वैज्ञानिक खोज तथा ज्ञान-विज्ञान का उद्गम स्रोत- "अल्फा तरंग अवस्था"
योग के आठ चरण होते हैं, जिनमें से सातवां चरण है- *ध्यान* , जो कि मानव चेतना, मन-मस्तिष्क की बहुत उन्नत अवस्था है। ध्यान का अनुभव योग विधि के अलावा अन्य सैकड़ों विधि से भी संभव है। जिसका पर्याप्त वर्णन प्राचीन भारतीय, तिब्बती, बौद्ध साहित्यों में उपलब्ध है। ध्यान तिब्बत, चीन, जापान आदि देशों में भी बहुत समय से काफी प्रचलित है, जिसका प्रभाव वहां के लोगों की बेहतर कार्यकुशलता तथा वहां की उन्नत शिक्षा के रूप में देखने को मिलता है।
योग-ध्यान भारत की बहुत बड़ी खोज/उपलब्धि तथा कीमती ज्ञान-विज्ञान है, जो शिक्षा का सबसे अनिवार्य और महत्वपूर्ण हिस्सा/ विषय होना चाहिए,
क्योंकि- प्राचीन काल में यह भारतीय शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था। जिसके विधिवत अभ्यास के पश्चात शिक्षा ग्रहण करने से विद्यार्थी तथा गुरु ज्ञान की गहराइयों में पहुंच पाते थे। नए, दुर्लभ, विश्वस्तरीय ज्ञान प्राप्त/ अनुभव कर पाते थे, और जिस ज्ञान की बदौलत ही भारत ज्ञान का, विश्व शिक्षा का केंद्र हुआ करता था।
उस जमाने में देश-काल-वातावरण के अनुरूप भौतिकी यंत्रों के विकास के बजाय तन-मन को सुखी स्वस्थ रखने के लिए प्राकृतिक जीवन शैली तथा आत्मा (चेतना), परमात्मा प्रकृति के गहन सत्यों, अंतर जगत अर्थात सूक्ष्म जगत पर आधारित ज्ञान के साथ अन्य उपयोगी विषयों की शिक्षा दी जाती थी, और भारतीय ऋषियों/ विद्वानों के द्वारा बिना किसी आधुनिक युग के तरह की विशेष बौद्धिक विकास या प्रयोगशाला के इस क्षेत्र के साथ-साथ विभिन्न विषयों में ज्ञान की काफी गहराई और ऊंचाइयों को उपलब्ध किया गया। जो कि मानव मन-चेतना के ध्यान योग की अवस्था से उपलब्ध किया गया। जिसे आज के विज्ञान की भाषा में मन मस्तिष्क की "अल्फा/ थीटा तरंग अवस्था" कहा जाता है।
आधुनिक युग में सामान्यतः माना जाता है कि विभिन्न विषयों में नया ज्ञान, खोज, आविष्कार विचार, बुद्धि, तर्क अर्थात मनोविज्ञान की भाषा में चेतन मन से प्राप्त होता है। आधुनिक विज्ञान की भाषा में यह मन मस्तिष्क की बीटा तरंग अवस्था है, जो कि मन-मस्तिष्क की सामान्य प्रतिभा/क्षमता है, जिससे पहले से ज्ञात चीजों के बाबत ही कुछ समझा, सोच-विचार या तर्क-वितर्क किया जा सकता है, अज्ञात चीजों के बारे में जानना अर्थात अज्ञात चीजों का खोज, आविष्कार करना इस विचार, बुद्धि, तर्क की क्षमता के बाहर की चीज है।
अज्ञात अर्थात नए ज्ञान की खोज/ आविष्कार अंतर्बोध (इंट्यूशन) की अवस्था में ही उपलब्ध होता है, जिसे विज्ञान की भाषा में "अल्फा तरंग अवस्था" और अध्यात्म की भाषा में ध्यान-योग की अवस्था तथा मनोविज्ञान की भाषा में अवचेतन मन की अवस्था कहा जाता है। जिसका शिक्षा के क्षेत्र में विधिवत उपयोग राज्य-देश-दुनिया के ज्ञान को नई ऊंचाई, नया आयाम प्रदान करने वाला सिद्ध होगा।
