस्तिष्क की अल्फ़ा,थीटा तरंग की अवस्था= दायें मस्तिष्क=अवचेतन मन पर आधारित क्षमता-अंतर्बोध क्षमता,थाट-रीडिंग,टेलीपैथी, साइकिक विजन=दर्शन क्षमता जो कि पहले से कई गुना अधिक गहरी/ऊंची प्रतिभा सम्पन्न क्षमता है।जो विकसित देशों में भी गहरे शोध से प्रमाणित है।
तथा जो प्राचीन भारतीय शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था।जिसके उपयोग से ही हमारा देश विश्वगुरु की हैसियत रखता था।
☀ *भारत की प्राचीन उन्नत*☀
🌟 *ज्ञान संस्कृति* 🌟
अंग्रेज तथा अन्य विदेशी आक्रमणकारी इस बात को बखूबी समझते थे,कि भारत की असली शक्ति ज्ञान,संस्कृति है। जिसको नष्ट किए बिना भारत को पूर्णतः गुलाम बनाना अत्यंत कठिन है। जिसके कारण ही उनके द्वारा हमारे देश के सोना,चांदी,हीरे,मोती को लूटने के साथ-साथ अधिकांश कीमती भारतीय साहित्य जला दिए गए,लूट लिए गए।और भारतीय सभ्यता,संस्कृति,ज्ञान को पूरी तरह नष्ट करने तथा हमारे देशवासियों (भारतीय विद्यार्थियो) को मानसिक रूप से भी गुलाम बनाने के लिए-
अंग्रेजो द्वारा हमारे देश में लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को लागू किया गया।जो स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भी अभी तक प्रचलित है। जिसके कारण ही भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी विश्व वरीयता सूची में काफी पीछे है।
विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में कोड रूप [योग ध्यान के रूप] में दुनिया का सर्वाधिक कीमती उन्नत ज्ञान आज भी हमारे भारत देश में हजारों साल से विद्यमान है।और हमारा देश सर्वाधिक आध्यात्मिक वातावरण वाला देश होने के कारण इसके उपयोग के लिए सर्वाधिक अनुकूल परिस्थिति वाला देश भी है ।इसलिए देशवाशियों को प्राचीन विरासत के महत्व को समझने की जरूरत है.
इसलिए हमारे देश की शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास से सम्बन्धित उपलब्ध दुर्लभ ज्ञान के व्यवस्थित ,सतत,उपयोग की अति आवश्यकता है।
जिससे-
1.भारतीय वैज्ञानिक विकसित देशों के समकक्ष नोबल प्राइज विनर,विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक बन सकते है।
2.भारत का विज्ञान टेक्नॉलोज़ी उन्नत हो सकता है जिससे हमारा देश विकसित,विश्वगुरु राष्ट्र बन सकता है।
3.भारतीय शिक्षा विश्व रैंकिंग में टॉपर बन सकता है।
4.विश्व विज्ञान के अनेक अनसुलझे रहस्यों को सुलझाया जा सकता है।
5.भारतीय व्यापार,राजनीति,ज्ञान-विज्ञान विश्वस्तरीय हो सकता है।
*इसके अलावा भी अनेक लाभ सम्भव है।*
भारतीय शिक्षा को उन्नत बनाने का सूत्र-
✍ हमारे देश में सर्वाधिक प्राचीन ज्ञान उपलब्ध होने तथा मानव सभ्यता काफी प्राचीन होने के कारण शिक्षा तथा विज्ञान के साथ साथ अनेक क्षेत्रो में विश्व में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए। लेकिन अपने प्राचीन विरासत की गरिमा को भूलने के कारण ऐसा नही है।परन्तु अब समय आ चुका है कि पुराने समय में हमारे देश के विश्वगुरु होने तथा विश्वगुरु ज्ञान को पहचान कर शिक्षा में उपयोग करके पुनः विश्वगुरु होने की गरिमा को प्राप्त किया जाय। जिसके लिए-
