🌷विद्यार्थियों का मन- मस्तिष्क सबसे संवेदनशील है🌷
मानव- खासकर विद्यार्थियों का बाल मन-मस्तिष्क संसार का सबसे संवेदनशील पदार्थ/अंग है, और चूँकि यह सबसे संवेदनशील है, इसलिए यह आसपास के सभी चीजों से सर्वाधिक प्रभावित होता है। समाज, देश, दुनिया के अधिकांश लोगों में विभिन्न कारणों खासकर अशिक्षा के कारण नकारात्मक विचार, भाव, कार्य-व्यवहार होने के कारण समाज में नकारात्मक माहौल की अधिकता है।
जिसका सर्वाधिक प्रभाव विद्यार्थियों के संवेदनशील मन-मस्तिष्क पर पड़ता है, जो कि विद्यार्थियों के पढ़ाई लिखाई में कमजोर होने तथा शिक्षा गुणवत्ता में कमी आने का सबसे प्रमुख कारण है।
योग-ध्यान साधना या मनोविज्ञान में रूचि रखने वाले अथवा पढ़े-लिखे समझदार, संवेदनशील. सजग लोग इस बात को आसानी से समझ सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं।
इसलिए स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता सुधारने में शिक्षकों के साथ-साथ सबका योगदान आवश्यक है, क्योंकि विद्यार्थी एक सामाजिक प्राणी होने के कारण परिवार,समाज से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। इसीलिए शिक्षकों को स्कूलों में अधिकांश विद्यार्थियों को सुधारने में काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
मनोविज्ञान के नवीनतम खोजों के अनुसार विद्यार्थियों का मस्तिष्क जन्म के साथ ही धीरे-धीरे कार्य करना,अनुभव करना तथा प्रभावित होना प्रारम्भ कर देता है, और प्राथमिक शाला प्रवेश के उम्र तक बच्चे परिवार समाज में जाने अनजाने अज्ञानतावश व्याप्त नकारात्मक प्रभावों से काफी कुछ प्रभावित हो चुके रहते है, इसलिए बच्चों के मन मस्तिष्क की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए उनके बेहतर शारीरिक, मानसिक (बौद्धिक,चारित्रिक) विकास के लिए शाला प्रवेश के पूर्व ही परिवार समाज के लोगों/ पालकों के द्वारा बच्चों के पढ़ाई के अनुकूल माहौल/ वातावरण निर्मित किए जाने, उपलब्ध करवाए जाने की आवश्यकता है।
शाला प्रवेश पश्चात विद्यार्थी शिक्षको की तुलना में स्कूल के बाहर परिवार, समाज के लोगों के सम्पर्क में अधिक रहते है, इसलिए शिक्षा गुणवत्ता सुधार के लिए पालकों को भी पढ़ाई के अनुकूल अच्छे पालक के गुण के विकास के लिए प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक है।
विद्यार्थी शिक्षक से ही नहीं बल्कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से दुनिया के सभी लोगों और चीजों से संबंधित होता है, इसलिए उनके बाल मन-मस्तिष्क पर सभी लोगों,चीजों का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है, इसलिए भी विद्यार्थियों के शिक्षा गुणवत्ता सुधार में सभी को मिलजुल कर सहयोग करने की आवश्यकता है।
साथ ही परिवार समाज के लोगों द्वारा विद्यार्थियों में शिक्षक के प्रति सम्मान का भाव निर्मित करना भी आवश्यक है, क्योंकि समाज के लोग जब शिक्षको को महत्व, सम्मान नही देंगे तो बच्चे कहां से महत्व देंगे,और विद्यार्थी जब तक शिक्षक को पर्याप्त महत्व देना नहीं सीखेंगे,तब तक वह ठीक से शिक्षा प्राप्त करना भी नहीं सीख पाएंगे।इसलिए शिक्षा में गुणवत्ता के लिए शासन प्रशासन के द्वारा सुविधा संपन्नता तथा समाज के द्वारा शिक्षकों को पर्याप्त सम्मान/महत्व दिया जाना आवश्यक है।