भारत के स्वतंत्र होने के पहले विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारतीय ज्ञान को निम्न सिद्ध करने के लिए पदार्थ/चेतन मन पर आधारित ज्ञान-विज्ञान का पर्याप्त प्रचार प्रसार और विकास किया गया तथा उस अवधि में भारतीय ज्ञान को बदनाम और नष्ट करके बाहरी (विदेशी) ज्ञान-विज्ञान को प्रतिष्ठित किया गया।
सैकड़ों वर्षों की गुलामी के दौरान विदेशी लोगों की इच्छा के अनुरूप भारत-देश के लोग भी अपने ध्यान-योग, आयुर्वेद, अध्यात्म के साथ अन्य सभी महत्वपूर्ण स्वदेशी ज्ञान को साधारण तथा विदेशी ज्ञान को असाधारण मानने लगे। और-
हिटलर के अनुसार-
असत्य भी बार-बार दोहराने से सत्य प्रतीत होने लगता है। लंबे समय तक किसी बात को दोहराने से मानव मस्तिष्क उसे सत्य मानने लगता है और धीरे-धीरे वह मानव के अनुवांशिक गुण का हिस्सा हो जाता है। यह मनोविज्ञान का गहरा नियम है। जिसका व्यापक प्रभाव आज देश में देखने को मिलता है।
लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा भारतीय ज्ञान को नष्ट करने के लिए पूरा प्रयास करने के बावजूद संसार मे सफल होने, उच्च स्तरीय होने, शक्तिशाली, ज्ञानवान होने, नए ज्ञानार्जन, खोज-आविष्कार करने का वास्तविक सूत्र- योग-ध्यान के रूप में आज भी भारत में विद्यमान है।
जिसका शिक्षा के क्षेत्र में नया ज्ञान प्राप्त करने, खोज-आविष्कार करने में विधिवत उपयोग किया जाना विश्व ज्ञान को नई ऊंचाइयों में पहुंचाने वाला तथा भारत की विश्व गुरु की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने वाला सिद्ध होगा।
🌷धन्यवाद🌷
योग के आठ चरण होते हैं, जिनमें से सातवां चरण है- *ध्यान* , जो कि मानव चेतना, मन-मस्तिष्क की बहुत उन्नत अवस्था है। ध्यान का अनुभव योग विधि के अलावा अन्य सैकड़ों विधि से भी संभव है। जिसका पर्याप्त वर्णन प्राचीन भारतीय, तिब्बती, बौद्ध साहित्यों में उपलब्ध है। ध्यान तिब्बत, चीन, जापान आदि देशों में भी बहुत समय से काफी प्रचलित है, जिसका प्रभाव वहां के लोगों की बेहतर कार्यकुशलता तथा वहां की उन्नत शिक्षा के रूप में देखने को मिलता है।
योग-ध्यान भारत की बहुत बड़ी खोज/उपलब्धि तथा कीमती ज्ञान-विज्ञान है, जो शिक्षा का सबसे अनिवार्य और महत्वपूर्ण हिस्सा/ विषय होना चाहिए,
क्योंकि- प्राचीन काल में यह भारतीय शिक्षा का अनिवार्य हिस्सा हुआ करता था। जिसके विधिवत अभ्यास के पश्चात शिक्षा ग्रहण करने से विद्यार्थी तथा गुरु ज्ञान की गहराइयों में पहुंच पाते थे। नए, दुर्लभ, विश्वस्तरीय ज्ञान प्राप्त/ अनुभव कर पाते थे, और जिस ज्ञान की बदौलत ही भारत ज्ञान का, विश्व शिक्षा का केंद्र हुआ करता था।
उस जमाने में देश-काल-वातावरण के अनुरूप भौतिकी यंत्रों के विकास के बजाय तन-मन को सुखी स्वस्थ रखने के लिए प्राकृतिक जीवन शैली तथा आत्मा (चेतना), परमात्मा प्रकृति के गहन सत्यों, अंतर जगत अर्थात सूक्ष्म जगत पर आधारित ज्ञान के साथ अन्य उपयोगी विषयों की शिक्षा दी जाती थी, और भारतीय ऋषियों/ विद्वानों के द्वारा बिना किसी आधुनिक युग के तरह की विशेष बौद्धिक विकास या प्रयोगशाला के इस क्षेत्र के साथ-साथ विभिन्न विषयों में ज्ञान की काफी गहराई और ऊंचाइयों को उपलब्ध किया गया। जो कि मानव मन-चेतना के ध्यान योग की अवस्था से उपलब्ध किया गया। जिसे आज के विज्ञान की भाषा में मन मस्तिष्क की "अल्फा/ थीटा तरंग अवस्था" कहा जाता है।
