🌷 भारत आज भी अप्रत्यक्ष विश्व गुरु है 🌷
✍दुनिया के किसी भी क्षेत्र, शिक्षा, विज्ञान और टेक्नोलॉजी में सफलता या देश के विकसित होने का प्रमुख आधार है- ज्ञान-विज्ञान और ज्ञान-विज्ञान का प्रमुख आधार है- मानव मन मस्तिष्क का उन्नत होना।
प्राचीन काल में इसी से संबंधित जिस ज्ञान-विज्ञान की बदौलत भारत विश्वगुरु हुआ करता था।जिसे लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के प्रभाव में अवैज्ञानिक,अंधविश्वास समझ कर पिछले कई वर्षों से खासकर स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से नजरअंदाज कर रहे हैं। वह ज्ञान दुनिया के किसी भी प्राचीन मानव सभ्यता द्वारा खोजे गए ज्ञान विज्ञान का सार संग्रह है। प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान में प्राचीन मानव सभ्यता के द्वारा खोजे गए सभी ज्ञान का सार सूत्र प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप मे समाहित है।
उसी ज्ञान-विज्ञान को पिछले कई वर्षों से वर्तमान के विकसित देश आधुनिक महत्वपूर्ण विषयों की तरह पर्याप्त रिसर्च से प्रमाणित तथा संशोधित कर अपनी शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी का हिस्सा बना चुके हैं।यही उनके शिक्षा,विज्ञान और टेक्नोलॉजी के उन्नत होने तथा विकसित देश बनने का मुख्य और गहरा कारण है।
और वह प्राचीन विश्व गुरु ज्ञान प्राचीन भारतीय साहित्यों में विभिन्न रूपों में आज भी हमारे देश में उपलब्ध है। इसलिए भारत आज भी अप्रत्यक्ष रुप से विश्वगुरु है।
विकसित देशों के शिक्षा के साथ विज्ञान और टेक्नोलॉजी के लिए पर्याप्त संसाधन का उपलब्ध होना तथा शोध के लिए पर्याप्त बजट का उपलब्ध होना उनके सफलता का सिर्फ बाहरी कारण है। उनके विकसित देश बनने का जो मुख्य, रहस्य कारण है, वह है ,विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क को उन्नत बना सकने योग्य मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षा पद्धति तथा प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप में - मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक का उपयोग के साथ- परामनोविज्ञान के रिसर्च से प्राप्त उन्नत गहरे ज्ञान का उपयोग तथा दूसरे देशों के जन्मजात जीनियस प्रतिभा को अपने देश में जॉब करने के लिए आकर्षित करना, जॉब करने का अवसर देना।
प्राचीन भारत के प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रुप से मानव मन मस्तिष्क को विकसित, प्रभावित करने वाले ज्ञान विज्ञान जैसे- योग (खासकर पतंजलि योग) ध्यान तथा इनके विधिवत प्रयोग (साधना) से प्राप्त होने वाले अतीन्द्रिय ज्ञान-क्षमता जैसे- टेलीपैथी, थाटरीडिंग, साइकिक विजन, साइकोकिनेसिस, कुंडलनी शक्ति, योगचक्र, ओम ध्वनि, मंत्र शक्ति, ध्वनि शक्ति विज्ञान, धातु विज्ञान, आयुर्वेद, आत्मा(चेतना), परमात्मा (ब्रम्ह), सूक्ष्म शरीर,आरा- मण्डल अर्थात पराशक्ति,जन्म-मृत्यु, सिद्ध पुरुषों की ज्ञान-क्षमता, विभिन्न अनसुलझे रहस्य,अद्भुत-अविश्वसनीय-अकल्पनीय विषयों, परामनोविज्ञान, सम्मोहन विज्ञान, चेतन-मन, अवचेतन-मन आदि विभिन्न विषयों अर्थात हमारे देश में अंधविश्वास समझे जाने वाले लगभग सभी विषयों पर लगभग सभी विकसित देश आधुनिक विज्ञान के विषयों की तरह पर्याप्त शोध कार्य कर रहे हैं, तथा उससे प्राप्त विशेष ज्ञान को अपने शिक्षा और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी का हिस्सा बना रहे हैं। यही वह गहरा मनोवैज्ञानिक कारण है, जिससे कुछ देशों की शिक्षा और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी उन्नत है। जिसके कारण वह विकसित देशों की श्रेणी में है।