[ 1 ] हम सभी देशवासियों को मिलकर पतंजलि योग या प्राचीन भारतीय ऋषियो द्वारा खोजे गए ध्यान,योग की विधियों तथा उनसे आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त आध्यात्मिक ग्रन्थो में उपलब्ध शिक्षा में उपयोगी मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी ज्ञान,तकनीक का अधिक से अधिक उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नॉलोजी में करने की आवश्यकता है।
क्योकि योग सिर्फ शारीरिक रोग दूर करने का ही उपाय नही बल्कि मानव मन-मस्तिष्क क्षमता बढ़ाने का विश्व का सर्वोत्तम प्रमाणिक तकनीक तथा सबसे विकसित मनोविज्ञान है।
[ 2 ] चूँकि प्रत्येक मानव,विद्यार्थीयों में प्राकृतिक रूप से अपार मन-मस्तिष्क क्षमता उपलब्ध है। इसलिए हमारे देश-राज्य के विद्यार्थियों की बीटा मस्तिष्क तरंग अवस्था अर्थात बाएं मस्तिष्क की क्षमता=चेतन मन के साथ-साथ मस्तिष्क की अल्फ़ा तरंग अवस्था = दायां मस्तिष्क अर्थात अवचेतन मन को प्रभावी बनाने के लिए इसी पर आधारित शिक्षा की व्यवस्था उपलब्ध करवाने,इससे सम्बन्धित ज्ञान शिक्षा का प्रशिक्षण देने तथा विद्यार्थियो को इसी के अनुरूप मोटिवेट करने की आवश्यकता है।तथा
इस तरह की जानकारी रखने वाले बुद्धजीवियों, पत्रकारों ,शिक्षाविदों, योगियों, गुरुओं, साधक , सिद्धो,के पास उपलब्ध ज्ञान तथा प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ग्रन्थो में उपलब्ध उपर्युक्त सम्बन्धी विस्तृत ज्ञान,समझ, जानकारी एकत्र /रिसर्च कर उसका शिक्षा के क्षेत्र में शीघ्र सदुपयोग करने की आवश्यकता है।
चूँकि हमारे देश में विश्वगुरु की हैसियत दिलाने वाला ज्ञान आज भी उपलब्ध है। इसलिए अगर ऐसा हो सका तो हमारा देश एक बार फिर विश्व ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र सिद्ध हो सकेगा।
इस महत्वपूर्ण तथा दुर्लभ ज्ञान को-
मीडिया,शिक्षाविदों, विद्यार्थियो,शिक्षको,वैज्ञानिकों,योगी जनों,ध्यानियों,साधु-सन्तों के साथ-साथ शासन प्रशासन के प्रमुख पदों पर बैठे लोगो को अधिक तथा सभी बुद्धजीवियों एवं,जिम्मेदार भारतवासियों के द्वारा समझने/समझाने और सहयोग के रूप में क्रियान्वित करने/करवाने की आवश्यकता है।जिससे हमारा देश शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ सभी क्षेत्रो में उन्नत हो सके।हमारा देश अपनी विश्वगुरु की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सके।
🌟 ☀🌷🌅🌷☀ 🌟☀🌷🌅🌷☀🌟
✍प्रमाणित किया जाता है कि- यह लेख मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है।इस लेख में वर्णित सभी तथ्य निजी अनुभूतियों /समझ के आधार पर लिखे गए हैं। विश्व में कहीं भी,किसी भी भाषा में यह लेख इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अतः यह लेख हमारी मौलिक सम्पत्ति है।
✍रामेश्वर वर्मा
(शिक्षक पं) पथरिया,मुंगेली(छत्तीसगढ़)
*Five in One*(लेख)
