विद्यार्थियों में सीखने की चाह का महत्व

      🌷विद्यार्थियों में सीखने की चाह का महत्व🌷
     
        मानव या विद्यार्थी उसी काम को करता है या उसी काम में मजा आता है अर्थात उसी काम में सफल होता है जिसकी उसे चाह (रूचि) होती है।
        इसी तरह विद्यार्थियों में विद्या अध्ययन के लिए सीखने की चाह आवश्यक है, जब तक विद्यार्थियों में सीखने की चाह नहीं होगी, तब तक वह ज्ञानार्जन करने में असमर्थ रहेगा/ रहता है।
         स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता अभियान के अंतर्गत विद्यार्थियों में गुणवत्ता सुधार परिलक्षित नहीं होने के अनेक कारणों में से एक प्रमुख कारण है विद्यार्थियों में सीखने या पढ़ने लिखने की चाह (रूचि) नहीं होना।
         यह गहरा मनोविज्ञान नियम है कि- जब तक कोई मानव/ विद्यार्थी सीखना नहीं चाहे तब तक दुनिया का कोई व्यक्ति या गुरु उसे सीखा नहीं सकता।
        यूं तो किसी चीज में रुचि या किसी चीज के सीखने की चाह जन्म से होती है, लेकिन उस पर परिस्थिति/ माहौल (देश-काल-वातावरण) का भी काफी प्रभाव पड़ता है। अगर किसी विद्यार्थी को जन्म के साथ बचपन से ही परिवार के द्वारा पढ़ाई-लिखाई के लिए दबाव डालने के बजाय प्रेरित किया जाए, अनुकूल माहौल प्रदान किया जाए, नए ज्ञान सीखने (ज्ञानार्जन) की प्रेरणा दी जाए, तो बहुत संभावना है कि बच्चा स्कूल आकर पढ़ने-लिखने/सीखने में उत्सुक होगा और होशियार बनेगा जिसे शिक्षक आवश्यक मार्गदर्शन तथा शिक्षा देकर और बेहतर बना सकेंगे।
         विद्यार्थियों को होशियार बनाने या शिक्षा में गुणवत्ता लाने का पहला सीढ़ी है- विद्यार्थियों में सीखने की चाह (रूचि) उत्पन्न करना। पालको, रिश्तेदारों, आसपास के लोगों द्वारा प्रेरणा दिए जाने से सीखने की चाह पैदा होने या विकसित होने की संभावना बढ़ जाती है। लेकिन-
         चूँकि यह जन्मजात आनुवंशिक गुण है, इसलिए अनेक बच्चों पर इसका प्रभाव नहीं हो पाता जिसके कारण ही वे पढ़ने में बहुत कमजोर रह जाते हैं, और शिक्षा में वास्तविक गुणवत्ता नहीं आ पाता।
         यह कटु सत्य है कि- हर मानव/विद्यार्थी का हर कार्य में रुचि हो या हर कार्य में दक्ष हो यह निश्चित नहीं है। मानव/विद्यार्थियों में किसी एक तथा कुछ बहुमुखी प्रतिभावान विद्यार्थियों में एक से अधिक  कला या विषय में पारंगत होने की अनुकूलता या प्रवृत्ति होती है।
        इसलिए जिस तरह कुछ मानव/विद्यार्थी ही कलाकार, खिलाड़ी, राजनेता, व्यापारी, उद्योगपति, कृषक आदि बन पाते हैं। सभी नहीं बन पाते।ठीक उसी तरह कुछ विद्यार्थी ही अच्छी पढ़ाई करके उच्च शिक्षित हो सकने या बड़ी नौकरी पा सकने योग्य शिक्षा अर्जित कर सकने में समर्थ होते है।
        इसलिए सब को एक ही ढांचे में ढालने का असफल प्रयास करने के बजाए बच्चों/विद्यार्थियों में जन्मजात उपलब्ध प्रतिभा को ही विकसित कर उसे सफल इंसान बनाने का प्रयास किया जाना ही बेहतर मनोवैज्ञानिक उपाय है।
       अथवा-
       मनोविज्ञान को इतना विकसित किया जाए अर्थात ऐसा कोई असरकारक मनोवैज्ञानिक तकनीक विकसित की जाए जिससे कि हर बच्चे को विद्यार्थी को पढ़ने में बहुत होशियार बनाया जा सके।
       या इच्छानुसार किसी भी सांचे में ढाला जा सके अर्थात किसी भी क्षेत्र में पारंगत बनाया जा सके।

                          🌷धन्यवाद🌷
                              रामेश्वर वर्मा (शिक्षक पं.)

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