विद्यार्थियों में छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता का शिक्षा में उपयोग

          *विद्यार्थियों में छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता का शिक्षा में उपयोग*
                                                                                       ****************   रामेश्वर वर्मा

            योग का हजारों साल का अनुभव है कि- मानव विद्यार्थियों में अपार मन मस्तिष्क क्षमता छिपी हुई अवस्था में विद्यमान है। जो कुछ विद्यार्थियों में जन्मजात रुप से सक्रिय, प्रकट रूप में होता है। ऐसे विद्यार्थियों को ही अति प्रतिभावान कहा जाता है। लेकिन अधिकांश विद्यार्थियों में यह निष्क्रिय और छिपी हुई अवस्था में होता है। जिसे योग-ध्यान के साथ मनोविज्ञान के उपयोग से प्रतिभावान विद्यार्थियों की तरह सक्रिय, प्रकट किया जा सकना संभव है। इसका उपयोग अभी तक सिर्फ आध्यात्मिक क्षेत्रों में होने के कारण अधिकांश लोग इसके शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग से अनभिज्ञ है, क्योंकि योग-ध्यान मूल रूप से मानव मन-मस्तिष्क को प्रभावित करने, उन्नत बनाने की तकनीक है। इसलिए इसका शिक्षा को उन्नत बनाने में बेहतर उपयोग संभव है।
     कुछ वैज्ञानिक तथ्यों से इसे समझना आसान होगा जैसे-
              1. मानव,विद्यार्थियों में प्राकृतिक रुप से अपार मस्तिष्क क्षमता विद्यमान है।जिसमे से सिर्फ 5 से 10 % क्षमता का ही उपयोग वर्तमान में हमारे देश की शिक्षा के क्षेत्र में हो पा रहा है।शेष लगभग 95% क्षमता अपरिचित,अज्ञात है। जिस पर वृहद् शोध शोध जारी है, इसलिए आगामी समय में इससे अधिक जानकारी उपलब्ध हो पाना संभव है।

              2. अस्तित्व (संसार) का लगभग 4% के आसपास ही ज्ञात पदार्थ है,जिससे सभी दृश्य चीजें- ग्रह,चाँद-सितारे तथा सभी वस्तुएँ निर्मित है। विज्ञान के लिए -शेष 96% से अधिक डार्क मैटर,डार्क एनर्जी के रूप में अज्ञात है, रहस्य है।
     इस विषय पर भी विश्वभर में पर्याप्त शोध सतत जारी है...........।