🌷धन्यवाद🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक)
पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)
मानव- खासकर विद्यार्थियों का बाल मन-मस्तिष्क संसार का सबसे संवेदनशील पदार्थ/अंग है, और चूँकि यह सबसे संवेदनशील है, इसलिए यह आसपास के सभी चीजों से सर्वाधिक प्रभावित होता है। समाज, देश, दुनिया के अधिकांश लोगों में विभिन्न कारणों खासकर अशिक्षा के कारण नकारात्मक विचार, भाव, कार्य-व्यवहार होने के कारण समाज में नकारात्मक माहौल की अधिकता है।
जिसका सर्वाधिक प्रभाव विद्यार्थियों के संवेदनशील मन-मस्तिष्क पर पड़ता है, जो कि विद्यार्थियों के पढ़ाई लिखाई में कमजोर होने तथा शिक्षा गुणवत्ता में कमी आने का सबसे प्रमुख कारण है।
योग-ध्यान साधना या मनोविज्ञान में रूचि रखने वाले अथवा पढ़े-लिखे समझदार, संवेदनशील. सजग लोग इस बात को आसानी से समझ सकते हैं, अनुभव कर सकते हैं।
इसलिए स्कूलों में शिक्षा गुणवत्ता सुधारने में शिक्षकों के साथ-साथ सबका योगदान आवश्यक है, क्योंकि विद्यार्थी एक सामाजिक प्राणी होने के कारण परिवार,समाज से सर्वाधिक प्रभावित होते हैं। इसीलिए शिक्षकों को स्कूलों में अधिकांश विद्यार्थियों को सुधारने में काफ़ी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
मनोविज्ञान के नवीनतम खोजों के अनुसार विद्यार्थियों का मस्तिष्क जन्म के साथ ही धीरे-धीरे कार्य करना,अनुभव करना तथा प्रभावित होना प्रारम्भ कर देता है, और प्राथमिक शाला प्रवेश के उम्र तक बच्चे परिवार समाज में जाने अनजाने अज्ञानतावश व्याप्त नकारात्मक प्रभावों से काफी कुछ प्रभावित हो चुके रहते है, इसलिए बच्चों के मन मस्तिष्क की संवेदनशीलता को ध्यान में रखते हुए उनके बेहतर शारीरिक, मानसिक (बौद्धिक,चारित्रिक) विकास के लिए शाला प्रवेश के पूर्व ही परिवार समाज के लोगों/ पालकों के द्वारा बच्चों के पढ़ाई के अनुकूल माहौल/ वातावरण निर्मित किए जाने, उपलब्ध करवाए जाने की आवश्यकता है।
शाला प्रवेश पश्चात विद्यार्थी शिक्षको की तुलना में स्कूल के बाहर परिवार, समाज के लोगों के सम्पर्क में अधिक रहते है, इसलिए शिक्षा गुणवत्ता सुधार के लिए पालकों को भी पढ़ाई के अनुकूल अच्छे पालक के गुण के विकास के लिए प्रशिक्षित किया जाना आवश्यक है।
विद्यार्थी शिक्षक से ही नहीं बल्कि प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रुप से दुनिया के सभी लोगों और चीजों से संबंधित होता है, इसलिए उनके बाल मन-मस्तिष्क पर सभी लोगों,चीजों का पर्याप्त प्रभाव पड़ता है, इसलिए भी विद्यार्थियों के शिक्षा गुणवत्ता सुधार में सभी को मिलजुल कर सहयोग करने की आवश्यकता है।
साथ ही परिवार समाज के लोगों द्वारा विद्यार्थियों में शिक्षक के प्रति सम्मान का भाव निर्मित करना भी आवश्यक है, क्योंकि समाज के लोग जब शिक्षको को महत्व, सम्मान नही देंगे तो बच्चे कहां से महत्व देंगे,और विद्यार्थी जब तक शिक्षक को पर्याप्त महत्व देना नहीं सीखेंगे,तब तक वह ठीक से शिक्षा प्राप्त करना भी नहीं सीख पाएंगे।इसलिए शिक्षा में गुणवत्ता के लिए शासन प्रशासन के द्वारा सुविधा संपन्नता तथा समाज के द्वारा शिक्षकों को पर्याप्त सम्मान/महत्व दिया जाना आवश्यक है।
🌷धन्यवाद🌷
रामेश्वर वर्मा (शिक्षक)
पथरिया, मुंगेली (छत्तीसगढ़)
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