पत्रकारिता- योग ध्यान की अप्रत्यक्ष साधना विधि है

 पत्रकारिता का मनोविज्ञान-

 " पत्रकारिता "- योग ध्यान की अप्रत्यक्ष साधना विधि है
          किसी भी मंजिल/ स्थान/ उद्देश्य तक पहुंचने के प्रायः अनेक रास्ते /विधि होते हैं। प्रारंभ में रास्ते सामान्य तथा अलग-अलग प्रतीत होते हैं, पर मंजिल पर पहुंचने पर उनके "अद्वैतता" अर्थात सबके एक होने का अनुभव होता है।
          ठीक इसी तरह ध्यान-समाधि अनुभव करने, योग की उच्च अवस्था को अनुभव करने, छठवीं इंद्रिय सक्रिय करने, अलौकिक जगत को अनुभव करने, अस्तित्व के परम सत्य, आत्मा, परमात्मा को समझने की अनेक विधियां हैं। जिनमें से प्राचीन से प्राचीन तथा आधुनिक से आधुनिक  उच्चस्तरीय विधि अर्थात सब विधियों का सारांश है- *"साक्षीभाव की साधना"*
साक्षी भाव की साधना मुख्यतः राजयोग/सांख्ययोग अर्थात गहरी अनुभूति, समझ पर आधारित है।
         "जिनकी क्रिया विधि ठीक पत्रकारिता के ही समान है।"
योग ध्यान के अंतर्गत साक्षी भाव की साधना निष्क्रिय है तथा पत्रकारिता उसी का अर्थात योग ध्यान या साक्षी भाव का सक्रिय रुप है।
          साक्षी भाव की साधना में पत्रकारिता की तरह जीवन, संसार, समाज के विभिन्न चीजो, घटनाओं को सजगता पूर्वक तटस्थ होकर, निष्काम भाव से देखने या अनुभव करने पर जोर दिया जाता/ अभ्यास किया जाता है।
          इसी को भगवान कृष्ण ने "निष्काम कर्म" कहा है। यह साक्षी भाव की साधना किसी किसी को सुनने में आसान लग सकता है; लेकिन जीवन में अमल में लाने पर काफी कठिन महसूस होता है। जिसमें वर्षों लग जाते हैं। इतना धीरज बहुत कम लोगों में होता है, इसीलिए इस साधना को बहुत कम लोग कर पाते हैं,
       लेकिन-
          "यह साधना पत्रकारिता से जुड़े प्रबुद्धजनों के लिए काफी आसान सिद्ध होगा।" इसके लिए पत्रकारिता में सिर्फ एक चीज ध्यान देने की आवश्यकता है और वह है- *निष्पक्ष पत्रकारिता।*
          अस्तित्व/परमात्मा या स्वयं के अंतर्मन को साक्षी मानकर निष्पक्ष भाव से तटस्थ रहकर पत्रकारिता करने से मानव मन/चेतना अप्रत्यक्ष रुप से काफी विकसित हो जाता है। इससे  योग-ध्यान की विभिन्न साधनाओं से उपलब्ध होने वाली उपलब्धियों, अनुभवों की तरह अप्रत्यक्ष तथा प्राकृतिक रूप से अर्थात स्वमेव आध्यात्मिक उपलब्धि, अनुभूति प्राप्त होती है, लेकिन पत्रकारिता को सांसारिक कार्य समझ कर प्रायः इसके अप्रत्यक्ष आध्यात्मिक लाभ की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया जाता।
          जिसे ध्यान के द्वारा आसानी से अनुभव किया जा सकता है, अर्थात इसे दूसरे शब्दों में कहा जाए तो मन/ चेतना के अप्रत्यक्ष रुप से काफी विकसित हो जाने के कारण अन्य लोगों की तुलना में ध्यान में सफलता काफी आसानी से उपलब्ध होती है, जिसे पत्रकारिता के साथ साथ पहले से योग ध्यान की साधना में जुड़े प्रबुद्धजन आसानी से महसूस कर सकते हैं।