             3. मेडिकल साइंस के अनुसार -मानव कोशिका में उपस्थित DNA में से सिर्फ लगभग 3% ही हमारे शरीर के सभी क्रिया-कलापों को संचालित करते है।शेष 97% DNA जंक या बेकार DNA है।जिसका सही कार्य अभी तक अज्ञात है। इस विषय पर जीनोम परियोजना के तहत व्यापक शोध कार्य प्रगति पर है शीघ्र ही अधिकांश डीएनए के संबंध में शोध से प्राप्त जानकारी विश्व मानव के लिए उपलब्ध होगा।
             इसके संबंध में ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त करने के लिए योग ध्यान सम्मोहन विज्ञान परामनोविज्ञान सहयोगी सिद्ध होगा।अनेक प्राचीन ज्ञान विज्ञान आधुनिक विज्ञान की कसौटी पर सत्य सिद्ध हो रहे हैं। उपर्युक्त संबंध में योग ध्यान से संबंधित साहित्यों में उपलब्ध ज्ञान भी भविष्य में विज्ञान की कसौटी पर सही सिद्ध होगा ।
            अर्थात अभी भी आधुनिक विज्ञान,मनोविज्ञान के लिए संसार में बहुत कुछ (अधिकांश) रहस्य जानना शेष है।तथा अभी भी विकास की अपार सम्भावनाएं शेष है।
             इसी लगभग 5%से अधिक अर्थात लगभग 95% हिस्से में शिक्षा जगत,विज्ञान और टेक्नोलॉजी,  जीवन,मानव,अस्तित्व (ब्रह्मांड) का समस्त रहस्य छिपा हुआ है।
            यह आधुनिक विज्ञान के लिए भले ही अभी तक कठिन, अज्ञात है, लेकिन- यह प्राचीन भारतीय ऋषियों के लिए हजारों वर्षों से ज्ञात है।जो कि हमारे प्राचीन भारतीय ग्रन्थों - पतंजलि योग, वेद, ,पुराण,उपनिषदों,दर्शन,विज्ञान भैरव तन्त्र,विभिन्न योग-ध्यान सम्बन्धी साहित्यों,आदि में सूत्र,प्रतीक,कोड रूप में वर्णित है।तथा इसके साथ ही हिमालय में साधनारत योगियो के पास उन्नत ज्ञान प्राप्ति क्षमता के रूप में उपलब्ध है।
            जिसका उपयोग भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को विकसित देशों के समकक्ष/उससे भी बेहतर बनाने वाला सिद्ध होगा।
            असल में प्राचीन भारतीय शिक्षा में विज्ञान और आध्यात्म का समन्वित अध्ययन/अध्यापन हुआ करता था।आध्यात्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हुआ करते थे।जिसके कारण ही हमारा देश विश्वगुरु हुआ करता था।अनेक विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिकों, विद्वानों का भी मानना है कि आध्यात्म और विज्ञान एक दूसरे के पूरक हैं इनके सम्मिलित उपयोग से ज्ञान-विज्ञान  की नई ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है
            लेकिन भारत के गुलाम रहने की अवधि में विदेशियों द्वारा इसे नष्ट करने का भरपूर प्रयास किया गया।तथा लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति में इसे फुट डालो राज करो की नीति के तहत भारतीय शिक्षा पद्धति से अलग-अलग कर दिया गया
             और अब विज्ञान तथा आध्यात्म के अलग-अलग होने से अध्यात्म के जानकारों को विज्ञान में रुचि नहीं है और विज्ञान के जानकारों को अध्यात्म में रुचि नहीं है। जिसके कारण आध्यात्म के जानकर अपने आध्यात्मिक ज्ञान को वैज्ञानिक ढंग से प्रस्त्तुत नही कर पा रहे हैं,और वैज्ञानिक भी इसे अवैज्ञानिक समझकर इस ओर ध्यान नही दे रहे हैं। *और यही हमारे देश की शिक्षा और विज्ञान के क्षेत्र में पिछड़ने का गहरा कारण है।* जिस तरह गणित,जीव विज्ञान,भौतिकी, रसायन आदि एक दूसरे के पूरक है तथा एक दूसरे के विकसित होने में सहयोगी हैं। उसी तरह अध्यात्म और विज्ञान भी एक दूसरे के पूरक तथा एक दूसरे के विकसित होने में सहयोगी है। जिनके आपस में मिलने से नए ज्ञान का सृजन होता है।
            क्योंकि विश्वप्रसिद्ध महान वैज्ञानिक मिसाइल मैन श्री डा.ए.पी. जे.अब्दुल कलाम तथा अल्बर्ट आइंस्टीन ने    भी कहा है कि-
            विज्ञान और आध्यात्म के संयोग से ज्ञान की नई ऊंचाइयों को छुआ जा सकता है।
            आधुनिक विज्ञान के पहले भी विज्ञान का विकास हो चुका है। विश्व के अनसुलझे रहस्य इसके प्रमाण हैं।अस्तित्व के रहस्यों को जानने का आधुनिक विज्ञान का मशीन के सहारे प्रयोगशाला में बहुत अधिक पैसे,समय खर्च करके खोज करना अत्यधिक मंहगा जटिल,लम्बा और *पाश्चात्य देशों* का रास्ता/विधि है।
             जबकि प्राचीन भारतीय ऋषि-मुनियो ने उक्त रहस्यों को समझने, जानने(खोज करने) का सरल रास्ता/उपाय/विधि- "योग,ध्यान,उच्चतर मनोविज्ञान"के उपयोग से मस्तिष्क  के 5%से अधिक क्षमता को सक्रिय करके सीधे मन-मस्तिष्क से ही जान सकने के रास्ते ढूंढ निकाले थे। आधुनिक विज्ञान में भी जो भी महत्वपूर्ण खोज आविष्कार हुए हैं वे सब उन वैज्ञानिकों द्वारा इसी विधि से हुए हैं।