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विद्यार्थियों में छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता का भारतीय शिक्षा में उपयोग
******* रामेश्वर वर्मा
आधुनिक विज्ञान कहता है कि-
[ 1.] मानव,विद्यार्थियों में प्राकृतिक रुप से अपार मन-मस्तिष्क क्षमता विद्यमान है।जिसमे से सिर्फ 5 से 10%क्षमता,प्रतिभा का ही उपयोग वर्तमान में हमारे देश की शिक्षा के क्षेत्र में हो पा रहा है।और शेष लगभग 95% क्षमता छिपी हुई स्थिति में अपरिचित,अज्ञात है।
[ 2.] अस्तित्व (संसार) का लगभग 4% के आसपास ही ज्ञात पदार्थ है,जिससे सभी दृश्य चीजें- ग्रह,चाँद-सितारे तथा सभी वस्तुएँ निर्मित है। विज्ञान के लिए -शेष 96% से अधिक डार्क मैटर,डार्क एनर्जी के रूप में अज्ञात है।रहस्य है।
[ 3.] मेडिकल साइंस के अनुसार -मानव कोशिका में उपस्थित DNA में से सिर्फ लगभग 3% ही हमारे शरीर के सभी क्रिया-कलापों को संचालित करते है।शेष 97% DNA जंक या बेकार DNA है।जिसका सही कार्य अभी तक अज्ञात है।
अर्थात अभी भी आधुनिक विज्ञान,मनोविज्ञान के लिए संसार में बहुत क (अधिकांश) रहस्य जानना शेष है।तथा अभी भी विकास की अपार सम्भावनाएं शेष है।
शिक्षा,विज्ञान और टेक्नोलॉजी,विद्यार्थियों के साथ जीवन,मानव,अस्तित्व(ब्रह्मांड) का समस्त रहस्य छिपा हुआ इसी लगभग 5%से अधिक अर्थात लगभग 95% हिस्से में है।
यह आधुनिक विज्ञान के लिए भले ही अभी तक अज्ञात,रहस्य है,लेकिन-
इसका रहस्य हमारे प्राचीन भारतीय ऋषियों के लिए हजारों वर्षों से ज्ञात है।जो हमारे देश के प्राचीन ग्रन्थों- पतंजलि योग,गुरु ग्रन्थों, वेद, पुराण,उपनिषदों,दर्शन,विज्ञान भैरव तन्त्र,विभिन्न योग-ध्यान सम्बन्धी साहित्यों,आदि में प्रतीक,कोड रूप में विद्यमान है। इसके साथ ही हिमालय में साधनारत योगियो,सिद्धों के पास उनके अनुभव के रूप में उपलब्ध है।उस ज्ञान का खासकर योग के साथ मनोविज्ञान का- शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग विद्यार्थियों में प्राकृतिक रूप से छिपी मन-मस्तिष्क क्षमता को प्रकट,विकसित करने के साथ हमारे भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को विकसित देशों की तरह उन्नत/उनसे भी बेहतर बनाने वाला सिद्ध होगा।
असल में प्राचीन भारतीय शिक्षा में विज्ञान और आध्यात्म का समन्वित अध्ययन/अध्यापन हुआ करता था।आध्यात्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे।जिससे उपलब्ध ज्ञान के कारण ही हमारा देश विश्वगुरु हुआ करता था।
लेकिन भारत देश के गुलाम रहने की अवधि में विदेशियों द्वारा इसे नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया गया।तथा लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति में इसे फुट डालो राज करो की नीति के तहत अलग-अलग कर दिया गया।
और अब विज्ञान तथा आध्यात्म के अलग-अलग होने के कारण आध्यात्म के जानकर अपने आध्यात्मिक ज्ञान को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्त्तुत नही कर पा रहे हैं।जिसके कारण वैज्ञानिक भी इसे अवैज्ञानिक समझकर इस ओर ध्यान नही दे पा रहे हैं। और यही हमारे देश की शिक्षा और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के पिछड़ने का गहरा कारण है।
