आपका बच्चा जीनियस है ! ( Your child is Genius! )

      🌷  आपका बच्चा जीनियस है  🌷
            ( Your child is Genius )

           आपके लिए यह जानना बहुत जरूरी हैं कि-आपका बच्चा प्राकृतिक रूप से जीनियस है!
 लगभग प्रत्येक विद्यार्थियों में चेतन मन-मस्तिष्क क्षमता अर्थात विचार, बुद्धि, तर्क, सामान्य स्मृत्ति आदि के अलावा जन्मजात, प्राकृतिक रूप से छिपी हुई अवस्था में अवचेतन-मन ( सृजनात्मकता, अंतर्बोध, टेलीपैथी, थाट-रीडिंग, कल्पनाशीलता-मन की आंख से देख सकने की क्षमता अर्थात विजन क्षमता, कुंडलिनी रिजर्व उर्जा, इमोशन्स-EQ के साथ अच्छे इंसान बनने के सभी गुण) के रूप में अपार जीनियस मन-मस्तिष्क प्रतिभा, क्षमता उपलब्ध है।
          जो विद्यार्थी जाने-अनजाने इस स्थिति/ प्रतिभा का उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में अपनी पढ़ाई लिखाई में कर पाते हैं, उन्हें ही जीनियस कहा जाता है।
         आधुनिक वैज्ञानिक जमाने में भी हम सब किसी भी विद्यार्थियों को प्राप्त मन-मस्तिष्क, बौद्धिक क्षमता को ईश्वर की देन मानते हैं। यहां तक बिल्कुल सही है।
          लेकिन विद्यार्थी/ बच्चे के वर्तमान प्रकट आई क्यू को ही संपूर्ण मानते हैं! तो प्रत्येक विद्यार्थियों में अवचेतन मन के रूप में छिपी अपार मन-मस्तिष्क/ बौद्धिक क्षमता से परिचित होकर इस मान्यता को सुधारने की आवश्यकता है।
          लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति पर आधारित वर्तमान शिक्षा पद्धति में विद्यार्थियों में छिपी अपार मन मस्तिष्क क्षमता (अवचेतन मन) से संबंधित पर्याप्त जानकारी, शिक्षा-प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध नहीं हो पाने तथा इससे संबंधित जानकारी विभिन्न कंपनियों के कॉपीराइट होने के साथ देश के सिर्फ बड़े शहरों में प्रचलित तथा महंगी फ़ीस होने के कारण इससे संबंधित ज्ञान सर्व सुलभ नहीं हो पाया है।
             जिसके कारण अधिकांश विद्यार्थी अपनी जीनियस क्षमता (अवचेतन मन) का उपयोग शिक्षा/ पढ़ाई लिखाई के क्षेत्र में नहीं कर पाते। जिसके कारण ही बच्चे साधारण प्रतीत होते हैं। हम बच्चों को और बच्चे स्वयं को साधारण मानते हैं!
          अगर आप भी अपने बच्चे को साधारण समझते हैं, तो आपको मनोविज्ञान के नए, गहनतम शोधों तथा पतंजलि योग के यम, नियम, आसन, प्राणायाम के साथ-साथ प्रत्याहार, धारणा, ध्यान के प्रयोग या इससे सम्बंधित जानकारी के अध्ययन के माध्यम से बच्चों/  विद्यार्थियों में चेतन-मन के साथ-साथ अवचेतन-मन के रूप में छिपी जीनियस प्रतिभा से परिचित होने की आवश्यकता है।
           संसार के लगभग सभी विद्यार्थियों के शरीर, चेहरे का आकार प्रकार भले ही अलग-अलग दिखता है।
          लेकिन मस्तिष्क की आंतरिक संरचना तथा मन की प्राकृतिक क्षमता/ प्रतिभा लगभग समान अर्थात जीनियस की तरह है।
          हो सकता है- यह बात सुनने में आपको अटपटा, विश्वसनीय लगे, लेकिन पतंजलि योग, अवचेतन मन के संबंध में अध्ययन करने, जानकारी रखने वाले मनोवैज्ञानिकों तथा प्रशिक्षकों, ध्यान-समाधि के जानकार ध्यानियों, योगियों, रहस्यदर्शियों, आधुनिक पश्चिमी मनोवैज्ञानिकों के नए शोध के अनुसार तथा इस संबंध में किए गए अध्ययन और प्रयोग से स्पष्ट हुआ है  कि- विद्यार्थियों/ बच्चों में छिपी हुई अवस्था में अपार मन मस्तिष्क प्रतिभा/ क्षमता विद्यमान है।
