"21 जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की विशेष सार्थकता के लिए" -
21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व में जोर-शोर से मनाया जाता है। इस अवसर पर पूरे विश्व ख़ासकर भारत में विशेष रूप से योग के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, चूँकि देश-विदेश में पूरे शासन-प्रशासन, विभिन्न योग समितियों के साथ करोड़ों-अरबों लोग योग कार्यक्रम में शामिल होते हैं, इसलिए योग चिकित्सा के रूप में आसन और प्राणायाम के अभ्यास करने/ करवाने तथा इससे प्राप्त होने वाले शारीरिक स्वास्थ्य लाभ से परिचित करवाने के साथ-साथ-
संक्षिप्त रूप में कम से कम योग के प्रारंभिक सात अंगों- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार तथा धारणा-ध्यान का अभ्यास तथा इससे प्राप्त होने वाले विभिन्न बहुआयामी लाभ से भी परिचित करवाने की आवश्यकता है।
क्योकि-
योग के आसन प्राणायाम के पश्चात के चरण- "प्रत्याहार-धारणा-ध्यान" मानव मन-मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता विकास की विश्व की सर्वोत्तम विधिवत मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, अर्थात प्रत्येक मानव/विद्यार्थियों में जन्मजात प्राकृतिक रूप में छिपी अपार मन-मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता सक्रिय/जागृत/प्रगट करने की प्रक्रिया है, जो कि- शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी (सर्वाधिक) उपयोगी है, इसलिए इस बारे में पर्याप्त जानकारी से जनमानस खासकर विद्यार्थियों को परिचित करवाना "सोने पे सुहागा" जैसा सिद्ध होगा।
अब अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाते काफी दिन हो जाने के कारण सबको धीरे-धीरे योग के बहुआयामी लाभ से परिचित होने की आवश्यकता है।
क्योंकि-
योग किसी धर्म-संप्रदाय की चीज नहीं बल्कि - भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान, जीव-विज्ञान की तरह एक प्राकृतिक मानव विज्ञान/खोज/आविष्कार है।
इसलिए यह-
विश्व स्तर पर सर्वधर्म समभाव सूत्र- "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना पैदा कर विभिन्न देशों के बीच बढ़ते वैमनस्य, विश्व खतरे को दूर करने तथा विश्व-शांति स्थापित कर नोबेल पुरस्कार प्राप्त करवा सकने में सक्षम ज्ञान-विज्ञान/ प्रक्रिया है।
योग के जिस रुप से वर्तमान में विश्व भर के लोग खासकर भारतवासी परिचित हैं, प्रायः वह सिर्फ आसन और प्राणायाम के रूप में अधूरा योग है! क्योंकि-
योग के क्रमशः आठ अंग (चरण)- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि है। योग के प्रारंभिक पांच चरण "धारणा-ध्यान-समाधि" के रूप में छठवें, सातवें और आठवें चरण को अनुभव करने की तैयारी या भूमिका है।
प्रारंभिक चरणों को पूरा किए बिना "धारणा-ध्यान-समाधि" का अनुभव अत्यधिक कठिन अर्थात असंभव जैसा सिद्ध होता है, जिसके लिए यम नियम के साथ आसन प्राणायाम का अभ्यास आवश्यक तथा उपयोगी है।
परन्तु-
वास्तविक संपूर्ण लाभ के लिए-"धारणा-ध्यान-समाधि" के रूप में मानव मन-मस्तिष्क (चेतना) विकास की उच्चतम विकसित स्थिति से भी परिचित होने की आवश्यकता है।
इसमें से ध्यान और समाधि आध्यात्मिक/अभौतिक/अलौकिक/सूक्ष्म/ उर्जा जगत के अनुभव या उपलब्धि का हिस्सा है। लेकिन- "धारणा" जिसे आम बोलचाल की भाषा में एकाग्रता कहा जाता है, जो कि- संसार या मानव जीवन के सभी क्षेत्रों खासकर शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में टॉपर बनने या बनाने की "मानसिक स्थिति" अर्थात विज्ञान की भाषा में मन मस्तिष्क की "अल्फा तरंग" अवस्था है। यह वही मानसिक स्थिति है, जिसका उपयोग जाने-अनजाने विश्व के सभी जीनियस विद्यार्थी, वैज्ञानिक तथा प्रथम श्रेणी के बुद्धिमान,विद्वान जन करते हैं।