क्योंकि विश्वप्रसिद्ध महान वैज्ञानिक मिसाइल मैन श्री डा.ए.पी. जे.अब्दुल कलाम तथा अल्बर्ट आइंस्टीन ने भी कहा है कि-
विज्ञान और आध्यात्म के संयोग से ज्ञान की नई ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है।
इसलिए भारतीय विद्यार्थियों द्वारा विज्ञान और आध्यात्मिक ज्ञान का समन्वित उपयोग,अध्ययन विश्व ज्ञान के साथ भारतीय शिक्षा की नई शिखर को छूने वाला सिद्ध होगा।
प्राचीन उन्नत ज्ञान विज्ञान
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✍आज जो आधुनिक विज्ञान विश्व में प्रचलित है। इसके पहले भी प्राचीन सभ्यताओ द्वारा विज्ञान का विकास हो चुका है।आधुनिक विज्ञान विभिन्न यंत्रों के विकास की दिशा में सतत प्रयत्नशील है।लेकिन प्राचीन विज्ञान अन्य क्षेत्रों में विकसित हुआ था।जिसका प्रमाण आज विश्व के महान आश्चर्यों तथा अनसुलझे रहस्यों के रूप देखने,सुनने को मिलता है जो आज भी आधुनिक विज्ञान के लिए चुनौति है। अस्तित्व के रहस्यों को जानने का आधुनिक विज्ञान का यंत्रों, के सहारे प्रयोगशाला में बहुत अधिक पैसे खर्च करके खोज,शोध करना अत्यधिक मंहगा जटिल,लम्बा और पाश्चात्य देशों का रास्ता/विधि है।
जबकि प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियो ने उक्त रहस्यों को समझने, जानने (खोज करने) के सरल रास्ते/उपाय/विधि-
"योग,ध्यान,उच्चतर मनोविज्ञान"के उपयोग से वर्तमान शिक्षा तथा विज्ञान में उपयोग किए जाने वाले विचार,तर्क बुद्धि,स्मृत्ति अर्थात 5% मन मस्तिष्क क्षमता से अधिक क्षमता को सक्रिय करके जानने,ज्ञान प्राप्त करने के रास्ते ढूंढ निकाले थे।जिसे योग में धारणा,ध्यान,समाधि का सम्मिलित रूप संयम कहा जाता है।
उस 5%से अधिक मानव मन-मस्तिष्क क्षमता को सक्रिय कर सकने के प्राचीन भारतीय ज्ञान,तकनीक का उपयोग अगर भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी में किया जा सका तो यह हमारे देश की शिक्षा स्तर तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को विश्वस्तरीय बनाने अर्थात विकसित देशों के समकक्ष या उनसे बेहतर बनाने वाला सिद्ध होगा।
क्योकि-
मानव,विद्यार्थियों में छिपी 5%से अधिक मन-मस्तिष्क क्षमता में से कुछ के जाने-अनजाने उपयोग से ही कुछ देशों की विज्ञान टेक्नोलॉजी उन्नत हो सका है।जिससे ही वे विकसित राष्ट्र की श्रेणी में हैं।
क्योंकि विकसित देशों में शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को अधिक बजट तथा सुविधा,महत्व देने के साथ-साथ मानव मन मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी तकनीको पर शोध करके खुले मन से उपयोग करते हैं।जिसको हमारे देश में अन्धविश्वास तथा मनोविज्ञान में मनोरोग की संज्ञा दी गई है।
विश्व भर में उपलब्ध ज्ञान के हर सम्भव खासकर प्राचीन स्रोतों पर शोध करना और उससे प्राप्त उपयोगी ज्ञान का शिक्षा/विज्ञान में सदुपयोग करना विकसित देशों की खास विशेषता तथा विकसित होने का रहस्य है।
