शिक्षक (शिक्षाकर्मियों) की समस्या- लार्ड मैकाले की देन

             शिक्षको (शिक्षाकर्मियों) की समस्या
                      लार्ड मैकाले की देन
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 वर्तमान में भारतीय शिक्षको खासकर शिक्षाकर्मियों तथा भारतीय शिक्षा की खराब स्थिति के लिए लार्ड मैकाले और उनकी शिक्षा पद्धति भी जिम्मेदार है।सुनने में यह अजीब लग सकता है, लेकिन यह सच है।
               प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति के गहन अध्ययन से स्पष्ट होता है कि- पुराने समय में भारत के विश्वगुरु होने तथा सोने की चिड़िया कहलाने अर्थात आर्थिक दृष्टि से समृद्ध होने के पीछे मूल आधार प्राचीन भारत की शिक्षा पद्धति रहा है। जिसमे योग-धयानथा आध्यात्म शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था।जिसमे विदेशी भारत से काफी पीछे हुआ करते थे।
             और इस बात को अंग्रेज तथा अन्य विदेशी अच्छी तरह समझ चुके थे। इसलिए भारत को पूरी तरह बर्बाद करके गुलाम बनाने के लिए प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति को चोट पहुँचाते हुए "लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को लागू किया गया।
               इसके अंतर्गत गुरुकूल के स्थान पर स्कुल ,भारतीय भाषाओं के स्थान पर अंग्रेजी भाषा तथा भारत में पढ़ाये जाने वाले मानव के शरीर, चेतना, मन-मस्तिष्क को सबल, उन्नत बनाने पर आधारित विषयों जैसे -
              योग-ध्यान, आयुर्वेद, तन्त्र, ज्योतिष (खगोल विज्ञान), ध्वनि (मन्त्र) शास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र, स्थापत्य कला, रसायन, सोना बनाने की विद्या, युद्ध कला, भारतीय ग्रामीण खेल, व्याकरण-शास्त्र, कृषि, धातु विज्ञान, आध्यात्म (वेद, पुराण, उपनिषद तथा अन्य धर्म ग्रन्थों ), गणित आदि के स्थान पर विदेशी विषयों की मशीनों, भौतिक जगत अर्थात सिर्फ चेतन (बाएं) मन- मस्तिष्क पर आधारित गुलाम, नौकर बनाने वाली शिक्षा पद्धति लागू करने के साथ भारतीय विषयों=ज्ञान को निम्न, पिछड़े तथा विदेशी विषयो, ज्ञान को श्रेष्ठ रूप में  प्रचारित किया गया।
               हिटलर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि किसी झूठ को भी खूब प्रचारित किया जाय, दुहराया जाय तो वह धीरे धीरे सत्य लगने लगता हैऔर यही हुआ
              हम सब अपने देश को विश्वगुरु/ विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र तथा देश को सोने की चिड़िया बनाने वाली वर्तमान में कुछ-कुछ फिनलैंड की शिक्षा पद्धति की ही तरह दुनिया की सर्वोत्तम ज्ञान युक्त शिक्षा पद्धति को पिछड़ा हुआ मानने लगे और विदेशी ज्ञान को श्रेष्ठ मानने लगे, तथा आज भी मानते आ रहे है।
            और विदेशी ज्ञान का खासियत सिर्फ इतना है कि उन्होंने भौतिक यन्त्रों, सर्जरी और हथियारों का काफी विकास कर लिया। प्राचीन भारतीय विद्वानों में भी यह सब बनाने की अपार बौद्धिक क्षमता होते हुए भी वे उस समय के देश, काल, वातावरण के अनुसार  इन चीजो में रूचि नही होने तथा भविष्य इनसे होने वाले व्यापक खतरे, नुकसान, साइड इफेक्ट को भांपकर तथा उन्नत ज्ञान शक्ति को गलत हाथों में जाने से बचाने आदि अनेक कारणों से इनके विकास की दिशा में विशेष प्रयास, खोज आविष्कार नही किये।अगर चाहते तो उस समय हमारे देश की शिक्षा पद्धति में मानव, विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क को उन्नत बनाने सम्बन्धी विश्व की सर्वोत्तम तकनीक - योग-ध्यान शामिल रहने तथा इसके उपयोग से उन्नत मन-मस्तिष्क क्षमता से युक्त होने के कारण प्राचीन विद्वान् आधुनिक विज्ञान की तरह बहुत सी उन्नत चीजो का खोज-अविष्कार सिर्फ अपनी मस्तिष्क क्षमता से कर सकने में सक्षम थे।
बाकि विषयों जैसे-
              योग, आयुर्वेद, आध्यात्म आदि में तो हमारा देश तब भी टॉपर था।और आज भी टॉपर है।
             प्राचीन भारत में गुरु और शिक्षक अलग-अलग नही एक ही व्यक्ति हुआ करते थे, जिन्हें गुरु कहा जाता था। उन्हें योग-ध्यान, आयुर्वेद-चिकित्सा शास्त्र, नीति शास्त्र, गणित, स्थापत्य कला, युद्धकला, राजनीति, ध्वनि शास्त्र (तन्त्र,मन्त्र,यन्त्र), खगोल शास्त्र (ज्योतिष), वेद, पुराण, उपनिषद, विभिन्न धर्म ग्रन्थों आदि लगभग सभी भारतीय विषयो का ज्ञान हुआ करता था।जिसके कारण उन्हें समाज में सर्वाधिक सम्मान प्राप्त हुआ करता था।
                ये जो "शिक्षक" शब्द (पद) है, यह अंग्रेजो की और "शिक्षाकर्मी" इसी तरह की सोच की उपज है।
             आज भारत में शिक्षको को पर्याप्त सम्मान तथा आर्थिक समृद्धि भले ही प्राप्त नही है, लेकिन उपर्युक्त भारतीय विषयों के जानकर गुरुओं (साधु-सन्तों) और राजनीतिज्ञों को आज भी सर्वाधिक सम्मान, अधिकार तथा आर्थिक समृद्धि प्राप्त है।
              अगर आज हमारे देश में लार्ड मैकाले की गुलाम बनाने वाली शिक्षा पद्धति के स्थान पर भारतीय शिक्षा पद्धति लागु होती या अंग्रेजी मानसिकता के लोग भारतीय मानसिकता के होते, अथवा सब शिक्षक (शिक्षाकर्मी) किसी उपाय या उन्नत भारतीय शिक्षा पद्धति के अंतर्गत अध्ययन से उपर्युक्त प्राचीन भारतीय विषयो के जानकर होते तो आज देश-राज्य के सर्वाधिक सम्मानित तथा आर्थिक रूप से समृद्ध व्यक्ति होते, और देश-दुनिया के लोग वर्तमान साधु-सन्तों (गुरुओं) की तरह शिक्षाकर्मियों का भी सम्मान के साथ चरण स्पर्श प्रणाम करते।
                     धन्यवाद     
                   रामेश्वर वर्मा
                    (शिक्षक पं)
                 पथरिया,मुंगेली (छ.ग.)
                                    

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