विद्यार्थियों की शिक्षा, बौद्धिक क्षमता पर आसपास के माहौल का प्रभाव
इस बात से लगभग सभी लोग परिचित हैं कि- विद्यार्थियों में व्यक्तित्व और बौद्धिक क्षमता - उनके आनुवांशिक गुण के आधार पर निर्धारित होता है, और जो देश-काल-वातावरण से सर्वाधिक प्रभावित भी होता है। विद्यार्थियों को जैसा देश काल वातावरण उपलब्ध होता है- प्रसिद्ध आनुवंशिकी वैज्ञानिक मेन्डल के प्रभाविता के नियमानुसार- विद्यार्थियों का मन-मस्तिष्क, व्यक्तित्व, बौद्धिक क्षमता उसी के अनुरूप निर्मित, प्रभावी हो जाता है। शिक्षा या पढ़ाई-लिखाई के अनुकूल माहौल मिलने पर विद्यार्थी पढ़ाई-लिखाई में काफी सफल हो जाते हैं, और प्रतिकूल माहौल मिलने पर प्रायः असफल रह जाते हैं।
इसलिए विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में सफल, प्रतिभावान बनाने तथा उनके व्यक्तित्व और बौद्धिक क्षमता विकास के लिए अनुकूल देश-काल-वातावरण उपलब्ध होना या करवाना अत्यंत आवश्यक है। अगर ऐसा किया जा सका तो यह विद्यार्थियों के जन्मजात आनुवंशिक गुण मे भी काफी कुछ सुधार कर सकने में सक्षम है। जो कि शिक्षा गुणवत्ता सुधार में काफी महत्वपूर्ण तथा सहयोगी है।
एक प्रतिकूल, नकारात्मक, शिक्षाविहीन देश-काल-वातावरण या आनुवंशिक गुण लेकर पैदा हुए बच्चे/ विद्यार्थी को भी अगर "बचपन" से दूसरे सकारात्मक या पढ़ाई-लिखाई के अनुकूल देश-काल-वातावरण के बीच पालन पोषण किया जाए तो उनके व्यक्तित्व तथा अनुवांशिक गुण में कई गुना अधिक सुधार परिलक्षित होता है।
गुणसूत्र की खोज करने वाले वैज्ञानिक वाटसन एवं क्रिक का भी मानना है कि- अलग तरह के देश-काल-वातावरण के प्रभाव से कुछ वर्ष के भीतर आनुवंशिक गुण भी लगभग पूरी तरह उसी के अनुरूप परिवर्तित हो जाता है। इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव के नियमानुसार पढ़ाई के अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराकर विद्यार्थियों में काफी कुछ सुधार लाया जा सकना संभव है।
विद्यार्थी जिस देश काल वातावरण में रहते, पढ़ते हैं, वे उसी देश-काल-वातावरण के अनुरूप ढल जाते हैं। देश काल वातावरण अगर पढ़ाई, शिक्षा के अनुकूल हुआ तो विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में सफल हो जाते है। लेकिन अगर प्रतिकूल हुआ तो प्रतिभावान होते हुए भी असफल हो जाते हैं, शिक्षा के क्षेत्र में पीछे रह जाते हैं। अपनी पूरी प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पाते।
इसीलिए ग्रामीण या कम-शिक्षित परिवेश में रहने अर्थात शिक्षा के प्रतिकूल परिवेश में पलने बढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थी जो सरकारी स्कूल में पढ़ते है।जिन्हें माहौल में सुधार किए बिना काफी प्रयास के बावजूद पढ़ाई-लिखाई में बेहतर बना पाना/ सुधार पाना, शिक्षा में गुणवत्ता ला पाना अत्यंत कठिन होता है।
लेकिन इस बात को ठीक से नहीं समझने वाले लोग सारा दोष शिक्षकों पर ही डालते हैं। शिक्षा गुणवत्ता के कमजोर होने के लिए शिक्षक को ही पूर्ण जिम्मेदार मानते हैं।