गहरे मनोविज्ञान का शिक्षा में उपयोग
वैज्ञानिक मनोविज्ञान तथा उच्चतर मनोविज्ञान के गहन अध्ययन(शोध)से स्पष्ट हुआ है कि विश्व में अभी तक विज्ञान या किसी भी क्षेत्र में जितने भी महत्वपूर्ण खोज,अविष्कार उपलब्धि प्राप्त हुए हैं वह सब जाने-अनजाने अवचेतन मन/दायें मस्तिष्क क्षमता के बदौलत हुए है। जो अभी प्रत्यक्ष [विधिवत] रूप से भारतीय शिक्षा पद्धति का हिस्सा नही है।इसलिए लार्ड मैकाले की प्रचलित शिक्षा पद्धति के स्थान पर इस प्राचीन भारतीय ऋषि ज्ञान पर आधारित शिक्षा पद्धति के उपयोग से ही भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी आसानी से विकसित देशों के समकक्ष हो सकेगा।
क्योकि मानव में मुख्यतः दो ही प्रकार की मस्तिष्क क्षमता होती है-
प्रथम -
विचार,तर्क,बुद्धि,स्मृत्ति (मस्तिष्क की बीटा तरंग अवस्था)है जो कि वर्तमान में हमारे देश की शिक्षा पद्धति का मुख्य आधार है।जिसे भले ही सबसे उच्च कोटि का मस्तिष्क क्षमता माना जाता है।लेकिन ध्यान योग के गहरे प्रयोग करने वालो का अनुभव है कि यह चेतन मन=बाएं मस्तिष्क पर आधारित क्षमता सामान्य बौद्धिक क्षमता है। और
दूसरा है-
मस्तिष्क की अल्फ़ा,थीटा तरंग की अवस्था= दायें मस्तिष्क=अवचेतन मन पर आधारित क्षमता-अंतर्बोध क्षमता,थाट-रीडिंग,टेलीपैथी, साइकिक विजन=दर्शन क्षमता जो कि पहले से कई गुना अधिक गहरी/ऊंची प्रतिभा सम्पन्न क्षमता है।जो विकसित देशों में भी गहरे शोध से प्रमाणित है।
तथा जो प्राचीन भारतीय शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था।जिसके उपयोग से ही हमारा देश विश्वगुरु की हैसियत रखता था।
☀ *भारत की प्राचीन उन्नत*☀
🌟 *ज्ञान संस्कृति* 🌟
अंग्रेज तथा अन्य विदेशी आक्रमणकारी इस बात को बखूबी समझते थे,कि भारत की असली शक्ति ज्ञान,संस्कृति है। जिसको नष्ट किए बिना भारत को पूर्णतः गुलाम बनाना अत्यंत कठिन है। जिसके कारण ही उनके द्वारा हमारे देश के सोना,चांदी,हीरे,मोती को लूटने के साथ-साथ अधिकांश कीमती भारतीय साहित्य जला दिए गए,लूट लिए गए।और भारतीय सभ्यता,संस्कृति,ज्ञान को पूरी तरह नष्ट करने तथा हमारे देशवासियों (भारतीय विद्यार्थियो) को मानसिक रूप से भी गुलाम बनाने के लिए-
अंग्रेजो द्वारा हमारे देश में लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को लागू किया गया।जो स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भी अभी तक प्रचलित है। जिसके कारण ही भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी विश्व वरीयता सूची में काफी पीछे है।
विभिन्न प्राचीन ग्रन्थों में कोड रूप [योग ध्यान के रूप] में दुनिया का सर्वाधिक कीमती उन्नत ज्ञान आज भी हमारे भारत देश में हजारों साल से विद्यमान है।और हमारा देश सर्वाधिक आध्यात्मिक वातावरण वाला देश होने के कारण इसके उपयोग के लिए सर्वाधिक अनुकूल परिस्थिति वाला देश भी है ।इसलिए देशवाशियों को प्राचीन विरासत के महत्व को समझने की जरूरत है.