आधुनिक युग में सामान्यतः माना जाता है कि विभिन्न विषयों में नया ज्ञान, खोज, आविष्कार विचार, बुद्धि, तर्क अर्थात मनोविज्ञान की भाषा में चेतन मन से प्राप्त होता है। आधुनिक विज्ञान की भाषा में यह मन मस्तिष्क की बीटा तरंग अवस्था है, जो कि मन-मस्तिष्क की सामान्य प्रतिभा/क्षमता है, जिससे पहले से ज्ञात चीजों के बाबत ही कुछ समझा, सोच-विचार या तर्क-वितर्क किया जा सकता है, अज्ञात चीजों के बारे में जानना अर्थात अज्ञात चीजों का खोज, आविष्कार करना इस विचार, बुद्धि, तर्क की क्षमता के बाहर की चीज है।
अज्ञात अर्थात नए ज्ञान की खोज/ आविष्कार अंतर्बोध (इंट्यूशन) की अवस्था में ही उपलब्ध होता है, जिसे विज्ञान की भाषा में "अल्फा तरंग अवस्था" और अध्यात्म की भाषा में ध्यान-योग की अवस्था तथा मनोविज्ञान की भाषा में अवचेतन मन की अवस्था कहा जाता है। जिसका शिक्षा के क्षेत्र में विधिवत उपयोग राज्य-देश-दुनिया के ज्ञान को नई ऊंचाई, नया आयाम प्रदान करने वाला सिद्ध होगा।
भारत के स्वतंत्र होने के पहले विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा भारतीय ज्ञान को निम्न सिद्ध करने के लिए पदार्थ/चेतन मन पर आधारित ज्ञान-विज्ञान का पर्याप्त प्रचार प्रसार और विकास किया गया तथा उस अवधि में भारतीय ज्ञान को बदनाम और नष्ट करके बाहरी (विदेशी) ज्ञान-विज्ञान को प्रतिष्ठित किया गया।
सैकड़ों वर्षों की गुलामी के दौरान विदेशी लोगों की इच्छा के अनुरूप भारत-देश के लोग भी अपने ध्यान-योग, आयुर्वेद, अध्यात्म के साथ अन्य सभी महत्वपूर्ण स्वदेशी ज्ञान को साधारण तथा विदेशी ज्ञान को असाधारण मानने लगे। और-
हिटलर के अनुसार-
असत्य भी बार-बार दोहराने से सत्य प्रतीत होने लगता है। लंबे समय तक किसी बात को दोहराने से मानव मस्तिष्क उसे सत्य मानने लगता है और धीरे-धीरे वह मानव के अनुवांशिक गुण का हिस्सा हो जाता है। यह मनोविज्ञान का गहरा नियम है। जिसका व्यापक प्रभाव आज देश में देखने को मिलता है।
लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों के द्वारा भारतीय ज्ञान को नष्ट करने के लिए पूरा प्रयास करने के बावजूद संसार मे सफल होने, उच्च स्तरीय होने, शक्तिशाली, ज्ञानवान होने, नए ज्ञानार्जन, खोज-आविष्कार करने का वास्तविक सूत्र- योग-ध्यान के रूप में आज भी भारत में विद्यमान है।
जिसका शिक्षा के क्षेत्र में नया ज्ञान प्राप्त करने, खोज-आविष्कार करने में विधिवत उपयोग किया जाना विश्व ज्ञान को नई ऊंचाइयों में पहुंचाने वाला तथा भारत की विश्व गुरु की खोई हुई प्रतिष्ठा को पुनः स्थापित करने वाला सिद्ध होगा।
🌷धन्यवाद🌷
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