ऐसा करने वाले लोग इस बात को भूल जाते हैं कि - विद्यार्थी जन्म से प्रतिकूल नकारात्मक माहौल से कई वर्ष तक प्रभावित होने के पश्चात स्कूल में प्रवेश लेते हैं। जो स्कूल, शिक्षकों के संपर्क में 24 घंटे में से सिर्फ 6 से 8 घंटे ही रहते हैं। लेकिन अधिकांश समय लगभग 16 घंटे से 18 घंटे तक अपने उसी शिक्षा या पढ़ाई लिखाई के विपरीत माहौल और नकारात्मक विचार तथा व्यवहार करने वाले लोगों के बीच गुजारते है।जिनका पूरा प्रभाव विद्यार्थियों के कोमल मन मस्तिष्क पर पड़ता है जो कि विद्यार्थियों के कमजोर होने, बिगड़ने का सबसे प्रभावी कारण है।
इसलिए शिक्षा में गुणवत्ता सुधार या विद्यार्थियों को प्रतिभावान बनाने के लिए विद्यार्थियों को पढ़ाई-लिखाई के अनुकूल देश-काल-वातावरण तथा आवश्यक मार्गदर्शन उपलब्ध करवाना सबसे आवश्यक है।
जिसके लिए पालको को गुड पेरेंटिंग के गुण सिखाना, बच्चों के अच्छी शिक्षा के लिए आवश्यक अनुकूल माहौल के महत्व को समझाना, अर्थात अच्छी शिक्षा के लिए जागरूक करना, विद्यार्थियों में अवचेतन मन के रूप में छिपी अपार प्रतिभा/ क्षमता के विकास के लिए शिक्षा-प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाने के साथ स्कूलों में आवश्यक संसाधन तथा शिक्षकों को भी पर्याप्त वेतन, सम्मान तथा अधिकार दिए जाने की आवश्यकता है। जिसके बिना विद्यार्थियों में सुधार अथवा शिक्षा में गुणवत्ता की अपेक्षा करना व्यर्थ है। रेत में तेल निकालने के समान कठिन है।
🌷धन्यवाद🌷
इस बात से लगभग सभी लोग परिचित हैं कि- विद्यार्थियों में व्यक्तित्व और बौद्धिक क्षमता - उनके आनुवांशिक गुण के आधार पर निर्धारित होता है, और जो देश-काल-वातावरण से सर्वाधिक प्रभावित भी होता है। विद्यार्थियों को जैसा देश काल वातावरण उपलब्ध होता है- प्रसिद्ध आनुवंशिकी वैज्ञानिक मेन्डल के प्रभाविता के नियमानुसार- विद्यार्थियों का मन-मस्तिष्क, व्यक्तित्व, बौद्धिक क्षमता उसी के अनुरूप निर्मित, प्रभावी हो जाता है। शिक्षा या पढ़ाई-लिखाई के अनुकूल माहौल मिलने पर विद्यार्थी पढ़ाई-लिखाई में काफी सफल हो जाते हैं, और प्रतिकूल माहौल मिलने पर प्रायः असफल रह जाते हैं।
इसलिए विद्यार्थियों को शिक्षा के क्षेत्र में सफल, प्रतिभावान बनाने तथा उनके व्यक्तित्व और बौद्धिक क्षमता विकास के लिए अनुकूल देश-काल-वातावरण उपलब्ध होना या करवाना अत्यंत आवश्यक है। अगर ऐसा किया जा सका तो यह विद्यार्थियों के जन्मजात आनुवंशिक गुण मे भी काफी कुछ सुधार कर सकने में सक्षम है। जो कि शिक्षा गुणवत्ता सुधार में काफी महत्वपूर्ण तथा सहयोगी है।
एक प्रतिकूल, नकारात्मक, शिक्षाविहीन देश-काल-वातावरण या आनुवंशिक गुण लेकर पैदा हुए बच्चे/ विद्यार्थी को भी अगर "बचपन" से दूसरे सकारात्मक या पढ़ाई-लिखाई के अनुकूल देश-काल-वातावरण के बीच पालन पोषण किया जाए तो उनके व्यक्तित्व तथा अनुवांशिक गुण में कई गुना अधिक सुधार परिलक्षित होता है।
