🌷🍀 योग का शिक्षा सूत्र 🌷🍀
योग का शिक्षा में उपयोग या शिक्षा में योग के उपयोग करने का अर्थ पढ़ाई-लिखाई के पहले कुछ समय के लिए सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योगासन, प्राणायाम का अभ्यास करना ही नही है। यह सामान्य बात है, क्योंकि कुछ शिक्षा संस्थानों में यह काफी समय से प्रचलित है। जिससे विद्यार्थियों में शारीरिक स्वास्थ्य, शारीरिक सबलता के रूप में कुछ सुधार अवश्य आता है। परन्तु विद्याथियों में पर्याप्त सुधार के लिए इसका असली अर्थ है-
योग का मनोविज्ञान के साथ योग-मनोचिकित्सा के रूप में विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में शिक्षा में उपयोग करना है। आधुनिक युग में यह योग तथा शिक्षा के क्षेत्र में नई खोज है। जो प्राचीन भारतीय ज्ञान का नवीन आधुनिक वैज्ञानिक रूप है। योग तथा शिक्षा के क्षेत्र में इसके अपरिसीम उपयोग है।
इस तकनीक के उपयोग के लिए योगासन, प्राणायाम के पश्चात धारणा-ध्यान की अवस्था अर्थात मानव मन- मस्तिष्क की अल्फ़ा तरंग अवस्था में कुछ खास तरह से सरल मनोवैज्ञानिक मोटिवेशनल प्रयोग तथा मन मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी शिक्षा देने के द्वारा विद्याथियों के मन-मस्तिष्क क्षमता (विचार, बुद्धि, तर्क, स्मरण शक्ति, सृजनशीलता, मौलिक प्रतिभा, अंतर्बोध की क्षमता) को बढ़ाया/ सक्रिय/ जाग्रत किया जाता है। तथा मानसिक कमजोरियों, मनोविकारों को सुधारा जा सकता है। लगभग तीन महीने के इस विशेष मनोवैज्ञानिक मोटिवेशनल प्रयोग के उपयोग से विद्याथियों के मानसिक क्षमता में अपेक्षित पर्याप्त सुधार दिखने लगता है। छुपी हुई अपार प्रतिभावान रुप प्रकट होने लगता है।
इस प्रयोग को जितने विद्यार्थियो द्वारा तथा जितने अधिक मनोयोग से किया जाता है। उसी अनुपात में उतना अधिक लाभ प्राप्त होता है। यह प्रयोग कुछ लोगों को कठिन लग सकता है, लेकिन योग से जुड़े या योग में रूचि रखने वाले लोगों, विद्यार्थियों के लिए यह बहुत आसान तथा लाभदायक है।
यह आधुनिक युग के लिए भले ही नया है। लेकिन प्राचीनकाल की तरह भारतीय शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने में सक्षम है। जिसका उपयोग विदेशों में मिड ब्रेन एक्टिवेशन, एन एल पी तकनीक तथा अन्य मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीकों के रूप में पर्याप्त मात्रा में हो रहा है। जो उनके शिक्षा को उन्नत बनाने का एक महत्वपूर्ण घटक है।
धन्यवाद
रामेश्वर वर्मा(शिक्षक पं)
योग का शिक्षा में उपयोग या शिक्षा में योग के उपयोग करने का अर्थ पढ़ाई-लिखाई के पहले कुछ समय के लिए सिर्फ शारीरिक स्वास्थ्य के लिए योगासन, प्राणायाम का अभ्यास करना ही नही है। यह सामान्य बात है, क्योंकि कुछ शिक्षा संस्थानों में यह काफी समय से प्रचलित है। जिससे विद्यार्थियों में शारीरिक स्वास्थ्य, शारीरिक सबलता के रूप में कुछ सुधार अवश्य आता है। परन्तु विद्याथियों में पर्याप्त सुधार के लिए इसका असली अर्थ है-
योग का मनोविज्ञान के साथ योग-मनोचिकित्सा के रूप में विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में शिक्षा में उपयोग करना है। आधुनिक युग में यह योग तथा शिक्षा के क्षेत्र में नई खोज है। जो प्राचीन भारतीय ज्ञान का नवीन आधुनिक वैज्ञानिक रूप है। योग तथा शिक्षा के क्षेत्र में इसके अपरिसीम उपयोग है।
इस तकनीक के उपयोग के लिए योगासन, प्राणायाम के पश्चात धारणा-ध्यान की अवस्था अर्थात मानव मन- मस्तिष्क की अल्फ़ा तरंग अवस्था में कुछ खास तरह से सरल मनोवैज्ञानिक मोटिवेशनल प्रयोग तथा मन मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी शिक्षा देने के द्वारा विद्याथियों के मन-मस्तिष्क क्षमता (विचार, बुद्धि, तर्क, स्मरण शक्ति, सृजनशीलता, मौलिक प्रतिभा, अंतर्बोध की क्षमता) को बढ़ाया/ सक्रिय/ जाग्रत किया जाता है। तथा मानसिक कमजोरियों, मनोविकारों को सुधारा जा सकता है। लगभग तीन महीने के इस विशेष मनोवैज्ञानिक मोटिवेशनल प्रयोग के उपयोग से विद्याथियों के मानसिक क्षमता में अपेक्षित पर्याप्त सुधार दिखने लगता है। छुपी हुई अपार प्रतिभावान रुप प्रकट होने लगता है।
इस प्रयोग को जितने विद्यार्थियो द्वारा तथा जितने अधिक मनोयोग से किया जाता है। उसी अनुपात में उतना अधिक लाभ प्राप्त होता है। यह प्रयोग कुछ लोगों को कठिन लग सकता है, लेकिन योग से जुड़े या योग में रूचि रखने वाले लोगों, विद्यार्थियों के लिए यह बहुत आसान तथा लाभदायक है।
यह आधुनिक युग के लिए भले ही नया है। लेकिन प्राचीनकाल की तरह भारतीय शिक्षा को विश्वस्तरीय बनाने में सक्षम है। जिसका उपयोग विदेशों में मिड ब्रेन एक्टिवेशन, एन एल पी तकनीक तथा अन्य मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीकों के रूप में पर्याप्त मात्रा में हो रहा है। जो उनके शिक्षा को उन्नत बनाने का एक महत्वपूर्ण घटक है।
धन्यवाद
रामेश्वर वर्मा(शिक्षक पं)
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