हमारे भारत देश में विडंबना है कि- ना तो हम अपने प्राचीन उन्नत ज्ञान-विज्ञान के ऊपर रिसर्च कर शिक्षा में उपयोग कर पा रहे हैं, और न विदेशों के आधुनिक विकसित विज्ञान को पूरी तरह समझकर उनके समकक्ष हो पा रहे हैं।इसीलिए विकासशील देशों की सूची में स्थान बनाए हुए हैं।
अगर हम विकसित देशों के शिक्षा, विज्ञान और टेक्नोलॉजी के विकसित होने के वास्तविक रहस्य को अर्थात *मनोविज्ञान* को समझ पाएंगे, उस दिन पता चलेगा यह तो उसी तरह का ज्ञान है, जो सूत्र /सिद्धांत के रूप में हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। उस दिन हम अपने प्राचीन ज्ञान विज्ञान का सही अर्थों में महत्व समझ पाएंगे। उसको ठीक तरह से अपना पाएंगे। और फिर से देश के विश्व गुरु बनने अर्थात अपने देश को शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाने की दिशा में अग्रसर हो पाएंगे ।
अभी तो हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों को हमारे प्राचीन ज्ञान-विज्ञान के महत्व (खासियत) को समझे बिना अंधविश्वास,अवैज्ञानिक कहने से फुर्सत नहीं है।
किसी देश की शिक्षा और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के उन्नत, विकसित होने का मूल मनोविज्ञान क्या है? इस बात को हम सब अगर ठीक से समझ पाएं तो यह हमारे देश के शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को उन्नत करने में मार्गदर्शक सिद्ध होगा।
🌷 धन्यवाद 🌷
✍दुनिया के किसी भी क्षेत्र, शिक्षा, विज्ञान और टेक्नोलॉजी में सफलता या देश के विकसित होने का प्रमुख आधार है- ज्ञान-विज्ञान और ज्ञान-विज्ञान का प्रमुख आधार है- मानव मन मस्तिष्क का उन्नत होना।
प्राचीन काल में इसी से संबंधित जिस ज्ञान-विज्ञान की बदौलत भारत विश्वगुरु हुआ करता था।जिसे लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के प्रभाव में अवैज्ञानिक,अंधविश्वास समझ कर पिछले कई वर्षों से खासकर स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात से नजरअंदाज कर रहे हैं। वह ज्ञान दुनिया के किसी भी प्राचीन मानव सभ्यता द्वारा खोजे गए ज्ञान विज्ञान का सार संग्रह है। प्राचीन भारतीय ज्ञान-विज्ञान में प्राचीन मानव सभ्यता के द्वारा खोजे गए सभी ज्ञान का सार सूत्र प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप मे समाहित है।
उसी ज्ञान-विज्ञान को पिछले कई वर्षों से वर्तमान के विकसित देश आधुनिक महत्वपूर्ण विषयों की तरह पर्याप्त रिसर्च से प्रमाणित तथा संशोधित कर अपनी शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी का हिस्सा बना चुके हैं।यही उनके शिक्षा,विज्ञान और टेक्नोलॉजी के उन्नत होने तथा विकसित देश बनने का मुख्य और गहरा कारण है।
और वह प्राचीन विश्व गुरु ज्ञान प्राचीन भारतीय साहित्यों में विभिन्न रूपों में आज भी हमारे देश में उपलब्ध है। इसलिए भारत आज भी अप्रत्यक्ष रुप से विश्वगुरु है।