             *उस 5%से अधिक मानव मस्तिष्क क्षमता को सक्रिय कर सकने के प्राचीन भारतीय ज्ञान,तकनीक का उपयोग अगर भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी में किया जा सका तो यह  हमारे देश की शिक्षा स्तर तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को विश्वस्तरीय बनाने अर्थात विकसित देशों के समकक्ष या उनसे बेहतर बनाने वाला सिद्ध होगा।*
      क्योकि-
               *मानव,विद्यार्थियों में छिपी 5%से अधिक मन-मस्तिष्क क्षमता में से कुछ के जाने-अनजाने उपयोग से ही कुछ देशों की विज्ञान टेक्नोलॉजी उन्नत हो सका है।जिससे ही वे विकसित राष्ट्र की श्रेणी में हैं।*
              गहन अध्ययन(शोध)से स्पष्ट हुआ है कि *विश्व में अभी तक विज्ञान या किसी भी क्षेत्र में जितने भी महत्वपूर्ण खोज,अविष्कार उपलब्धि प्राप्त हुए हैं वह सब जाने-अनजाने इसी ज्ञान, क्षमता के बदौलत हुए है।*
             क्योकि मानव में मुख्यतः दो ही प्रकार की मस्तिष्क क्षमता होती है-
 *प्रथम* -
              विचार,तर्क,बुद्धि,स्मृत्ति (मस्तिष्क की बीटा तरंग अवस्था)है जो कि वर्तमान में हमारे देश की शिक्षा पद्धति का मुख्य आधार है।जिसे भले ही सबसे उच्च कोटि का मस्तिष्क क्षमता माना जाता है।लेकिन ध्यान योग के गहरे प्रयोग करने वालो का अनुभव है कि यह चेतन मन=बाएं मस्तिष्क पर आधारित क्षमता सामान्य बौद्धिक क्षमता है।और-
*दूसरा* है-
              मस्तिष्क की अल्फ़ा,थीटा तरंग की अवस्था= दायें मस्तिष्क=अवचेतन मन पर आधारित क्षमता-अंतर्बोध क्षमता,थाट-रीडिंग,टेलीपैथी, साइकिक विजन=दर्शन क्षमता जो कि *पहले* से कई गुना अधिक गहरी/ऊंची प्रतिभा सम्पन्न क्षमता है।जो विकसित देशों में भी गहरे शोध से प्रमाणित है।
             तथा जो प्राचीन भारतीय शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था।जिसके उपयोग से ही हमारा देश विश्वगुरु की हैसियत रखता था।
            और अंग्रेज तथा अन्य विदेशी आक्रमणकारी इस बात को बखूबी समझते थे।जिसके कारण ही उनके द्वारा अधिकांश कीमती भारतीय साहित्य जला दिए गए,लूट लिए गए।और भारतीय सभ्यता,संस्कृति,ज्ञान को पूरी तरह नष्ट करने तथा भारतीयो,भारतीय विद्यार्थियो को मानसिक रूप से भी गुलाम बनाने के लिए-
             अंग्रेजो द्वारा हमारे देश में लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति को लागू किया गया।जो स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात भी अभी तक प्रचलित है।जिसके कारण ही भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी विश्व वरीयता सूची में काफी पीछे है।
             उपर्युक्त रूप में दुनिया का सर्वाधिक् कीमती  ज्ञान चूँकि आज भी हमारे भारत देश में हजारों साल से विद्यमान है।और हमारा देश सर्वाधिक आध्यात्मिक वातावरण वाला देश होने के कारण इसके उपयोग के लिए सर्वाधिक अनुकूल परिस्थिति वाला भी देश है।
            इसलिए हमारे देश की शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में इससे सम्बन्धित उपलब्ध ज्ञान के व्यवस्थित ,सतत,पर्याप्त उपयोग की आवश्यकता है।
जिससे-
1.भारतीय वैज्ञानिक विकसित देशों के समकक्ष नोबल प्राइज विनर,विश्वप्रसिद्ध वैज्ञानिक बन सकते है।
2.भारत के विज्ञान टेक्नॉलोज़ी उन्नत हो सकता है जिससे हमारा देश विकसित,विश्वगुरु राष्ट्र बन सकता है।
3.भारतीय शिक्षा विश्व रैंकिंग में टॉपर बन सकता है।
4.विश्व विज्ञान के अनेक अनसुलझे रहस्यों को सुलझाया जा  सकता है।
5.भारतीय व्यापार,राजनीति,ज्ञान-विज्ञान विश्वस्तरीय हो सकता है।
*इसके अलावा भी अनेक लाभ सम्भव है।*
    इसके लिए--
             1.हम सब देशवासियों को पतंजलि योग या प्राचीन भारतीय ऋषियो द्वारा खोजे गए ध्यान,योग विधि तथा प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ग्रन्थो में उपलब्ध शिक्षोपयोगी मानव मन- मस्तिष्क क्षमता विकास सम्बन्धी ज्ञान,तकनीक का अधिकाधिक उपयोग शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नॉलोजी में करने की आवश्यकता है।
            *क्योकि योग सिर्फ शारीरिक रोग दूर करने का ही उपाय नही बल्कि मानव मन-मस्तिष्क क्षमता बढ़ाने का विश्व का सर्वोत्तम प्रमाणिक तकनीक तथा सबसे विकसित मनोविज्ञान है।*