आज के आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा प्रधान युग में मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में धारणा अर्थात एकाग्रता का विधिवत प्रशिक्षण देना या अभ्यास करवाना सर्वाधिक उपयोगी/लाभदायक है।
क्योंकि ऐसा करने पर ही सभी मन लगाकर योग कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना बेहतर योगदान दे सकेंगे। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के पश्चात भी पूरे वर्ष भर योगाभ्यास से जुड़े रहेंगे, वर्ना पिछले कार्यक्रमों का सर्वविदित अनुभव है कि - योग दिवस को वर्ष में एक दिन मनाने के बाद अधिकांश लोग पूरे वर्ष के लिए उसे भूल जाते हैं, जो कि- योग की वास्तविक लाभ/ सफलता या योग के विस्तार के लिए बिल्कुल भी उचित या अनुकूल स्थिति नहीं है।
इसलिए व्यापक या संपूर्ण लाभ के लिए योग के बहुआयामी लाभ के साथ-साथ खासकर धारणा के अभ्यास के द्वारा एकाग्रता के रूप में बौद्धिक या मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तथा इससे शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हो सकने/होने वाले लाभ से सबको परिचित करवाने के रूप में प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।
जिससे कि- लोग वर्ष भर हर वर्ष योगाभ्यास को मन लगाकर करते रहे, जिससे हर योग-साधक स्वस्थ, समझदार, अनुशासित, चरित्रवान, बहुमुखी प्रतिभावान और समृद्ध, शक्तिशाली बनकर देश/विश्व को भी विकसित और समृद्ध शक्तिशाली बनाने तथा वसुधैव कुटुंबकम की भावना पैदा कर विश्व-शान्ति स्थापित करने में अपना बेहतर/अमूल्य योगदान दे सके।
अगर शीर्ष स्तर के साथ-साथ हर स्तर पर सामूहिक सहयोग से ऐसा किया सका तो यह योग तथा सबके लिए "सोने पे सुहागा" जैसा सिद्ध होगा।
🌷धन्यवाद🌷
रामेश्वर वर्मा की कलम से.......
21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पूरे विश्व में जोर-शोर से मनाया जाता है। इस अवसर पर पूरे विश्व ख़ासकर भारत में विशेष रूप से योग के विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, चूँकि देश-विदेश में पूरे शासन-प्रशासन, विभिन्न योग समितियों के साथ करोड़ों-अरबों लोग योग कार्यक्रम में शामिल होते हैं, इसलिए योग चिकित्सा के रूप में आसन और प्राणायाम के अभ्यास करने/ करवाने तथा इससे प्राप्त होने वाले शारीरिक स्वास्थ्य लाभ से परिचित करवाने के साथ-साथ-
संक्षिप्त रूप में कम से कम योग के प्रारंभिक सात अंगों- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार तथा धारणा-ध्यान का अभ्यास तथा इससे प्राप्त होने वाले विभिन्न बहुआयामी लाभ से भी परिचित करवाने की आवश्यकता है।
क्योकि-
योग के आसन प्राणायाम के पश्चात के चरण- "प्रत्याहार-धारणा-ध्यान" मानव मन-मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता विकास की विश्व की सर्वोत्तम विधिवत मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है, अर्थात प्रत्येक मानव/विद्यार्थियों में जन्मजात प्राकृतिक रूप में छिपी अपार मन-मस्तिष्क प्रतिभा-क्षमता सक्रिय/जागृत/प्रगट करने की प्रक्रिया है, जो कि- शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में काफी (सर्वाधिक) उपयोगी है, इसलिए इस बारे में पर्याप्त जानकारी से जनमानस खासकर विद्यार्थियों को परिचित करवाना "सोने पे सुहागा" जैसा सिद्ध होगा।
अब अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाते काफी दिन हो जाने के कारण सबको धीरे-धीरे योग के बहुआयामी लाभ से परिचित होने की आवश्यकता है।
क्योंकि-