इसलिए हमारे देश की शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास से सम्बन्धित उपलब्ध दुर्लभ ज्ञान के व्यवस्थित ,सतत,उपयोग की अति आवश्यकता है।
जिससे-
1.भारतीय वैज्ञानिक विकसित देशों के समकक्ष नोबल प्राइज विनर,विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक बन सकते है।
2.भारत का विज्ञान टेक्नॉलोज़ी उन्नत हो सकता है जिससे हमारा देश विकसित,विश्वगुरु राष्ट्र बन सकता है।
3.भारतीय शिक्षा विश्व रैंकिंग में टॉपर बन सकता है।
4.विश्व विज्ञान के अनेक अनसुलझे रहस्यों को सुलझाया जा सकता है।
5.भारतीय व्यापार,राजनीति,ज्ञान-विज्ञान विश्वस्तरीय हो सकता है।
*इसके अलावा भी अनेक लाभ सम्भव है।*
भारतीय शिक्षा को उन्नत बनाने का सूत्र-
✍ हमारे देश में सर्वाधिक प्राचीन ज्ञान उपलब्ध होने तथा मानव सभ्यता काफी प्राचीन होने के कारण शिक्षा तथा विज्ञान के साथ साथ अनेक क्षेत्रो में विश्व में सर्वश्रेष्ठ होना चाहिए। लेकिन अपने प्राचीन विरासत की गरिमा को भूलने के कारण ऐसा नही है।परन्तु अब समय आ चुका है कि पुराने समय में हमारे देश के विश्वगुरु होने तथा विश्वगुरु ज्ञान को पहचान कर शिक्षा में उपयोग करके पुनः विश्वगुरु होने की गरिमा को प्राप्त किया जाय। जिसके लिए-
[ 1 ] हम सभी देशवासियों को मिलकर पतंजलि योग या प्राचीन भारतीय ऋषियो द्वारा खोजे गए ध्यान,योग की विधियों तथा उनसे आशीर्वाद स्वरूप प्राप्त आध्यात्मिक ग्रन्थो में उपलब्ध शिक्षा में उपयोगी मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी ज्ञान,तकनीक का अधिक से अधिक उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नॉलोजी में करने की आवश्यकता है।
क्योकि योग सिर्फ शारीरिक रोग दूर करने का ही उपाय नही बल्कि मानव मन-मस्तिष्क क्षमता बढ़ाने का विश्व का सर्वोत्तम प्रमाणिक तकनीक तथा सबसे विकसित मनोविज्ञान है।
[ 2 ] चूँकि प्रत्येक मानव,विद्यार्थीयों में प्राकृतिक रूप से अपार मन-मस्तिष्क क्षमता उपलब्ध है। इसलिए हमारे देश-राज्य के विद्यार्थियों की बीटा मस्तिष्क तरंग अवस्था अर्थात बाएं मस्तिष्क की क्षमता=चेतन मन के साथ-साथ मस्तिष्क की अल्फ़ा तरंग अवस्था = दायां मस्तिष्क अर्थात अवचेतन मन को प्रभावी बनाने के लिए इसी पर आधारित शिक्षा की व्यवस्था उपलब्ध करवाने,इससे सम्बन्धित ज्ञान शिक्षा का प्रशिक्षण देने तथा विद्यार्थियो को इसी के अनुरूप मोटिवेट करने की आवश्यकता है।तथा
इस तरह की जानकारी रखने वाले बुद्धजीवियों, पत्रकारों ,शिक्षाविदों, योगियों, गुरुओं, साधक , सिद्धो,के पास उपलब्ध ज्ञान तथा प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ग्रन्थो में उपलब्ध उपर्युक्त सम्बन्धी विस्तृत ज्ञान,समझ, जानकारी एकत्र /रिसर्च कर उसका शिक्षा के क्षेत्र में शीघ्र सदुपयोग करने की आवश्यकता है।
चूँकि हमारे देश में विश्वगुरु की हैसियत दिलाने वाला ज्ञान आज भी उपलब्ध है। इसलिए अगर ऐसा हो सका तो हमारा देश एक बार फिर विश्व ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र सिद्ध हो सकेगा।
इस महत्वपूर्ण तथा दुर्लभ ज्ञान को-
मीडिया,शिक्षाविदों, विद्यार्थियो,शिक्षको,वैज्ञानिकों,योगी जनों,ध्यानियों,साधु-सन्तों के साथ-साथ शासन प्रशासन के प्रमुख पदों पर बैठे लोगो को अधिक तथा सभी बुद्धजीवियों एवं,जिम्मेदार भारतवासियों के द्वारा समझने/समझाने और सहयोग के रूप में क्रियान्वित करने/करवाने की आवश्यकता है।जिससे हमारा देश शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ सभी क्षेत्रो में उन्नत हो सके।हमारा देश अपनी विश्वगुरु की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सके।
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✍प्रमाणित किया जाता है कि- यह लेख मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है।इस लेख में वर्णित सभी तथ्य निजी अनुभूतियों /समझ के आधार पर लिखे गए हैं। विश्व में कहीं भी,किसी भी भाषा में यह लेख इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अतः यह लेख हमारी मौलिक सम्पत्ति है।
✍रामेश्वर वर्मा
(शिक्षक पं) पथरिया,मुंगेली(छत्तीसगढ़)
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