           पश्चिमी देशों के मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि- दुनिया के 90% विद्यार्थी जीनियस की तरह पैदा होते हैं, लेकिन हम सब जाने अनजाने ऐसा नकारात्मक-परवरिश, विचार-भाव, व्यवहार करते, शिक्षा-संस्कार देते तथा वातावरण निर्मित करते हैं जिससे कि- वे (अधिकांश) विद्यार्थी बड़े होते-होते साधारण या बिगड़ैल प्रतीत होने लगते हैं।
          जिससे आनुवंशिकी वैज्ञानिक मेंडल के प्रभाविता के नियमानुसार जीनियस गुण दब जाता है, तथा नकारात्मक व्यवहार, शिक्षा संस्कार, वातावरण के अनुरूप नकारात्मक गुण विकसित/ प्रभावी हो जाता है।
          जिसे पतंजलि योग के साथ मनोविज्ञान का उपयोग सुधारने तथा शिक्षोपयोगी बनाने में समर्थ है।
           पतंजलि योग का हजारों वर्षों का प्रमाण है और अब तो आधुनिक विज्ञान तथा पश्चिमी देशों के विश्व प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों का भी मानना है कि- प्रत्येक विद्यार्थियों में अपार मन मस्तिष्क क्षमता चेतन तथा अवचेतन मन के रूप में प्राकृतिक रूप से विद्यमान है। जिसमें से सामान्यतः लगभग 5% और अधिकतम लगभग 10% प्रतिभा/ क्षमता का ही उपयोग शिक्षा के क्षेत्र में कर पाते हैं। शेष जीवन भर अपरिचित या अनुपयोगी रह जाता है।
          क्योंकि लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति पर आधारित हमारे वर्तमान शिक्षा पद्धति में इससे अधिक मन-मस्तिष्क क्षमता/ प्रतिभा के उपयोग तथा विकास से संबंधित कोई जानकारी, सुविधा, शिक्षा-प्रशिक्षण उपलब्ध नहीं होने के साथ-साथ-
          देश-दुनिया के कुछ तथाकथित विद्वानों द्वारा भारतीय लोगों को लंबे समय तक अशिक्षित, हीनभावना से ग्रसित तथा मानसिक रूप से गुलाम बनाए रखने के लिए- सैकड़ों वर्षों से ऐसा नकारात्मक मानसिक वातावरण तैयार किया गया है, जिससे कि-अधिकांश आदमी, विद्यार्थी स्वयं को साधारण, तुच्छ मानने लगे। हीन भावना से ग्रसित महसूस करने लगे। जो धीरे-धीरे कई पीढ़ी पश्चात लोगों का आनुवंशिक गुण बन चुका है। जिसको मानने को लोग मजबूर हो चुके हैं. क्योंकि-
           इतिहास प्रसिद्ध तानाशाह हिटलर ने भी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि- अगर किसी गलत बात को भी बहुत लंबे समय तक दोहराया जाए तो धीरे-धीरे वह सत्य प्रतीत होने लगता है। और इसी मनोविज्ञान का शिकार लोग सैकड़ों साल से हो चुके हैं।
         जिसके प्रभाव के कारण भी लोगों/ विद्यार्थियों में हीनभावना विद्यमान है। जिसके कारण इस तरह की  उन्नत खोजों पर विश्वास नहीं करते और स्वयं को साधारण मानते हैं। जिसके कारण विद्यार्थियों के साथ देश का शिक्षा तथा बौद्धिक स्तर प्राचीन काल की तरह विश्व में सर्वश्रेष्ठ स्तर का नहीं हो पा रहा है।
            जिसे देश को विकसित, शक्तिशाली, सुखी-समृद्ध बनाने तथा देश की शिक्षा को उन्नत्त, विश्वस्तरीय बनाने के लिए सामूहिक प्रयास से सुधारा जाना आवश्यक है.