गुणसूत्र की खोज करने वाले वैज्ञानिक वाटसन एवं क्रिक का भी मानना है कि- अलग तरह के देश-काल-वातावरण के प्रभाव से कुछ वर्ष के भीतर आनुवंशिक गुण भी लगभग पूरी तरह उसी के अनुरूप परिवर्तित हो जाता है। इस मनोवैज्ञानिक प्रभाव के नियमानुसार पढ़ाई के अनुकूल वातावरण उपलब्ध कराकर विद्यार्थियों में काफी कुछ सुधार लाया जा सकना संभव है।
विद्यार्थी जिस देश काल वातावरण में रहते, पढ़ते हैं, वे उसी देश-काल-वातावरण के अनुरूप ढल जाते हैं। देश काल वातावरण अगर पढ़ाई, शिक्षा के अनुकूल हुआ तो विद्यार्थी शिक्षा के क्षेत्र में सफल हो जाते है। लेकिन अगर प्रतिकूल हुआ तो प्रतिभावान होते हुए भी असफल हो जाते हैं, शिक्षा के क्षेत्र में पीछे रह जाते हैं। अपनी पूरी प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पाते।
इसीलिए ग्रामीण या कम-शिक्षित परिवेश में रहने अर्थात शिक्षा के प्रतिकूल परिवेश में पलने बढ़ने वाले अधिकांश विद्यार्थी जो सरकारी स्कूल में पढ़ते है।जिन्हें माहौल में सुधार किए बिना काफी प्रयास के बावजूद पढ़ाई-लिखाई में बेहतर बना पाना/ सुधार पाना, शिक्षा में गुणवत्ता ला पाना अत्यंत कठिन होता है।
लेकिन इस बात को ठीक से नहीं समझने वाले लोग सारा दोष शिक्षकों पर ही डालते हैं। शिक्षा गुणवत्ता के कमजोर होने के लिए शिक्षक को ही पूर्ण जिम्मेदार मानते हैं।
ऐसा करने वाले लोग इस बात को भूल जाते हैं कि - विद्यार्थी जन्म से प्रतिकूल नकारात्मक माहौल से कई वर्ष तक प्रभावित होने के पश्चात स्कूल में प्रवेश लेते हैं। जो स्कूल, शिक्षकों के संपर्क में 24 घंटे में से सिर्फ 6 से 8 घंटे ही रहते हैं। लेकिन अधिकांश समय लगभग 16 घंटे से 18 घंटे तक अपने उसी शिक्षा या पढ़ाई लिखाई के विपरीत माहौल और नकारात्मक विचार तथा व्यवहार करने वाले लोगों के बीच गुजारते है।जिनका पूरा प्रभाव विद्यार्थियों के कोमल मन मस्तिष्क पर पड़ता है जो कि विद्यार्थियों के कमजोर होने, बिगड़ने का सबसे प्रभावी कारण है।
इसलिए शिक्षा में गुणवत्ता सुधार या विद्यार्थियों को प्रतिभावान बनाने के लिए विद्यार्थियों को पढ़ाई-लिखाई के अनुकूल देश-काल-वातावरण तथा आवश्यक मार्गदर्शन उपलब्ध करवाना सबसे आवश्यक है।
जिसके लिए पालको को गुड पेरेंटिंग के गुण सिखाना, बच्चों के अच्छी शिक्षा के लिए आवश्यक अनुकूल माहौल के महत्व को समझाना, अर्थात अच्छी शिक्षा के लिए जागरूक करना, विद्यार्थियों में अवचेतन मन के रूप में छिपी अपार प्रतिभा/ क्षमता के विकास के लिए शिक्षा-प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाने के साथ स्कूलों में आवश्यक संसाधन तथा शिक्षकों को भी पर्याप्त वेतन, सम्मान तथा अधिकार दिए जाने की आवश्यकता है। जिसके बिना विद्यार्थियों में सुधार अथवा शिक्षा में गुणवत्ता की अपेक्षा करना व्यर्थ है। रेत में तेल निकालने के समान कठिन है।
🌷धन्यवाद🌷
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