मानसिक गुलामी से मुक्ति का- मनोवैज्ञानिक सूत्र

             मानसिक गुलामी से मुक्ति का- मनोवैज्ञानिक सूत्र-
           
        ✍हमारे देश के पूर्वज ऋषि-मुनि है।जिनके बदौलत ही हमारा देश विश्वगुरु हुआ करता था।कई कारणों से सैकड़ों वर्षों तक हमारा भारत देश गुलामी की  स्थिति में रहा। जिससे हम सब प्रत्यक्ष रूप में आजाद तो हो गए, लेकिन मन से अर्थात मानसिक गुलामी (हीनभावना) से अभी तक पूर्णतः मुक्त नही हो पाए है।
अधिकांश भारतीय प्रतिभा, विद्यार्थियों, युवाओं के गहरे मन में अपने आप को विकसित देशों की तुलना में  बौद्धिक रूप से अपेक्षाकृत कमजोर मानने की भावना विद्यमान होने के कारण अपनी प्रतिभा का विश्व स्तरीय बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाते।
             जिसका प्रभाव शिक्षा स्तर तथा किसी भी क्षेत्र में विश्व स्तरीय सफलता पर पड़ रहा है, मुख्य रूप से दूसरों या विदेशों की तुलना में स्वयं को पिछड़ा हुआ मानने की मानसिकता के मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव के कारण तथा कुछ अन्य कारणों से हमारे देश की शिक्षा विश्व रैंकिंग में काफी पीछे है, तथा हमारा देश आज भी विकासशील देशों की सूची में है। 
            देश को विकसित बनाने के लिए इसे प्रतिभा प्रोत्साहन के रूप में सुधारना आवश्यक है। जिसके लिए भारतीय विद्यार्थियों, युवाओं को इस बात का गहरे में  एहसास दिलवाना आवश्यक है कि आप साधारण नहीं बल्कि असाधारण ऋषि-मुनियों की संतान है, अपार ज्ञानी ऋषि मुनि ही हमारे पूर्वज हैं।आप अपार मन मस्तिष्क क्षमता युक्त ऋषि-मुनियों के देश मेंं पैदा हुए हैं और आपमे विश्व के किसी भी देश के प्रतिभा की बराबरी कर सकने अथवा उनसे बेहतर प्रदर्शन कर सकने की क्षमता विद्यमान हैं। जिसके प्रमाण के रूप में आज भी विश्व के विकसित देशों में भारतीय अपनी प्रतिभा का परचम लहरा रहे हैं।
          इसके अलावा और विभिन्न रूपों में भारतीय प्रतिभा को प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है।
       भारतीय शिक्षा जगत में इस तरह का एक व्यापक  माहौल, हवा, मनोवैज्ञानिक प्रभाव पैदा करने की आवश्यकता है। यह मनोवैज्ञानिक उपाय विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभा को विकसित करने में सर्वाधिक सहयोगी होता है।
             इस प्रोत्साहन रूपी मनोवैज्ञानिक सुधार कार्य में  पतंजलि योग तथा मनोविज्ञान का उपयोग सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटक सिद्ध होगा।
    क्योंकि-
             योग हमारी प्राचीन विरासत के साथ-साथ मानव, देश के कर्णधार विद्यार्थियों, युवाओं, मानव के मन-मस्तिष्क सुधार की दुनिया की सबसे उन्नत, अद्वितीय तथा प्राचीन, स्वदेशी, प्रमाणिक, शक्तिशाली तकनीक है।जो कि भारतीयों खासकर भारतीय विद्यार्थियो के मन-मस्तिष्क को गुलामी से मुक्त कर स्वयं के स्वामी, आत्म विश्वासी, आत्म निर्भर बनने के साथ विश्व स्वामी बना सकने में सक्षम है।   
          लेकिन अभी तक योग और मनोविज्ञान का उपयोग विद्यार्थियों, युवाओं के भीतर अवचेतन मन के रूप में छिपी प्रतिभा को बाहर लाने, मन को मजबूत बनाने, आत्मविश्वास पैदा करने अर्थात हीन भावना दूर करने और बौद्धिक क्षमता को बेहतर बनाने के रूप में ठीक से नहीं हो पा रहा है। जिसका अधिकाधिक उपयोग करने की आवश्यकता है।                                                                                                                                            विश्वप्रसिद्ध योग गुरु सम्माननीय स्वामी रामदेव जी योग के प्रभाव, लाभ के प्रत्यक्ष प्रमाण है।
इस दिशा में उनके द्वारा किये जा रहे प्रयास सराहनीय तथा प्रेरणा दायक है।
              यूँ तो भारतीय विद्यार्थी हमारे प्राचीन ऋषि-मुनियो के आशीर्वाद से अपनी अपार क्षमता, प्रतिभा का लोहा पुरे विश्व में मनवा रहे है, लेकिन अगर योग तथा मनोविज्ञान का उपयोग उनके बौद्धिक क्षमता को और अधिक उन्नत बनाने में किया जाय तो यह भारत को पुनः विकसित तथा विश्वगुरु देश बना सकने में सक्षम सिद्ध होगा।
                        धन्यवाद
                       रामेश्वर वर्मा
                                                                                                         

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