          यूं तो पत्रकारिता स्वयं में एक साक्षीभाव/ सांख्ययोग की साधना है, लेकिन इसके लाभ या प्रभाव को अनुभव करने के लिए प्रतिदिन एक छोटे से मानसिक प्रक्रिया के रूप में ध्यान विधि का उपयोग किया जाना सोने पर सुहागा जैसा सिद्ध होगा।
           जिसके लिए  पत्रकारिता से जुड़े साथियों को पत्रकारिता के साथ साथ कुछ दिनों तक स्वयं या किसी योग-ध्यान-समाधि के जानकार योग्य गुरु के मार्गदर्शन में 24 घंटे में एक बार कम से कम 10 - 15 मिनट के लिए ध्यान-योग साधक की तरह एकांत में ध्यान की अवस्था अर्थात आंख हल्के से बंद कर शांत एकाग्र अवस्था में बैठकर या लेटकर पैर से लेकर सिर तक पूरे शरीर को रिलैक्स (शिथिल) महसूस करते हुए स्वयं के विचारों  या शरीर में हो रही सुक्ष्म हलचल, कंपन अथवा विपश्यना ध्यान की तरह आती-जाती श्वास को देखने/ महसूस करने या कुछ देर तक ओम का उच्चारण करने के पश्चात उसके कंपन को सुनने अनुभव करने अथवा रुचि अनुकूल अन्य किसी भी ध्यान विधि को करने की आवश्यकता है।
          इस तरह के कुछ ही दिनों के अभ्यास के बाद देखेंगे कि- आप धीरे-धीरे ध्यान में डूबने लगे हैं। आपको ध्यान का  अलौकिक अनुभव, निर्विचार अवस्था का अनुभव होने लगा है, अर्थात आप ध्यान-योग की गहरी/ऊँची अवस्था अर्थात विज्ञान की भाषा में मन मस्तिष्क की अल्फा तरंग अवस्था को अनुभव करने लगे हैं। आप में आध्यात्मिकता का भाव गहराने लगा है, क्योंकि साक्षीभाव की साधना छठी इंद्रिय या तीसरी आंख अर्थात विज्ञान की भाषा में पीनियल ग्रन्थि तथा योग की भाषा में आज्ञा चक्र को खोलने/ सक्रिय करने/मजबूत बनाने की विश्व प्रसिद्ध विधि है, इसलिए-
          इस तरह के पत्रकारिता के साथ ध्यान प्रयोग के उपयोग से आप महसूस करेंगे कि छठी इंद्रीय या तीसरी आंख अर्थात प्रज्ञाचक्षु मजबूत होने/ खुलने लगा है। निष्पक्ष पत्रकारिता का भाव प्रगाढ़ होने लगा है। स्वयं, आत्मा, परमात्मा, व्यक्ति, समाज, संसार को आप और अधिक बेहतर ढंग से, नए ढंग से अर्थात गहराई से समझने, अनुभव करने लगे हैं। आपका व्यक्तित्व पहले से कई गुना बेहतर होने लगा है.......।

                         धन्यवाद

         ✍( प्रस्तुत लेख कई वर्षों के योग खासकर पतंजलि योग, तंत्र खासकर विज्ञान भैरव तंत्र, विभिन्न ध्यान विधियों, मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, विभिन्न मन-मस्तिष्क क्षमता विकास तकनीकों, परामनोविज्ञान, सम्मोहन विज्ञान, रेकी, मिड ब्रेन एक्टिवेशन, एनएलपी तकनीक, आधुनिक विज्ञान, प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति, स्वर विज्ञान तथा विभिन्न धर्मों के (आध्यात्मिक) ज्ञान के गहन अध्ययन, प्रशिक्षण, प्रयोग के साथ-साथ विभिन्न विश्व प्रसिद्ध गुरुओं से प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रुप से प्राप्त ज्ञान के आधार पर प्रस्तुत.......)

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