           इसीलिए भारतीय इतिहास में समय-समय पर अनेक महापुरुषों/ समाजसेवियों, देशभक्तों के द्वारा विभिन्न तरह से इस मानसिक गुलामी के प्रति जागरुक करने के प्रयास किए जाने के बावजूद भी अधिकांश लोग अभी तक इसे ठीक से समझने को तैयार ही नहीं है। जो कि- कभी सोने की चिड़िया तथा विश्वगुरु कहलाने वाले भारत देश के विश्वस्तर पर विकसित देशों की तुलना में पिछड़ने का गहरा और महत्वपूर्ण कारण है।
          इसे सुधारने के लिए लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति पर आधारित वर्तमान शिक्षा पद्धति में सुधार करते हुए विद्यार्थियों में छुपी अपार मन-मस्तिष्क क्षमता को विकसित करने के लिए शिक्षा प्रशिक्षण की सुविधा उपलब्ध करवाए जाने की आवश्यकता है।
           तथा भारतीय विद्यार्थियों में विद्यमान हीन भावना को दूर करने अर्थात मनोबल बढ़ाने तथा छिपी प्रतिभा को प्रकट कर शिक्षोपयोगी बनाने के लिए हमारे पूर्वज ऋषि मुनियों/ महापुरुषों की विद्वता से प्रेरणा के रूप में परिचित करवाए जाने के साथ-साथ विद्यार्थियों/बच्चों को उनके हर अच्छे कार्य के लिए प्रोत्साहित किये जाने तथा बेहतर पढ़ाई करने की आधुनिकतम तकनीके सिखाए जाने की आवश्यकता है।
         इस संबंध में किए गए गहन अध्ययन तथा प्रयोग से ही स्पष्ट हुआ है कि- विद्यार्थियों को पढ़ाई जीवन में  सिर्फ एकाध लोगों द्वारा या कुछ लोगों द्वारा ही प्रोत्साहित किया जाता है, और जाने-अनजाने अधिकांश लोगों द्वारा सिर्फ हतोत्साहित किया जाता है जिसका काफी दुष्प्रभाव बाल-मन, कोमल मन-मस्तिष्क पर पड़ता है। जिसके कारण विद्यार्थियों में जन्मजात प्राकृतिक रूप से उपलब्ध अपार मन मस्तिष्क क्षमता छिपी ही रह जाती है। इसलिए-
             विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभा/ बौद्धिक क्षमता  को प्रकट करने / शिक्षोपयोगी बनाने के लिए विद्यार्थियों को अधिकाधिक लोगों द्वारा खासकर पालकों तथा शिक्षकों द्वारा लगातार प्रोत्साहित किया जाना भी बहुत कारगर उपाय है।
           अगर इसके संबंध में हमें सामान्य जानकारी चाहिए तो- यह हमें आधुनिक मनोविज्ञान के अंतर्गत आधुनिक बाल/ शिक्षा मनोविज्ञान में मिल सकता है।
          लेकिन अगर इसके अर्थात अवचेतन मन/ दायें मस्तिष्क / विज्ञानमय कोष/ सुक्ष्मशरीर में छिपी प्रतिभा के संबंध में विस्तृत तथा विकास और उपयोग से संबंधित जानकारी प्राप्त करने की इच्छा हो तो- इसके लिए हमें मनोविज्ञान के साथ-साथ पतंजलि योग या ध्यान-विज्ञान के शरण में जाने की आवश्यकता है, क्योंकि इससे संबंधित साहित्यों में विस्तृत जानकारी वैज्ञानिक स्वरूप से उपलब्ध है।
          इससे संबंधित कुछ जानकारी देश-विदेश के मन-मस्तिष्क क्षमता विकास संबंधी प्रशिक्षण देने वाले अनुसंधान केंद्रों तथा कंपनियों, फ्रेंचाइजी सेंटर के पास भी उपलब्ध है। लेकिन वह महंगे फ़ीस तथा सर्व सुलभ नहीं होने के कारण आम लोगों के पहुंच से दूर है।परन्तु आप चाहे तो इनसे भी लाभ ले सकते हैं।
          लेकिन योग खासकर पतंजलि-योग/ ध्यान से संबंधित प्राचीन भारतीय साहित्यों में तथा इसके प्रयोगकर्ता ध्यानियों, योगियों, लोगों के पास विद्यार्थियों में जन्मजात प्राकृतिक रूप से उपस्थित अवचेतन मन रूपी मन-मस्तिष्क क्षमता संबंधी जानकारी उपलब्ध है, जिसे खोजकर, समझकर, शोध कर शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय शिक्षा को उन्नत बनाने के लिए उपयोग किए जाने की आवश्यकता है।
          अतः विद्यार्थियों को खासकर भारतीय विद्यार्थियों को आधुनिक विश्वस्तरीय वैज्ञानिकों, विद्वानों तथा प्राचीन भारतीय विद्वानों की तरह जीनियस बनाने के लिए पतंजलि योग के सहयोग लेंने, उपयोग करने की आवश्यकता है। अगर आपने मन लगाकर मनोविज्ञान के साथ पतंजलि योग ध्यान सम्बन्धी प्रशिक्षण प्राप्त किया, साहित्य का अध्ययन तथा प्रयोग किया तो यह अपेक्षित लाभ/ ज्ञान प्रदान करने में सक्षम है।
          पतंजलि योग के उपयोग से शारीरिक स्वास्थ्य लाभ तथा शरीर को मजबूत बनाने से तो अधिकांश लोग परिचित हो चुके हैं। अब इससे विद्यार्थियों, मनुष्य  के मन-मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता विकास से भी परिचित हो सकेंगे।
          अगर आप ऐसा कर सके तो यह आपके, आपके बच्चों/ विद्यार्थियों तथा समाज, देश, दुनिया के लिए शिक्षा तथा योग-ध्यान के क्षेत्र में बहुत बड़ी उपलब्धि सिद्ध होगी।
              🌷धन्यवाद🌷
           रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं)
      पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)

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