             2.चूँकि प्रत्येक मानव,विद्यार्थी प्राकृतिक रूप से अपार क्षमतावान है। इसलिए भारतीय विद्यार्थियों के बाएं मस्तिष्क क्षमता=चेतन मन के साथ-साथ दायां मस्तिष्क=अवचेतन मन को प्रभावी बनाने के लिए इसी पर आधारित शिक्षा की व्यवस्था उपलब्ध करवाने,इससे सम्बन्धित ज्ञान शिक्षा का प्रशिक्षण देने तथा विद्यार्थियो को इसी के अनुरूप मोटिवेट करने की आवश्यकता है।तथा
             इस तरह की जानकारी रखने वाले बुद्धजीवियों,पत्रकारों,शिक्षाविदों, योगियों,गुरुओं,साधको,सिद्धो,के पास उपलब्ध ज्ञान तथा प्राचीन भारतीय आध्यात्मिक ग्रन्थो में उपलब्ध उपर्युक्त सम्बन्धी विस्तृत ज्ञान,समझ, जानकारी एकत्र कर उसका शिक्षा के क्षेत्र में शीघ्र सदुपयोग करने की आवश्यकता है।
            चूँकि हमारे देश में विश्वगुरु की हैसियत दिलाने वाला ज्ञान आज भी उपलब्ध है। इसलिए अगर ऐसा हो सका तो हमारा देश एक बार फिर विश्व ज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र सिद्ध हो सकेगा।इस महत्वपूर्ण तथा दुर्लभ ज्ञान को-
             मीडिया, शिक्षाविदों, विद्यार्थियो, शिक्षको, वैज्ञानिकों, योगी जनों,ध्यानियों, साधु-सन्तों के साथ-साथ शासन प्रशासन के प्रमुख पदों पर बैठे लोगो को अधिक तथा सभी बुद्धजीवियों एवं,जिम्मेदार भारतवासियों के द्वारा समझने/समझाने और सहयोग के रूप में क्रियान्वित करने/करवाने की आवश्यकता है।जिससे हमारा देश  शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के साथ सभी क्षेत्रो में उन्नत हो सके।
हमारा देश अपनी विश्वगुरु की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सके।

              प्रमाणित किया जाता है कि यह लेख मौलिक,अप्रकाशित और अप्रसारित है।विश्व में कहीं भी,किसी भी भाषा में यह लेख इस रूप में उपलब्ध नहीं है।अतः यह लेख हमारी मौलिक सम्पत्ति है। इस लेख में वर्णित सभी तथ्य निजी समझ,अनुभूतियों के आधार पर लिखे गए हैं।यह निजी विचार है इसे कोई मानने के लिए बाध्य नही है।कोई माने या न माने यह उनके विवेक पर निर्भर है।
                       धन्यवाद 
                  ☀रामेश्वर वर्मा
                       (शिक्षक पं)                                                       
               पथरिया,मुंगेली(छत्तीसगढ़)                   

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