*पतंजलि योग में छिपी -भारतीय शिक्षा को विश्व में सर्वश्रेष्ठ बनाने का सूत्र -*
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☀वर्तमान में पतंजलि योग का विश्वव्यापी प्रचार भारत के पुनः विश्वगुरु बनने का संकेत है। हमारे देश में योग का उपयोग प्राचीन शिक्षा पद्धति का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था। जिसके कारण ही उस समय भारतीय शिक्षा विश्वस्तरीय, विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।
जब से हम भारतीय विभिन्न कारणों से अपने प्राचीन ज्ञान-विज्ञान रूपी विरासत को जाने-अनजाने नजरअंदाज करना शुरू किए है,तभी से शिक्षा के क्षेत्र में हम विश्व स्तर पर पिछड़ने लगे है।प्राचीन भारतीय शिक्षा में उपयोग किये जाने वाले योग के विभिन्न चरणों - यम, नियम,आसन,प्राणायाम,धारणा,ध्यान के उपयोग से विद्यार्थियो में छिपी सुप्त अपार प्राकृतिक मस्तिष्क क्षमता रूपी विभिन्न प्रतिभा जागरण होता है।यह विद्यार्थियो की लगभग सभी मनोवैज्ञानिक समस्याओं,कमजोरियों को दूर कर प्रतिभावान बनाने तथा स्कुल/उच्च् शिक्षा को गुणवत्तायुक्त बनाने में सक्षम है।
अभी तक हम योग को सिर्फ शारीरिक चिकित्सा या साधना सिद्धि की अत्यंत गुढ़,कठिन प्रक्रिया मानते आये है।जबकि इसके विस्तृत अध्ययन प्रशिक्षण प्रयोग से पता चलता है कि- वास्तविकता ऐसा नही है।विश्वप्रसिद्ध योग गुरु स्वामी रामदेव जी के अथक प्रयासों से योग का सरल और प्रमाणिक रूप विश्व के सामने आ चूका है।
अब जरूरत सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता सुधार हेतु मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग करने की है। चूँकि प्राचीन काल से ही योग बहुआयामी ज्ञान है। और यह हजारों साल से प्रमाणित पूर्णतः वैज्ञानिक विधि है।और यह मानव के सम्पूर्ण विकास की प्रक्रिया है।यह चूँकि मानव मन-मस्तिष्क से सर्वाधिक सम्बंधित है।योग के सभी आठ आयाम-
यम ,नियम,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि मूलतः मन-मस्तिष्क को प्रभावित,उन्नत करने की वैज्ञानिक विधि है।और शिक्षा भी चूँकि मन- मस्तिष्क पर आधारित है। इसलिए-
शिक्षा में योग सर्वाधिक उपयोगी है।योग की प्रक्रियाएँ मस्तिष्क को अधिकाधिक विकसित कर देती है।इसीलिए प्राचीन विद्वान् योग के उपयोग से अत्यधिक बौद्धिक क्षमता का परिचय देते थे।और बिना किसी विशेष सुविधा,प्रयोगशाला के महत्वपूर्ण शोध,आविष्कार,सृजन, खोज करने में समर्थ होते थे।
अपने देश के शिक्षा को उन्नत बनाने सम्बन्धी इस प्राचीन विरासत को सबके सामने लाना,सर्वसुलभ बनाना, हमारे देश के समृद्ध तथा विश्वगुरु,विकसित होने में सहयोगी होगा।
अभी हमारे देश की शिक्षा लार्ड मैकाले की गुलाम बनाने वाली शिक्षा पद्धति के कारण विश्व रैंकिंग में काफी पीछे है।जिसे पतंजलि योग,मनोविज्ञान,आयुर्वेद के सदुपयोग से पुनः विदेशी विकसित देशों से बेहतर अत्याधुनिक,विश्वस्तरीय बनाया जा सकता है।
क्योंकि विकसित देशों की शिक्षा में प्राचीन भारत की शिक्षा में उपयोग किये जाने की जाने वाली विभिन्न योग तकनीको की तरह इसका आधुनिक रूप- कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक,,एन.एल.पी.तकनीक,अनेक ध्यान,सम्मोहन,रेकी ,मनोविज्ञान,मिड ब्रेन एक्टिवेशन आदि विभिन्न- मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीको के उपयोग से शिक्षा का स्तर अत्यंत उन्नत स्थिति में पहुंच चुका है।
और हम उसी हजारो साल से उपलब्ध ज्ञान के मुख्य स्रोत को अंधविश्वास मानकर नजरअंदाज करके विकासशील देश की सूची में स्थान बनाए हुए है।
अब हमे भी अपने प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रदत्त मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी अद्वितीय ज्ञान को पहचान कर स्कुल तथा उच्च शिक्षा,विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी में उपयोग करने की आवश्यकता है। जिससे हमारे देश के विद्यार्थियो,शिक्षको,वैज्ञानिकों के साथ हमारा देश भी विकसित देशों के समकक्ष या उससे भी बेहतर स्थिति को उपलब्ध कर सके।भारत के ज्ञान रूपी सूर्य से पूरा विश्व प्रकाशित हो सके।भारतीय स्कुल,कॉलेज,तथा विश्वविद्यालय भी विश्व में शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हो सके। विश्वगुरु की अपनी पुरानी प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सके।
धन्यवाद
- रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
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☀वर्तमान में पतंजलि योग का विश्वव्यापी प्रचार भारत के पुनः विश्वगुरु बनने का संकेत है। हमारे देश में योग का उपयोग प्राचीन शिक्षा पद्धति का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था। जिसके कारण ही उस समय भारतीय शिक्षा विश्वस्तरीय, विश्व शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।
जब से हम भारतीय विभिन्न कारणों से अपने प्राचीन ज्ञान-विज्ञान रूपी विरासत को जाने-अनजाने नजरअंदाज करना शुरू किए है,तभी से शिक्षा के क्षेत्र में हम विश्व स्तर पर पिछड़ने लगे है।प्राचीन भारतीय शिक्षा में उपयोग किये जाने वाले योग के विभिन्न चरणों - यम, नियम,आसन,प्राणायाम,धारणा,ध्यान के उपयोग से विद्यार्थियो में छिपी सुप्त अपार प्राकृतिक मस्तिष्क क्षमता रूपी विभिन्न प्रतिभा जागरण होता है।यह विद्यार्थियो की लगभग सभी मनोवैज्ञानिक समस्याओं,कमजोरियों को दूर कर प्रतिभावान बनाने तथा स्कुल/उच्च् शिक्षा को गुणवत्तायुक्त बनाने में सक्षम है।
अभी तक हम योग को सिर्फ शारीरिक चिकित्सा या साधना सिद्धि की अत्यंत गुढ़,कठिन प्रक्रिया मानते आये है।जबकि इसके विस्तृत अध्ययन प्रशिक्षण प्रयोग से पता चलता है कि- वास्तविकता ऐसा नही है।विश्वप्रसिद्ध योग गुरु स्वामी रामदेव जी के अथक प्रयासों से योग का सरल और प्रमाणिक रूप विश्व के सामने आ चूका है।
अब जरूरत सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में गुणवत्ता सुधार हेतु मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में उपयोग करने की है। चूँकि प्राचीन काल से ही योग बहुआयामी ज्ञान है। और यह हजारों साल से प्रमाणित पूर्णतः वैज्ञानिक विधि है।और यह मानव के सम्पूर्ण विकास की प्रक्रिया है।यह चूँकि मानव मन-मस्तिष्क से सर्वाधिक सम्बंधित है।योग के सभी आठ आयाम-
यम ,नियम,आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि मूलतः मन-मस्तिष्क को प्रभावित,उन्नत करने की वैज्ञानिक विधि है।और शिक्षा भी चूँकि मन- मस्तिष्क पर आधारित है। इसलिए-
शिक्षा में योग सर्वाधिक उपयोगी है।योग की प्रक्रियाएँ मस्तिष्क को अधिकाधिक विकसित कर देती है।इसीलिए प्राचीन विद्वान् योग के उपयोग से अत्यधिक बौद्धिक क्षमता का परिचय देते थे।और बिना किसी विशेष सुविधा,प्रयोगशाला के महत्वपूर्ण शोध,आविष्कार,सृजन, खोज करने में समर्थ होते थे।
अपने देश के शिक्षा को उन्नत बनाने सम्बन्धी इस प्राचीन विरासत को सबके सामने लाना,सर्वसुलभ बनाना, हमारे देश के समृद्ध तथा विश्वगुरु,विकसित होने में सहयोगी होगा।
अभी हमारे देश की शिक्षा लार्ड मैकाले की गुलाम बनाने वाली शिक्षा पद्धति के कारण विश्व रैंकिंग में काफी पीछे है।जिसे पतंजलि योग,मनोविज्ञान,आयुर्वेद के सदुपयोग से पुनः विदेशी विकसित देशों से बेहतर अत्याधुनिक,विश्वस्तरीय बनाया जा सकता है।
क्योंकि विकसित देशों की शिक्षा में प्राचीन भारत की शिक्षा में उपयोग किये जाने की जाने वाली विभिन्न योग तकनीको की तरह इसका आधुनिक रूप- कृत्रिम पुनर्जन्म तकनीक,,एन.एल.पी.तकनीक,अनेक ध्यान,सम्मोहन,रेकी ,मनोविज्ञान,मिड ब्रेन एक्टिवेशन आदि विभिन्न- मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीको के उपयोग से शिक्षा का स्तर अत्यंत उन्नत स्थिति में पहुंच चुका है।
और हम उसी हजारो साल से उपलब्ध ज्ञान के मुख्य स्रोत को अंधविश्वास मानकर नजरअंदाज करके विकासशील देश की सूची में स्थान बनाए हुए है।
अब हमे भी अपने प्राचीन ऋषियों द्वारा प्रदत्त मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी अद्वितीय ज्ञान को पहचान कर स्कुल तथा उच्च शिक्षा,विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी में उपयोग करने की आवश्यकता है। जिससे हमारे देश के विद्यार्थियो,शिक्षको,वैज्ञानिकों के साथ हमारा देश भी विकसित देशों के समकक्ष या उससे भी बेहतर स्थिति को उपलब्ध कर सके।भारत के ज्ञान रूपी सूर्य से पूरा विश्व प्रकाशित हो सके।भारतीय स्कुल,कॉलेज,तथा विश्वविद्यालय भी विश्व में शिक्षा के प्रमुख केंद्र के रूप में विकसित हो सके। विश्वगुरु की अपनी पुरानी प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सके।
धन्यवाद
- रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
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