विकसित देशों के शिक्षा के साथ विज्ञान और टेक्नोलॉजी के लिए पर्याप्त संसाधन का उपलब्ध होना तथा शोध के लिए पर्याप्त बजट का उपलब्ध होना उनके सफलता का सिर्फ बाहरी कारण है। उनके विकसित देश बनने का जो मुख्य, रहस्य कारण है, वह है ,विद्यार्थियों के मन-मस्तिष्क को उन्नत बना सकने योग्य मनोविज्ञान पर आधारित शिक्षा पद्धति तथा प्रत्यक्ष/ अप्रत्यक्ष रूप में - मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक का उपयोग के साथ- परामनोविज्ञान के रिसर्च से प्राप्त उन्नत गहरे ज्ञान का उपयोग तथा दूसरे देशों के जन्मजात जीनियस प्रतिभा को अपने देश में जॉब करने के लिए आकर्षित करना, जॉब करने का अवसर देना।
प्राचीन भारत के प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रुप से मानव मन मस्तिष्क को विकसित, प्रभावित करने वाले ज्ञान विज्ञान जैसे- योग (खासकर पतंजलि योग) ध्यान तथा इनके विधिवत प्रयोग (साधना) से प्राप्त होने वाले अतीन्द्रिय ज्ञान-क्षमता जैसे- टेलीपैथी, थाटरीडिंग, साइकिक विजन, साइकोकिनेसिस, कुंडलनी शक्ति, योगचक्र, ओम ध्वनि, मंत्र शक्ति, ध्वनि शक्ति विज्ञान, धातु विज्ञान, आयुर्वेद, आत्मा(चेतना), परमात्मा (ब्रम्ह), सूक्ष्म शरीर,आरा- मण्डल अर्थात पराशक्ति,जन्म-मृत्यु, सिद्ध पुरुषों की ज्ञान-क्षमता, विभिन्न अनसुलझे रहस्य,अद्भुत-अविश्वसनीय-अकल्पनीय विषयों, परामनोविज्ञान, सम्मोहन विज्ञान, चेतन-मन, अवचेतन-मन आदि विभिन्न विषयों अर्थात हमारे देश में अंधविश्वास समझे जाने वाले लगभग सभी विषयों पर लगभग सभी विकसित देश आधुनिक विज्ञान के विषयों की तरह पर्याप्त शोध कार्य कर रहे हैं, तथा उससे प्राप्त विशेष ज्ञान को अपने शिक्षा और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी का हिस्सा बना रहे हैं। यही वह गहरा मनोवैज्ञानिक कारण है, जिससे कुछ देशों की शिक्षा और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी उन्नत है। जिसके कारण वह विकसित देशों की श्रेणी में है।
हमारे भारत देश में विडंबना है कि- ना तो हम अपने प्राचीन उन्नत ज्ञान-विज्ञान के ऊपर रिसर्च कर शिक्षा में उपयोग कर पा रहे हैं, और न विदेशों के आधुनिक विकसित विज्ञान को पूरी तरह समझकर उनके समकक्ष हो पा रहे हैं।इसीलिए विकासशील देशों की सूची में स्थान बनाए हुए हैं।
अगर हम विकसित देशों के शिक्षा, विज्ञान और टेक्नोलॉजी के विकसित होने के वास्तविक रहस्य को अर्थात *मनोविज्ञान* को समझ पाएंगे, उस दिन पता चलेगा यह तो उसी तरह का ज्ञान है, जो सूत्र /सिद्धांत के रूप में हमारे प्राचीन ग्रंथों में वर्णित है। उस दिन हम अपने प्राचीन ज्ञान विज्ञान का सही अर्थों में महत्व समझ पाएंगे। उसको ठीक तरह से अपना पाएंगे। और फिर से देश के विश्व गुरु बनने अर्थात अपने देश को शिक्षा का प्रमुख केंद्र बनाने की दिशा में अग्रसर हो पाएंगे ।
अभी तो हमारे देश के तथाकथित बुद्धिजीवियों को हमारे प्राचीन ज्ञान-विज्ञान के महत्व (खासियत) को समझे बिना अंधविश्वास,अवैज्ञानिक कहने से फुर्सत नहीं है।
किसी देश की शिक्षा और विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी के उन्नत, विकसित होने का मूल मनोविज्ञान क्या है? इस बात को हम सब अगर ठीक से समझ पाएं तो यह हमारे देश के शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी को उन्नत करने में मार्गदर्शक सिद्ध होगा।
🌷 धन्यवाद 🌷
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