योग किसी धर्म-संप्रदाय की चीज नहीं बल्कि - भौतिकी, रसायन, चिकित्सा विज्ञान, जीव-विज्ञान की तरह एक प्राकृतिक मानव विज्ञान/खोज/आविष्कार है।
इसलिए यह-
विश्व स्तर पर सर्वधर्म समभाव सूत्र- "वसुधैव कुटुंबकम" की भावना पैदा कर विभिन्न देशों के बीच बढ़ते वैमनस्य, विश्व खतरे को दूर करने तथा विश्व-शांति स्थापित कर नोबेल पुरस्कार प्राप्त करवा सकने में सक्षम ज्ञान-विज्ञान/ प्रक्रिया है।
योग के जिस रुप से वर्तमान में विश्व भर के लोग खासकर भारतवासी परिचित हैं, प्रायः वह सिर्फ आसन और प्राणायाम के रूप में अधूरा योग है! क्योंकि-
योग के क्रमशः आठ अंग (चरण)- यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि है। योग के प्रारंभिक पांच चरण "धारणा-ध्यान-समाधि" के रूप में छठवें, सातवें और आठवें चरण को अनुभव करने की तैयारी या भूमिका है।
प्रारंभिक चरणों को पूरा किए बिना "धारणा-ध्यान-समाधि" का अनुभव अत्यधिक कठिन अर्थात असंभव जैसा सिद्ध होता है, जिसके लिए यम नियम के साथ आसन प्राणायाम का अभ्यास आवश्यक तथा उपयोगी है।
परन्तु-
वास्तविक संपूर्ण लाभ के लिए-"धारणा-ध्यान-समाधि" के रूप में मानव मन-मस्तिष्क (चेतना) विकास की उच्चतम विकसित स्थिति से भी परिचित होने की आवश्यकता है।
इसमें से ध्यान और समाधि आध्यात्मिक/अभौतिक/अलौकिक/सूक्ष्म/ उर्जा जगत के अनुभव या उपलब्धि का हिस्सा है। लेकिन- "धारणा" जिसे आम बोलचाल की भाषा में एकाग्रता कहा जाता है, जो कि- संसार या मानव जीवन के सभी क्षेत्रों खासकर शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में टॉपर बनने या बनाने की "मानसिक स्थिति" अर्थात विज्ञान की भाषा में मन मस्तिष्क की "अल्फा तरंग" अवस्था है। यह वही मानसिक स्थिति है, जिसका उपयोग जाने-अनजाने विश्व के सभी जीनियस विद्यार्थी, वैज्ञानिक तथा प्रथम श्रेणी के बुद्धिमान,विद्वान जन करते हैं।
आज के आधुनिक वैज्ञानिक शिक्षा प्रधान युग में मानव मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीक के रूप में धारणा अर्थात एकाग्रता का विधिवत प्रशिक्षण देना या अभ्यास करवाना सर्वाधिक उपयोगी/लाभदायक है।
क्योंकि ऐसा करने पर ही सभी मन लगाकर योग कार्यक्रम को सफल बनाने में अपना बेहतर योगदान दे सकेंगे। अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के पश्चात भी पूरे वर्ष भर योगाभ्यास से जुड़े रहेंगे, वर्ना पिछले कार्यक्रमों का सर्वविदित अनुभव है कि - योग दिवस को वर्ष में एक दिन मनाने के बाद अधिकांश लोग पूरे वर्ष के लिए उसे भूल जाते हैं, जो कि- योग की वास्तविक लाभ/ सफलता या योग के विस्तार के लिए बिल्कुल भी उचित या अनुकूल स्थिति नहीं है।
इसलिए व्यापक या संपूर्ण लाभ के लिए योग के बहुआयामी लाभ के साथ-साथ खासकर धारणा के अभ्यास के द्वारा एकाग्रता के रूप में बौद्धिक या मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तथा इससे शिक्षा तथा विज्ञान और टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में हो सकने/होने वाले लाभ से सबको परिचित करवाने के रूप में प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।
जिससे कि- लोग वर्ष भर हर वर्ष योगाभ्यास को मन लगाकर करते रहे, जिससे हर योग-साधक स्वस्थ, समझदार, अनुशासित, चरित्रवान, बहुमुखी प्रतिभावान और समृद्ध, शक्तिशाली बनकर देश/विश्व को भी विकसित और समृद्ध शक्तिशाली बनाने तथा वसुधैव कुटुंबकम की भावना पैदा कर विश्व-शान्ति स्थापित करने में अपना बेहतर/अमूल्य योगदान दे सके।
अगर शीर्ष स्तर के साथ-साथ हर स्तर पर सामूहिक सहयोग से ऐसा किया सका तो यह योग तथा सबके लिए "सोने पे सुहागा" जैसा सिद्ध होगा।
🌷धन्यवाद🌷
रामेश्वर वर्मा की कलम से.......
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