योग के शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग की आवश्यकता

      🌷 योग के शिक्षा के क्षेत्र में उपयोग की आवश्यकता 🌷
         
       ✍विश्व प्रसिद्ध योग गुरु सम्माननीय रामदेव जी द्वारा प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति की तरह पतंजलि योग-ध्यान-मनोविज्ञान के उपयोग से भारतीय शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को उन्नत बनाने में दिया जाने वाला योगदान पतंजलि योग तथा भारतीय शिक्षा के क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्द्धि ,क्रांति सिद्ध होगी।
            यूँ तो सम्माननीय रामदेव जी द्वारा आचार्यकुलम तथा पतंजलि विश्वविद्यालय के माध्यम से आधुनिक शिक्षा और प्राचीन भारतीय ज्ञान के साथ योग की शिक्षा दी जा रही है। लेकिन वर्तमान में दी जा रही योग की सार्वजनिक शिक्षा शारीरिक स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करने/ प्रदान करने तक ही विस्तारित हो पाया है।
           अब योग के चरण को आगे बढ़ाते हुए आसन प्राणायाम के पश्चात प्रत्याहार धारणा ध्यान का उपयोग मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में सार्वजनिक उपयोग किया जाना अपेक्षित है। अगर ऐसा हो सका तो यह शिक्षा तथा योग के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा।
            योग से शारीरिक रोग दूर कर शारीरिक सबलता प्राप्त करने की तरह योग, ध्यान, मनोविज्ञान के उपयोग से विद्यार्थियों के पढ़ाई-लिखाई को बाधित करने वाले मनोविकारों, मानसिक कमजोरियों को दूर कर मन मस्तिष्क को अति प्रतिभावान विद्यार्थियों /जीनियस की तरह सबल तथा उन्नत बनाया जा सकता है। विद्यार्थियों के अंदर छिपी अपार मस्तिष्क क्षमता को सक्रिय, प्रकट किया जा सकता है। क्योंकि प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति में ऐसा किया जाता था। जिसके कारण ही प्राचीन विद्वान उन्नत प्रतिभा का परिचय देने में सक्षम होते थे। भारत विश्व में शिक्षा का प्रमुख केंद्र हुआ करता था।
           आधुनिक युग में ध्यान- योग का उपयोग शिक्षा को उन्नत बनाने में करने का कान्सेप्ट नया लग सकता है! लेकिन प्राचीन काल में योग भारतीय शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था।जिसकी बदौलत उस जमाने के गुरु तथा विद्यार्थी योग- ध्यान के द्वारा अपार बौद्धिक क्षमता/मस्तिष्क क्षमता उपलब्ध कर दुर्लभ विश्वस्तरीय ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ होते थे।जिसके बदौलत ही भारत विश्व गुरु हुआ करता था.
            देश के गुलाम रहने के समय से मानसिक गुलामी की तरह पश्चिमी देशों के अंधानुकरण में हम अपने देश के विश्व गुरु बनाने वाले सर्वश्रेष्ठ प्राचीन ज्ञान को अवैज्ञानिक समझ कर नजरअंदाज कर रहे हैं। यही हमारे देश के पिछड़ने का एक मुख्य कारण है।
             अगर योग और ध्यान के साथ मनोविज्ञान के उपयोग से विद्यार्थियों के मन मस्तिष्क को विकसित करने की शिक्षा दी जाए तो आज भी हमारे देश के विद्यार्थी विकसित देशों की बराबरी कर सकने में समर्थ हो सकेंगे।शिक्षा के क्षेत्र में योग-ध्यान का उपयोग लोगों को नया या अविश्वसनीय लग सकता है,पर योग गुरु सम्मानीय रामदेव जी इस बात को बखूबी समझते हैं कि योग ध्यान करने से विद्यार्थियों मे छिपी अपार बौद्धिक क्षमता को प्रकट, विकसित, सक्रिय कर देश की शिक्षा में उपयोग किया जा सकता है। ऐसा करने से वह दिन दूर नहीं होगा जब हमारा देश विश्व गुरु की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त कर सकेगा।
                                 🌷धन्यवाद 🌷
         

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